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शरद पवार के बाद NCP के भविष्य को लेकर उठने लगे सवाल, पार्टी के नए अध्यक्ष के लिए ये होंगी बड़ी चुनौतियां

Sharad Pawar Resigns: अजित पवार को अगर पार्टी की कमान मिलती है तो सबसे बड़ा डर पार्टी के टूटने का होगा. बीजेपी के प्रति उनका रुख और शरद पवार की नाराजगी के बाद अटकलें शुरू हो चुकी हैं.

Sharad Pawar Resigns: दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक राजनीति में कई दशकों तक अपना जलवा बिखेरने वाले शरद पवार ने राजनीति से रिटायरमेंट का एलान कर दिया है. एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि वो एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहे हैं, क्योंकि उन्होंने रिटायमेंट का फैसला किया है. राजनीति के एक बड़े स्तंभ शरद पवार के इस फैसले के बाद से ही उनके समर्थक काफी भावुक हैं, वहीं दूसरी तरफ पार्टी के नए मुखिया को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं. माना जा रहा है कि शरद पवार के भतीजे अजित पवार को ही पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है. अब सवाल है कि जिस एनसीपी को खड़ा करने में शरद पवार ने अपने 50 साल के सियासी अनुभव को झोंक दिया, उसे संभालना कितना मुश्किल साबित होगा. आइए जानते हैं कि एनसीपी महाराष्ट्र में कितनी ताकतवर है और पार्टी के नए बॉस के लिए क्या बड़ी चुनौतियां होंगी. 

अजित पवार होंगे अगले अध्यक्ष?
शरद पवार के रिटायरमेंट के ऐलान के बाद एनसीपी ने एक कमेटी बनाई है, जो पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव करेगी. इस कमेटी में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले, भतीजे अजित पवार समेत कुल 15 बड़े नेता शामिल हैं. हालांकि ये माना जा रहा है कि पार्टी की कमान अजित पवार के हाथों में ही दी जाएगी. शरद पवार के फैसले के बाद जब समर्थक नारेबाजी करने लगे और उन्हें एनसीपी चीफ पर बने रहने की मांग की तो अजित पवार ने खुद उन्हें मैसेज दिया कि पार्टी चीफ को लेकर योग्य फैसला लिया जाएगा.  हालांकि समर्थकों के अलावा पार्टी के कई नेताओं ने भी शरद पवार की जगह दूसरे अध्यक्ष के चुनाव का विरोध किया है. जिसके बाद ये माना जा रहा है कि अजित पवार की ताजपोशी हो सकती है.

अजित पवार का बीजेपी के लिए झुकाव
पिछले कुछ दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति अजित पवार के इर्द-गिर्द घूम रही है. अजित पवार को लेकर अटकलें लगाई गईं कि वो बीजेपी के साथ जाना चाहते हैं, जिसके लिए वो पार्टी विधायकों को एकजुट करने का काम कर रहे हैं. इससे पहले भी अजित पवार को बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाते देखा गया था, जो महज तीन दिन में ही गिर गई थी. अब अगर पार्टी की कमान अजित पवार के हाथ में आती है तो वो अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए फैसले ले सकते हैं. 

अजित पवार समेत एनसीपी के कई नेताओं पर ईडी का शिकंजा कसता जा रहा है, ऐसे में वो बीजेपी के साथ जाने का मन बना रहे थे, हालांकि शरद पवार की तरफ से साफ इनकार कर दिया गया. इससे अजित पवार नाराज चल रहे थे. तमाम मंचों से उनकी नाराजगी साफ देखी गई. इसके बाद पार्टी में दो धड़े बनते देखे गए, एक धड़ा वो था जो एमवीए गठबंधन के साथ नहीं रहना चाहता था और दूसरा धड़ा शरद पवार के फैसले को मानने वाला था. ऐसे में अगर अजित पवार के हाथों में पार्टी की कमान सौंपी जाती है तो वो कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं.  

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे साबित न हो जाएं अजित पवार
अजित पवार को अगर पार्टी की कमान मिलती है तो सबसे बड़ा डर पार्टी के टूटने का होगा. महाराष्ट्र में सभी ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के चैप्टर को देखा है. शिवसेना जैसी पार्टी की कमान उद्धव ठाकरे के हाथों में थी, वो महाराष्ट्र में गठबंधन से सरकार भी बना चुके थे. लेकिन उनके नाक के नीचे एकनाथ शिंदे ने 40 विधायकों को अपने पाले में कर लिया और एक झटके में पूरी पार्टी को तोड़ दिया. आज हालात ये हैं कि शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह तक ठाकरे परिवार से छिन गया है. 

अब महाराष्ट्र में एनसीपी के भविष्य को लेकर भी कई कयास लगाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि एनसीपी के लिए अजित पवार शिवसेना के उद्धव ठाकरे साबित हो सकते हैं. क्योंकि पार्टी कैडर अब भी शरद पवार से जुड़ा हुआ है, ऐसे में उनकी गैरमौजूदगी में लिया गया फैसला एनसीपी के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकता है. अजित पवार की पार्टी पर पकड़ फडणवीस के साथ शपथ कांड के दौरान सभी देख चुके हैं, ऐसे में पूरी पार्टी को अपने हर फैसले में एक साथ लेकर चलना उनके लिए काफी मुश्किल होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो पार्टी दो धड़े में बंट सकती है और शिवसेना की तरह उसके अस्तित्व पर सवालिया निशान भी खड़ा हो सकता है.  

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
शरद पवार के इस्तीफे को लेकर राजनीतिक जगत में चर्चा के बीच हमने पॉलिटिकल एक्सपर्ट शिवाजी सरकार से बातचीत की. जिसमें उन्होंने बताया कि शरद पवार नाम के चैप्टर का अभी अंत नहीं हुआ है, अभी देश और महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार का असर बरकरार रहेगा. उन्होंने कहा- "शरद पवार का रोल पार्टी में आगे भी काफी अहम होने वाला है. रही बात उनके अध्यक्ष पद छोड़ने की तो ये उनका एक सूझबूझ भरा फैसला है. वो चाहते हैं कि उनके रहते पार्टी को नया अध्यक्ष मिल जाए. पार्टी के बाकी नेताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए ही 15 नेताओं की एक कमेटी बनाई गई है, जिसके बाद किसी भी बगावत की संभावना नहीं रह जाएगी."

नए अध्यक्ष के लिए क्या होंगी चुनौतियां
अब अगर शरद पवार अपने फैसले पर कायम रहते हैं और अध्यक्ष पद नहीं संभालते तो ये तय है कि पार्टी को नया अध्यक्ष मिलेगा. जिसके सामने चुनौतियों का एक बड़ा पहाड़ होगा. नए अध्यक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के नेताओं को एकजुट करने की होगी. क्योंकि अब तक शरद पवार के दमदार नेतृत्व में तमाम विधायक और पार्टी नेता एकजुट थे, उनके हर फैसले पर अमल होता था और एक इशारे पर पूरा विधायक दल जुट जाता था. नए अध्यक्ष को भी इसी तरह से पार्टी को मजबूत बनाए रखने की चुनौती है. 

आने वाले चुनाव बड़ी चुनौती
महाविकास अघाड़ी गठबंधन में एनसीपी एक मजबूत पार्टी थी. पिछले कुछ सालों में एनसीपी ने लगातार अपनी राजनीतिक जमीन को बढ़ाने का काम किया है. इसीलिए आने वाले चुनाव पार्टी के लिए काफी अहम हो सकते हैं. हाल ही में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने कहा था कि महाराष्ट्र में अगला सीएम एनसीपी का होगा. यानी एनसीपी महाराष्ट्र में खुद की ताकत बढ़ाकर चुनावों में गेम चेंजर बनने की कोशिश में है. ऐसे में नए अध्यक्ष के लिए आने वाले लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव और बीएमसी चुनाव काफी अहम होंगे. इसमें पार्टी कैडर में जोश भरने से लेकर बूथ लेवल तक उसे एक्टिव रखने की चुनौती नए अध्यक्ष की होगी. 

राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन 
एनसीपी के अगले अध्यक्ष के सामने नए सिरे से गठबंधन करने की भी एक चुनौती होगी. आने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी किसके साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी, उसके बाद विधानसभा में पार्टी के लिए महाविकास अघाड़ी गठबंधन जरूरी होगा या नहीं... ये सब सवाल नए अध्यक्ष के सामने होंगे. गठबंधन का सीधा मतलब होता है सीट शेयरिंग, तो ये देखना भी खास होगा कि सीट शेयरिंग के मामले में पार्टी अपना कद कितना ऊंचा कर पाती है. यानी तमाम तरह के गठबंधन और सीटों के बंटवारे में हिस्सेदारी भी नए अध्यक्ष के कद को तय करेगी. 

महाराष्ट्र में एनसीपी की ताकत
अब आखिर में महाराष्ट्र में एनसीपी की ताकत को देखना भी काफी जरूरी है. पिछले विधानसभा चुनाव में एनसीपी को कुल 288 सीटों में से 54 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. बीजेपी और शिवसेना के बाद वो तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. ऐसे में जब एमवीए गठबंधन की सरकार बनी तो एनसीपी नेता अजित पवार को डिप्टी सीएम का पद दिया गया. वहीं महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 सीटों में से एनसीपी ने चार सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

एनसीपी ने बढ़ाया अपना वोट बैंक
एनसीपी के वोट बैंक की बात करें तो मराठी भाषी कई इलाकों में पार्टी की पैठ है, जहां शरद पवार के नाम पर ही वोट डाले जाते हैं. इसके अलावा पिछले कुछ सालों में पार्टी ने गैर मराठी वोट बैंक को भी अपनी तरफ खींचने का काम किया. हाल ही में एनसीपी अध्यक्ष जयंत पाटिल ने शरद पवार को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें बताया गया था कि पिछले कुछ सालों में एनसीपी को एमवीए गठबंधन में रहने का काफी फायदा हुआ है. ग्राम पंचायत में बीजेपी के बाद एनसीपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. बताया गया कि यही वजह है कि शरद पवार चुनावों तक बीजेपी के साथ गठबंधन कर अपनी ताकत कम नहीं करना चाहते हैं. उनका मिशन महाराष्ट्र में एनसीपी का मुख्यमंत्री बनाना है. 

ये भी पढ़ें- शरद पवार ने सियासत की पिच पर खेली 50 साल से ज्यादा की पारी, इंदिरा से लेकर मोदी तक...हर बार दिखाई अपनी ताकत

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