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Shahenshah Siddiqui Success Story: पहले इंजीनियरिंग की, फिर ABP संग फैलाई 'सनसनी' और अब UPSC में मारा मैदान, जानें कैसे बने नरकटियागंज के 'शहंशाह'

Shahenshah Siddiqui: शहंशाह सिद्दीकी ने कहा कि यूपीएससी को हम ओवररेटेड कर देते हैं, जिससे लड़कों पर प्रेशर आता है. इसके चलते ही वे गलत कदम उठा लेते हैं. यह कठिन जरूर है, लेकिन सामान्य एग्जाम जैसा है.

Shahenshah Siddiqui Unknown Facts: समाज सेवा उनके लहू में है. इसका जज्बा पिता से मिला तो बड़े भाई ने हौसला बढ़ाया. यही वजह रही कि सिविल इंजीनियरिंग में मैदान मारने के बाद वह कलम के जादूगर यानी पत्रकार बने और अब यूपीएससी यानी सिविल सर्विसेज में अपना परचम बुलंद कर दिया. बात हो रही है नरकटियागंज के शहंशाह सिद्दीकी की, जो यूपीएससी में 762वीं रैंक हासिल करके अपने शहर के 'शहंशाह' बन गए हैं. बता दें कि एक जमाने में शहंशाह न्यूज चैनल एबीपी के शो 'सनसनी' की टीम में शामिल थे, लेकिन समाज सेवा के जुनून के चलते उन्होंने पत्रकारिता को अलविदा कह दिया और यूपीएससी में किस्मत आजमाने लगे. वक्त ने उन्हें पांच बार ठोकर मारी, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं टूटने दिया और छठवीं बार में साबित कर दिया कि वह समाज सेवा के लिए ही बने हैं. 

कौन हैं शहंशाह सिद्दीकी?

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के छोटे-से शहर नरकटियागंज से ताल्लुक रखने वाले शहंशाह सिद्दीकी को समाज सेवा का जुनून विरासत में मिला. दरअसल, उनके पिता मोहम्मद रिजवनुल्लाह पेशे से टीचर थे, जो कि अब रिटायर हो चुके हैं. उन्होंने अपने बच्चों को हमेशा नेक रास्ते पर चलने की सलाह दी, जिसका नतीजा यह रहा कि शहंशाह के बड़े भाई शाहनवाज रिजवान सामाजिक कार्यकर्ता हैं. 

कहां से हुई पढ़ाई-लिखाई?

सुमन विहार इलाके में पले-बढ़े शहंशाह की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई नरकटियागंज में ही हुई. वहीं, उन्होंने टीपी वर्मा कॉलेज से 10वीं और 12वीं की. इसके बाद चेन्नई स्थित विनायक मिशन यूनिवर्सिटी से उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की. 

समाज सेवा के जज्बे ने पत्रकारिता से जोड़ा

समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रखने वाले शहंशाह ने सिविल इंजीनियरिंग तो कर ली थी, लेकिन करियर के हिसाब से वह इस दिशा में जाने का मन नहीं बना पाए. ऐसे में उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया का रुख किया और एबीपी के साथ जुड़ गए. उन्होंने एबीपी के शो सनसनी में प्रमुख रूप से काम किया. इसके अलावा तमाम स्पेशल शोज भी किए और काफी नाम कमाया. 

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यूपीएससी की तरफ यूं हुआ रुख

पत्रकारिता करते-करते शहंशाह ने सिस्टम को बेहद करीब से देखा और उसे समझा. उन्हें यह पता चल गया था कि वह सिस्टम में जुड़कर ही कुछ कर सकते हैं. ऐसे में उनका रुख यूपीएससी की तरफ हो गया. एबीपी में काम करते-करते उन्होंने तीन अटेम्प्ट दिए, लेकिन प्रीलिम्स में ही अटक गए. इसके बाद उन्होंने एबीपी संग तीन साल का साथ छोड़ दिया और सिविल सर्विसेज में अपनी राह बनाने के लिए निकल पड़े. शहंशाह ने एबीपी से बातचीत के दौरान बताया कि बिहार के लोग बचपन से ही आईएएस बनने का सपना देखते हैं, लेकिन वह उस वक्त इस बारे में सोचते तक नहीं थे. एबीपी में काम करते-करते उन्होंने यूपीएससी क्लियर करने का ख्वाब देखा. 

जब मुहब्बत के चक्कर में बिगड़ गया एग्जाम

एबीपी को अलविदा कहने के बाद शहंशाह ने यूपीएससी का चौथा अटेम्प्ट दिया, लेकिन इस बार भी प्रीलिम्स की बाधा पार नहीं कर पाए. पांचवी बार उन्होंने प्रीलिम्स क्लियर किया और जी-जान से मेन्स की तैयारी में जुट गए. यह वह दौर था, जब शहंशाह की जिंदगी में किसी ने दस्तक दी थी. दिल में मुहब्बत के फूल खिले थे, लेकिन मेन्स के एग्जाम से पहले उनका दिल इस कदर टूटा कि परीक्षा के पन्ने उनके आंसुओं में भीग गए. शहंशाह ने खुद बताया कि पांचवें अटेम्प्ट में मेन्स एग्जाम से एक दिन पहले ही गर्लफ्रेंड से उनका काफी विवाद हुआ था, जिसका असर उनके एग्जाम पर पड़ा और वह मेन्स क्लियर नहीं कर पाए. 

इस दोस्त ने हर मोड़ पर दिया सहारा

शहंशाह के मुताबिक, यूपीएससी के पांच अटेम्प्ट में लगातार असफल होते वक्त वह सिर्फ एग्जाम में ही नहीं, बल्कि जिंदगी में भी असफल हो रहे थे. उनके पास कोई नौकरी नहीं थी. अक्सर सोचते थे कि पता नहीं क्या होगा? मंजिल कहां लेकर जाएगी. हालांकि, खुद से रोजाना प्रॉमिस करते थे कि ये दिन बीतेंगे और अच्छे दिन जरूर आएंगे. जिंदगी इतनी छोटी नहीं है. मेहनत एक दिन काम जरूर आएगी. शहंशाह ने बताया कि उस दौरान एबीपी में दोस्त बने साकेत झा ने हर मोड़ पर उनकी मदद की. साथ ही, डिप्रेशन से लड़ने में भी साथ दिया. साकेत हमेशा कहते थे कि डरना नहीं है शहंशाह. आगे बढ़ना है. संघर्ष करते रहना है और एक दिन हकीकत का 'शहंशाह' बनना है. 

 

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यूथ को दिया यह मैसेज

शहंशाह ने यूथ को यूपीएससी के फीवर से निपटने का तरीका भी बताया. शहंशाह ने कहा कि मैंने फिलॉसफी ऑप्शन चुना था. पढ़ाई के दौरान मैंने बुद्धा थ्योरी से हालात को मैनेज करना सीखा. गीता से भी ज्ञान लिया. उन्होंने कहा कि यूपीएससी को हम ओवररेटेड कर देते हैं, जिससे लड़कों पर प्रेशर आता है. इसके चलते ही वे गलत कदम उठा लेते हैं. यह कठिन जरूर है, लेकिन सामान्य एग्जाम जैसा है. अगर आप यह एग्जाम पास नहीं कर पाते हैं तो भी कोई दिक्कत नहीं. आप इससे गुजरकर समझदार बन सकते हैं. आप ऐसे शख्स बन सकते हैं, जो जिंदगी में कुछ अच्छा कर सकते हैं. यूपीएससी एग्जाम का पूरा प्रोसेस बेहद शानदार है. 

अगर अब पास नहीं होते तो क्या करते?

बातचीत के दौरान हमने शहंशाह से पूछा कि अगर छठवें अटेम्प्ट में भी यूपीएससी क्लियर नहीं होता तो वह क्या करते? इसके जवाब में वह हंसने लगे. उन्होंने कहा कि अगर इस बार रिजल्ट पॉजिटिव नहीं आता तो मैं रिज्यूम तैयार करना शुरू कर देता और नौकरी के लिए एक बार फिर एबीपी में अप्लाई करता. हालांकि, अब मुझे मेरी मंजिल मिल गई है तो मैं समाज सेवा के अपने सपने को पूरा करूंगा.

यह भी पढ़ें: यूपीएससी की मेरिट लिस्ट में 51 मुस्लिम कैंडिडेट्स को मिली कामयाबी, पांच तो टॉप-100 में शुमार

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खबर कोई भी हो... कैसी भी हो... उसकी नब्ज पकड़ना और पाठकों को उनके मन की बात समझाना कुमार सम्भव जैन की काबिलियत है. मुहब्बत की नगरी आगरा से मैंने पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम रखा, जो अदब के शहर लखनऊ में परवान चढ़ा. आगरा में अकिंचन भारत नाम के छोटे से अखबार में पत्रकारिता का पाठ पढ़ा तो लखनऊ में अमर उजाला ने खबरों से खेलना सिखाया. 

2010 में कारवां देश के आखिरी छोर यानी राजस्थान के श्रीगंगानगर पहुंचा तो दैनिक भास्कर ने मेरी मेहनत में जुनून का तड़का लगा दिया. यहां करीब डेढ़ साल बिताने के बाद दिल्ली ने अपने दिल में जगह दी और नवभारत टाइम्स में नौकरी दिला दी. एनबीटी में गुजरे सात साल ने हर उस क्षेत्र में महारत दिलाई, जिसका सपना छोटे-से शहर से निकला हर लड़का देखता है. साल 2018 था और डिजिटल ने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया था तो मैंने भी हवा के रुख पकड़ लिया और भोपाल में दैनिक भास्कर पहुंच गया. 

झीलों के शहर की खूबसूरती ने दिल और दिमाग पर काबू तो किया, लेकिन जरूरतों ने वापस दिल्ली ला पटका और जनसत्ता में काफी कुछ सीखा. यह पहला ऐसा पड़ाव था, जिसकी आदत धारा के विपरीत चलना थी. इसके बाद अमर उजाला नोएडा में करीब तीन साल गुजारे और अब एबीपी न्यूज में बतौर फीचर एडिटर लोगों के दुख-दर्द और तकलीफ का इलाज ढूंढता हूं. करीब 18 साल के इस सफर में पत्रकारिता की दुनिया के हर कोने को खंगाला, चाहे वह रिपोर्टिंग हो या डेस्क... प्रिंटिंग हो या मैनेजमेंट... 

काम की बात तो बहुत हो चुकी अब अपने बारे में भी चंद बातें बयां कर देता हूं. मिजाज से मस्तमौला तो काम में दबंग दिखना मेरी पहचान है. घूमने-फिरने का शौकीन हूं तो कभी भी आवारा हवा के झोंके की तरह कहीं न कहीं निकल जाता हूं. पढ़ना-लिखना भी बेहद पसंद है और यारों के साथ वक्त बिताना ही मेरा पैशन है. 

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