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मालदीव के दुस्साहस के पीछे है चीन का हाथ, भारत के बिना पड़ जाएगा मुश्किल में

भारत के प्रधानमंत्री का भारत के एक द्वीप पर विजिट, दो-तीन सोशल मीडिया पोस्ट और एक पड़ोसी मुल्क मालदीव के तीन मंत्रियों की गर्दन कलम, एक देश की अर्थव्यवस्था पर खतरे के बादल. फिर मालदीव के राजदूत को भारत में तलब किया गया और उसके तुरंत बाद मालदीव की राजधानी माले में भारतीय उच्चायुक्त को समन मिला. सोशल मीडिया पर घमासान जो हुआ, सो अलग. भारतीय सेलिब्रिटी ने भी मालदीव के मंत्रियों की भारत और प्रधानमंत्री मोदी के प्रति घृणित भाषा का विरोध किया और लोगों ने मालदीव के टिकट कैंसिल कर उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू किया. तत्काल मालदीव में असर हुआ और वहां की सरकार ने खुद को मंत्रियों के बयान से अलग कर लिया. उसके बाद तीन मंत्रियों को बर्खास्त भी कर दिया गया. 

मुइज्जु की नीतियां है जिम्मेदार

 मोदी जी जिस प्रकार से लक्षद्वीप जो अपना भारत का एक यूनियन टेरिटरी है. वहां पर 1 दिन के लिए विजिट किया और वहां के अच्छे फोटो ले कर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डाले तो इसका बाद एक कॉन्ट्रोवर्सी हो गयी. लोगों ने लक्षद्वीप को इतना सर्च किया कि वह दो दिनों तक गूगल सर्च में टॉप पर रहा. मालदीप जो अपना एक नजदीकी राष्ट्र है, वहां के मंत्रियों ने बेहूदा बयान दिए. इसको अगर समझना होगा तो समझना एक पॉलिटिकल कांटेक्ट में भी होगा, क्योंकि मालदीप का जो अभी हालिया चुनाव हुआ है. जो प्रेसिडेंट चुने गए हैं और लगातार इंडिया को डायरेक्टली-इनडायरेक्टली भड़का रहे हैं कि यहां से आर्मी को हटा देंगे, तो इंडिया आउट, इत्यादि..वहां खूब उन्होंने चलाया है. यह मालदीव में बहुत पहले से चली आ रही है कि एक पार्टी प्रो इंडिया रहती है दूसरी पार्टी खिलाफ, लेकिन जिस प्रकार से यह जो अभी प्रेसिडेंट आए हैं मोहम्मद मोइजिजु, जो पहले मालदीव की राजधानी के मेयर थे, लेकिन जिस प्रकार इनकी पार्टी का हेटफुल लैंग्वेज रहा, वह इस एपिसोड से पहले भी ऑलरेडी हो चुका है, तो वह दर्शाता है कि जो क्षेत्र है, यह सिंपली टूरिज्म को लेकर भी नहीं है, इसका एक जियो पोलिटिकल कॉन्टेक्स्ट है, जिसमें चीन अपना इंश्योरेंस बनाना चाहता है और चीन मालदीव की घरेलू राजनीति में भी अपने हित के लिए खेल चला रहा है.

भारत ने दिया करारा जवाब 

जिस तरह भारत और सोशल मीडिया पर भारत के आम नागरिकों से लेकर सेलिब्रिटी तक ने प्रतिक्रिया दी, उसने मालदीव को घुटने पर ला दिया है. उसके प्रधानमंत्री और पूर्व राष्ट्रपति ने तो सोशल मीडिया पर आकर माफी मांगी है कहा है कि भारत हमेशा हमारे साथ रहा है. जो तीन मंत्री जिन्होंने हेटफुल लैंग्वेज लिखी थी उन तीनों को हटा दिया गया है. इसके बावजूद भारत ने मालदीव के उच्चायुक्त राजदूत को तलब कर लिया है और उसके बाद ही मालदीव ने भी प्रतिक्रिया में भारतीय उच्चायुक्त को तलब कर लिया है. इसके पीछे चीन का ही हाथ है. जो अभी के राष्ट्रपति हैं, उनके चुनाव में भी आरोप है कि चीन ने पैसा लगाया है. वह चीन यात्रा पर भी गए हैं. सबसे पहले वह इलेक्शन के बाद तुर्की जाते हैं, दूसरी यात्रा चीन की कर रहे हैं. ध्यान देने की बात है कि वह पॉलिसी कुछ भी कर लें लेकिन मालदीव एक छोटा आईलैंड कंट्री है और बहुत ही इंडिया के क्लोज है. समुद्री मार्ग से चीन का जो डिस्टेंस है वहां से उनके कंट्री से बहुत दूर है. चार-पांच साल पहले की वहां बाढ़ आई,  पीने का पानी नहीं था तो चेन्नई एयरपोर्ट से पानी वहां पहुंचा गया फिर कर्नाटक से पानी पहुंचाया गया. मेडिसिन से लेकर मेडिकल टूरिज्म, टूरिज्म डेस्टिनेशन तक वह भारत पर निर्भर हैं.

भारत बिना नहीं चलेगा काम

दुनिया भर से वहां से टूरिज्म आते हैं टूरिस्ट आते हैं लेकिन हरेक जरूरी चीज के लिए इंडिया पर डिपेंडेंट हैं, चाहे वह  मसाला हो चाहे पर्यटक हों, चाहे रोजाना इस्तेमाल का सामान हो, सब्जी हो, सब उसे भारत से मिलता है. कोई भी राष्ट्रपति बने, वह भारत के साथ या खिलाफ रहे, उस रिश्ते को नहीं बदल सकती है. अगर भारत और मालदीप के संबंध खराब होते हैं तो सिंपली ब्रेकडाउन नहीं है कि वह चीन के पक्ष में चला जाए. चीन के पक्ष में तो नीतियां अब हैं ही, लेकिन भारत बिना उनका काम नहीं चलेगा, उसका बहुत बुरा प्रभाव होगा. उनके लिए फिर सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा, इसलिए मजबूरी है. वहां के राष्ट्रपति भले नहीं चाहते भारत को, लेकिन वह संबंध खत्म भी नहीं चाहते इसलिए वह मंत्रियों को बर्खास्त करते हैं औऱ कहते हैं कि भारत के खिलाफ, भारत के पीएम के खिलाफ कुछ भी नहीं बर्दाश्त किया जाएगा. ऐसा उन्होंने भले मजबूरी में किया है, लेकिन वह जानते हैं कि भारत पर उनकी निर्भरता किस हद तक है और वह जानते हैं कि चीन किस हद तक विस्तारवादी है. 

चीन का है पीछे हाथ  

भारत की विदेश नीति मोदी सरकार में या जब से जयशंकर विदेश मंत्री बने हैं, लौहदंड के साथ डील करने की है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं है. यहां तो भारत हमेशा से था. वह तो अपने पड़ोसियों की मदद करता ही है, चाहे वह नेपाल हो, भूटान हो, मालदीव हो या पाकिस्तान भी हो. अब मालदीव में चीन घुसा है, क्योंकि वह चाहता है कि भारत को दक्षिण एशिया में ही इतना उलझा दे कि भारत वैश्विक रंगमंच पर उदय न कर पाए. मालदीव की यह समस्या उनके डोमेस्टिक अफेयर्स का प्रॉब्लम है. मोइज्जु कट्टर इस्लामिक हैं, लेकिन वह चीन के भी करीबी हैं. जबकि यह दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं. चीन शिनजियांग में जो कर रहा है, वह सबको पता है, मोइज्जु पहले तुर्की गए मुस्लिम देश होने के नाते, लेकिन चीन गए क्योंकि चीन ऐसा चाहता है. मालदीव का आर्थिक हित है. माले में तो इन्होंने पूरा का पूरा चीन की कॉलोनी बसा दी है, सारा विकास का काम चीन को दे दिया है. जो चीन को मिला हुआ है चीन का चीनी कंपनी चीन के लोग वहां पर आपको मिल जाएंगे तो इस प्रकार से कुछ डेवलपमेंट को आप ट्रांसफर कर दिए, जैसे हम दिल्ली का कोई हिस्सा किसी देश को दे दें. चीन की डेट-पॉलिसी यानी ऋण-नीति को हम सभी जानते हैं, तो मालदीव को थोड़ा डर वो भी है. फिर, भारत ने जिस तरह प्रतिक्रिया दी है, उसमें सरकारी प्रतिक्रिया तो बाद में आयी, पहले नागरिकों ने ही दे दी. यह भारत के उदय का काल है और यह ठीक भी है. मालदीव को अगर अक्ल नहीं आयी, तो वह भुगतेगा. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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