गरीबी पर बनी फिल्म: कर्ज़ के बोझ तले दबे किसानों के मुद्दे को उठाती है आमिर खान की 'पीपली लाइव'
Bollywood Film On Poverty: बॉलीवुड में किसान की गरीबी को लेकर कई फिल्मों का निर्माण हो चुका है. साल 2010 में आई पीपली लाइव किसानों की बदहाली और गरीबी की दास्तान को अपने एक अलग अंदाज दिखाती है.
Bollywood Film On Poverty: हिन्दी सिनेमा में किसान और उनकी गरीबी को लेकर कई बेहतरीन फिल्में बन चुकी हैं. इन फ़िल्मों की सूची में मदर इंडिया, गंगा जमना और दो बीघा ज़मीन जैसी फिल्मों के नाम शामिल हैं. इन फ़िल्मों ने किसानों की ज़िंदगी को बखूबी पर्दे पर उतारने का काम किया है. कई दशक पहले बनाई गई ये फिल्में आज भी किसानों के हालात को बयां करने के लिए काफी हैं. हालांकि वर्तमान दौर में भी किसानों की बदहाली के मुद्दे पर फिल्म बनती रही हैं.
साल 2010 में अनुषा रिज़वी और महमूद फारूकी के निर्देशन में बनी पीपली लाइव भी किसानों की बदहाली और गरीबी की दास्तान ही बयां करती है. पीपली लाइव ने बहुत ही अलग ढंग से किसानों की हालत को पेश किया. आमिर खान प्रोडक्शंस के बैनर तले बनाई गई इस फिल्म को समीक्षकों ने खूब सराहा था. ये फिल्म एक छोट से गांव की कहानी दिखाती है, जहां के किसान कर्ज़ के बोझ तले दबे हुए हैं.
फिल्म गरीब किसानों की आत्महत्या की समस्या पर आधारित है, लेकिन निर्देशक ने इस गंभीर समस्या को हंसी मज़ाक और राजनैतिक तंज़ के जरिए आसानी से लोगों को दिखाया. फिल्म दो भाइयों बुधिया (रघुवीर यादव) और नाथा (ओंकार दास माणिकपुरी) के इर्द गिर्द घूमती है, जो बेहद गरीब हैं और आत्महत्या कर के सरकारी योजना का फायदा उठाना चाहते हैं. दरअसल फिल्म में दिखाया गया है कि सरकार आत्महत्या करने वाले किसानों के परविरा को मुआवज़ा देती है.
इस फिल्म में किसानों की समस्या के साथ साथ राजनीतिक, समाजिक और मीडिया को भी बेपर्दा किया है. कई पहलुओं को समेटे ये फिल्म दर्शकों को खूब भाई थी. इसका गाना 'सखी सैयां तो खूब ही कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात हैं' आज भी लोगों की ज़बान पर है.
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