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क्या सचमुच सैनिटरी नैपकिन से हो सकता है कैंसर? जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट

थोड़ा सावधान हो जाएं क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि सैनिटरी नैपकिन के लम्बे समय तक इस्तेमाल करने से कैंसर हो सकता है.

नई दिल्लीः क्या हर महीने पीरियड्स के दौरान आप भी पैड्स यानि सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं? अगर हां, तो थोड़ा सावधान हो जाएं क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि सैनिटरी नैपकिन के लम्बे समय तक इस्तेमाल करने से कैंसर हो सकता है.

जानिए क्या कहा जा रहा है इस मामले में-

  • पैड प्लास्टिक मैटिरियल से बनता है जिसमें बीपीए और बीपीएस जैसे कई  कैमिकल्स डाले जाते है जो फीमेल ऑर्गन को खराब कर सकता है.
  • सैनिटरी नैपकिन में फाइबर होता है जो कि सर्विकल कैंसर का कारण बन सकता है. ऐसा कहा जा रहा है कि सैनिटरी पैड पूरी तरह से रूई से नहीं बनते हैं. ऐसे में इन्हें बनाने के दौरान सेलूलोज़ जैल का इस्तेमाल होता है.
  • इतना ही नहीं, ये भी कहा जा रहा है कि पैड्स में डाइऑक्सिन भी होता है जिससे ओवेरियन कैंसर हो सकता है.
  • नैप्किंस को नमी एब्ज़ोर्व करने के लिए बनाया जाता है इसलिए रूई के साथ-साथ इसमें रेयोन (सेलूलोज से बनाया हुआ नकली रेशम), सिंथेटिक फाइबर भी डाला जाता है जो बहुत ही खतरनाक होते हैं.
  • इसमें पैस्टिसाईड्स और जड़ी-बूटियों को भी डाला जाता है. ऐसे में सैनिटरी नैपकिन कैंसर का कारण बन सकता है.

डॉक्टर्स की राय- इस मामले की जांच के दौरान एबीपी न्यूज़ ने कई डॉक्टर्स से बात की. जानिए क्या कहा डॉक्टर्स ने.

एम्स की गायनोक्लोजिस्ट डिपार्टमेंट की हेड डॉ. अल्का कृपलानी का कहना है कि किसी भी तरह के कैमिकल से महिलाओं को कैंसर हो सकता है. उन्होंने बताया कि यदि किसी सैनिट्री नैपकिन की मेकिंग के दौरान कैमिकल का इस्तेमाल हुआ है तो महिलाओं को उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि कैमिकल से महिलाओं का सीधे संपर्क होता है तो उन्हें कैंसर हो सकता है. उन्होंने ये भी बताया कि कई महिलाएं पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड्स पर टैल्कम पाउडर का इस्तेमाल करती हैं जो कि कैंसर का कारण बन सकता है.

मैक्स वैशाली हॉस्पिटल की गायनोक्लोजिस्ट डॉ. कनिका गुप्ता का कहना है कि सर्वाइकल कैंसर सैनिटरी नैपकिन से नहीं हो सकता लेकिन सैनिटरी नैपकिन के कारण अनहाईजनिक मेडिकल कंडीशंस हो रही हैं. महिलाओं को ठीक से साफ-सफाई ना रखने के कारण इंफेक्शन हो रहा है. इससे इम्यूनिटी कम हो रही है. सीधे तौर पर कहा जाए तो यदि महिलाएं पैड्स इस्तेमाल करने के दौरान हाइजिन मेंटेन नहीं करती तो उन्हें इंफेक्शन होने का खतरा अधिक रहता है जो कि बाद में किसी गंभीर बीमारी का रूप ले सकता है. हाइजिन में ये भी ध्यान रखना जरूरी है कि सैनिटरी पैड्स कितने घंटे में बदले जा रहे हैं. नैपकिन कितना हाइजिनिकली बना है.

आईवीएफ स्पेशलिस्ट और गायनोक्लोजिस्ट डॉ. शिवानी का कहना है कि बहुत सारी चीजें कैंसर होने का कारण होती है. पॉल्यूशन, डायट और भी इसी तरह की कई चीजें. हालांकि ये रिसर्च आई है कि सैनिटरी नैपकिन जो कैमिकल से बनते हैं उनसे कैंसर होने का खतरा है. लेकिन अब बहुत से बड़े ब्रांड्स ये दावा करते हैं कि उनके बनाए सैनिटरी नैपकिंस में किसी तरह का कोई कैमिकल इस्तेमाल नहीं होता. ऐसे में आपको ऐसे सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करना चाहिए जो कैमिकल से नहीं बने.

वहीं डॉ. गुलाटी का इस बारे में कहना है कि टैल्कम पाउडर से कैंसर होता है लेकिन सैनिट्री नैपकिन को लेकर ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि इससे कैंसर होता है.

ये मैसेज भी हुआ था वायरल- आपको बता दें कि कुछ समय पहले सोशल मीडिया एक पर पोस्ट डाली गई थी और इस पोस्ट में ये कहा गया कि 56 लड़कियों की पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल होने वाले विस्पर और स्टेफ्री सैनेटरी नैपकिन के कारण डेथ हो गई. पोस्ट में चेतावनी दी गई कि दिनभर एक ही पैड इस्तेमाल ना करें क्योंकि इन अल्ट्रा नैपकिंस में कैमिकल का इस्तेमाल होता है ये कैमिकल दिनभर में लिक्विड जैल में कन्वर्ट हो जाता है जिस कारण ब्लैडर कैंसर और यूट्रस कैंसर होने का डर रहता है. पोस्ट में सलाह दी गई कि सिर्फ कॉटन से बने पैड का ही इस्तेमाल करें. साथ ही ये भी लिखा गया कि यदि आप अल्ट्रा पैड्स का इस्तेमाल करती हैं तो 5 घंटे बाद बदल लें. अगर सैनेटिरी नैपकिन नहीं बदला गया तो इसमें जमा ब्लड ग्रीन होकर फंगस बन जाता है जो कि यूट्रस के जरिए बॉडी में जाता है.

लेकिन जब एबीपी न्यूज़ ने इसकी जांच करी तो ये बात गलत निकली. एबीपी न्यूज़ ने इस बारे में मैक्स वैशाली हॉस्पिटल की गायनोक्लोजिस्ट डॉ. कनिका गुप्ता से बात की थी. उनका कहना था कि पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड्स यूज कर रहे हों और दिनभर उसे चेंज नहीं कर रहे तो जो ब्लड इकट्ठा है उससे बस 1 पर्सेंट चांस हैं कि कुछ इंफेक्शन डवलप हो जाए लेकिन ये अलग सिचुएशन हैं. सैनिटरी पैड्स के इस्तेमाल से ना तो ब्लैडर कैंसर होता है और ना ही यूट्रेस कैंसर. इतना ही नहीं, अगर कॉटन पैड्स यूज करने की बात की जा रही हैं तो उसको भी चेंज नहीं करोगे तो इंफेक्शन और बाकी चीजें तो उससे भी हो सकती हैं. ये सिर्फ डराया जा रहा है कि 56 लड़कियों की विस्पर या स्टेफ्री से मौत हो गई.

क्या कहते हैं आंकड़े- नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) 2015-16 की रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में ग्रामीण महिलाएं 48.5%, शहरों में 77.5% महिलाएं और कुल 57.6% महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं.

जांच के दौरान सैनिटरी नैपकिन नहीं पाए गए सुरक्षित- 2003 में अहमदाबाद स्थित कंज़्यूमर एजूकेशन एंड रिसर्च सेंटर ने बाजार में उपलब्ध 19 ब्रांड के सैनिटरी नैपकिन की जांच की तो इन पर ना सिर्फ डस्ट मिली बल्कि इनमें चीटियां भी पाईं गईं.

कंज़्यूमर्स की राय- कंज़्यूमर्स का मानना है कि जब बाज़ार में प्रोडक्ट्स अधिकारिक एजेंसियों द्वारा प्रमाणित होते हैं तो वे सुरक्षित हैं. भारत में सैनिटरी पैड को जिस स्टैंडर्ड के अनुसार परीक्षण किया जाता है उनमें 1980 से कोई बदलाव नहीं किया गया है. अगर इस स्टैंडर्ड के अनुसार जांच की जाए तो सारे सैनिटरी पैड्स पास हो जाएंगे तो इसलिए इन स्टैंडर्ड्स में बदलाव करना ज़रूरी है या इनमें और भी पैरामीटर्स डाले जाएं.

चीफ एग्ज़िक्यूटिव ऑफिसर ऑफ वेगर हाइजीन एंड मेकर ऑफ हेल्थ एंड पर्सनल केयर के जिनोज का कहना है कि हमें ऐसे पैरामीटर्स डालने होंगे जिससे यह पता चल सके कि ये प्रोडक्ट कितना सेफ हैं.

ये रिसर्च और एक्सपर्ट के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर या एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.

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