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कर्नाटक चुनाव में BJP की बड़ी चुनौती, देवगौड़ा का आखिरी चुनाव, अंदरुनी कलह से जूझ रही कांग्रेस

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए 10 मई को वोटिंग होगी और 13 मई को इसके नतीजे आ जाएंगे. ये चुनाव बहुत ही दिलचस्प और चैलेंजिंग है. भाजपा के लिए भी और इसे लेकर कांग्रेस भी पूरी तरीके से आश्वस्त नहीं है कि उनको पूर्ण बहुमत मिलेगा. हालांकि, पूरे देश के अन्य राज्यों में जो कांग्रेस के संगठन हैं अगर उससे कर्नाटक में जो कांग्रेस की स्टेट यूनिट है उसकी तुलना करें तो वह हर तरीके से श्रेष्ठ है. इनके पास लोग भी हैं, रिसोर्सेज भी हैं. हर जाति और समुदाय को प्रजेंट करते हुए नेता भी हैं, जिनका कि अपना सपोर्ट बेस भी है और साथ ही साथ गवर्नेंस का एक रिकॉर्ड भी है...तो भाजपा की जो वर्तमान बोम्मई सरकार है उनके पास दो बड़े हैंडिकैप्ड है. एक तो यह कि बोम्मई जी येदुरप्पा जी को हटाकर मुख्यमंत्री बने, जिससे कि लिंगायत कम्युनिटी में यह एक फीलिंग है कि उनके जो नेता थे उनको हटाकर बोम्मई जी को मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि वह खुद भी लिंगायत हैं. लेकिन वह उनके नेता नहीं हैं क्योंकि आप एक नेता हैं जो कि किसी भी समुदाय से बिलॉन्ग कर सकते हैं, लेकिन उस समुदाय का नेता बनना अलग बात होती है. कर्नाटक में यही एक कम्युनिटी है जिसके ऊपर समर्थन के लिए भाजपा की निर्भरता बहुत ज्यादा रहती है.

बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती

बोम्मई सरकार के साथ दूसरी प्रॉब्लम भ्रष्टाचार की है. पिछले कुछ महीनों में बहुत ही एक मजबूत कैंपेन चलाया गया है 40% सरकारी कमीशन के खिलाफ. बोम्मई सरकार के ऊपर की गवर्नमेंट के कॉन्ट्रैक्ट पर इनके नेता और मंत्री जो हैं वह कमीशन काटते हैं. वह इतना अधिक काटते हैं कि एक कांट्रेक्टर ने तो आत्महत्या कर ली थी. इस घटना के बाद सरकारी कांट्रेक्टर का जो यूनियन था उसने एक प्रेस कांफ्रेंस करके यह बोला था कि अगर रूलिंग पार्टी के लोग अपना कमीशन लेना कम नहीं करेंगे तो वे सरकारी कॉन्ट्रैक्ट के लिए नीलामी प्रक्रिया में जाना छोड़ देंगे. चूंकि, सरकारी कॉन्ट्रैक्ट से उनको कोई फायदा नहीं हो रहा है. कमीशन बांटने के बाद उनके हाथ में कुछ नहीं आ रहा है. इस तरह की चीजें बोम्मई सरकार के साथ हुई हैं.

इसके साथ ही हिंदुत्व के मामले में भी भाजपा को थोड़ा-बहुत चैलेंज है, क्योंकि प्रधानमंत्री एक बहुत बड़े हिंदुत्व आइकॉन हैं. वो बहुत ही ज्यादा पॉपुलर हैं कर्नाटक में. अगर वह बचा सके तो बचा लें, क्योंकि बीच में ऐसा हुआ था कि एक-दो हत्याएं हुई थी BJYM लड़कों की. एक्चुअली जो बैकवर्ड विल्लव कम्युनिटी है उन्हीं के कम्युनिटी के 2 लोग मारे गए थे. उनको यह लगा कि भाजपा की सरकार के होने के बावजूद उनकी रक्षा नहीं हो पा रही है. जो आरोपित हैं उनको पकड़ा नहीं जा रहा है. ऐसे में ये बहुत ही चैलेंजिंग स्थिति है बीजेपी के लिए. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस के फेवर में भी बहुत सारी चीजें हैं. लेकिन उनके यहां भी एक दो समस्याएं हैं. एक तो यह कि सिद्धारमैया और डीके शिव कुमार जी जो हैं वह दोनों मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार हैं.

कांग्रेस में अंदरुनी कलह तेज

डीके शिवकुमार जी को लगता है कि वह वोक्कालिंगा के लीडर हैं और उनको यह लगता है कि सिद्धारमैया जी बाहर से आए हुए नेता हैं और वह सोशलिस्ट खेमें से आए हुए नेता हैं और वो एक बार मुख्यमंत्री भी बन चुके हैं. उनकी पारी हो चुकी है और प्रेसिडेंट होने के नाते अब शिवकुमार जी की बारी है. उन्होंने पार्टी के एमएलए को संजोने में बहुत कुछ प्रयास किया है और ऑर्गेनाइजेशन के स्तर पर भी बहुत सारा प्रयास किया है. उनको लगता है कि उनको इस बार मौका मिलना चाहिए इस बार और सिद्धारमैया जी यह कह रहे हैं कि उनके पास जो जनमत है अल्पसंख्यक और बैकवर्ड का जो उनके साथ जाता है. उसके बेसिस पर वह फिर से यह दावा कर रहे हैं कि मैं ही मुख्यमंत्री बनूंगा.

कांग्रेस के साथ दूसरी समस्या यह है कि कि उसने इतनी जल्दबाजी में टिकट इसलिए जारी की है कि उसे डर है कि जिन्हें बागी होना है क्योंकि इनके पास 80 विधायक थे चुने हुए, जिसमें से कुछ पहले ही टूटकर भाजपा में चले गए थे. इसकी वजह से बीजेपी की यहां सरकार बन पाई थी. लेकिन जो बाकी बचे हुए विधायक थे उनको रिपीट करना है या ड्रॉप करना है इन सब चीजों में जब वे रिबेलीयन हों तो उसे जल्दी से डील कर पाएं तो वो एक प्रॉब्लम देख रहे हैं अपने सामने जो होने वाला है.

कांग्रेस के साथ तीसरी समस्या यह है कि पुराने एरिया में वोक्कालिंगा वोट के लिए उसकी सीधी लड़ाई जेडीएस (सेक्युलर) से है, जिसके नेता एचडी देवगौड़ा हैं. देवगौड़ा जी के लिए यह शायद आखिरी इलेक्शन है और शायद उनकी पार्टी को भी इसकी सिंपैथी बहुत मिल जाए. यह भी एक समस्या है क्योंकि अगर ओल्ड माइक्रोन एरिया में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया मतलब कि जिसे हम ऑप्टिमम प्रदर्शन कहते हैं, वह नहीं दी तो उनके नंबर बहुत ज्यादा अच्छे नहीं आ पाएंगे. यह सब को डर है कर्नाटक में कांग्रेस के खेमे में कि अगर पूर्ण बहुमत नहीं आई तो वह सरकार नहीं बना पाएगी तब बीजेपी ही बनाएगी.

बीजेपी के लिए कर्नाटक अहम

भाजपा के लिए कर्नाटक इसीलिए अहम है क्योंकि वह एकमात्र साउथ इंडियन स्टेट है जहां पर बीजेपी बहुत डोमिनेटिंग है, जहां पर बीजेपी सरकार बनाती है. बाकी साउथ इंडियन स्टेट में ऐसी कोई हालत नहीं है. पैन इंडिया पार्टी होने का जो बीजेपी क्लेम करती है उसमें बहुत बड़ा हिस्सा साउथ में जो कर्नाटक में बीजेपी ने अपना ध्वज गाढ़ा है उसके बेसिस पर कहती है. पहले कर्नाटक क्योंकि सिंगल साउथ इंडियन स्टेट था जो बीजेपी के खेमे में रहता था तो उसको लेकर बीजेपी हमेशा एक्टिव रही है. दूसरी बात यह कि कर्नाटक एक प्रॉस्परस स्टेट है और इसका अच्छा गवर्नेंस मॉडल है जिसे कि बाकी सारे जगहों पर भाजपा बता सकती है और जहां तक 2024 के लोकसभा चुनाव का है तो मैं यह मानती हूं कि उसमें भी लगभग यह सेम रहेगा क्योंकि 2024 का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नाम पर लड़ा जाएगा. वह अपने आप में बहुत ज्यादा पॉपुलर हैं कर्नाटक में और वास्तव में अभी भी बीजेपी उन्हीं के ऊपर बहुत ज्यादा निर्भर करेगी अपनी नैया पार कराने में.

इससे पहले भी जब 2018 में कैंपेन शुरू हुआ था तो उस समय भी भाजपा को कोई भी 75 से 80 सीटें से ज्यादा नहीं दे रहा था फिर प्रधानमंत्री ने 26 रैलियां की पूरे राज्य में तब जाकर 104 आंकड़ा खींच पाए, तो प्रधानमंत्री का अपना खुद का अपील है और 2024 में उनके नाम पर वोट पड़ेगा और वो स्टेट पॉलिटिक्स से मिलता जुलता रहेगा. पहले यह कहा जाता था कि कर्नाटक जहां वोट करती है देश उससे उल्टा वोट करती है
लोकसभा के चुनाव में लेकिन अब वह बात नहीं रही क्योंकि अब वह ट्रेंड बदल गया है.

रिजर्वेशन ध्रुवीकरण की राजनीति का कॉकटेल

यह जो रिजर्वेशन की घोषणा की गई है वह ज्यादातर जाति को देखकर किया गया है और जो ध्रुवीकरण की राजनीति है उसे एक कॉलेटरल कॉसिक्वेंस माना जा सकता है. इसका फायदा भी होगा बीजेपी को लेकिन उसी के लिए किया है यह जरूरी नहीं है और यह सही भी नहीं है. क्योंकि जो लिंगायत हैं उनकी बहुत सालों से यह डिमांड थी तो इसलिए यह रिजर्वेशन अनाउंस किया गया है. भाजपा को यह भी पता है कि जो अकेला लिंगायत वोट है उसकी वजह से वो एक होस्टेज की स्थिति में आ गए हैं कि अगर उनको खुश नहीं किया तो हम बुरी तरह से हार जाएंगे. क्योंकि जब येद्दुरप्पा जी को हटाया गया तो उनके जितने भी मठ थे और उनके लीडर थे वो सब दुखी हो गए. उनको वापस से मनाया गया और भाजपा की जो संसदीय कार्य प्रणाली की जो कमेटी है उसमें उन्हें जगह दी गई उनके लड़कों को भी एडजस्ट किया गया. लेकिन पार्टी  और ऑर्गेनाइजेशन के अंदर जो बात सामने आ रही है वह यह कि जो यह जो लिंगायत कम्युनिटी है वह सिर्फ येदुरप्पा जी और उनके खानदान की बपौती नहीं होनी चाहिए. यह पार्टी के पास आना चाहिए और पार्टी का अपना वोट भी ब्रॉड बेस होना चाहिए. अकेले सिर्फ लिंगायत पार्टी नहीं कहलानी चाहिए भाजपा. उसमें वोकालिंगा का वोट, बैकवर्ड का वोट सब शामिल होना चाहिए. इसलिए जो शेड्यूल कास्ट का जो रिजर्वेशन है उसमें इन्होंने कोटा के अंदर कोटा करके कुछ उनकी मांगों को भी मानने की कोशिश की है. ये जो चार प्रतिशत मुस्लिम कोटा हटाया है ये एक इस डिसीजन का परिणाम है लेकिन यह मेन कारण नहीं था इस निर्णय को लेने के लिए.

कांग्रेस के लिए तो बहुत कुछ दांव पर है क्योंकि आपने देखा होगा कि पूरे देश में बहुत कम सरकारें हैं जो कांग्रेस चला रही है और इस साल के अंत में आपने यह भी देखना है कि तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी चुनाव हैं. राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, लोग कह रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में तो रिटेन कर सकती है और मध्य प्रदेश में सिर्फ फाइट देने की स्थिति में है और तेलंगाना में भी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं क्योंकि अंदर में वहां बहुत घमासान मचा हुआ है. पुराने और नए लोगों को लेकर तो वह एक फाइटिंग यूनिट के तौर पर सामने नहीं आ रही है. लेकिन कांग्रेस अगर कर्नाटक में जीतती है तो एक तो इनका मोरल बूस्ट होगा और सरकार भी बन जाएगी. इसके बाद अगर कहीं भी चुनाव लड़ना होगा तो जो रिसोर्सेज चाहिए होगा वह कर्नाटक से ही आएगा. 

['ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]

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