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अथर्ववेद के समय से चलती आ रही है लिव इन और लव मैरिज की परंपरा, पढ़िए कालिदास भी मनाते थे वैलेंटाइन का महीना
Valentines Week: वैलेंटाइन के रंग में सारी दुनिया शबनमी रंग की हो जाती है, मगर क्या आप जानते हैं कि फरवरी में रोमांस की ये परंपरा अथर्ववेद के समय से चलती आ रही है. जानिए पूरी कहानी...
![अथर्ववेद के समय से चलती आ रही है लिव इन और लव मैरिज की परंपरा, पढ़िए कालिदास भी मनाते थे वैलेंटाइन का महीना Tradition of live in and love marriage since the time of Atharvaveda Kalidas know in hindi अथर्ववेद के समय से चलती आ रही है लिव इन और लव मैरिज की परंपरा, पढ़िए कालिदास भी मनाते थे वैलेंटाइन का महीना](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2024/02/09/5ec9a16f9721fb330cf3f132e09721601707475797186701_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
उर्दू के शायर बशीर बद्र शेर कहते हैं कि -
"मोहब्बत एक खुश्बू है हमेशा साथ चलती है
तन्हाई में भी कोई शख्स तन्हा नहीं रहता"
मोहब्बत का महीना फरवरी दिल के दरवाजों पर दस्तक दे चुका है. सारी दुनिया वैलेंटाइन वीक के मद्देनजर प्यार में शबनमी नजर आने लगी है. लोग अपने चाहने वाले से प्रेम का इजहार करते हैं, उनसे वादे करते हैं और प्यार करते हैं. हालांकि, हमारे यहां यह भी देखा जाता है कि वैलेंटाइन के कल्चर का विरोध भी खूब होता रहा है, लेकिन आप प्राचीन नाटक और इतिहास उठाकर देखेंगे तो समझेंगे कि जिस चीज को लेकर हम आज नैरो माइंडेड हैं, उसी चीज को लेकर हमारा प्राचीन समाज काफी खुले विचार का था.
कालिदास के नाटक में लव प्रपोजल का जिक्र
अथर्ववेद में तो जिक्र है कि प्राचीन काल में अभिभावक सहर्ष अनुमति देते थे कि लड़की अपने जीवनसाथी का चयन खुद करे. संस्कृत के महाकवि कालिदास के उस समय के नाटक में प्रपोज करने जैसी दास्तां का जिक्र मिलता है. कालिदास ने द्वितीय शुंग शासक अग्निमित्र को नायक बनाकर मालविकाग्निमित्रम् नाटक लिखा. अग्निमित्र ने 170 ईसा पूर्व में शासन किया था. इस नाटक में उन्होंने उल्लेख किया कि किस तरह रानी इरावती बसंत के आने पर राजा अग्निमित्रा के पास लाल फूल के जरिए प्रेम निवेदन भेजती हैं.
रोमांस का मौसम होता था बसंत
कालिदास के युग में भी बसंत को रोमांस का मौसम बताया गया. प्रेम प्रसंग के तमाम नाटकों के प्रदर्शन के लिए यह मौसम आदर्श बताया जाता था. नाटकों में स्त्रियां इसी मौसम में अपने पति के लिए झूले झूलती थीं. ऐसे में इसे मदनोत्सव भी कहा गया. इसी ऋतु में कामदेव और रति की पूजा का रिवाज है.
वैदिक किताबों में गंधर्व विवाह का रिवाज
पौराणिक हिंदू ग्रंथों के अनुसार, उस दौर में लड़कियों को खुद अपने पति को चुनने का अधिकार था. वे एक-दूसरे से मिलते थे और सहमति से साथ रहने के लिए राजी भी हो जाते थे. वैदिक किताबों के अनुसार, अथर्ववेद का एक अंश कहता है कि यह विवाह का सबसे शुरुआती और सामान्य तरीका होता था. देश में आज भी छत्तीसगढ़ से लेकर उत्तर पूर्व और कई जनजातीय समाज में यह रिवाज है जब लड़का-लड़की एक दूसरे को पसंद कर लेते हैं, उसके बाद उनकी शादी तय की जाती है.
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