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सियासी घराना: कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार का पूरा सफर, जानिए कब, कहां और कैसे हुई शुरुआत ?

जवाहरलाल नेहरू को 1929 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुना गया. खास बात ये थी कि इससे पहले यानी 1928 में इस पद पर उनके पिता थे. ये पहली बार था, जब कांग्रेस अध्यक्ष पद एक ही परिवार के दूसरे सदस्य को दिया गया.

नई दिल्ली: भारत और भारतीय राजनीति की जब भी बात होगी तो 'इंडियन नेशनल कांग्रेस', (जिसे ज्यादातर लोग 'कांग्रेस' कहते हैं) एक ऐसा नाम है जिसका जिक्र होना लाज़मी है. और जब बात देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की हो रही हो तो नेहरू-गांधी परिवार का नाम लिए बिना इसे पूरा नहीं किया जा सकता. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर सबसे ज्यादा समय तक नेहरू-गांधी परिवार के लोग ही रहे हैं. हालांकि, एलन ऑक्टेवियन ह्यूम द्वारा सन 1885 में गठित हुए कांग्रेस के सबसे पहले अध्यक्ष व्योमेश चंद्र बनर्जी थे और तब इसका नेहरू-गांधी परिवार से कोई सरोकार नहीं था.

कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार का संबंध भारतीय इतिहास को दो भागों में बांटकर आसानी से समझा जा सकता है. एक- आजादी से पहले और दूसरा- आजादी के बाद.

आजादी के पहले कांग्रेस और नेहरू परिवार

कांग्रेस और नेहरू परिवार का संबंध सन 1861 में पैदा हुए मोतीलाल नेहरू की वजह से अस्तित्व में आया. मोतीलाल नेहरू पेशे से एक वकील थे जिनका अपने समय में काफी रुतबा था. मोतीलाल नेहरू उन पहले भारतीयों में से एक थे, जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की थी. उनकी 3 संतानें थीं, जिनमें सबसे बड़े जवाहरलाल नेहरू थे, जो आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री थे. जवाहरलाल के अलावा मोतीलाल नेहरू की दो पुत्रियां थीं- विजयलक्ष्मी पंडित और कृष्णा. विजयलक्ष्मी पंडित राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय थीं. वो संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष चुनी जानी वाली पहली महिला थीं. जबकि, कृष्णा हुथिसिंह एक लेखिका थीं.

मोतीलाल नेहरू हमेशा से राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं थे. वो मुख्य रूप से राजनीति में सन 1888 में आए. इसी साल वो इलाहाबाद कांग्रेस के 1400 प्रतिनिधियों में शामिल हुए थे, जिसके बाद वो धीरे-धीरे राजनीति में और ज्यादा गढ़ते गए. सन 1905 में बंगाल विभाजन के बाद उनकी राजनीतिक सक्रियता काफी बढ़ गई.

'कांग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू'

सन 1918 में मोतीलाल नेहरू ने बॉम्बे कांग्रेस में भाग लिया था और एक साल बाद 1919 में उन्होंने पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली. सन 1927 में जब 'साइमन कमीशन' के विरोध में 'भारत के संविधान' की चर्चा ने जोर पकड़ी तो अलग-अलग विचारधाराओं के दलों ने कांग्रेस के साथ इस मुद्दे पर अपनी सहमति जताई. मोतीलाल नेहरू की कानून पर अच्छी पकड़ थी इसलिए इसे अमली जामा पहनाने के लिए उनकी अध्यक्षता में 'भारत के संविधान' का मसौदा तैयार किया गया. इस मसौदे को 'नेहरू रिपोर्ट' के नाम से जाना जाता है. हालांकि, इस संविधान को लागू नहीं किया जा सका.

मोतीलाल नेहरू देश की आजादी के लिए लड़ते रहे और कई बार उनको जेल भी जाना पड़ा. इसी समर्पण की वजह से वो 1928 में दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बने. कांग्रेस और नेहरू परिवार का संबंध जोड़ने वाली इस शख्सियत का 6 फरवरी, 1931 को निधन हो गया.

जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस

1919 में मोतीलाल नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था और इसी साल उनके पुत्र जवाहरलाल नेहरू भी कांग्रेस में शामिल हुए. 1921 में जवाहरलाल नेहरू को 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' में शामिल होने के लिए जेल में डाल दिया गया. उस वक्त वो यूनाइटेड प्रॉविंस (अब उत्तर प्रदेश) कांग्रेस कमिटी के महासचिव के पद पर थे. कांग्रेस में जवाहरलाल नेहरू बहुत सक्रियता से काम कर रहे थे, जिसे देखते हुए उन्हें 1929 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुना गया. खास बात ये थी कि इससे पहले यानी 1928 में इस पद पर उनके पिता थे. ये पहली बार था, जब कांग्रेस का अध्यक्ष पद एक ही परिवार के दूसरे सदस्य को दिया गया.

कांग्रेस अध्यक्ष पद पर आने के बाद बाद जवारलाल नेहरू ने अपने पिता की अध्यक्षता में बनाए गए 'नेहरू रिपोर्ट' का विरोध किया. नेहरू रिपोर्ट में भारत को 'डोमिनियन स्टेट' का दर्जा देने की मांग की गई थी, जबकि जवाहरलाल देश को 'पूर्ण स्वराज' दिलाना चाहते थे. सुभाषचंद्र बोस भी जवाहरलाल नेहरू के इस कदम के पक्ष में थे. आजादी से पहले साल 1936 में एक बार फिर जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

आजादी के बाद कांग्रेस और नेहरू

देश सन 1947 में आजाद हुआ और आजाद भारत में कांग्रेस के पहले अध्यक्ष जे. बी. कृपलानी बने. भारत एक नई शुरुआत करने वाला था और देश को एक कुशल नेतृत्व चाहिए था. 1952 में आम चुनाव हुए और जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता (1951) में कांग्रेस ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की. इस तरह से जनता ने देश के नेतृत्व की जिम्मेदारी जवाहरलाल नेहरू के कंधों पर सौंप दी. नेहरू सन 1952 से सन् 1964 तक देश के प्रधानमंत्री रहे और 1951-1954 तक कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे.

जवाहरलाल नेहरू का परिवार

जवाहरलाल नेहरू का विवाह सन 1916 में कमला नेहरू से हुआ था. कमला नेहरू ने स्वाधीनता संग्राम में अपने पति का काफी साथ दिया. जवाहरलाल नेहरू की एक ही संतान थी- इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू. इंदिरा भी आगे चलकर अपने पिता की तरह भारत की प्रधानमंत्री बनीं.

इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू से इंदिरा गांधी

1917 में पैदा हुईं इंदिरा भारत की प्रथम और आजतक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री हैं. 1942 में इंदिरा नेहरू की शादी फीरोज गांधी से हुई. फीरोज गांधी एक स्वतंत्रता सेनानी थे जो नेहरू परिवार के काफी करीब थे. फीरोज गांधी एक पारसी परिवार से ताल्लुक रखते थे और शुरू  में उनका नाम 'फीरोज जहांगीर घांदी' था. जब उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया तो अपना नाम बदलकर फीरोज गांधी रख लिया. फीरोज से शादी के बाद इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू का भी नाम इंदिरा गांधी हो गया.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कांग्रेस

1955 में श्रीमती इंदिरा गांधी कांग्रेस कार्य समिति और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बनी. 1958 में उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया. वो 1956 में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस और एआईसीसी महिला विभाग की अध्यक्ष बनीं. वो साल 1959 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं. इसके बाद 1978-84 तक उन्होंने फिर से ये पद संभाला.

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की 1964 में मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने. लेकिन पदभार संभालने के दो साल के भीतर ही ताशकंद में शास्त्री जी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई, जिसके बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज के नेतृत्व में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. इसके बाद पहली बार 1966-77 तक और फिर 1980-84 तक वो देश की प्रधानमंत्री रहीं. 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' की वजह से सन 1984 में इंदिरा गांधी के अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी.

इंदिरा गांधी और फीरोज गांधी

इंदिरा गांधी के पति फीरोज गांधी एक राजनेता के साथ-साथ पत्रकार थे. वो जवाहरलाल नेहरू के शुरू किए गए 'नेशनल हेराल्ड' के प्रबंध निदेशक थे. फीरोज गांधी ऐसी शख्सियत थे जो गलत होते हुए नहीं देख सकते थे. भले ही उनके ससुर प्रधानमंत्री थे. अगर सरकार में कुछ गलत हो रहा होता तो वो उसका विरोध करने से पीछे नहीं हटते थे. एक बार उनके विरोध की वजह से ही 1958 में तत्कालीन वित्तमंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. कहा जाता है कि फीरोज गांधी के अंतिम दिनों में उनके रिश्ते इंदिरा गांधी के साथ सहज नहीं थे. 1960 में दिल का दौरा पड़ने से फीरोज गांधी का निधन हो गया.

इंदिरा गांधी के दो बच्चे थे- राजीव और संजय. इंदिरा गांधी आपातकाल के दिनों में सबसे ज्यादा भरोसा अपने छोटे बेटे संजय गांधी पर ही करती थीं. माना जाता है कि अगर उनका कोई राजनीतिक उत्ताराधिकारी था तो वो उनके छोटे बेटे संजय गांधी ही थे, क्योंकि बड़े बेटे राजीव गांधी को राजनीति में उतनी रुचि नहीं थी. लेकिन, 1980 में एक प्लेन क्रैश में संजय गांधी की मृत्यु हो गई, जिसके बाद राजीव गांधी को अपनी मां की सियासत संभालने का जिम्मा मिला.

संजय गांधी

इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी एक कुशल राजनेता थे. हालांकि, उन्हें इंजीनियरिंग काफी पसंद थी. देश में ऑटोमोबाइल कंपनी 'मारूति' की नीव उन्होंने ही रखी थी. आपातकाल हटने के बाद जब आम चुनाव हुए तो संजय गांधी अमेठी से चुनाव लड़े. उन्हें उस वक्त बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 1980 में जब दोबारा चुनाव हुए तो वो अमेठी से ही जीतकर सासंद बने. मई 1980 में संजय गांधी कांग्रेस के सचिव बने और इसके एक महीने बाद ही उनका निधन हो गया.

संजय गांधी ने मेनका गांधी से शादी की थी. मेनका गांधी किसी राजनीतिक घराने से नहीं थीं बल्कि उनके पिता सेना में थे. 1974 में संजय और मेनका ने शादी की थी. करीब 6 साल बाद उनका एक बेटा पैदा हुआ– वरुण गांधी. संजय गांधी का जब निधन हुआ तो वरुण केवल तीन महीने के थे. संजय गांधी के निधन के बाद इंदिरा गांधी और मेनका गांधी के बीच सब कुछ ठीक नहीं रहा. खुशवंत सिंह की किताब 'सच, प्यार और थोड़ी शरारत' के मुताबिक, मेनका गांधी और इंदिरा गांधी में एक रोज जमकर कहासुनी हुई जिसके बाद इंदिरा गांधी ने उन्हें घर से निकाल दिया.

इसके बाद मेनका गांधी ने 'राष्ट्रीय संजय मंच' नाम की एक पार्टी बनाई और 1984 आम चुनाव में हिस्सा लिया. उनकी पार्टी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा जिनमें से चार पर उनको जीत मिली लेकिन खुद वो अमेठी से हार गईं. अमेठी से उनके खिलाफ राजीव गांधी चुनाव लड़े थे. इसके बाद मेनका गांधी ‘जनता दल’ में शामिल हुईं और पीलीभीत से दो बार सांसद बनीं. 1998 आम चुनाव में वो पीलीभीत से निर्दलीय चुनाव लड़ीं और जीतीं. और आज वो भारतीय जनता पार्टी की एक कद्दावर नेता हैं. वो फिलहाल पीलीभीत से ही सांसद हैं और 2019 चुनाव में सुल्तानपुर से उम्मीदवार हैं.

मेनका गांधी के बेटे भी अपनी मां के साथ राजनीति में सक्रिय हैं. वरुण भी बीजेपी से जुड़े हुए हैं और सुल्तानपुर से सांसद हैं. 2019 चुनाव में वो पीलीभीत से उम्मीदवार हैं.

राजीव गांधी

इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया. इसके साथ ही उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी मिली. वो 1985-1991 तक कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहे. अपनी मां की हत्या के शोक से उबरने के बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव कराने का आदेश दिया. उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए रिकॉर्ड 508 में से 401 सीटें जीतीं. इस चुनाव में इतनी बड़ी जीत हासिल करने के बावजूद 'बोफोर्स घोटाले' और कुछ दूसरी वजहों से 1989 के आम चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी और कुछ दूसरी पार्टियों के समर्थन से जनता दल के अध्यक्ष वी. पी. सिंह प्रधानमंत्री बने.

1990 में बीजेपी ने जनता दल से अपना समर्थन वापस ले लिया जिससे सरकार गिर गई. इसके बाद चंद्रशेखर सिंह भी 64 सांसदों के साथ जनता दल से अलग हो गए. कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर सिंह देश के प्रधानमंत्री बन गए. चंद्रशेखर की सरकार पर आरोप लगे कि वो राजीव गांधी की जासूसी करवा रहे हैं जिस वजह से कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार गिर गई.

एक बार फिर 1991 में आम चुनाव कराने की घोषणा हुई. कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी इस बार कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे, इसीलिए पार्टी की जीत के लिए उन्होंने काफी मेहनत की. लेकिन 1991 में पहले चरण की वोटिंग के बाद चुनाव प्रचार के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में उनकी हत्या कर दी गई. इस तरह से गांधी परिवार में इंदिरा गांधी के बाद एक और सदस्य की कांग्रेस अध्यक्ष रहते हत्या कर दी गई.

राजीव गांधी और सोनिया गांधी

राजीव गांधी ने 1968 में सोनिया गांधी से शादी की थी. सोनिया इटली की रहने वाली थीं. दोनों की मुलाकात कैंब्रिज विश्वविद्यालय में हुई थी. राजीव गांधी से शादी के कई सालों के बाद उन्होंने 1983 में भारतीय नागरिकता ली. साल 1997 में उन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ली और 1998 में वो पार्टी अध्यक्ष बनीं. इसके बाद सोनिया गांधी 1999 में अमेठी से सांसद बनीं और लोकसभा में विपक्ष की नेता.

सोनिया गांधी ने एक बार फिर से कांग्रेस में जान फूंक दी थी. 2004 के आम चुनावों में उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस सरकार में आई. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी ने अपने कार्यकाल के दौरान न केवल अपनी राजनीतिक क्षमता का लोहा मनवाया बल्कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) बनाने और सभी विपक्षी दलों के लिए मार्गदर्शक नेतृत्व की भूमिका निभाने की शानदार काबीलियत को भी दर्शाया. रादजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जा रहे थे कि सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी मनमोहन सिंह को दी.

सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सबसे ज्यादा सालों तक बनी रहीं. वो इस पद पर 1998-2017 तक रहीं. फिलहाल वो यूपीए की चेयरपर्सन के तौर पर काम कर रही हैं.

राहुल गांधी

सोनिया गांधी की दो संतानें हैं- राहुल गांधी और प्रियंका गांधी. सोनिया गांधी के बाद उनकी और कांग्रेस की जिम्मेदारी राहुल गांधी संभाल रहे हैं. राहुल गांधी कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष हैं. राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी साल 2017 में मिली थी. तब से लेकर अब तक वो कांग्रेस अध्यक्ष पद पर हैं. राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव लड़ रही है. अगर कांग्रेस ये चुनाव जीतती है तो संभव है कि राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री बनाए जाएंगे.

राहुल गांधी को अध्यक्ष पद मिलने के बाद कांग्रेस को कई विधानसभा चुनावों में हार मिली जिसके बाद से उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए जाने लगे. लेकिन, लोकसभा चुनाव से लगभग 6 महीने पहले राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की. इस जीत के साथ ही राहुल गांधी के नेतृत्व पर कांग्रेस को भरोसा हो गया. राहुल गांधी 2019 चुनाव में उत्तर प्रदेश के अमेठी और केरल के वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं.

प्रियंका गांधी

राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी ने बिजनेसमैन रॉबर्ट वाड्रा से शादी की है. प्रियंका गांधी वाड्रा राजनीतिक रूप से कभी ज्यादा सक्रिय नहीं रहीं, लेकिन 2019 चुनाव में वो भी पार्टी की जीत के लिए खूब मेहनत कर रही हैं. राहुल गांधी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान बहन प्रियंका गांधी को सौंपी है. प्रियंका गांधी फिलहाल कांग्रेस महासचिव के पद पर है और साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश की कांग्रेस प्रभारी हैं. अभी ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई है कि प्रियंका गांधी भी 2019 चुनाव लड़ने वाली हैं. फिलहाल वो चुनाव प्रचार में ही जुटी हुई हैं.

कांग्रेस की शुरुआत भले ही किसी नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य ने नहीं की थी, लेकिन आज इसकी पहचान इसी परिवार से है. कांग्रेस पर एक परिवार की पार्टी होने के आरोप लगते रहे हैं. अब अगर राहुल गांधी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद पर गांधी परिवार का ही कोई सदस्य बैठता है तो विरोधियों के इन आरोपों को बल मिलेगा, बहरहाल, फिलहाल सबकी निगाहें लोकसभा चुनाव 2019 पर टिकी हुई हैं क्योंकि इसके नतीजे देश और कांग्रेस दोनों का भविष्य तय करेंगे.

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