Champat Rai: जानिए रामलला के पटवारी 'चंपत राय' के बारे में, यहां देखें इनकी पूरी प्रोफाइल
Champat Rai Biography: चंपत राय वर्तमान में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव हैं. चंपत राय ने अपना जीवन रामलला के चरणों में समर्पित कर दिया. इसलिए लोग इन्हें रामलला का पटवारी भी कहते हैं.
Champat Rai Biography: प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या लोगों के खास महत्व रखती है. यह केवल शहर मात्र नहीं है, बल्कि सनातन प्रेमियों से लिए वह नगरी है, जो आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्वों को जोड़े हुए है. लगभग 500 साल की लंबी लड़ाई के बाद अब अयोध्या में बना प्रभु श्रीराम का मंदिर सनातन प्रेमियों के लिए विशेष महत्व रखता है. क्योंकि हम कलयुग के वो साक्षी होने जा रहे हैं जो एक बार फिर से प्रभु राम के आगमन पर दीप जलाएंगे, ठीक उसी तरह जैसे त्रेतायुग में रामजी के 14 साल बाद वनवास से लौटने पर अयोध्या वासियों ने जलाए थे.
श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में बना भव्य रामलला का मंदिर जिस तरह चर्चा में है. ठीक उसी तरह रामलला के पटवारी यानी चंपत राय भी सुर्खियों में बने हुए हैं. समय-समय पर चंपत राय अयोध्या राम मंदिर और 22 जनवरी 2024 को होने वाली प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम से जुड़ी जानकारियां साझा कर रहे हैं.
अयोध्या राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की जिम्मेदारी संभाल रहे 'चंपत राय' मुख्य लोगों में एक हैं. कार्यक्रम कैसा होगा, इसमें कौन लोग शामिल होंगे, कार्यक्रम की अवधि क्या होगी और जनमानस के लिए रामलला के दर्शन कब से होंगे आदि जुड़े सभी सवालों के जवाब मीडिया व पत्रकारों को चंपत राय ही दे रहे हैं. इस तरह से रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की अहम जिम्मेदारी भी चंपत राय के कंधे पर ही है. लेकिन चपंत राय आखिर कौन हैं और राम मंदिर में क्या है इनकी भूमिका? आइये जानते हैं-
कौन हैं चंपत राय (Who Is Champat Rai)
चंपत राय का जन्म 18 नवंबर 1946 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले की नगीना तहसील में रामेश्वर प्रसाद बंसल और सावित्री देवी के घर पर हुआ. ये 10 भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं. बहुत कम उम्र में ही ये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए और संघ के विचारों का खूब प्रचार-प्रसार किया. उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद ये धामपुर के आश्रम में डिग्री कॉलेज में केमिस्ट्री के प्रोफेसर बन गए और नौकरी करने लगे.
1991 में अयोध्या आएं चंपत राय
1991 में चंपत राय क्षेत्रीय संगठन मंत्री के तौर पर अयोध्या आए. 1996 में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के केंद्रीय मंत्री बए और 2002 में संयुक्त महामंत्री और इसके बाद अंतरराष्ट्रीय महामंत्री बने. इस समय चंपत राय विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं.
चंपत राय को क्यों कहा जाता है रामलला का पटवारी
चंपत राय ने शादी नहीं की और अपने घर भी कभी-कभार ही जाते हैं. अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण को लेकर सामाजिक आंदोलन के साथ-साथ कानूनी लड़ाई में चंपत राय की अहम भूमिका रही है. चंपत राय ने ही रामजन्मभूमि से जुड़े तमाम फाइलों व साक्ष्यों को अपने कक्ष में रखा था और प्रतिदिन वकीलों को कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए नए-नए साक्ष्य उपलब्ध कराने, वकीलों से साथ कोर्ट जाने, सुनवाई के दौरान धैर्य बनाए रखने की जिम्मेदारी चंपत राय ने बखूबी निभाई, जोकि साधारण बात नहीं है. रामजन्मभूमि अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण के लिए चंपत राय की अहम भूमिका को देखते हुए लोग इन्हें प्यार से रामलला का पटवारी कहते हैं. राम मंदिर का निर्माण कार्य और प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का काम भी चंपत राय की निगरानी में ही हो रहा है.
निभा रहे हैं ये अहम जिम्मेदारी
2019 में जब सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्म भूमि के पक्ष में फैसला सुनाया तो श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने चंपत राय को मंदिर निर्माण से जुड़ी अहम जिम्मेदारी सौंपी. |
2020 में चंपत राय को श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का महासचिव बनाया गया. यह जिम्मेदारी चंपत राय के लिए बहुत अहम थी, जिसे वो अच्छी तरह निभा रहे हैं. |
फिलहाल चंपत राय रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से जुड़ी जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं. |
सरकारी नौकरी से क्यों दिया इस्तीफा ?
1975 में इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल की घोषणा की, तब चंपत राय कॉलेज में प्रवक्ता थे. उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस कॉलेज पहुंच गई. कहा जाता है कि, चंपत राय इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के दौरान राम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर गिरफ्तार हुए थे.
चंपत राय करीब 18 महीने तक उत्तर प्रदेश के जेल में रहे. इस दौरान उन्हें अलग-अलग जिलों में ट्रांसफर किया गया. हालांकि जेल में रहने के दौरान उनका संकल्प और दृढ़ हुआ और वो एक अलग ही व्यक्ति के रूप में सामने आए. आपातकाल खत्म होने के बाद उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. लेकिन जेल से बाहर आने के बाद वो वापस कभी घर लौटकर नहीं गए. जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया और विश्व हिंदू परिषद का हिस्सा बन गए.
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