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सिनेमा के 108 साल... लेकिन वीरान है सिनेमा की दुनिया

भारतीय सिनेमा के इतिहास में 3 मई का दिन सबसे अहम है. क्योंकि देश में पहली भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ 3 मई 1913 को प्रदर्शित हुई थी. इस फिल्म का निर्माण अपने अत्यंत अथक प्रयासों से धुंडीराज गोविंद फाल्के ने किया था. जो भारतीय सिनेमा के जनक कहलाए और दादा साहब फाल्के के रूप में मशहूर हुए. इन्हीं की स्मृति में प्रति वर्ष किसी फिल्म हस्ती को उनके फिल्मों में किए गए उल्लेखनीय और असाधारण कार्य के लिए 3 मई को ही देश का सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के’ प्रदान किया जाता है.

 फाल्के द्वारा निर्मित-निर्देशित ‘राजा हरिश्चंद्र’ एक मूक फिल्म थी. तब तक देश में सिनेमा घरों का निर्माण भी नहीं हुआ था. इसलिए एक फिल्म प्रोजेक्टर के माध्यम से मुंबई के कोरोनेशन होटल में जब 3 मई 1913 को इस फिल्म का प्रदर्शन हुआ तो सभी के लिए यह बड़ा अजूबा था.

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इसलिए 3 मई को सिनेमाई दुनिया में हर साल जश्न के रूप में मनाया जाता है. यहाँ तक भारत सरकार भी पिछले कुछ बरसों से अपने प्रतिष्ठित ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ का आयोजन भी 3 मई को ही करती है. जिससे भारतीय सिनेमा की जयंती भी मना ली जाती है और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के वितरण के साथ फिल्म संसार के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के को भी इसी दिन इसलिए प्रदान किया जाने लगा है, जिससे सिनेमा के पितामह फाल्के को भी नमन किया जा सके. लेकिन इस वर्ष पूरी फिल्मी दुनिया खामोश है, वीरान है. जश्न तो बहुत दूर सभी ओर सन्नाटा पसरा है.

 हालांकि पिछले वर्ष भी इन दिनों लोक सभा के आम चुनावों के कारण 3 मई को ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ समारोह का आयोजन नहीं हो सका था. जो बाद में 23 दिसम्बर 2019 को हुआ. जबकि अमिताभ बच्चन को फाल्के सम्मान तो 29 दिसम्बर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने राष्ट्रपति भवन में प्रदान किया था. लेकिन 3 मई 2019 को को देश में फिल्मों के 106 साल होने को लेकर पिछले बरस कुछ न कुछ कार्यक्रम तो विभिन्न स्थानों पर आयोजित हुए ही थे. लेकिन इस साल कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते पिछले करीब डेढ़ महीने से जैसा सन्नाटा पसरा है वैसा सन्नाटा 107 साल के भारतीय सिनेमाँ के सफर में इससे पहले कभी नहीं पसरा.देश में कहीं भी किसी फिल्म की शूटिंग नहीं हो रही है. जो थिएटर नयी नयी फिल्मों और दर्शकों की भीड़ से गुलज़ार रहते थे उन थिएटर्स पर धूल मिट्टी की परतें चढ़ी हुईं हैं. सिनेमाघरों की जिन पार्किंग में गाड़ी खड़ी करने की जगह मुश्किल से मिलती थी, आज वे पार्किंग स्थल सपाट मैदान के रूप में दिखाई देते हैं.

पिछले वर्ष आम चुनावों के कारण ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ आयोजन में हुए विलंब के बावजूद इस वर्ष 3 मई को ही इनके आयोजन की तैयारियां जनवरी में शुरू हो गयी थीं. लेकिन कोरोना के देश में पैर फैलाने पर सभी तैयारियां बीच में ही रुक गईं. जाहिर है इस समय देश को किसी फिल्म समारोह की नहीं देश के सभी नागरिकों को कोरोना की महामारी से बचाने और सभी को स्वस्थ रखने की जरूरत है.

 देशवासी स्वस्थ और खुशाल रहेंगे तो थिएटर तो फिर भी गुलज़ार हो जाएंगे. लेकिन यदि हमारे यहाँ भी इटली, स्पेन, अमेरिका या ब्रिटेन जैसे हालात हो गए तो स्थिति संभाले नहीं संभलेगी. क्योंकि हमारे देश की जनसंख्या इन सभी देशों के मुक़ाबले में कहीं ज्यादा है.

कोरोना से पहले ही शुरू हो गया था संकट

हालांकि भारतीय सिनेमा उद्योग का संकट काल देश में कोरोना वायरस फैलने से पहले ही शुरू हो गया था. जबकि सन 2020 के शुरू होने में बॉलीवुड का उत्साह तो देखते ही बनता था. सभी फ़िल्मकारों और थिएटर मालिकों सहित दर्शकों को भी लग रहा था कि 2020 सिनेमा के लिए बम्पर साबित होगा.

 इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि सन 2019 बॉलीवुड के लिए शानदार रहा था. गत वर्ष पहली बार ऐसा हुआ जब 17 हिन्दी फिल्मों ने 100 करोड़ रुपए या उससे ज्यादा की कमाई की. एक ही वर्ष में 17 फिल्मों का 100 करोड़ रुपए क्लब में शामिल होना कितना मायने रखता है. इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि सन 2008 से 2018 तक के 11 बरसों में कुल 73 फिल्में ही 100 करोड़ क्लब में पहुँच पायी थीं. इस हिसाब से वार्षिक औसत निकाला जाये तो एक साल में कुल 7 फिल्में भी 100 करोड़ क्लब में शामिल नहीं हो सकीं थीं.

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इसलिए जब 2019 में -उरी,गली बॉय,टोटल धमाल, केसरी, दे दे प्यार दे, भारत, कबीर सिंह, सुपर-30, मिशन मंगल, साहो, छिछोरे, ड्रीम गर्ल, वार, हाउसफुल-4, बाला, दबंग-3’ और गुड न्यूज़ जैसी 17 फिल्मों की बदौलत यह इतिहास रचा गया तो बॉलीवुड का खुश होना लाज़मी था. जबकि इन फिल्मों में ऋतिक रोशन की ‘वार’ तो 318 करोड़ रुपए यानि 300 करोड़ रुपए से भी अधिक अपनी झोली में समेट कर 300 करोड़ के क्लब में पहुँच गयी थी.

 उधर ‘कबीर सिंह’ 278 करोड़ और ‘उरी’ 244 करोड़ रुपए एकत्र कर दूसरे और तीसरे नंबर पर रहीं. साथ ही ‘हाउसफुल-4’,’मिशन मंगल,’ ‘भारत’ और ‘गुड न्यूज़’ भी ऐसी फिल्में रहीं जो दो सौ करोड़ से कुछ ज्यादा ही बटोर सकीं. इससे इस साल 200 करोड़ रुपए कमाने वाली फिल्मों की संख्या भी 6 तक पहुँच गयी.

 एक ही दिन में 120 करोड़ रुपए की बरसात

 भारतीय सिनेमा के इतिहास में सन 2019 में एक सबसे अहम बात यह भी हुई कि तीन विभिन्न फिल्मों की बदौलत, दो अक्तूबर को, एक ही दिन में बॉक्स ऑफिस पर 120 करोड़ रुपए का नेट बिजनेस करके भी एक नया रिकॉर्ड बना. इससे पहले एक दिन में बॉक्स ऑफिस पर रुपयों की इतनी बरसात कभी नहीं हुई थी.

 दो अक्तूबर को यह चमत्कार हुआ, हिन्दी फिल्म ‘वार’, हॉलीवुड की फिल्म ‘जोकर’ और तेलुगू फिल्म ‘सई रा’ से. इन तीनों फिल्मों ने मिलकर एक ही दिन में दर्शकों की जेब से 120 करोड़ रुपए निकलवाकर बता दिया कि भारतीय सिने दर्शक आज फिल्मों के लिए रुपए खर्च करने में संकोच नहीं कर रहा. इस सबसे यह उम्मीद भी बंधी कि वह दिन दूर नहीं जब कोई हिन्दी फिल्म 100 करोड़ के नहीं 1000 करोड़ रुपए के नए क्लब का गठन करेंगी.

 उपरोक्त हिन्दी फिल्मों के साथ पिछले बरस हॉलीवुड की एक फिल्म ‘एवेंजर्स एंडगेम’ ने भारत में 365 रुपए का नेट बिजनेस किया तो एक अन्य अमेरिकन फिल्म ‘द लायन किंग’ ने 150 करोड़ रुपए का. यह सब बताता है भारतीय दर्शक हिन्दी फिल्मों पर ही नहीं हॉलीवुड और दक्षिण की फिल्मों का भी दिल खोलकर स्वागत कर रहे हैं. गत वर्ष दक्षिण भारत में ‘मामंगम’ सहित कुछ और फिल्में भी 100 करोड़ और उससे ज्यादा का बिजनेस करने में कामयाब रहीं.

 इससे पूर्व मात्र 2018 ही ऐसा था जहां एक बरस में अधिकतम 13 फिल्में 100 करोड़ या उससे अधिक की कमाई कर सकी थीं. लेकिन 2019 में कुल 17 फिल्में 100 करोड़ क्लब में आने से, भारतीय फ़िल्मकारों ने सन 2020 को लेकर बड़े बड़े सपने देखने शुरू कर दिये थे. लेकिन 2020 अब से पूर्व के 106 साल में सबसे निराशाजनक रहेगा ऐसा तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था.

कोराना काल से पहले ही 2020 में पहले के जनवरी फरवरी के दो महीनों में ही कुल 40 हिन्दी फिल्में प्रदर्शित हो चुकी थीं. लेकिन इन 40 फिल्मों में बस एक ही फिल्म ‘तानाजी’ सुपर हिट हुई और बाकी लगभग सभी फिल्में फ्लॉप हो गईं थीं. अजय देवगन की ‘तानाजी’ तो करीब 280 करोड़ रुपए का नेट बिजनेस करके सुपर हिट हो गयी. लेकिन बाकी सभी छोटी-बड़ी फिल्में जिस तरह फ्लॉप होकर धराशाई हुईं उससे बॉलीवुड हक्का बक्का रह गया.

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 इन फ्लॉप फिल्मों में दीपिका और कंगना जैसी बड़ी हीरोइन की ‘छपाक’ और ‘पंगा’ जैसी फिल्में थीं तो वरुण धवन, श्रद्दा कपूर और प्रभु देवा की ‘स्ट्रीट डांसर 3 डी’ भी. उधर सारा आली खान की ‘लव आज कल’, सैफ अली खान की ‘जवानी जानेमन’, विकी कौशल की ‘भूत’, हेमामलिनी की ‘शिमला मिर्ची’ और पूनम ढिल्लों और सुप्रिया पाठक की ‘जय मम्मी दी’ जैसी फिल्में तो बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरीं. ऐसे ही नोबल प्राइज़ विजेता पाकिस्तान की युवती मलाला की जिंदगी पर बनी ‘गुल मकई’, विधु विनोद चोपड़ा जैसे बड़े फ़िल्मकार की ‘शिकारा’ और हिमेश रेशमिया की ‘हैप्पी हार्डी एंड हीर’ ने धड़ाम से गिरने में जरा भी देर नहीं लगाई. फिर तापसी पन्नु की जिस फिल्म ‘थप्पड़’ से बड़ी संभावनाएं थीं वह भी सिर्फ 32 करोड़ रुपयों पर सिमट गयी. जबकि आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ भी करीब 62 करोड़ रुपए का नेट बिजनेस करके एक औसत फिल्म ही बन पाई.

‘बागी-3’ और ‘अँग्रेजी मीडियम’ से बंधी थी उम्मीद

इस निराशा भरे दौर में मार्च में ‘बागी-3’ और अँग्रेजी मीडियम’ जैसी फिल्मों से एक आशा की किरण जग रही थी. लेकिन कोरोना के कारण देश में सिनेमा घर बंद होने का सिलसिला शुरू होने से ‘बागी-3’ भी 100 करोड़ रुपए का भी नेट कलेक्शन करने से कुछ पीछे ही रह गयी. जबकि इरफान खान की चर्चित फिल्म ‘अँग्रेजी मीडियम’ तो करीब 10 करोड़ रुपए पर ही अटक गयी. उसके बाद से अब तक देश के सभी सिनेमा बंद हैं. जिस तरह के हालात चल रहे हैं उसे देख कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि सिनेमा घर कब खुलेंगे. फिल्मों की शूटिंग कब शुरू होगी. कब चकाचौंध की यह माया नागरी फिर से जगमग होगी. फिर भी एक मोटे अनुमान के अनुसार अभी एक महीने तक तो सिनेमा घरों के खुलने के आसार नहीं हैं. फिर जब ये थिएटर फिर से खुलेंगे तब भी काफी लोग वहाँ जाकर फिल्म देखने से बचेंगे. यानि सिनेमाघरों को आबाद होने में अभी बहुत वक्त लगेगा.

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उधर लॉकडाउन की लंबी अवधि होने से सभी फिल्मों का पुराना शेड्यूल बुरी तरह से डगमगा गया है. मार्च से मई के बीच रिलीज होने वाली सूर्यवंशी, 83, गुलाबो सिताबो, लक्ष्मी बॉम्ब, शकुंतला देवी ह्यूमन कंप्यूटर और राधे सहित सभी छोटी बड़ी फिल्में अब कब प्रदर्शित होंगी अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. इधर ऐसी खबरें भी आ रहीं हैं की ऐसे हालात देख अक्षय कुमार अपनी फिल्म ‘लक्ष्मी बॉम्ब’ को तो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज करने के लिए चर्चा कर रहे हैं.

फिर सुबह होगी

इसी के साथ इस साल आगे चलकर जिन फिल्मों को रिलीज करने की तैयारी थी उनमें से भी अधिकतर अपने तयशुदा समय पर प्रदर्शित नहीं हो पाएँगी. जैसे-शमशेरा, भुज, गंगुबाई काठियावाडी, सत्यमेव जयते, पृथ्वीराज, मैदान, लाल सिंह चड्ढा और बच्चन पांडे आदि.

 उधर पूरे विश्व में कोरोना वायरस का फैलाव होने से भारतीय फिल्मों के विदेशी कारोबार पर भी बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा. पिछले कुछ समय से भारत के लिए चीन एक बहुत बड़ा नया बाज़ार बनकर उभरा था. जहां हमारी ‘दंगल’ फिल्म ने तो एक हज़ार करोड़ रुपए से भी अधिक का कारोबार करके बड़ी संभावनाओं को जन्म दिया था. लेकिन चीन के कोरोना प्रभावित क्षेत्रों ने तो सारे समीकरण बदल ही दिये हैं. हो सकता है अब भारत-चीन व्यापार सम्बन्धों में भी कुछ बदलाव हो. पिछले लंबे समय से भारत विश्व में सर्वाधिक फिल्में बनाने वाला देश बना हुआ है. ‘राजा हरिश्चंद्र’ से शुरू हुआ भारतीय फिल्मों का सफर एक नए शिखर पर पहुँच गया था. ‘राजा हरिश्चंद्र’ के बाद सन 1931 में आई आर्देशिर ईरानी की फिल्म ‘आलमा आरा’ से भारतीय सिनेमा मूक फिल्मों से सवाक युग में प्रवेश कर गया था.

 उसके बाद भारतीय सिनेमा ने नित जो उड़ान भरीं वे किसी से छिपी नहीं है. ‘आवारा’, ‘देवदास’, ‘दो आँखें बारह हाथ’, ‘मदर इंडिया’, ‘मुगल ए आजम’, ‘उपकार’, ‘बॉबी’, ‘शोले’,’हम आपके हैं कौन’, ‘दिलवाले दुलहनियाँ ले जाएँगे’, ‘कृष’, ‘पा’ और ‘बाहुबली’ जैसे अनेक फिल्मों ने देश-दुनिया में धूम मचाकर भारतीय सिनेमा की पताका को ऊंचा किया है.

यह सही है कि इस वक्त भारतीय सिनेमा अपने सबसे बुरे दौर में है. कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण भारतीय सिनेमा उद्योग अरबों रुपए के घाटे में चला गया है. इधर हाल ही में दो दिन में सिनेमा के दो बड़े कलाकारों ऋषि कपूर और इरफान खान के जाने से फिल्म इंडस्ट्री के साथ सभी सिने प्रेमी भी बड़े दुख में हैं. ऐसे ही कारणों से फिल्म इतिहास का सबसे बड़ा ऐतिहासिक दिन 3 मई इस बार बेहद उदास और निराश रहा. लेकिन जल्द ही ये निराशा दूर होगी, यह अँधियारा जल्द ही छटेगा. फिर सुबह होगी, फिर जश्न मनेगा.

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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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