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चुनावी सर्वे ने आखिर क्यों किया फिर से योगी सरकार बनने का दावा?

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में हुई एक घटना ने राजनीति को आज घर-घर की कहानी बनाकर रख दिया है और इसे लेकर सरकार व विपक्ष कुछ इस अंदाज में सियासी दंगल लड़ रहे हैं, मानो इसमें हार गये तो सब कुछ ख़त्म हो जायेगा.  यूपी समेत पांच राज्यों में अगले पांच महीने के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे उबलते हुए माहौल में चुनाव से पहले किया गया कोई सर्वे अगर ये दावा करे कि यूपी में अगली सरकार फिर से बीजेपी की ही बनने वाली है,तो निश्चित ही बहुतेरे लोगों की पहली प्रतिक्रिया यही होगी कि ऐसा सर्वे करने वालों का दिमागी संतुलन शायद गड़बड़ा गया है. लेकिन यही सर्वे ये भी कहता है कि पंजाब का किला कांग्रेस के हाथ से निकल रहा है और वहां अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सबसे बडी ताकत बनकर उभर रही है.

अगर यूपी की ही बात करें तो हो सकता है कि मौजूदा माहौल को देखते हुए लोग इस सर्वे पर पूरी तरह से भरोसा न करें लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि चुनाव से पहले किये जाने वाले ऐसे सर्वे जनता की नब्ज को पकड़ने में पहले भी मददगार भी साबित होते रहे हैं. खासकर, तब जबकि किसी सूबे में हुई किसी खास घटना को विपक्षी दलों ने वहां की सरकार के खिलाफ अपना सबसे अचूक हथियार बना लिया हो. लिहाज़ा ऐसे माहौल में निष्पक्ष तरीके से अगर जनता का मूड भांपा जाता है तो उसके नतीजों से काफ़ी हद तक ये अंदाज मिल जाता है कि आम जनता पर उस खास घटना ने कितना प्रभाव डाला है. वो उसे सरकार की करतूत समझती है या फिर विपक्ष का सियासी हथियार,इसकी ज़मीनी हक़ीक़त जानने के लिए आखिरकार लोगों के बीच तो जाना ही पड़ता है. अब ये एक अलग बहस का विषय हो सकता है कि विपक्ष ऐसे किसी भी सर्वे पर 'प्रायोजित' होने का आरोप चस्पा कर सकता है, क्योंकि उस सर्वे के नतीजे उसके मन-मुताबिक सामने नहीं आये हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि पिछले दो दशक से चुनावी सर्वे से जुड़ी एजेंसी अगर किसी के कहने पर 'प्रायोजित' सर्वे ही करेगी तो फिर उसकी विश्वसनीयता पर आखिर कौन यकीन करेगा और कोई न्यूज़ चैनल उसे भला क्यों दिखायेगा? ये भी सच है कि सारे सर्वे न तो सौ फीसदी सच निकलते हैं और न ही पूरी तरह से गलत. लेकिन एग्जिट पोल और चुनाव पूर्व किये गए सर्वे में यही बुनियादी फर्क है कि एक वोटिंग होने के तत्काल बाद अपना अनुमान बताता है, जबकि दूसरा चार-पांच महीने पहले ही ये बता देता है कि माहौल क्या है और लोगों के दिमाग में क्या चल रहा है. इसलिये,दोनों का ही अपना अलग महत्व है लेकिन अक्सर ये देखा गया है कि चुनाव पूर्व सर्वे के नतीजे सरकार में बैठी पार्टी और विपक्ष,दोनों की ही आंखें खोल देते हैं और वे उसी हिसाब से अपनी आगे की तैयारियों को अंजाम देती हैं.

खैर,मुद्दे की बात ये है कि यूपी समेत पांच राज्यों में होने वाले चुनावों को लेकर  एबीपी न्यूज के लिए सी-वोटर ने ताज़ा सर्वे किया है. ये वो एजेंसी है,जो पिछले कई बरसों से लोकसभा व विधानसभा चुनावों का सर्वे व एग्जिट पोल करती आई है. जाहिर है कि सर्वे के नतीजों में जिस भी राजनीतिक दल की सरकार न बनने का अनुमान लगाया जाता है,वह पार्टी हमेशा ऐसे सर्वे को गलत ही ठहराती आई हैं.

बता दें कि ये सर्वे 4 सितंबर 2021 से 4 अक्टूबर के बीच किया गया है.  इसमे मार्जिन ऑफ एरर प्लस माइनस तीन से पांच फीसदी तक रखी गई है. यानी सर्वे के नतीजों में तीन से पांच फीसदी तक की घट-बढ़ की गुंजाइश है.  सर्वे के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 41 फीसदी वोट मिल सकता है.  जबकि समाजवादी पार्टी के खाते में 32 फीसदी, बहुजन समाज पार्टी के खाते में 15 फीसदी, कांग्रेस को 6 फीसदी और अन्य के खाते में भी 6 फीसदी वोट जा सकते हैं. अगर सीटों के लिहाज से देखें,तो बीजेपी के खाते में 241 से 249 सीटें जा सकती हैं.  समाजवादी पार्टी के हिस्से में 130 से 138 सीटें आ सकती है. जबकि बीएसपी 15 से 19 के बीच और कांग्रेस महज़ 3 से 7 सीटों के बीच सिमट सकती है.

चूंकि इस सर्वे का कामकाज 4 अक्टूबर को ही खत्म हो गया था,जबकि उसके बाद लखिमपुर खीरी की घटना को लेकर प्रियंका गांधी ने जो तेवर दिखाए हैं,उसके आधार पर कह सकते हैं कांग्रेस को इसका फायदा भी मिलेगा और उसकी सीटों में भी उम्मीद से ज्यादा बढ़ोतरी हो सकती है.

अगर उत्तराखंड की बात करें,तो वहां एक बार फिर से बीजेपी वापसी कर सकती है. सर्वे के मुताबिक, कांग्रेस को 34 फीसदी, बीजेपी को 45 फीसदी, आम आदमी पार्टी को 15 फीसदी और अन्य को 6 फीसदी वोट मिल सकते हैं.  सीटों की अगर बात करें तो राज्य में कांग्रेस को 21-25 सीटें, बीजेपी को 42-46 सीटें, आम आदमी पार्टी को 0-4 सीटें और अन्य को 0-2 सीटें मिल सकती है. जबकि इसी एजेंसी ने कुछ दिनों पहले भी उत्तराखंड को लेकर एक सर्वे किया था,जिसके नतीजे बेहद रोचक थे. उसमें दावा किया गया था कि उत्तराखंड के लोग सरकार तो बीजेपी की चाहते हैं लेकिन मुख्यमंत्री के रुप में उनकी पहली पसंद कांग्रेस नेता हरीश रावत हैं.

सर्वे के मुताबिक पंजाब में कांग्रेस का किला ढहना लगभग तय है. जाहिर है कि इसकी बड़ी वजह पार्टी की अंदरुनी गुटबाजी और कैप्टन अमरिंदर सिंह से इस्तीफा लेना ही बनेगी.  पंजाब की 117 सदस्यीय विधानसभा में इस बार विपक्ष में बैठी आम आदमी पार्टी को बड़ा फायदा हो सकता है.  आप को ईस सर्वे में 36 फीसदी, कांग्रेस को 32 फीसदी, अकाली दल को 22 फीसदी, बीजेपी को 4 फीसदी और अन्य को  6 फीसदी वोट मिल सकते हैं.  सीटों के लिहाज से देखें तो आप को 49 से 55 सीटें, कांग्रेस को 30 से 47 सीटें, अकाली दल को 17 से 25 सीटें, बीजेपी को 0-1 सीट और अन्य को भी 0-1 सीट आ सकती है.   

गोवा की 40 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी सबसे ज्यादा सीटें लेकर फिर से अपना परचम लहरा सकती है. उल्लेखनीय है कि  पिछली बार राज्य में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन वह सरकार नहीं बना पाई थी.  सर्वे के अनुसार, गोवा में बीजेपी को 24 से 28 सीटें मिल सकती है.  जबकि, कांग्रेस के खाते में सिर्फ 1 से 5 सीट, आम आदमी पार्टी को 3 से 7 और अन्य को 4 से 8 सीटें मिल सकती है.  अगर वोटों के लिहाज से देखें तो भारतीय जानता पार्टी को 38 फीसदी वोट मिल सकते हैं.  जबकि कांग्रेस 18 फीसदी, आप 23 फीसदी और अन्य को 21 फीसदी वोट हासिल हो सकते हैं.

जहां तक मणिपुर का सवाल है,तो वहां बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी बनने के आसार तो दिख रहे हैं लेकिन उसे सरकार बनाने लायक सीटें मिलना मुश्किल है. लिहाज़ा,वहां जोड़तोड़ के बगैर किसी एक पार्टी की सरकार बनती नहीं दिख रही है. सर्वे के मुताबिक बीजेपी को 21 से 25 सीटें आ सकती है.  जबकि सरकार बनाने के लिए वहां 31 सीटों की जरूरत है.  इसके अलावा, कांग्रेस को 18 से 22 सीटें, एनपीएफ को 4 से 8 सीटें और अन्य को 1 से 5 सीटें मिल सकती है.  अगर वोट फीसदी के हिसाब से देखें तो भारतीय जनता पार्टी को 36 फीसदी वोट हासिल हो सकते हैं.  जबकि कांग्रेस को 34 फीसदी, एनपीएफ को 9 फीसदी और अन्य को 21 फीसदी वोट मिल  सकते हैं. चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसी का दावा है कि उसने इन  पांच चुनावी राज्यों में 98 हजार लोगों से बातचीत के बाद ये नतीजे निकाले हैं. देखते हैं कि जनता किस हद तक इन्हें हक़ीक़त में बदलती है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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