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'नवीन पटनायक, राजनीति का मौन साधक, ओडिशा का कायाकल्प, 2024 में बीजेपी से मिलेगी कड़ी चुनौती'

ओडिशा में बालासोर जिले के बाहानगा बाजार के पास हुई रेल दुर्घटना भारत के भीषणतम हादसों में से एक है. ये हादसा 2 जून को हुआ और उसके बाद से इस हादसे को लेकर तरह-तरह की खबरें देश-विदेश में बन रही हैं. इस हादसे के बाद राहत और आपदा को जिस तेजी से अंजाम दिया गया, उसमें ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के अध्यक्ष नवीन पटनायक की भूमिका बेहद ही सराहनीय रही. राहत और आपदा अभियान में सीएम नवीन पटनायक ने हर छोटी से छोटी बातों पर खुद नज़र रखी.

कम बोलने वाले नेता के तौर पर पहचान

बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक भारतीय राजनीति के ऐसे चेहरे हैं, जो मीडिया के सामने बोलते कम हैं, लेकिन पिछले 23 साल में ओडिशा का कायाकल्प करने में उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है. नवीन पटनायक एक तरह से भारतीय राजनीति के मौन साधक हैं, जिनका राजनीतिक बयानबाजी से नाता बहुत ही कम रहा है.

नवीन पटनायक भारत के ऐसे राजनेता हैं, जो मीडिया में कम दिखते हैं, लेकिन अपना काम बेहद ही शांतिपूर्ण तरीके से करते हैं. उनकी छवि ऐसे नेता के तौर पर है जो अपने विरोधियों पर बयानों से हमला नहीं करते हैं, बल्कि अपनी राजनीतिक सोच बड़े ही साफगोई अंदाज में  अंजाम देने पर यकीन करते हैं. यहीं वजह है कि नवीन पटनायक के ओडिशा की राजनीति में खुलकर आने के बाद वहां कोई और दूसरी पार्टी पनप नहीं सकी है.

पिछले 23 साल से ओडिशा के मुख्यमंत्री

नवीन पटनायक पिछले 23 साल से ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं और वे अपना लगातार पांचवां कार्यकाल 2024 में पूरा करने वाले हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा के लिए भी 17वीं विधानसभा चुनाव होना है. अगर नवीन पटनायक 2024 में लगातार छठी बार ओडिशा की सत्ता हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं, तो फिर वे देश में सबसे लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लेंगे.

फिलहाल ये रिकॉर्ड सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता रहे पवन कुमार चामलिंग के नाम ये रिकॉर्ड है. पवन चामलिंग दिसंबर 1994 से मई 2019 के बीच 24 साल 166 दिन तक सिक्किम के मुख्यमंत्री रहे थे. उनके बाद सीपीएम नेता ज्योति बसु सबसे ज्यादा दिन (23 साल 138 दिन) 21 जून 1977 से लेकर 6 नवंबर 2000 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे थे. नवीन पटनायक अपने पांचवें कार्यकाल में ही ज्योति बसु को इस मामले में पीछे छोड़ देंगे.

अगर नवीन पटनायक 2024 का विधानसभा चुनाव जीत लेते हैं और उसके बाद अपना छठा कार्यकाल पूरा कर लेते हैं तो उनके नाम 2029 में लगातार 29 साल मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड दर्ज हो जाएगा और भविष्य में जहां तक पहुंचाना किसी भी नेता के लिए बेहद मुश्किल भरा काम होगा.

लगातार पांचवां कार्यकाल पूरा करने के करीब

नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक ओडिशा की राजनीति के कद्दावर नेता रहे हैं. बीजू पटनायक भी ओडिशा के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन वे एक बार बतौर कांग्रेस सदस्य और दूसरी बार बतौर जनता दल सदस्य के तौर पर मुख्यमंत्री रहे हैं. बीजू पटनायक के अप्रैल 1999 में निधन के बाद ओडिशा की राजनीति में नए अध्याय की शुरुआत होती है. इसे नवीन पटनायक अध्याय भी कह सकते हैं क्योंकि जब से नवीन पटनायक ने नई पार्टी के तौर से बीजू जनता दल यानी बीजेडी की स्थापना की, तब ये बीजेडी ओडिशा का कोई भी विधानसभा चुनाव नहीं हारी है.

जब बीजू पटनायक का निधन होता है, उसके बाद नवीन पटनायक ओडिशा के अस्का लोकसभा सीट से सांसद बनते हैं. इसके बाद नवीन पटनायक ने 26 दिसंबर 1996 को बीजू जनता दल के नाम से नई पार्टी का गठन किया और तब से वे ही इस पार्टी के अध्यक्ष भी हैं. इस पार्टी के गठन के बाद ओडिशा में पांच बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और 6 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं. पांचों बार विधानसभा चुनाव में बीजेडी को जीत मिली है. इसके साथ ही ओडिशा में कुल 21 लोकसभा सीट है और पिछले 6 चुनाव में बीजेडी को ही हर बार सबसे ज्यादा सीटें आई हैं. ये आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि ओडिशा की राजनीति पर पिछले ढाई दशक से नवीन पटनायक का किस तरह का दबदबा रहा है.

हालांकि नवीन पटनायक के लिए ओडिशा की राजनीति की राह इतनी आसान नहीं थी. जब उनके पिता का निधन हुआ था, उससे पहले नवीन पटनायक की जीवन शैली कुछ और ही थी. वे 50 वर्ष की आयु तक दिल्ली की आधुनिक जीवन शैली को अपनाने वाले एक शख्स के तौर पर जाने जाते थे. उनके पिता के निधन ने फिर सब कुछ बदल दिया. अब नवीन पटनायक अपनी सादगीपूर्ण जीवन शैली के लिए जाने जाते हैं.

जब सत्ता संभाली तो ओडिशा था बदहाल

ओडिशा की पहचान भी देश के सबसे गरीब और बीमारू राज्यों में होती थी. आपदा से भारी जानमाल का नुकसान, भुखमरी से मौत ..यही सब ओडिशा के लिए पहचान का मुद्दा था. ओडिशा के कालाहांडी और रायगढ़ का नाम सुनते ही दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लोगों के बीच जो तस्वीर बनती थी, वो भुखमरी और कुपोषण के शिकार लोगों से जुड़ी हुई होती थी. इस सदी की शुरुआत में 2001 में रायगड़ा (Rayagada) के काशीपुर में आम की गुठली का पेस्ट खाने से 20 से ज्यादा लोगों की मौत की खबर ने उस वक्त अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी थी.

1999 के तूफान से बर्बाद हो गया था ओडिशा

उससे पहले ओडिशा 1999  में अपने सबसे भीषण चक्रवाती तूफान से जूझ चुका था. ये पिछली शताब्दी में दुनिया में आए सबसे भयावह चक्रवाती तूफानों में से एक था. इस तूफान में करीब 10 हजार लोगों की जान चली गई थी. ये तो सरकारी आंकड़ा था, जान की क्षति उससे कहीं ज्यादा हुई थी. इस तूफान ने एक तरह से ओडिशा की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था.

2000 से ओडिशा में नवीन पटनायक की सरकार

इन सब हालातों में नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी पहली बार फरवरी 2000 में विधानसभा चुनाव लड़ती है. बीजेडी कुल 147 सीटों में से 68 सीटों पर जीत दर्ज कर बहुत से चंद सीट ही कम रहती है, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बन जाती है. फिर 38 सीट जीतने वाली बीजेपी के साथ मिलकर नवीन पटनायक यहां पहली बार सरकार बनाते हैं और बतौर नवीन पटनायक के सीएम बनने के साथ ओडिशा के कायाकल्प की कहानी शुरू हो जाती है.

भुखमरी से खाद्य सुरक्षा वाला राज्य

नवीन पटनायक के शासन काल में ओडिशा भुखमरी के दौर से बाहर निकलकर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने वालों राज्यों में अग्रिम पंक्ति में जा खड़ा होता है. प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त राज्य की कैटेगरी से बाहर निकल आपदा प्रबंधन में रोल मॉडल और तूफान जैसी आपदाओं में जीरो लॉस की नीति पर चलने वाला राज्य बन जाता है.

विरोधी नेताओं पर जुबानी हमलों से बचते हैं

नवीन पटनायक की राजनीति का अंदाज़ जुदा है. वे विरोधी पार्टियों के नेताओं पर जुबानी तौर से हमला करने में विश्वास नहीं करते हैं. पिछले 23 साल में ओडिशा की जनता के लिए बीजेडी सरकार ने बिना किसी शोर-शराबा के केंद्र सरकार के साथ तालमेल बनाते हुए जो कुछ किया, उसका ही नतीजा है कि वहां की जनता पिछले पांच बार से लगातार नवीन पटनायक पर भरोसा जता रही है.

नवीन पटनायक की उम्र 76 साल की हो चुकी है, लेकिन अभी भी ओडिशा के लिए काम करने का जोश बिल्कुल उसी तरह बरकरार है. उनकी पहचान सुशासन और साफ-सुथरी राजनीति के इर्द-गिर्द रही है. वे कभी अपने विरोधियों पर हमलावर नजर नहीं आते हैं. शायद ही किसी ने उन्हें जाति, नस्ल या धर्म पर बात करते हुए सुना होगा. अपनी  इन खूबियों के साथ नवीन पटनायक ने पिछले 23 साल में हर वो कोशिश की जिससे ओडिशा की पुरानी छवि न सिर्फ देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय जनमानस में भी बदल जाए. वे काफी हद तक इसमें कामयाब भी होते दिखे हैं.

नवीन पटनायक ने बदल दी ओडिशा की तस्वीर

ओडिशा की तस्वीर बदलने के लिए नवीन पटनायक ने कई उपाय किए. नवीन पटनायक का जोर 5T (teamwork, technology, transparency, transformation and time limit) पर रहा. सीएम बनने के बाद से ही उन्होंने हर विभाग के लिए टारगेट तय किए और उसके लिए टाइम लिमिट भी सेट किया. महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूहों का निर्माण और समर्थन सबसे सफल उपायों में से एक है. इसके साथ ही बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना के जरिए उन्होंने ओडिशा के गरीब लोगों तक बेहतर मेडिकल फैसिलिटी पहुंचाने की कोशिश की.

खेल को बढ़ावा देने और राज्य में खेल संस्कृति के विकास में भी नवीन पटनायक ने खूब रुचि ली. जब भारतीय हॉकी टीम को कोई स्पॉन्सर नहीं मिल रहा था, तो नवीन पटनायक ने आगे बढ़ते हुए ये जिम्मेदारी ली. उनके ही प्रयासों का नतीजा रहा कि पिछले दो बार यानी 2018 और 2023 में पुरुषों का विश्व हॉकी कप टूर्नामेंट ओडिशा में आयोजित किया गया.

नवीन पटनायक ने पिछले 23 साल में ओडिशा की अर्थव्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, हेल्थ फैसिलिटी और खाद्य सुरक्षा को लेकर हर उस नीति पर अमल किया जिसकी वजह से आज ओडिशा  की गिनती देश के सबसे तेजी से विकास करने वाले राज्यों में होने लगी है.  2021-22 में ओडिशा में ग्रोथ रेट 11.5% दर्ज की गई और 2022-23 के लिए ये आंकड़ा 7.8% रहा.  भारत में स्टील निर्माण क्षमता का 20% ओडिशा में है. ओडिशा पावर सरप्लस राज्यों में से एक है. ये भारत का पावर हाउस बनने की राह पर है.

ओडिशा की अर्थव्यवस्था की मिली ताकत

राज्य की प्रति व्यक्ति आय 2011-12 में 48,499 रुपये सालाना थी..यानी 4 हजार रुपये प्रति महीने. अब ओडिशा में प्रति व्यक्ति आय बढ़कर डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा हो गई. 2011-12 में ओडिशा में प्रति व्यक्ति आय देश के औसत आंकड़े के मुकाबले आधा था, लेकिन अब इस मोर्चे पर ओडिशा राष्ट्रीय औसत के करीब पहुंचने को तैयार है.  1993-94 में सकल राज्य मूल्य वर्धित (GSVA) में उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी महज़ 17% थी, जो बढ़कर अब करीब 40% हो गया है. जब नवीन पटनायक ने बतौर सीएम ओडिशा की जिम्मेदारी संभाली थी, उस वक्त यहां का कुल बजट सिर्फ़ 3 हजार करोड़ रुपये था, जो आज 2,30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.

ओडिशा ने 2004-2010 के दौरान देश में सबसे अधिक गरीबी में कमी हासिल की. एक वक्त था जब ओडिशा देश का सबसे गरीब राज्य था लेकिन 2021-22 के नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा इस मामले में अब सबसे गरीब राज्य नहीं रहा है. ओडिशा की साक्षरता दर 2001 में 63% से बढ़कर 2011 में 73.45% हो गई. नवीन पटनायक ने भुखमरी की मार से झेल रहे इलाकों पर भरपूर ध्यान दिया. घर-घर और हर परिवार तक अनाज पहुंचाने के लिए खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम चलाया. जिसके तहत महज़ टोकन मनी लेकर अनाज मुहैया कराया गया. बाद में इस तरह की योजनाओं को बाकी राज्यों ने भी अपनाया.

नौकरशाही व्यवस्था को भी नवीन पटनायक ने चुस्त-दुरुस्त किया. राजनीतिक दबाव के बिना वो माहौल बनाया जिससे पूरी शासकीय व्यवस्था का फोकस केवल और केवल जनता तक सरकारी योजनाओं और सुविधाओं का लाभ पहुंचाने पर रहा.   

गठन से ही कोई भी चुनाव नहीं हारी है बीजेडी

पार्टी पर भी नवीन पटनायक का जबरदस्त पकड़ रहा है. स्थापना के समय से ही वे इसके अध्यक्ष हैं. एक बार सिर्फ 2012 में जब नवीन पटनायक विदेश दौरे पर थे तो उनके ही भरोसेमंद रहे प्यारे मोहन महापात्रा ने चुनौती देने की कोशिश की. हालांकि विदेश याक्षा में कटौती करते हुए नवीन पटनायक ने ऐसा नहीं होने दिया. उसके बाद से बीजेडी में नवीन पटनायक को किसी ने चुनौती देने की कोशिश नहीं की है.

2024 में बीजेपी से मिलेगी कड़ी चुनौती

अब जबकि नवीन पटनायक 2024 में लगातार छठी बार ओडिशा की सत्ता पर काबिज होने के लिए चुनावी दंगल में जाएंगे, तो उस वक्त उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी की होगी. नवीन पटनायक और बीजेडी की राजनीति का एक बड़ा पहलू ये है कि जब उन्होंने नई पार्टी बनाई थी, उस वक्त ओडिशा में कांग्रेस की सरकार थी.

जब बीजेडी पहली बार विधानसभा चुनाव 2000 में लड़ रही थी तो बीजेपी ही वो पार्टी थी जिसके सहयोग से नवीन पटनायक ने कांग्रेस की सरकार को सूबे की सत्ता से बेदखल कर दिया था. 2004 के विधानसभा चुनाव में भी बीडेजी और बीजेपी का साथ बना रहा. नवीन पटनायक की पार्टी 61 सीटें लाकर सबसे बड़ी पार्टी बनी और बीजेपी को 32 सीटें हासिल हुई. नवीन पटनायक दूसरी बार मुख्यमंत्री बने.

2009 में बीजेपी का नवीन पटनायक से टूटी दोस्ती

2009 के विधानसभा चुनाव के पहले बीजेडी और बीजेपी के बीच 11 साल की साझेदारी टूट चुकी थी. नवीन पटनायक ने कंधमाल घटना को इसके लिए जिम्मेदार बताया था. बीजेपी से अलग होने के बाद सही मायने में नवीन पटनायक की राजनीति शिखर पर पहुंची. यहीं से ओडिशा में बीजेपी का जनाधार कम होने लगा. 2009 विधानसभा चुनाव में पहली बार नवीन पटनायक को अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल हुआ. बीजेडी को 147 में से 103 सीटों पर जीत मिली, जबकि बीजेपी 32 से लुढ़ककर 6 सीटों पर आ गई. नवीन पटनायक तीसरी बार मुख्यमंत्री बने.

2014 में नवीन पटनायक का सबसे अच्छा प्रदर्शन

ओडिशा में धीरे-धीरे कांग्रेस कमजोर हो रही थी और बीजेडी से अलग होने से बीजेपी के लिए कुछ ज्यादा नहीं बचा था. नवीन पटनायक लगातार मजबूत होते जा रहे थे. 2014 में बीजेडी ने अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया. बीजेडी को 117 सीटों पर जीत मिली. कांग्रेस 16 और बीजेपी महज़ 10 सीटों पर सिमट गई. नवीन पटनायक चौथी बार सीएम बने. 2014 के लोकसभा चुनाव में तो बीजेडी ने यहां की कुल 21 में से 20 सीटों पर कब्जा कर लिया. 

2019 में बीजेपी ने दिखाई ताकत

गौरतलब है कि पिछला विधानसभा चुनाव भी जीतने में नवीन पटनायक को कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में तो बीजेडी को भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन विधानसभा के नतीजों में लगातार पांचवीं बार नवीन पटनायक ने जीत दर्ज की. चार कार्यकाल से सरकार में रहने के बावजूद नवीन पटनायक की पार्टी को यहां 112 सीटों पर जीत मिली. कांग्रेस को सिर्फ़ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा. 

बीजेपी का लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन

भले ही नवीन पटनायक लगातार चौथी बार सरकार बनाने में कामयाब रहे थे, लेकिन 2019 में ही ये पहली बार एहसास हुआ कि भविष्य में बीजेपी नवीन पटनायक के लिए बड़ी चुनौती बनने जा रही है. 2019 में बीजेपी को 23 विधानसभा सीटों के साथ ही 32.49% वोट भी हासिल हुए. बीजेपी की सीटों की संख्या में 13 का इजाफा हुआ लेकिन नवीन पटनायक के लिए डरने वाली बात ये हुई कि बीजेपी के वोट बैंक में करीब15% का इजाफा हो गया. कांग्रेस का वोट शेयर तेजी से घटा. हालांकि विधानसभा में नवीन पटनायक का वोट शेयर एक फीसदी से ज्यादा बढ़ा ही था. यानी कांग्रेस की जगह अब बीजेपी वहां नए विकल्प बनने का दावा ठोक चुकी थी.

बीजेपी के लिए सबसे सकारात्मक और नवीन पटनायक के लिए चिंता की बात 2019 के लिए लोकसभा चुनाव के नतीजे रहे. बीजू जनता दल 21 में से 12 सीट ही जीत पाई और उसे 8 सीटों का नुकसान हुआ. वहीं बीजेपी 7 सीटों के फायदे के साथ 8 सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब हो गई. वहीं कांग्रेस सिर्फ एक सीट जीत पाई. यहां भी बीजेपी के वोट शेयर में करीब 17% का उछाल आया और कांग्रेस के वोट शेयर में 12 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई.  नवीन पटनायक की पार्टी के वोट शेयर में भी एक फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई. 

2024 में बीजेपी सरकार बनाना चाहती है

2024 के लिए बीजेपी ओडिशा में सत्ता हासिल करने के लक्ष्य के साथ रणनीति को अंजाम देने में जुटी है. ओडिशा की राजनीति में एक वक्त था जब बीजेपी की हैसियत और पकड़ ठीक-ठाक थी. विधानसभा की बात करें तो बीजेपी ने पहली बार यहां 1985 में एक सीट पर जीत हासिल की थी. बीजेपी को 1990 में 2 सीट और 1995 में 9 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी का ओडिशा में सबसे अच्छा प्रदर्शन 2000 के विधानसभा चुनाव में रहा था. इस चुनाव में बीजू जनता दल के सहयोग से बीजेपी को 38 सीटों पर जीत मिली थी. 2004 में 32 सीटों पर जीत मिली. नवीन पटनायक का साथ छूटने के बाद 2009 में बीजेपी को 6 सीट, 2014 में 10 सीट और 2019 में 23 सीटों पर जीत मिली.

लोकसभा के नजरिए से बीजेपी मजबूत

लोकसभा की बात करें तो बीजेपी को ओडिशा में कोई भी सीट जीतने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा. पहली बार 1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का खाता खुला, लेकिन ये प्रदर्शन बीजेपी के हौसला बढ़ाने वाला था. इस चुनाव में बीजेपी 7 सीटें हासिल करने में कामयाब रही. ये बीजू जनता दल के साथ आने का कमाल था. 2004 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को 7 सीटों पर जीत मिली. हालांकि नवीन पटनायक का साथ छूटने का असर 2009 के लोकसभा चुनाव में साफ दिखा. ओडिशा में 2009 में बीजेपी एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई. 2014 में बीजेपी को महज़ एक सीट पर जीत मिली. अपने दम पर ओडिशा में बीजेपी का असली रंग 2019 के लोकसभा चुनाव दिखा, जब अपने दम पर 8 सीटों पर वो कमल का परचम लहराने में कामयाब रही.

2014 से ही बीजेपी लगातार कर रही है मेहनत

2009 के पहले तक ओडिशा में बीजेपी की पकड़ और जनाधार का मुख्य कारण नवीन पटनायक का साथ ही था. लेकिन उसके बाद का एक दशक बीजेपी के लिए काफी मुश्किल भरा रहा. 2014 के बाद शीर्ष नेतृत्व ने ओडिशा पर भरपूर ध्यान दिया. यहीं वजह है कि 2019 में ओडिशा में बीजेपी का प्रदर्शन काफी सुधरा. 2019 में जिस तरह का प्रदर्शन बीजेपी ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव में किया, उसको देखते हुए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने ओडिशा को भी उन राज्यों में शामिल किया, जहां की सत्ता हासिल करने का लक्ष्य रखा गया. पिछले चार साल में बीजेपी ने ओडिशा को लेकर कई रणनीति को अंजाम भी दिया है. बीजेपी का मुख्य फोकस यहां के आदिवासियों और महिलाओं के वोट बैंक पर है. यहां  की 147 में 24 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. ओडिशा से आने वाली आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति  बनाने के फैसले को भी सियासी जानकार इसी संदर्भ में देखते हैं.

आदिवासी और महिला वोट बैंक पर नज़र

हालांकि बीजेपी के लिए आदिवासी और महिलाओं वोट बैंक पर सेंध लगाना उतना आसान नहीं होगा. नवीन पटनायक पहले से ही महिलाओं के लिए कई योजनाएं चला रहे हैं. महिलाओं को चुनाव में 33 फीसदी टिकट देने की नीति पर भी वो आगे बढ़ रहे हैं.

बीजेपी के पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण ये है कि 2024 में नवीन पटनायक को पांच कार्यकाल के एंटी इनकंबेंसी की चुनौती से जूझना होगा. उसके साथ ही नवीन पटनायक की बढ़ती उम्र को देखते हुए भी अगली पंक्ति के नेताओं की कमी का फायदा बीजेपी उठाना चाहेगी.

नवीन पटनायक की रणनीति को समझना आसान नहीं

हालांकि नवीन पटनायक को मात देना इतना भी आसान नहीं है. उन्होंने भले ही 2009 में बीजेपी से नाता तोड़ लिया था, लेकिन हमने 2014 से कई बार संसद में देखा है कि उनकी पार्टी ने नरेंद्र मोदी सरकार को मुद्दों पर आधारित समर्थन कई बार किया है. नवीन पटनायक जानते हैं कि केंद्र सरकार से तालमेल के जरिए ही ओडिशा जैसे पिछड़े राज्य की तस्वीर बेहतर बनाई जा सकती है. लेकिन वे ये भी जानते हैं कि ओडिशा में बीजेपी को बड़ी ताकत बनने से कैसे रोका जाए, शायद इसकी बानगी ही 2009 में दिखी थी.

अब जब बीजेपी ओडिशा में खुलेआम चुनौती देने की स्थिति में आ गई है, तो 2024 में देखना होगा कि नवीन पटनायक क्या नीति अपनाते हैं. नवीन पटनायक बोलने वाले कम और रणनीति को अंजाम देने वाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं. यहीं उनकी सबसे बड़ी ताकत रही है और यहीं ताकत विपक्षी दलों के लिए सबसे बड़ा खतरा भी है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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