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ओडिशा में नवीन पटनायक को क्या बीजेपी दे पाएगी चुनौती, इतना आसान नहीं, समझें हर पहलू

अभी पूरे देश में लोक सभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी उफान पर है. अप्रैल-मई में 18वीं लोक सभा के लिए आम चुनाव निर्धारित है. आम चुनाव के साथ ही ओडिशा में भी विधान सभा चुनावहोना है. पिछली बार भी लोक सभा के साथ ही ओडिशा में 11 से 29 अप्रैल के बीच चार चरणों में विधान सभा चुनाव हुआ था.

मौजूदा ओडिशा विधान सभा का कार्यकाल इस साल जून में ख़त्म हो रहा है. ओडिशा विधान सभा में कुल 147 सीट है और यहाँ की सत्ता हासिल करने के लिए बहुमत का आँकड़ा 74 है. ओडिशा में कुल 21 लोक सभा सीट है.

ओडिशा विधान सभा चुनाव का समीकरण

लोक सभा के साथ ही इस बार ओडिशा विधान सभा का चुनाव काफ़ी दिलचस्प होने वाला है. इसकी एक बड़ी वज्ह है. लगातार पाँच कार्यकाल से ओडिशा की सत्ता पर बीजू जनता दल के प्रमुख नवीन पटनायक विराजमान हैं. पिछले पाँच विधान सभा चुनाव में नवीन पटनायक को ओडिशा में कोई ख़ास चुनौती नहीं मिली थी. ओडिशा की राजनीति में बीजू जनता दल के साथ ही कांग्रेस और बीजेपी बेहद सक्रिय है. इसके बावजूद वर्ष 2000 से ओडिशा में नवीन पटनायक के सामने मज़बूत चुनौती पेश करने में कांग्रेस और बाद में बीजेपी दोनों ही असफल रही है.

नवीन पटनायक के सामने मज़बूत चुनौती!

हालाँकि इस बार ओडिशा में राजनीतिक हालात पूरी तरह अलग है. ढाई दशक में पहली बार ऐसा लग रहा है कि नवीन पटनायक की पार्टी के लिए विधान सभा चुनाव का सफ़र आसान नहीं रहने वाला है. इस बार नवीन पटनायक की राजनीतिक बादशाहत को बीजेपी से कड़ी चुनौती मिलने की संभावना बनती दिख रही है. ओडिशा में 2019 में लोक सभा और विधान सभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन सियासी पकड़ के लिहाज़ से क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहा था.उसके बाद से ही बीजेपी यहाँ अपना जनाधार बढ़ाने पर और फोकस करने लगी. पश्चिम बंगाल के साथ ही ओडिशा में बीजेपी के आधार को व्यापक करने के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से भी ख़ूब ध्यान दिया गया है.

प्रधानमंत्री का ओडिशा में बार-बार दौरा

अभी चुनाव की तारीख़ का एलान होने में कुछ दिन बचे हैं. उससे पहले बीजेपी हर वो कोशिश कर रही है, जिससे ओडिशा के लोगों का समर्थन पार्टी को मिल सके. इसी कड़ी में तीन फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओडिशा के संबलपुर का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने 68 हज़ार करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया. आगे भी प्रधानमंत्री के साथ अमित शाह, जेपी नड्डा जैसे बड़े नेता बार-बार प्रदेश का दौरा करने वाले हैं.

ओडिशा की सत्ता पर बीजेपी की नज़र

बीजेपी की नज़र ओडिशा में अधिक से अधिक लोक सभा सीट जीतने पर है. साथ ही इस बार पार्टी का लक्ष्य प्रदेश की सत्ता को हासिल करना भी है. बीजू जनता दल को हराने के लिए बीजेपी इस बार प्रदेश की महिलाओं को लुभाने में जुटी है. इस कड़ी में शक्ति वंदन कार्यक्रम के ज़रिये बीजेपी की नज़र ओडिशा की उन महिलाओं पर है, जो स्वयं सहायता ग्रुप की सदस्य हैं. इनकी तादाद क़रीब 70 लाख है, जो 6.2 लाख स्वयं सहायता ग्रुप की सदस्य हैं.

बीजेपी का दावा बीजेडी के लिए ख़तरा

राज्य में पार्टी प्रभारी सुनील बंसल समेत बीजेपी के तमाम बड़े नेता दावा कर रहे हैं कि इस बार ओडिशा में पार्टी 80 विधान सभा सीट जीतकर प्रदेश की सत्ता से नवीन पटनायक को बे-दख़्ल करने में सफल होगी. इसके साथ ही बीजेपी 21 में से 16 लोक सभा सीट जीतने का भी दावा कर रही है. बीजेपी ने ओडिशा में 50 फ़ीसदी वोट शेयर हासिल करने का लक्ष्य रखा है.

हम सब जानते हैं कि ओडिशा के काफ़ी लोगों का बड़ी मात्रा में पैसा चिटफंड से जुड़े अलग-अलग स्कीमों में डूबा था. अब भी उन लोगों को अपने पैसे की वापसी का इंतिज़ार है. बीजेपी इस बार चुनाव में इस मसले को भी जोर-शोर से उठाने की तैयारी में है. पार्टी प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल बार-बार कह रहे हैं कि अगर बीजेपी प्रदेश की सत्ता में आती है, तो, ठगे गए चिटफंड जमाकर्ताओं के पैसे को वापस करने के लिए सरकार बनने के 24 घंटे के भीतर अध्यादेश लाया जाएगा.

कांग्रेस कमज़ोर हुई, बीजेपी मज़बूत हुई

ओडिशा में एक समय कांग्रेस की तूती बोलती थी. नवीन पटनायक के उभार के साथ ही पिछले ढाई दशक में कांग्रेस की स्थिति दयनीय होती गयी. मई 2014 में  केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनी. उसके बाद से बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की प्राथमिकता वाले राज्यों में ओडिशा भी शामिल हो गया. यह वो दौर था, जब कांग्रेस की राजनीतिक ज़मीन ओडिशा में तेज़ी से सिकुड़ने लगी थी और बीजेपी विपक्ष के तौर पर वहाँ विकल्प बनकर उभरने लगी.

इसी का नतीजा था कि 2019 में बीजेपी 23 विधान सभा सीट जीतकर ओडिशा में मुख्य विपक्षी दल बनने में कामयाब रही. इसके साथ ही इस साल बीजेपी ओडिशा की 21 में से 8 लोक सभा सीट जीतने में भी सफल रही थी. कांग्रेस सिकुड़ती गयी और बीजेपी ओडिशा में नवीन पटनायक के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बनती गयी.

ओडिशा को लेकर बीजेपी का मज़बूत पक्ष

विधान सभा चुनाव में तो अब तक बीजेपी नवीन पटनायक को ख़ास चुनौती नहीं दे पायी, लेकिन पिछली बार लोक सभा चुनाव में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन से बीजू जनता दल को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ा था. इस बार बीजेपी को पूरी उम्मीद है कि वो प्रदेश की सत्ता तक पहुँच जायेगी. इस बार बीजेपी के पक्ष में दो बातें महत्वपूर्ण हैं. नवीन पटनायक तक़रीबन 24 साल से लगातार ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं. उनकी पार्टी पिछले पाँच कार्यकाल से सत्ता में है. सत्ता विरोधी लहर या'नी एंटी इन्कम्बन्सी का लाभ बीजेपी को मिल सकता है.

इसके अलावा बीजेपी को उम्मीद है कि उत्तर भारत के बाक़ी राज्यों की तरह ही ओडिशा में भी उसे राम मंदिर के उद्घाटन के बाद बने राजनीतिक माहौल का लाभ मिलेगा. ऐसे ओडिशा में पिछले कई साल से बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों की कोशिश है कि ओडिशा में वोटों का ध्रुवीकरण हिन्दु बनाम अन्य धर्म के नाम पर हो, जिससे नवीन पटनायक की राजनीतिक बादशाहत ख़त्म हो. हालाँकि तमाम कोशिशों के बाद ओडिशा के विधान सभा चुनाव में ऐसा नहीं पाया है. अब राम मंदिर उद्घाटन के बाद ओडिशा में भी बीजेपी के तमाम नेता इस आस में हैं कि शायद इस बार वोटों का ध्रुवीकरण धर्म के आधार पर हो जाए.

नवीन पटनायक हैं पूरी तरह से सजग

बीजू जनता दल के प्रमुख और ओडिशा के नवीन पटनायक भी संभावित राजनीतिक ख़तरे को लेकर सचेत नज़र आ रहे हैं. 2019 के चुनाव के बाद ही नवीन पटनायक को एहसास हो गया था कि आने वाले समय में ओडिशा में बीजेपी धर्म के नाम पर सियासत को उभारने की कोशिश करेगी.

उस साल ही मई में ओडिशा के पुरी को तूफान से काफ़ी नुक़सन पहुंचा था. उसके बाद नवीन पटनायक ने  पुरी जगन्नाथ हेरिटेज कॉरिडोर बनाने का एलान किया था. अब राम मंदिर कार्यक्रम के चंद दिन पहले 17 जनवरी को इस कॉरिडोर का उद्घाटन नवीन पटनायक ने किया. नवीन पटनायक की सरकार तीन दिन के इस कार्यक्रम को भव्यता के साथ आयोजित करते हुए दिखी थी. नवीन पटनायक सरकार की इस कवायद को सियासी लाभ के नज़रिये से भी आकलन किया गया.

राजनीतिक गलियारे में इसकी ख़ूब चर्चा हुई कि राम मंदिर से बने माहौल का ओडिशा में बीजेपी को लाभ न हो, इसके लिए ही नवीन पटनायक सरकार ने रणनीति के तहत इस कार्यक्रम को भव्य बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा. अमूमन नवीन पटनायक की गिनती ऐसे नेता के तौर पर होती है, जो इस तरह की भव्यता वाले कार्यक्रम से दूर रहते हैं. लेकिन प्रदेश में बीजेपी से मिलने वाली चुनौती को देखते हुए नवीन पटनायक उसी लिहाज़ से इस बार रणनीति तय कर रहे हैं.

'इंडिया' गठबंधन से दूरी का है सियासी मतलब

नवीन पटनायक बीजेपी को एक भी ऐसा मौक़ा नहीं देना चाहते हैं, जिससे ओडिशा में बीजेपी को उनके ख़िलाफ माहौल बनाने का अवसर मिल जाए. इसी रणनीति के तहत नवीन पटनायक ने लोक सभा चुनाव के लिए बने विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' से दूरी बनाकर रखी. नवीन पटनायक के लिए ओडिशा की राजनीति महत्वपूर्ण है. उन्हें केंद्र की राजनीति में कोई ख़ास दिलचस्पी न पहले थी और न अब है. विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के साथ जाने का मतलब ही था कि ओडिशा में बीजेपी यह प्रचार करती की नवीन पटनायक और कांग्रेस एक पाले में हैं. इससे बीजेपी नवीन पटनायक विरोधी तमाम वोट को अपने पाले में लाने में कामयाब हो सकती थी.

विरोधी वोट में बिखराव पर बीजेडी का ज़ोर

ऐसे भी ओडिशा में तमाम प्रयासों के बावजूद कांग्रेस अपने पक्ष में माहौल बनाने की हर कोशिश में पिछड़ती नज़र आ रही है. नवीन पटनायक का ज़ोर है कि उनके ख़िलाफ़ राज्य में जो भी वोट बैंक है, वो बीजेपी और कांग्रेस में बँटे. ऐसा होने से बीजू जनता दल के लिए लगातार छठी बार ओडिशा की सत्ता हासिल करना आसान हो जायेगा. इस रणनीति के तहत ही नवीन पटनायक ने विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' में शामिल होने का फ़ैसला नहीं किया था. अगर वे 'इंडिया' गठबंधन में शामिल होने को राज़ी हो जाते, तो ओडिशा में यह बीजेपी के पक्ष में जा सकता था.

नवीन पटनायक ओडिशा में हैं काफ़ी लोकप्रिय

बाक़ी नवीन पटनायक के पक्ष में जो सबसे बड़ा पहलू है, वो ओडिशा के लोगों का उन पर भरोसा है. इस पहलू पर प्रदेश स्तर पर नवीन पटनायक जैसे चेहरे की बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. कभी नवीन पटनायक के बेहद क़रीबी रहे बैजयंत पांडा मार्च 2019 से बीजेपी के साथ हैं. बैजयंत पांडा के साथ से बीजेपी को प्रदेश में मज़बूती मिली है, इसमें कोई दो राय नहीं है, इसके बावजूद बैजयंत पांडा का प्रभाव ओडिशा के हर इलाके में वैसा नहीं हैं, जिससे नवीन पटनायक के लिए बीजेपी कोई ख़तरा बन जाए.

ओडिशा में कांग्रेस की जिद्द-ओ-जहद और मज़बूरी

कांग्रेस भी कोशिश कर रही है कि ओडिशा में खोया जनाधार वापस आ सके. इसके लिए पिछले महीने कांग्रेस अपने कई पुराने दिग्गज नेताओं को एक बार फिर से पार्टी में वापस लाने में सफल रही है. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री और नौ बार लोक सभा सांसद रहे गिरिधर गमांग, पूर्व सांसद हेमा गमांग, संजय भोई जैसे नेता शामिल हैं. लेकिन सवाल यह भी है कि क्या अब भी इन नेताओं की पकड़ पहले जैसी है. जिस तरह से बीजेपी पिछले कुछ साल में ओडिशा में विपक्ष का स्पेस हथियाने में सफल रही है, उसके मद्द-ए-नज़र फ़िलहाल कांग्रेस के लिए बहुत उम्मीद बचती नहीं हैं.

प्रदेश की राजनीति के सिरमौर हैं नवीन पटनायक

बीजेपी का ओडिशा में तेज़ी से उभार हुआ है, यह वास्तविकता है. इसके बावजूद नवीन पटनायक अभी भी ओडिशा की राजनीति के सिरमौर हैं और उनको आगामी विधान सभा चुनाव में कड़ी चुनौती देना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा. पिछले ढाई दशक में अपनी राजनीति और प्रशासनिक क्षमता से  नवीन पटनायक ने ओडिशा का कायाकल्प कर दिया है. उन्होंने अपनी पहचान ऐसे नेता और प्रशासक के तौर पर बनायी है, जो बोलता कम है और काम अधिक करता है. यही वज्ह है कि उन्हें भारतीय राजनीतिक का मौन साधक भी कहा जाता है.

लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रिकॉर्ड पर नज़र

तक़रीबन 24 साल से नवीन पटनायक ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं. वे अपना पाँचवाँ कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं. आगामी विधान सभा चुनाव में बीजू जनता दल सत्ता  बरक़रार रखने में कामयाब होती है, तो नवीन पटनायक देश में सबसे लंबे वक़्त तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लेंगे. अभी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता रहे पवन कुमार चामलिंग के नाम यह रिकॉर्ड  है. पवन चामलिंग दिसंबर 1994 से मई 2019 के बीच 24 साल 166 दिन तक सिक्किम के मुख्यमंत्री रहे थे. इस मामले में दूसरे पायदान पर नवीन पटनायक हैं.

अगर 77 वर्षीय नवीन पटनायक इस साल विधान सभा चुनाव जीत लेते हैं और अपना छठा कार्यकाल पूरा कर लेते हैं तो उनके नाम 2029 में लगातार 29 साल मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड दर्ज हो जाएगा. भविष्य में इस मक़ाम तक पहुँचाना किसी भी नेता के लिए बेहद मुश्किल भरा काम होगा.

नवीन पटनायक की राजनीति का जुदा अंदाज़

नवीन पटनायक मीडिया में कम दिखते हैं, लेकिन काम बेहद ही शांतिपूर्ण तरीके से करते हैं. उनकी छवि ऐसे नेता के तौर पर है जो अपने विरोधियों पर बयान से हमला नहीं करते हैं. नवीन पटनायक अपनी राजनीतिक सोच और रणनीति को साफ़-गोई अंदाज़ में अमल करने पर विश्वास करते हैं. यही उनकी सबसे बड़ी ताक़त रही है. इस कारण से ओडिशा की राजनीति में नवीन पटनायक के आने के बाद कोई और दूसरी पार्टी उस रूप में पनप नहीं सकी है, जिससे बीजू जनता दल को ख़तरा हो.

अगर राजनीतिक सफ़र की बात करें, तो नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक के निधन के बाद ओडिशा की राजनीति में नए अध्याय की शुरुआत होती है. इसे नवीन पटनायक अध्याय भी कह सकते हैं क्योंकि जब से नवीन पटनायक ने नई पार्टी के तौर से बीजू जनता दल यानी बीजेडी की स्थापना की, तब से यह पार्टी ओडिशा का कोई भी विधानसभा चुनाव नहीं हारी है. नवीन पटनायक ने 26 दिसंबर 1997 को बीजू जनता दल के नाम से नई पार्टी का गठन किया और तब से वे ही इस पार्टी के अध्यक्ष भी हैं.

बीजू जनता दल कभी चुनाव हारी नहीं है

बीजू जनता दल के गठन के बाद ओडिशा में पाँच बार विधान सभा चुनाव हुए हैं. वहीं  6 बार लोक सभा चुनाव हुए हैं. इन पाँच विधानसभा चुनाव में बीजू जनता दल  को जीत मिली है. वहीं पिछले 6 लोक सभा चुनाव में भी हर बार ओडिशा में बीजू जनता दल को ही सबसे अधिक सीट पर जीत मिली है. स्पष्ट है कि पिछले ढाई दशक से ओडिशा की राजनीति पर नवीन पटनायक का दबदबा रहा है.

ओडिशा की छवि बदलने में बड़ी भूमिका

जब नवीन पटनायक साल 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने, उस वक़्त ओडिशा की पहचान देश के सबसे गरीब और बीमारू राज्यों में होती थी. ओडिशा की पहचान...प्राकृतिक आपदा चक्रवातीय तूफ़ान से जान-माल का नुक़सान, भुखमरी से मौत वाले राज्य के तौर पर होती थी. ओडिशा के कालाहांडी और रायगढ़ का नाम सुनते ही दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लोगों के बीच जो तस्वीर बनती थी, वो भुखमरी और कुपोषण के शिकार लोगों से जुड़ी हुई होती थी.

ऐसी स्थिति में नवीन पटनायक की पार्टी पहली बार फरवरी 2000 में विधानसभा चुनाव लड़ती है. बीजू जनता दल  147 सीटों में से 68 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बन जाती है. फिर 38 सीट जीतने वाली बीजेपी के साथ मिलकरबीजू जनता दल  सरकार बनाती है और नवीन पटनायक पहली बार मुख्यमंत्री बनते हैं.

ओडिशा की तस्वीर बदलने में जुटे रहे

धीरे-धीरे नवीन पटनायक के शासन काल में ओडिशा भुखमरी के दौर से बाहर निकलकर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने वालों राज्यों में अग्रिम पंक्ति में जा खड़ा होता है. प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त राज्य की कैटेगरी से बाहर निकल आपदा प्रबंधन में रोल मॉडल और तूफान जैसी आपदाओं में जीरो लॉस की नीति पर चलने वाला राज्य बन जाता है. बग़ैर किसी गठबंधन का हिस्सा बने भी ओडिशा की भलाई के लिए नवीन पटनायक ने हमेशा ही केंद्र में रहने वाली सरकार से तालमेल पर ज़ोर दिया है.

कई मोर्चों पर ओडिशा की स्थिति सुधरी

राज्य की प्रति व्यक्ति आय 2011-12 में 48,499 रुपये सालाना थी..यानी 4 हजार रुपये प्रति महीने. अब ओडिशा में प्रति व्यक्ति आय बढ़कर डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा हो गई. 2011-12 में ओडिशा में प्रति व्यक्ति आय देश के औसत आंकड़े के मुकाबले आधा था, लेकिन अब इस मोर्चे पर ओडिशा राष्ट्रीय औसत के करीब पहुंचने को तैयार है.  1993-94 में सकल राज्य मूल्य वर्धित (GSVA) में उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी महज़ 17% थी, जो बढ़कर अब करीब 40% हो गया है. जब नवीन पटनायक ने बतौर सीएम ओडिशा की जिम्मेदारी संभाली थी, उस वक्त यहां का कुल बजट सिर्फ़ 3 हजार करोड़ रुपये था, जो आज 2,30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.

नवीन पटनायक ने भुखमरी की मार से झेल रहे इलाकों पर भरपूर ध्यान दिया. घर-घर और हर परिवार तक अनाज पहुंचाने के लिए खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम चलाया. जिसके तहत महज़ टोकन मनी लेकर अनाज मुहैया कराया गया. बाद में इस तरह की योजनाओं को बाकी राज्यों ने भी अपनाया. नौकरशाही व्यवस्था को भी नवीन पटनायक ने चुस्त-दुरुस्त किया. राजनीतिक दबाव के बिना वो माहौल बनाया जिससे पूरी शासकीय व्यवस्था का फोकस सिर्फ़ और सिर्फ़ जनता तक सरकारी योजनाओं और सुविधाओं का लाभ पहुँचाने पर रहा.

सुशासन और साफ-सुथरी राजनीति पर ज़ोर

नवीन पटनायक की पहचान सुशासन और साफ-सुथरी राजनीति के इर्द-गिर्द रही है. वे कभी अपने विरोधियों पर हमलावर नज़र नहीं आते हैं. उन्हें जाति, नस्ल या धर्म पर बात करते हुए भी नहीं सुना जा सकता है. ओडिशा की पुरानी छवि को बदलने में नवीन पटनायक का योगदान विरोधी दल के नेता भी मानते हैं. नवीन पटनायक ने पिछले 24 साल में ओडिशा की अर्थव्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, हेल्थ फैसिलिटी और खाद्य सुरक्षा को लेकर हर उस नीति पर अमल किया, जिसके कारण वर्तमान में ओडिशा देश के सबसे तेजी से विकास करने वाले राज्यों में शामिल है.

बीजेडी के लिए अब बीजेपी ही है ख़तरा

आज नवीन पटनायक के लिए बीजेपी सबसे बड़ी चुनौती बन गयी है, लेकिन जब नवीन पटनायक ने नई पार्टी बनाई थी, उस समय ओडिशा में कांग्रेस की सरकार थी. विडंबना देखिए कि नवीन पटनायक की पार्टी 2000 में बीजेपी के सहयोग से कांग्रेस की सरकार को प्रदेश की सत्ता हटाने में सफल हुई थी. बीजेपी और बीजेडी का साथ 2004 के विधान सभा चुनाव में भी बना रहा. बीजू जनता दल 61 सीट पर जीत दर्ज कर फिर से सबसे बड़ी पार्टी बनी और बीजेपी को 32 सीटें हासिल हुई और कांग्रेस 38 सीट जीत पायी. नवीन पटनायक दूसरी बार मुख्यमंत्री बने.

बीजेडी-बीजेपी के अलग होने का असर

बीजेडी और बीजेपी के बीच 11 साल की साझेदारी 2009 के विधान सभा चुनाव के पहले टूट चुकी थी. नवीन पटनायक ने कंधमाल घटना को इसके लिए जिम्मेदार बताया था. बीजेपी से अलग होने के बाद नवीन पटनायक की राजनीति और निखर गयी. नवीन पटनायक के अलग होने का असर यह हुआ कि ओडिशा में बीजेपी का जनाधार सिकुड़ने लगा. नवीन पटनायक की पार्टी को 2009 विधानसभा चुनाव में पहली बार अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल हुआ. बीजेडी 147 में से 103 सीट पर जीत दर्ज करने में सफल हुई. वहीं बीजेपी इस चुनाव में 32 से गिरकर 6 सीट पर आ गई. कांग्रेस को 27 सीट पर जीत मिली. नवीन पटनायक तीसरी बार मुख्यमंत्री बने.

ओडिशा में कांग्रेस धीरे-धीरे कमज़ोर हुई

ओडिशा में कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर हो रही थी. बीजेडी से अलग होने से बीजेपी के लिए कुछ अधिक नहीं बचा था. नवीन पटनायक की स्थिति लगातार मज़बूत होती जा रही थी. बीजू जनता दल ने 2014 में अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. इस विधान सभा चुनाव में बीजेडी के खाते में 117 सीट आयी. कांग्रेस 16 और बीजेपी महज़ 10 सीटों पर सिमट गई. नवीन पटनायक चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए. 2014 के लोकसभा चुनाव में तो बीजेडी ओडिशा की 21 में से 20 सीटों पर जीत गयी थी और एक सीट बीजेपी के खाते में गयी थी.

बीजेपी ने 2019 में अपने प्रदर्शन से चौंकाया

नवीन पटनायक को 2019 में पिछला विधानसभा चुनाव भी जीतने में  कोई ख़ास समस्या नहीं हुई. लगातार चार कार्यकाल से सरकार में रहने के बावजूद नवीन पटनायक की पार्टी को 2019 में ओडिशा में 112 सीटों पर जीत मिली. कांग्रेस को सिर्फ़ 9 सीट पर ही जीत मिली. बीजेपी 23 सीट जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी. लेकिन लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने बीजू जनता दल को काफ़ी नुक़सान पहुँचाया. नवीन पटनायक लगातार पाँचवीं बार सरकार बनाने में कामयाब रहे थे, लेकिन 2019 में ही पहली बार एहसास हुआ कि भविष्य में बीजेपी नवीन पटनायक के लिए बड़ी चुनौती बनने जा रही है.

बीजेपी 2019 में 23 विधान सभा सीट जीत गयी. उसका वोट शेयर  32.49% रहा. बीजेपी को पिछली बार के मुक़ाबले 13 सीट का लाभ हुआ था, लेकिन नवीन पटनायक के लिए ख़तरे वाली बात यह हुई कि बीजेपी के वोट बैंक में तक़रीबन 15% फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हो गयी. कांग्रेस का वोट शेयर क़रीब दस फ़ीसदी कम हुआ. इस चुनाव में बीजू जनता दल का वोट शेयर एक फ़ीसदी से अधिक बढ़ा था. कांग्रेस की जगह अब बीजेपी ओडिशा में बतौर विपक्षी दल नया विकल्प बनने की राह पर बढ़ गयी थी.

लोक सभा के लिहाज़ से बीजेपी मज़बूत

बीजेपी के लिए सबसे सकारात्मक और नवीन पटनायक के लिए चिंता की बात 2019 के लिए लोकसभा चुनाव के नतीजे रहे. बीजू जनता दल 21 में से 12 सीट ही जीत पाई और उसे 8 सीटों का नुकसान हुआ. वहीं बीजेपी 7 सीटों के लाभ के साथ 8 सीट पर जीतने में सफल रही. कांग्रेस महज़ एक सीट ही जीत पायी. लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी के वोट शेयर में तक़रीबन 17% का इज़ाफा हुआ. वहीं कांग्रेस के वोट शेयर में 12% से अधिक की गिरावट दर्ज की गई. बीजू जनता दल के वोट शेयर में भी एक प्रतिशत से अधिक की कम हुई.

इस बार बीजेपी की नज़र प्रदेश की सत्ता पर है. विधान सभा की बात करें तो बीजेपी ने पहली बार यहाँ 1985 में एक सीट पर जीत हासिल की थी. बीजेपी को 1990 में 2 सीट और 1995 में 9 विधान सभा सीट पर जीत मिली. ओडिशा में बीजेपी का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2000 के विधान सभा चुनाव में रहा था. इस चुनाव में बीजू जनता दल के सहयोग से बीजेपी को 38 सीट पर जीत मिली थी. बीजेपी को 2004 में 32 सीट पर जीत मिली. नवीन पटनायक का साथ छूटने के बाद 2009 में बीजेपी को 6 सीट, 2014 में 10 सीट और 2019 में 23 सीटों पर जीत मिली.

लोक सभा में बीजेपी के प्रदर्शन का ग्राफ

लोक सभा की बात करें तो बीजेपी को ओडिशा में पहली बार कोई सीट जीतने के लिए लंबा इंतिज़ार करना पड़ा. पहली बार 1998 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी का ओडिशा में खाता खुला. बीजू जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से 1998 में बीजेपी 7 सीट जीतने में सफल रही. बीजेपी 1999 में 9 सीट जीत गयी. लोक सभा चुनाव, 2004  में भी बीजेपी को 7 सीट पर जीत मिली.

इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में नवीन पटनायक का साथ छूटने का असर दिखा. बीजेपी ओडिशा में 2009 में एक भी लोक सभा सीट नहीं जीत पाई. बीजेपी को 2014 में सिर्फ़ एक सीट पर जीत मिली. अपने दम पर ओडिशा में बीजेपी का असली रंग 2019 के लोक सभा चुनाव दिखा.

आदिवासी और महिला वोट बैंक पर नज़र

ओडिशा में 2009 के पहले तक बीजेपी की पकड़ और जनाधार का मुख्य कारण नवीन पटनायक का साथ था. उसके बाद ओडिशा में बीजेपी की राह मुश्किल हो गयी. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने 2014 के बाद ओडिशा पर ख़ूब ध्यान दिया. इससे प्रदेश में 2019 में  बीजेपी के प्रदर्शन काफ़ी सुधार हुआ. पिछले पाँच साल में बीजेपी ने ओडिशा को लेकर कई रणनीति को अंजाम भी दिया है.

बीजेपी का मुख्य ज़ोर आदिवासि और महिला वोट बैंक पर है. ओडिशा की 147 में 24 विधान सभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ओडिशा से हैं. उन्हें राष्ट्रपति बनाने के फ़ैसले का संबंध ओडिशा को लेकर बीजेपी के राजनीतिक मंसूबे से भी रहा है.

इन सबके बावजूद बीजेपी के लिए आदिवासी और महिलाओं वोट बैंक में सेंध लगाना उतना आसान नहीं होगा. नवीन पटनायक पहले से ही महिलाओं के लिए कई योजनाएं चला रहे हैं. महिलाओं को चुनाव में 33 फ़ीसदी टिकट देने की नीति पर भी वे आगे बढ़ रहे हैं. नवीन पटनायक को मात देना बीजेपी के इतना आसान नहीं होगा.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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