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कंगना पर भद्दा पोस्ट राजनीति के गिरते स्तर का प्रमाण, लेकिन सुप्रिया के कदम का भी हो सम्मान

लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों की तरफ से अपने प्रत्याशियों का एलान किया जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी ने हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से बॅालीवुड एक्सट्रेस कंगना रनौत को टिकट दिया है. लेकिन, बीजेपी टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं कंगना पर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत के एक इंस्टग्राम पर भद्दा पोस्ट ने भारी विवाद पैदा कर दिया है. एक तरफ जहां इस पर सुप्रिया श्रीनेत ने सफाई दी वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी कार्रवाई की मांग कर रही है. 

दरअसल, अगर इस मामले को देखें तो महिला आयोग को सबसे पहले इस तरह के मामले में सुप्रिया श्रीनेत से सवाल करने चाहिए थे. उनके जवाब के आधार पर आगे की कार्रवाई करनी चाहिए थी.  इस तरह के कदम उठाने का मतलब ये है कि या तो महिला आयोग के अध्यक्ष को जूडीसियल और अन्य चीजों का ज्ञान ना हो, या फिर बहुत ही ज्यादा ज्ञान है. अभी हाल में ही कंगना रनौत किसी पार्टी की कैंडिडेट बनी हैं, और दूसरे पार्टी की ओर से एक कॉमेंट किया गया. बात तो बस इतना ही है. कॉमेंट सही है या नहीं है उसके बारे में बिना सोचे उसका राजनीतिक फायदा बात करते हैं, तो ये सही नहीं होता है. कहीं न कहीं ये एंगल यहां पर हुई है.

मंडी के सांसद का कटा टिकट
दूसरी ओर हम बात करें मंडी की तो बहुत सी घटनाएं वहां पर घटी हैं. वहां के बीजेपी के जो उम्मीदवार रहे हैं राजघराने से, उन्होंने भी कई सवाल उठाए हैं. वहां के सिटिंग सांसद का सवाल है कि उन्होंने चार बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा का प्रतिनिधित्व किया है. उनके रहते ही क्यों कंगना रनौत को उम्मीदवार बनाया गया. इस पर उनको परेशानी है, और पार्टी में रहते हुए इस तरह की चीजें होने पर किसी के मन में ये प्रश्न हो सकता है. लेकिन इस पर कोई बात नहीं कर रहा क्योंकि वो पार्टी के कैंडिडेट का मामला है. लेकिन एक ऐसा कॉमेंट जिसका कोई वजूद है या नहीं है उसको लेकर राजनीति की जा रही हैं. इस तरह की राजनीति जनतंत्र में करना बिल्कुल सही नहीं हैं.  राजनीति में काॅमेंट होते हैं उसके जवाब दिए जाते हैं. उसका एक तरीका होता है ये नई बात तो नहीं है. लोकसभा का चुनाव 1952 से होते आ रहा है कई बातें इस बीच में आते रही हैं. बीच में राजनीतिक दलों में वाद विवाद तक होते थे. लेकिन एक बीच में शालीनता का एक दीवार होती थी, जिसको अब हम पार करते जा रहे हैं.

निश्चित रूप से ये ना तो राजनीतिक पार्टियों के लिए अच्छी बात है और ना ही जनता के लिए और ना समाज के लिए. इन सब चीजों से समाज में एक कटूता पैदा होती है इससे सभी को बचना चाहिए. ऐसे में राजनीतिक पार्टियों को सयम से काम लेना चाहिए. ऐसे आरोप प्रत्यारोप से बचना चाहिए जहां आरोप का गुंजाइस ना हो. हमारे यहां ये परंपरा है कि अगर कोई बात किसी को लेकर कहता है और बाद में वापसी कर लेता है तो उसको वहीं पर समाप्त मान ली जाती है. लेकिन वहां पर तो ये बात ही प्लेटफार्म बनती जा रही है. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए.

राजनीतिक स्तर में गिरावट
पर्सनली टिप्पणी से राजनीति में अभूतपूर्व गिरावट देखी जा रही है. जानकारों का मानना है कि आज दिन प्रतिदिन राजनीति में गिरावट देखी जा रही है,और इसमें कहीं न कहीं राजनीतिक पार्टियां जिम्मेदार है और ये दुखद है. पहले जब लोग कुछ बोलते थे तो समाज के बड़े बुजुर्ग उदाहरण के तौर पर राजनीति का हवाला देते थे कि देखो दूसरे दल के नेता कैसे आरोप लगा रहे है और दूसरे दल के लोग कैसे उसका जवाब दे रहे हैं. उसमें शब्दों की मर्यादा और एक शालीनता हुआ करती थी. राजनीति एक तरह से समाज को सिखाती है कि वाद विवाद के दौरान कैसे शालीनता रखकर तर्क किया जाए. वर्तमान में जो संवैधानिक या कानूनी संस्थाएं है जिस प्रकार से राष्ट्रीय महिला आयोग है.

अब वो भी सामान्य परंपराओं से बहुत ही आगे निकलते जा रहे हैं. मंडी के राजनीति की बात करें तो इससे पहले भी बहुत कुछ हो चुका है. सिर्फ बीजेपी के सांसद ने ही ऐसा नहीं कहा है बल्कि कांग्रेस ने भी एक प्रमुख परिवार को मैनेज किया है जिससे कि किसी एक दल के कैंडिडेट आगे जा सके. लेकिन कुछ मर्यादाओं को रखने की जरूरत है. ऐसा ना हो कि लोकसभा का चुनाव आपसी लड़ाई के केंद्र का सबब बनता चल जाए. चुनाव में देश की बात होनी चाहिए, देश के मुद्दे उठने चाहिए. चुनाव में देश के बारे में बात ना करना, सिर्फ वैसे बात करना जिनका राजनीति से कोई मतलब ना हो, देश की नीति से कोई संबंध ना हो तो ऐसी बात करने से बचना चाहिए.

क्या सुप्रिया श्रीनेत की बढ़ेगी मुश्किलें 
सवाल उठता है कि क्या कंगना रनौत पर टिप्पणी पर पोस्ट करने से सुप्रिया श्रीनेत की मुश्किलें बढ़ने वाली है. जानकारों का कहना है कि ऐसा नहीं है. सुप्रिया श्रीनेत ने खुद कहा है कि उनके एकाउंट से जिसने भी किया है. वो सही नहीं है. उसके बारे में उनको बिल्कुल भी पता नहीं था. बाद में पता चला तो उन्होंने उस पोस्ट को डिलीट कर दिया. जब पोस्ट को डिलिट कर दिया गया, तब उस मामले में बात करना बिल्कुल ही सही नहीं है. सुप्रिया श्रीनेत ही नहीं बल्कि किसी नेता के बिना जाने अगर ऐसे पोस्ट हो जाते हैं और वो बाद जानकारी के बाद हटा दी जाती है तो ऐसी बात नहीं होनी चाहिए. लेकिन बात यह बनता है कि जिसके नाम से एकाउंट है तो क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती की क्या पोस्ट की जा रही है.

लेकिन ये भी बात है कि किसी पार्टी के प्रवक्ता या बड़े नेता के एकाउंट को कोई एक व्यक्ति नहीं चलाते, बल्कि वो कई लोग हैंडल करते हैं. जिसने भी किया होगा उस पर बात चल रही होगी. लेकिन ये बात खत्म हो गई. सुप्रिया श्रीनेत को मुजरिम माना जा रहा है. उन्होंने खुद आकर कहा कि ये महिला की सम्मान की बात है और पोस्ट को डिलिट कर दिया. तो उसके बाद क्या सवाल उठाना सही है. गलती हो सकती है, दूसरी पार्टियों के बारे में कई तमाम चीजें आती है. जो काफी बड़ी गलती होती है. हमें कोई पंसद नहीं है तो बाद में गाली गलौज तक लोग आ जाते हैं, ये भी सही नहीं है. राजनीति में एक सीमा के अंदर में रहकर काम करना चाहिए. अगर कोई सीमा है तो उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है.

टिकट के लिए पार्टियां लेती है पैसा
पहले कभी कभी या ना के बराबर सुनने को मिलती थी, अब वो हर जगह सुनने को मिल रही है कि पैसे लेकर पार्टी की टिकट चुनाव के दौरान दी गई है. ऐसा किसी एक पार्टी में नहीं बल्कि सभी पार्टियों में सुनने को मिल रही है. तो क्या अब राजनीति सिर्फ मुद्दों पर काम करेगी या पैसे पर काम करेगी, ये भी एक सवाल है. 2015 में पैसे लेकर टिकट देने का आरोप बसपा पर आया था. उनके सांसद जुगल किशोर ने सबसे पहले ये कहा था कि एक से दो करोड़ रूपये लेकर टिकट दे रहे हैं और सामान्य सीट के लिए 50 लाख रूपये लिए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि ये ठीक नहीं है इससे पार्टी को बहुत नुकसान होगा.

उसके बाद पार्टी के प्रमुख को जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया. ऐसा अभी भी हो रहा है. जो सामान्य राजनीतिक है वो भी इस तरह की बात करते रहते हैं. उस समय के सपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा था कि अफवाहें यूं ही नहीं फैलती. इस पर चुनाव आयोग को संज्ञान लेना चाहिए और कार्रवाई करनी चाहिए. लेकिन आज तक चुनाव आयोग ने ऐसे मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया. कहा जाता है बसपा में ये रेस अब और भी बढ़ चुकी है. कई चीजें उस तरह की होती है तो सवाल उठता ही है कि क्या जो हो रहा है वो सही है. इलेक्टरोल बांड में हम देख चुके हैं.

इस तरह की बातें पर क्यों केंद्रीय चुनाव आयोग ने इस तरह के बातों पर कोई इनवेस्टिगेशन या कार्रवाई नहीं किया. जब चुनाव होता है तो केंद्रीय चुनाव आयोग ही पूरे देश की व्यवस्था को चलाती है. पूरे देश के प्रजातंत्र को चलाती है. ऐसे सवाल उठने के बाद केंद्रीय चुनाव आयोग किसी भी एजेंसी को तत्काल इनवेस्टिगेशन करने को कह सकती है, और दूसरी एजेंसी उनकी बात मानने के लिए बाध्य होते हैं. लेकिन बात कुछ और की हो रही है. अगर किसी ने टिप्पणी की है या नहीं की है और उस बात से वो खुद को और पोस्ट को वापस कर लेता है तो ऐसे में देश का समय और मीडिया का समय बेवजह का बर्बाद किया जाता है. फालतू के बात सामने लाया जाता है, जो बिलकुल ही सही नहीं है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. 

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