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अनिश्चिताओं के दौर में बदलती भू राजनैतिक परिस्थितियों के बीच अमेरिका और भारत के बीच ‘2+2 वार्ता’ बेहद अहम

यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगी कि पूरा विश्व आज अप्रत्याशित संकटों से जुझ रहा है. वैश्विक अर्थव्यवस्था अभी कोविड-19 महामारी द्वारा दी गयी चोटों से उबर ही रही थी कि अन्य मानव-निर्मित समस्याओं ने उसको एक तेज़ झटका दे दिया. एक तरफ रुस-यूक्रेन युद्ध का निकट भविष्य में कोई अंत होता नहीं दिखाई दे रहा है, वहीं दूसरी ओर इजराइल पर हमास द्वारा किये गए आतंकी हमले के जवाब में गाजा पर इसरायली सेना द्वारा चलाए जा रहे सैन्य अभियान ने विश्व शांति को दो कदम और पीछे ढकेल दिया है. वही दूसरी ओर चीन के द्वारा लगातार ताइवान के ऊपर सैन्य दबाव बनाने से तत्कालीन समय की भूराजनीति और जटिल होती जा रही है. इसके अतिरिक्त हाल के समय में अफ्रीका के कई देशों में सैन्य तख्तापलट भी देखने को मिला है, जिसे जानकारों द्वारा अमरीका और रूस के ‘छद्म-युद्ध’ के रूप में देखा जा रहा है. इन परिस्तिथियों ने भारत जैसे विकासशील देशों के लिए कई आर्थिक और भूराजनीतिक समस्याएँ पैदा कर दी हैं.

अनिश्चिताओं के दौर के बीच होती यूएस-भारत 2+2 वार्ता’

विदेश नीति के जानकार मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल में भारतीय विदेश नीति को और अधिक स्वतंत्र, व्यवहारिक, यथार्थवादी और मज़बूत बना दिया है. पूरा विश्व आज भारत के मत और रुख को गंभीरता से लेता है और भारत प्रगतिशील देशों का नेतृत्व करने वाले एक मज़बूत देश के रूप में उभर रहा है. वैश्विक शक्तियां आज भारत से मधुर सम्बन्ध बनाने और भारत को अपने पाले में रखना चाहती हैं और उसके लिए वे कई तरह के प्रयास कर रही हैं. भारत भी इस नई पहल को हाथों-हाथ ले रहा है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन के 10 नवंबर को नई दिल्ली में अपने भारतीय समकक्षों, विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, के साथ ‘2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता’ के लिए भारत आने को भी इसी सिलसिले में देखा जा रहा है. प्रतिनिधिमंडल भारत-प्रशांत क्षेत्र में द्विपक्षीय और वैश्विक चिंताओं और विकास पर चर्चा करने के लिए विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और अन्य वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों से मुलाकात करेगा. यह वार्ता एक ऐसे समय में हो रही है जब तेज़ी से बदलते हुए भूराजनीतिक समीकरणों को साधना भारतीय विदेश नीति के पारंपरिक मूल्यों और सिद्धांतों के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता चला जा रहा है.

क्या है 2+2 वार्ता? समझिए पूरा मामला

2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता दोनों देशों के बीच उच्चतम स्तरीय संस्थागत तंत्र है. यह संवाद का एक प्रारूप है जहां रक्षा/विदेश मंत्री या सचिव दूसरे देश के अपने समकक्षों से मिलते हैं. भारत ने चार प्रमुख रणनीतिक साझेदारों: अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और रूस के साथ ‘2+2 वार्ता’ की है. अभी पिछले महीने भारत ने ब्रिटन के साथ भी इसी 2+2 फॉर्मेट में रक्षा एवं विदेश सचिव स्तर की वार्ता की थी. 2018 में बनाया गया ‘2+2 वार्ता’ अमेरिका और भारत को रणनीतिक और रक्षा मुद्दों के बारे में उच्च स्तरीय चर्चा का नेतृत्व करने की अनुमति देती है. बता दें कि अमेरिका भारत का सबसे पुराना और सबसे महत्वपूर्ण 2+2 वार्ता भागीदार है. दोनों देशों के बीच पहली 2+2 वार्ता 2018 में ट्रंप प्रशासन के दौरान हुई थी. भारत के साथ संबंधो की महत्ता को समझते हुए 2021 में अमरीका की सत्ता में आए बिडेन प्रशासन ने भी इस वार्ता-प्रक्रिया को जारी रखा. पिछले साल चौथी 2+2 वार्ता अमरीका में हुई थी.

इस साल दोनों देश इंडो-पैसिफिक को खुला, समृद्ध और सुरक्षित रखने के लिए आपसी सहयोग को बढ़ाने को लेकर चर्चा करेंगे. प्रतिनिधिमंडल मौजूदा इजराइल-हमास युद्ध के साथ-साथ यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध पर भी बातचीत करेगा. भारतीय रक्षा जरूरतों को पूरा करने और अधिक वैश्विक सुरक्षा में योगदान देने के लिए विश्व स्तरीय रक्षा उपकरणों का उत्पादन करने के लिए अमेरिका भारत के साथ अधिक सहयोग को भी प्रोत्साहित करेगा. चारों कैबिनेट अधिकारी लोकतंत्र और मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने के प्रयासों के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा, आतंकवाद विरोधी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतरिक्ष और सेमीकंडक्टर विनिर्माण में विस्तारित सहयोग पर भी चर्चा करेंगे.

ऐसा माना जा रहा है कि चीन को लेकर भी चर्चा हो सकती है. चीन को ही ध्यान में रखते हुए भारत और अमेरिका ने गहरे सैन्य सहयोग के लिए "बुनियादी समझौते" की एक तिकड़ी पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमे 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), 2018 में पहले 2+2 संवाद के बाद संचार अनुकूलता और सुरक्षा समझौता (COMCASA) और 2020 में बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) शामिल हैं. यह देखा जाने योग्य है कि हाल ही में भारत में हुई जी20 देशों के समूह की बैठक में अमरीकी राष्ट्रपति, भारतीय प्रधानमंत्री एवं पश्चिम एशिया के अन्य नेताओं द्वारा घोषित अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना  ‘भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे’ के निर्माण को लेकर किसी तरह की वार्ता होगी क्या. सनद रहे कि इस आर्थिक गलियारे को क्रियान्वित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम था इजराइल और सऊदी अरब के बीच में संबंधों का सामान्य स्थिति में आना लेकिन इजराइल हमास संघर्ष के कारण सऊदी और इजराइल के बीच एक बार फिर से दूरियां बढ़ती हुई नज़र आ रही हैं.

अवसरों और असहमतियों को साधना नहीं है आसान

वैसे तो भारत और अमरीका का अधिकतर मुद्दों पर समान दृष्टिकोण है, परन्तु हाल के समय में कई विषयों  को लेकर दोनों के बीच मतभेद भी खुल कर सामने आए हैं. इनमें सबसे प्रमुख मुद्दा भारत द्वारा रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस की आलोचना न करना और रूस से कच्चा तेल खरीदना है. इसके इतर अमरीका द्वारा समय-समय पर भारत को ‘लोकतंत्र’ और ‘मानवाधिकार’ का पाठ पढ़ाना भी भारत सरकार को नागवार गुज़रा है और भारत ने भी ऐसे मुद्दों पर अमरीका को आईना दिखाने में कोई परहेज़ नहीं किया है. वहीं जिस तरह से अमरीका अपने पड़ोसी और ‘फाइव आईज’ समूह के सदस्य देश कनाडा के द्वारा भारत सरकार के ऊपर भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक खालिस्तानी आतंकवादी निज्जर की हत्या का आरोप लगाए जाने को लेकर उसके साथ खड़ा नज़र आया, भारत को उसका यह रुख काफ़ी असुविधाजनक लगा है. जिस तरह से चीन भारत के खिलाफ अपनी आक्रामकता को लगातार बढ़ाता चला जा रहा है, ऐसे में भारत के लिए अति आवश्यक है कि वो समान विचारधारा वाले देश जैसे कि अमेरिका के साथ अपने सामरिक रिश्ते और मजबूत करे और चीन को यह संदेश दे कि भारत के सहयोगी भी उसके हितों की चिंता के लिए तत्पर हैं.

अमरीका भी यह बखूबी समझता है कि चीन की बढ़ती हुई ताकत उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. ऐसे में उसे भारत, जो कि एक क्षेत्रीय और सैन्य महाशक्ति के रूप में उभर चुका है, और जो चीन से लोहा लेने में समर्थ है, के साथ मिल कर काम करना ही पड़ेगा. इसके अतिरिक्त वैश्विक आतंकवाद, नौवहन की स्वतंत्रता, रक्षा औद्योगिक सहयोग, क्षमता निर्माण और बुनियादी ढांचा विकास,आदि पारस्परिक लाभ के कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिसको लेकर दोनों देशों को साथ में ही चलना पड़ेगा. हाल के समय में दोनों देश क्वाड, आईटूयूटू जैसे संगठनो में भी एक दुसरे के साथ खड़े हुए हैं. चूंकि भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन को 2024 के गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है, ऐसे में यह ‘2 + 2’ वार्ता राष्ट्रपति बिडेन के भारत दौरे की भी भूमिका बनाने में एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाली है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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