EWS Quota Verdict: 'संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध', आर्थिक आधार पर आरक्षण से असहमत CJI और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट बोले
EWS Quota Case: सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को दो के मुकाबले तीन मतों के बहुमत से बरकरार रखा.
EWS Reservation: आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को दिए गए 10 प्रतिशत आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है. वहीं चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट का फैसला अल्पमत का रहा. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि गरीबी के आधार पर आरक्षण देते समय SC, ST और OBC के गरीबों को भी उसमें शामिल किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. यह भेदभाव है और संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध है. हालांकि, 5 जजों की बेंच में से 3 जजों के EWS आरक्षण को मंजूरी देने के चलते उसे ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला माना जाएगा.
5 जजों की संविधान बेंच ने 3:2 के बहुमत से संविधान के 103वें संशोधन को सही करार दिया है. इसी संशोधन के जरिए आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की व्यवस्था बनाई गई थी. कोर्ट ने माना है कि इस तरह का आरक्षण संवैधानिक है और यह किसी भी दूसरे वर्ग के अधिकार का हनन नहीं करता है. जनवरी 2019 में संविधान में किए गए 103वें संशोधन के जरिए अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) को जोड़ा गया था. इसके जरिए सरकार को यह अधिकार दिया गया था कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए विशेष व्यवस्था बना सकती है.
इसके बाद सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को नौकरी और उच्च शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था बनाई. इसे सुप्रीम कोर्ट में 30 से अधिक याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई थी. मामले को चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने सुना था.
आरक्षण के पक्ष में फैसला देने वाले तीनों जजों ने यह भी कहा कि संविधान को लागू करते समय आरक्षण को एक सीमित समय के लिए रखे जाने की बात कही गई थी. अब लगभग 75 साल बाद भी आरक्षण जारी है. ऐसे में इसकी समीक्षा की जरूरत है. आरक्षण अनंत काल तक नहीं दिया जा सकता है.
जजों ने क्या कहा?
आज दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों- जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, बेला एम त्रिवेदी और जमशेद पारडीवाला ने EWS आरक्षण को सही करार दिया है. इन जजों ने माना है कि संविधान ने सरकार का यह कर्तव्य तय किया है कि वह हर तरह के कमजोर तबके को उचित प्रतिनिधित्व दे कर उसे मुख्यधारा में लाने की कोशिश करें. ऐसे में गरीबी के चलते पिछड़ रहे सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने की व्यवस्था बनाने में कोई संवैधानिक गलती नहीं है.
जजों ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पहले से आरक्षण पा रहे SC, ST और OBC के लिए तय की थी. नया 10 प्रतिशत आरक्षण सामान्य वर्ग को दिया गया है. ऐसे में इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ नहीं कहा जा सकता है. जजों ने यह भी कहा कि इस 10 प्रतिशत आरक्षण में SC, ST और OBC का कोटा तय करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह वर्ग पहले से आरक्षण का लाभ ले रहा है.