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IAS Success Story: साइंस छोड़कर ह्यूमैनिटीज़ लेने पर हुई थी खूब जग हंसाई, पर पहली बार में UPSC पास कर विक्रम ने अपनी धाक जमाई

साल 2018 में 51वीं रैंक के साथ यूपीएससी परीक्षा पास करने वाले विक्रम ग्रेवाल ने जब साइंस छोड़कर आर्ट्स चुनी थी, तो उनका हर जगह खूब विरोध हुआ था. पर अपने विज़न को लेकर क्लियर विक्रम को पता था कि उनका चुनाव सही है.

Success Story Of IAS Vikram Grewal: साल 2018 का दिन विक्रम ग्रेवाल और उनके परिवार के लिए खास था. अंततः विक्रम की सालों की मेहनत का परिणाम आ गया था और विक्रम साल 2018 में न सिर्फ यूपीएससी में सेलेक्ट हुए, बल्कि उनकी 51वीं रैंक भी आई. विक्रम के साथ ही उनका परिवार भी चकित था, क्योंकि उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि विक्रम पहली ही बार में चयनित हो जाएंगे. खुद विक्रम को भी अपनी सफलता का यकीन नहीं था, इसीलिए साक्षात्कार देने के बाद उन्होंने फिर से प्री की तैयारी शुरू कर दी थी. वे मान चुके थे कि अगले साल फिर से परीक्षा देनी ही है. ऐसे में ये रिजल्ट उनके लिए किसी सपने के सच होने जैसा था. आज जानते हैं विक्रम के सफर के बारे में.

विक्रम का बैकग्राउंड विक्रम के पिता सरकारी नौकरी में थे और हर दो साल में उनका ट्रांसफर हो जाता था. बचपन से ही विक्रम को ट्रैवलिंग करने, स्कूल बदलने और नये-नये एग्जाम देने की खूब आदत थी. कई बार वे इन परीक्षाओं में पास होते थे, कई बार फेल, पर इतने पेपर देने से उनके मन से परीक्षा का डर निकल चुका था. एक साक्षात्कार में विक्रम बताते हैं कि एग्जाम फियर क्या होता है, मैं नहीं जानता फिर चाहे वो कितनी भी बड़ी परीक्षा क्यों न हो. विक्रम पढ़ाई में शुरू से ठीक थे. उनके दसवीं में दस सीजीपीए और बारहवीं में 97 प्रतिशत अंक आये थे.

इसके बाद विक्रम ने दिल्ली का रुख किया और सेंट स्टीफेन्स कॉलेज दिल्ली से हिस्ट्री में ग्रेजुएशन करने का फैसला लिया. यही वो समय था जब साइंस छोड़ने पर उन्हें सभी ने खूब सुनाया और कहा कि बहुत ही गलत निर्णय है, पर विक्रम जो ग्यारहवीं में ही तय कर चुके थे कि उन्हें यूपीएससी की परीक्षा देनी है उन्हें पता था कि हिस्ट्री उनका पसंदीदा विषय है और वे ऑप्शनल में इसे ही रखेंगे. दरअसल विक्रम के लिए फेवरेट सब्जेक्ट चुनना बहुत कठिन था, क्योंकि उन्हें सभी विषय अच्छे लगते थे. फिर यूपीएससी का सिलेबस आदि देखकर उन्होंने हिस्ट्री को चुना.

सेल्फ स्टडी को दिया महत्व विक्रम जो कि क्लास 11वीं में ही यूपीएससी को लक्ष्य बना चुके थे, उन्होंने तभी से एनसीईआरटी की लगभग सभी विषयों की किताबें खरीदकर रखना शुरू कर दिया था. वे किताबें उन्होंने पढ़ी ग्रेजुएशन के भी बाद पर इकट्ठा तभी से करने लगे थे. विक्रम ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई खूब मन लगाकर करी पर इस समय यूपीएससी को किनारे रख दिया. स्नातक के बाद विक्रम ने जैसा कि प्लान किया था एक साल का ब्रेक लिया और अपने घर कुपवाड़ा जाकर परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी. सबसे पहले सालों पहले खरीदी एनसीईआरटी उठाई और कुछ महीने में उनको खत्म कर दिया. इसके बाद दो महीने केवल अपना ऑप्शनल हिस्ट्री पढ़ा. उन्हें न्यूजपेपर पढ़ने में शुरू में बहुत समय लगता था, इसकी स्पीड बढ़ायी और वन लाइनर नोट्स बनाएं, जिनसे बार-बार रिवाइज़ किया जा सके. विक्रम ने सेल्फ स्टडी पर फोकस किया और कोचिंग से नोट्स आदि ही लिए और सबकुछ ऑनलाइन ही किया. समय बर्बाद न हो इसलिए घर पर ही कंप्यूटर और स्कैनर लगवा लिया. ऑनलाइन स्टडी मैटिरियल, कंप्यूटर, प्रिंटर और स्कैनर यही उनके प्रिपरेशन के साथी रहे.

बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट गए थे विक्रम आपको यह बात सुनने में अजीब लग सकती है पर विक्रम के पास दो साल तक सेलफोन नहीं था. सोशल मीडिया वे जानते ही नहीं, किसे कहते हैं. दोस्त-यार रिश्तेदार किसी से कोई मतलब नहीं रखा. एक साल के लिए उन्होंने खुद को बस अपने स्टडी मैटीरियल के साथ घर में कैद कर लिया था. एक भी पल बर्बाद न हो वे इसका पूरा खयाल रखते थे. उन्होंने दिन को आठ-आठ-आठ के शेड्यूल में बांट लिया था. आठ घंटे सोना, आठ घंटे पढ़ना और आठ घंटे में बाकी काम. मूड फ्रेश करने के लिए वे कुछ हल्का-फुल्का पढ़ते थे, बहन के साथ टाइम स्पेंड करते थे या टीवी में कुछ देखते थे पर ऐसा जो परीक्षा में काम आए. थकने पर ब्रेक लेते थे पर ये ब्रेक बहुत लंबे और डिस्ट्रेक्ट करने वाले नहीं होते थे. विक्रम पूरे दिन की स्ट्रैटजी बना लेते थे और उसके बाद महीने की. जैसे आज दिन भर में ये खत्म करना है और महीने भर में यह किताब, या यह विषय. फिर चाहे जो हो जाए अपना टारगेट पूरा करके ही दम लेते थे.

विक्रम की सलाह विक्रम ने दोनों रिटेन एग्जाम्स के पहले खूब मॉक टेस्ट दिए. ऐसा उन्होंने तैयारी शुरू करने के कुछ दिन बाद से ही शुरू कर दिया था. पहले 15 दिन में एक टेस्ट, फिर एक हफ्ते में एक, फिर तीन दिन में एक ऐसे करते-करते वे एक दिन में दो टेस्ट तक आ गए. प्री के पहले वे दो सौ से तीन सौ मॉक टेस्ट दे चुके थे, इसिलए काफी कॉन्फिडेंट थे. हालांक वे कहते हैं, जब असली पेपर सामने आया तो यूं लगा कुछ आता ही नहीं है. पर उन्होंने दिमाग लगाया कि सब पढ़ा हुआ ही है. बस एंगल बदला है. खैर विक्रम ने प्री और मेन्स के बाद साक्षात्कार के लिए जब मॉक दिए तो फिजिकली पहली बार कोई दिल्ली की कोचिंग ज्वॉइन की.

विक्रम दूसरे कैंडिडेट्स को भी यही सलाह देते हैं कि पढ़ने के साथ ही लगातार रिवीज़न करते चलें. नोट्स बनाएं और जितना हो सके मॉक टेस्ट दें. लिखने की खूब प्रैक्टिस करें और हर आंसर को देते समय थोड़ा डिफरेंट अपरोच रखें. वही जवाब एक साधारण स्टूडेंट देगा और वही जवाब एक आईएसएस देगा तो, उसमें फर्क होगा इस बात पर गौर फरमाएं. विक्रम कहते हैं यह परीक्षा आपके ज्ञान से ज्यादा ज्ञान के एप्लीकेशन की परीक्षा है.

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