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आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की घेराबंदी मुश्किल, टीडीपी और बीजेपी के साथ आने से भी नहीं पड़ेगा फ़र्क़

पिछले एक दशक में आंध्र प्रदेश की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी है. वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी यहाँ राजनीतिक सिरमौर बने हुए हैं. जगन मोहन रेड्डी के बढ़ते प्रभाव से आंध्र प्रदेश में 2014 के बाद एन. चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी और कांग्रेस की राजनीति हाशिये पर चली गयी. जगनमोहन रेड्डी ने धीरे-धीरे ऐसी पकड़ बनाई, जिससे प्रदेश की राजनीति में टीडीपी और कांग्रेस की प्रासंगिकता ही सवालों के घेरे में आ गयी.

बीजेपी का आंध्र प्रदेश में पहले से ही कोई ख़ास जनाधार नहीं था. पिछले एक दशक में भी बीजेपी के लिए स्थिति कमोबेश वैसी ही है. बीजेपी यहाँ मज़बूत स्थानीय नेतृत्व के अभाव से जूझ रही है. इस बीच अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण की जन सेना पार्टी भी आंध्र प्रदेश में अपनी राजनीतिक ज़मीन बनाने में शिद्दत से जुटी है.

लोक सभा के साथ ही विधान सभा चुनाव

आंध्र प्रदेश ऐसा राज्य है, जहाँ इस साल अप्रैल-मई में आगामी लोक सभा चुनाव के साथ ही विधान सभा चुनाव भी होना है. आंध्र प्रदेश में कुल 25 लोक सभा सीट है. वहीं यहाँ विधान सभा सीटों की संख्या 175 है. प्रदेश की सत्ता के लिए बहुमत का आँकड़ा 88 है. आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना जून 2014 नया राज्य बनता है और यही से आंध्र प्रदेश की राजनीति करवट ले लेती है. टीडीपी और कांग्रेस का राजनीतिक ग्राफ़ तेज़ी से नीचे आता है और प्रदेश के लोगों में जगन मोहन रेड्डी को लेकर भरोसा बढ़ते जाता है.

जगन मोहन रेड्डी हैं मज़बूत स्थिति में

आंध्र प्रदेश में फ़िलहाल जगन मोहन रेड्डी की ताक़त और प्रभाव की काट अकेले दम पर न तो टीडीपी के पास है और न ही जन सेना पार्टी या बीजेपी के पास. यही कारण है कि जगन मोहन की सियासी बादशाहत को ख़त्म करने के लिए टीडीपी, जेएसपी और बीजेपी एक साथ आने की संभावना को टटोल रहे हैं. टीडीपी और जेएसपी के गठबंधन का एलान पिछले साल ही हो चुका है. अब बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व भी इस इस गठबंधन में अपने लिए जगह तलाश रहा है.

बीजेपी-टीडीपी का हो सकता है गठबंधन!

बीजेपी और टीडीपी के शीर्ष नेताओं की दिल्ली में बैठक भी हो चुकी है. इस तरह की ख़बर भी आ रही है कि टीडीपी, बीजेपी और जन सेना पार्टी के बीच सहमति भी बन चुकी है. माना जा रहा है कि कुछ सीटों को लेकर पेच फँसा है, जिस पर सहमति बनते ही जल्द ही गठबंधन का एलान भी कर दिया जाएगा.  गठबंधन के तहत टीडीपी 18 लोक सभा सीट पर चुनाव लड़ना चाहती है. दो लोक सभा सीट जन सेना पार्टी  और पाँच सीट बीजेपी को देना चाह रही है. हालाँकि बीजेपी की मंशा 6 लोक सभा सीट पर लड़ने की है. बीजेपी 20 विधान सभा सीट भी चाहती है. उसी तरह से पवन कल्याण अपनी पार्टी के लिए 3 लोक सभा सीट की मांग कर रहे हैं.

जगन मोहन के ख़िलाफ़ गठबंधन है मजबूरी

अपने-अपने दलों की वास्तविक स्थिति और जगन मोहन रेड्डी की ताक़त को देखते हुए टीडीपी, बीजेपी और जेएसपी के लिए गठबंधन करना मजबूरी भी है. इन तीनों ही दलों को ब-ख़ूबी एहसास है कि एकजुट हुए बिना जगन मोहन रेड्डी को सत्ता से हटाना बेहद मुश्किल है. पाँच साल सरकार में होने बावजूद जगन मोहन रेड्डी को लेकर आंध्र प्रदेश के लोगों में उस तरह का नकारात्मक माहौल नहीं है, जिससे आगामी विधान सभा या लोक सभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस को एंटी इनकंबेंसी या सत्ता विरोधी लहर से भारी नुक़सान हो.

चंद्रबाबू नायडू का प्रभाव पहले जैसा नहीं

आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू, पवन कल्याण और बीजेपी तीनों की ही अलग-अलग मजबूरी है. सबसे पहले चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक मजबूरी पर बात करते हैं. एक समय था, जब आंध्र प्रदेश की राजनीति में चंद्रबाबू नायडू का दबदबा था. अब उनका पहले जैसा प्रभाव नहीं रह गया है. वे तीन बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. एन.टी. रामा राव के दामाद चंद्रबाबू नायडू दो कार्यकाल के दौरान.. सितंबर, 1995 से मई 2004..तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. इसके अलावा तेलंगाना के अलग होने के बाद वे जून 2014 से मई 2019 तक भी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं.

आंध्र प्रदेश में टीडीपी लगातार कमज़ोर हुई है

तेलंगाना के अलग होने के बाद आंध्र प्रदेश में एक बार ही विधान सभा चुनाव हुआ है. 2019 में हुए इस चुनाव में जगन मोहन रेड्डी के सैलाब के सामने चंद्रबाबू अपनी सत्ता बचाने में नाकाम रहे. टीडीपी का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा. टीडीपी 175 में से सिर्फ़ 23 विधान सभा सीट ही जीत पायी. टीडीपी को 79 सीटों का नुक़सान हुआ. उसका वोट शेयर भी वाईएसआरकांग्रेस से तक़रीबन 11 फ़ीसदी कम रहा.

विधान सभा चुनाव, 2019 के साथ ही लोक सभा में भी टीडीपी का प्रदर्शन काफ़ी ख़राब रहा. आंध्र प्रदेश की 25 में 22 लोक सभा सीटों पर जगन मोहन रेड्डी की पार्टी जीतने में सफल रही, जबकि टीडीपी के खाते में महज़ तीन सीट गयी. टीडीपी को 12 सीटों का नुक़सान उठाना पड़ा.

टीडीपी की प्रासंगिकता बनाए रखने की चुनौती

आंध्र प्रदेश में कांग्रेस अपनी खोयी हुई राजनीतिक ज़मीन वापस पाने की कोशिश में है. बीजेपी अपने लिए रास्ता तैयार करने में जुटी है. पवन कल्याण भी राजनीतिक गलियारे में अपना हिस्सा बनाने में जुटे हैं. ऐसे में 73 वर्षीय चंद्रबाबू नायडू के लिए  2024 का चुनाव उनकी पार्टी टीडीपी के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है. पवन कल्याण ने जन सेना पार्टी के साथ टीडीपी के गठबंधन का एलान सितंबर, 2023 में ही कर दिया था.

बीजेपी के साथ आने से टीडीपी को दो लाभ

हालाँकि अब चंद्रबाबू नायडू पुराने साथी बीजेपी को भी अपने साथ लाना चाहते हैं. इससे उन्हें दो लाभ दो सकता है. पहला, विधान सभा चुनाव में जगन मोहन रेड्डी की घेराबंदी में कुछ मदद मिल सकती है. दूसरा पहलू और भी महत्वपूर्ण है. अगर विधान सभा चुनाव में जगन मोहन रेड्डी की हार नहीं भी होती है, तब भी मोदी सरकार के फिर से आने से टीडीपी की प्रासंगिकता केंद्रीय राजनीति में बनी रहेगी. यही कारण है कि एक बार फिर से चंद्रबाबू नायडू एनडीए में जाने का मन बनाते दिख रहे हैं. अगर वे एनडीए में नहीं जाते हैं और विधान सभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस सत्ता से बे-दख़्ल नहीं हो पाती है, तो इस स्थिति में तेलुगु देशम पार्टी की प्रासंगिकता न तो प्रदेश में रह जाएगी और न ही केंद्र की राजनीति में. ऐसे में  टीडीपी का का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा.

पवन कल्याण को है सहारे की ज़रूरत

अब बात पवन कल्याण की करें, तो उनकी जन सेना पार्टी आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक तरह से नयी है. पार्टी का गठन तो मार्च, 2014 हो गया था. चुनाव आयोग से दिसंबर, 2014 में मान्यता भी मिल गयी थी. संयुक्त आंध्र प्रदेश के दौरान 2014 के चुनाव में पवन कल्याण ने टीडीपी और बीजेपी का समर्थन किया था. अपने भाई चिरंजीवी की प्रजा राज्यम पार्टी से राजनीतिक सफ़र शुरू करने वाले पवन कल्याण की जेएसपी का आधार ही कांग्रेस विरोध रहा है.

पवन कल्याण की जेएसपी 2019 के चुनाव में आंध्र प्रदेश में बसपा, सीपीआई (एम) और सीपीआई के साथ मिलकर चुनाव लड़ी.  इस चुनाव में पवन कल्याण की पार्टी को सीट के लिहाज़ से कोई ख़ास परिणाम नहीं मिला. लेकिन वोट शेयर को देखते हुए पवन कल्याण को एहसास हो गया कि भविष्य में संभावना है. क़रीब 140 विधान सभा सीट पर चुनाव लड़ने वाली जेएसपी को जीत सिर्फ़ एक सीट पर मिली. ख़ुद पवन कल्याण को भीमावरम और गजुवाका दोनों ही सीट पर हार का सामना करना पड़ा. लोक सभा की 18 सीट पर भी चुनाव लड़ने के बावजूद जेएसपी का खाता नहीं खुला.

हालांकि जन सेना पार्टी विधान सभा में 5.53% और लोक सभा में 5.87% वोट पाने में सफल रही. वोट शेयर के मामले में पवन कल्याण की पार्टी ने कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया. 2019 में इस कसौटी पर वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी के बाद जेएसपी तीसरे नंबर पर रही. यहीं से पवन कल्याण की उम्मीद बढ़ने लगी. नवंबर, 2023 में हुए तेलंगाना विधान सभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन करते हुए जन सेना पार्टी 8 सीट पर चुनाव लड़ी थी. हालाँकि इनमें से किसी भी सीट पर जेएसपी को जीत नहीं मिली थी.

एक समय ऐसा भी था जब पवन कल्याण मोदी सरकार का जमकर विरोध किया करते थे. पवन कल्याण को लगने लगा था कि प्रदेश में टीडीपी और कांग्रेस के स्पेस को वो भर सकते हैं. हालाँकि जैसे ही उन्हें लगने लगा कि आंध्र प्रदेश में टीडीपी और कांग्रेस दोनों ही अपनी पकड़ मज़बूत बनाने की दिशा में पैर फैलाने लगी है, जेएसपी..बीजेपी के क़रीब जाने लगी. इस बीच टीडीपी से उन्होंने गठबंधन कर लिया. अब बीजेपी और टीडीपी को साथ लाने के लिए पवन कल्याण कई महीनों से ज़ोर लगा रहे हैं. अगर आगामी चुनाव में टीडीपी-बीजेपी और जेएसपी का प्रदर्शन बेहतर होता है, तो इससे पवन कल्याण के लिए आंध्र प्रदेश के साथ ही केंद्र की राजनीति में भी जगह बनाने की उम्मीदों को सहारा मिल सकता है.

आंध्र प्रदेश को लेकर बीजेपी की मजबूरी

टीडीपी के साथ जाने को लेकर बीजेपी की मजबूरी की बात करें, तो इसका सीधा और तात्कालिक संबंध केंद्र की राजनीति से है. लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए मोदी सरकार आगामी आम चुनाव के मद्द-ए-नज़र एनडीए का कुनबा बढ़ाने में जुटी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 पार का लक्ष्य तय किया है. यह तभी संभव है, जब दक्षिण भारतीय राज्यों में बीजेपी के साथ ही एनडीए का रक़्बा सीटों के लिहाज़ से बढ़े. बीजेपी की कमज़ोर कड़ी दक्षिण भारत के ही राज्य हैं. अकेले दम पर बीजेपी आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में एक भी सीट जीतने की हैसियत में नहीं है. केरल और तमिलनाडु में बीजेपी के लिए प्रभावशाली दल के साथ गठबंधन की भी कोई संभावना नहीं है. तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस की वापसी से इन दोनों प्रदेशों में भी बीजेपी के लिए 2019 का प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं है.

पिछले एक दशक में जनाधार नहीं बढ़ा

ऐसे में ले-देकर दक्षिण भारतीय राज्यों में एकमात्र आंध्र प्रदेश ही है, जहाँ बीजेपी को टीडीपी के साथ जाने से कुछ सीट की उम्मीद दिख रही है. अकेले दम पर आंध्र प्रदेश में बीजेपी का जनाधार बेहद कमज़ोर स्थिति में है. जुलाई 2023 में बीजेपी ने डी. पुरंदेश्वरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. कांग्रेस की पुरानी नेता और यूपीए सरकार में मंत्री रही डी. पुरंदेश्वरी ने मार्च, 2014 में बीजेपी का दामन थामा था. डी पुरंदेश्वरी तेलुगू देशम पार्टी के संस्थापक एन.टी. रामाराव की बेटी हैं. हालाँकि उनके बीजेपी में आने से भी पिछले एक दशक में आंध्र प्रदेश में पार्टी के जनाधार में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा है.

अकेले दम पर बीजेपी की कोई हैसियत नहीं

बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को भलीभाँति एहसास है कि चंद्रबाबू के साथ जाने से आंध्र प्रदेश में पार्टी के साथ ही एनडीए के लिए भी उम्मीदें बन सकती है. टीडीपी के साथ मिलने से अतीत में बीजेपी को आंध्र प्रदेश में लाभ मिला भी है. 2019 में जब टीडीपी एनडीए का हिस्सा नहीं थी तो आंध्र प्रदेश में बीजेपी का न तो विधान सभा में और न ही लोक सभा में खाता खुल पाया था. विधान सभा चुनाव में बीजेपी के सभी प्रत्याशियों की ज़मानत तक ज़ब्त हो गई थी.

लोक सभा चुनाव, 2019 में आंध्र प्रदेश की सभी सीट पर चुनाव लड़ने के बावजूद में बीजेपी का वोट शेयर एक फ़ीसदी से भी कम था. साथ में ही हुए विधान सभा चुनाव में भी बीजेपी का वोट शेयर एक फ़ीसदी को पार नहीं कर पाया था.

टीडीपी के साथ से बीजेपी को होता रहा है लाभ

संयुक्त आंध्र प्रदेश के वक़्त 2014 में बीजेपी का टीडीपी के साथ गठबंधन था और पार्टी को उसका फ़ाइदा सीट और वोट शेयर दोनों में मिला था. बीजेपी को 9 विधान सभा सीट पर जीत मिली थी, जिसमें 5 सीट अब तेलंगाना का हिस्सा है. इस चुनाव में बीजेपी 3 लोक सभा सीट भी जतने में सफल रही थी. इसमें से एक सीट सिकंदराबाद अब तेलंगाना का हिस्सा है, जबकि विशाखापट्टनम और नरसापुरम आंध्र प्रदेश में है. 2019 में बीजेपी इन दोनों सीट को भी बचाने में नाकाम रही थी.

2014 में जब बीजेपी और टीडीपी मिलकर चुनाव लड़ी थी तो आंध्र प्रदेश की मौजूदा 25 लोक सभा सीट में से 17 सीट पर इस गठबंधन की जीत हुई थी. इनमें टीडीपी 21 पर लड़ते हुए 15 और बीजेपी 4 पर लड़ते हुए 2 सीट जीतने में सफल रही थी.

लोकसभा चुनाव 2004 और 2009 में बीजेपी आंध्र प्रदेश में कोई सीट नहीं जीत पायी थी. वहीं 1999 में टीडीपी के साथ होने से यहाँ बीजेपी क़रीब 10 फ़ीसदी वोट हासिल करते हुए 7 सीट जीत गयी थी.  लोक सभा चुनाव, 1998 में बीजेपी को आंध्र प्रदेश में टीडीपी के एनटीआर गुट के साथ का लाभ मिला था. उस वक्त़ बीजेपी 18% वोट प्राप्त करते हुए 4 सीट जीत गयी थी. हालाँकि चंद्रबाबू नायडू 2018 में एनडीए गठबंधन से अलग हो गए. आंध्र प्रदेश में टीडीपी का साथ छूटते ही बीजेपी के लिए 2019 में  विधान सभा और लोक सभा दोनों में ही खाता खोलना मुश्किल हो गया.

गठबंधन से टीडीपी को नुक़सान का भी ख़तरा

टीडीपी, बीजेपी और जेएसपी तीनों ही एक-दूसरे के लिए मजबूरी हैं. इसके बावजूद चंद्रबाबू नायडू को बीजेपी के साथ जाने से नुक़सान भी उठाना पड़ सकता है. दयनीय स्थिति होने के बावजूद अभी भी आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी है. इसका जनाधार भी है. 2019 में टीडीपी को विधान सभा में 39.17% और लोक सभा में  40.19% वोट हासिल हुआ था. आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा से जुड़े वादे को पूरा नहीं को लेकर बीजेपी से प्रदेश के लोग ख़फ़ा हैं. इस नाराज़गी का असर कहीं टीडीपी के प्रदर्शन पर न पड़े, चंद्रबाबू नायडू के लिए यह भी सोचना है. साथ ही बीजेपी के साथ जाने से प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक का समर्थन टीडीपी खो सकती है. इसकी भी संभावना है. आंध्र प्रदेश में तक़रीबन दस फ़ीसदी आबादी मुस्लिमों की है.

आंध्र प्रदेश की राजनीति में जगन मोहन रेड्डी

बीजेपी और जेएसपी को साथ लाने से टीडीपी की ताक़त कितनी बढ़ेगी, यह तो चुनाव नतीजों के बाद ही पता चलेगा. इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि आगामी चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई. एस. जगन मोहन रेड्डी की घेराबंदी करना आसान नहीं है. जगन मोहन रेड्डी ने पिछले एक दशक में जिस तरह की राजनीति की है, उससे आंध्र प्रदेश में उनकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी है. आज भी वे प्रदेश में लोकप्रियता के मामले में सबसे आगे हैं.

जगन मोहन से प्रदेश की राजनीति में नया अध्याय

तेलंगाना के अलग होने के बाद आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी ने अपनी बनायी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस को बहुत ही तेजी से शीर्ष मक़ाम पर पहुंचा दिया. एक समय में उनके पिता वाई.एस राजशेखर रेड्डी आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज और सबसे प्रभावशाली नेता हुआ करते थे. कांग्रेस 2004 के विधानसभा चुनाव में वाईएस राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में ही ऐतिहासिक जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी. 2009 में भी वाईएस राजशेखर रेड्डी कांग्रेस की सत्ता को बरक़रार रखने में सफल रहे थे. वे मई 2004 से 2 सितंबर 2009 तक लगातार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. हालाँकि 2 सितंबर 2009 को एक हेलीकॉप्टर क्रैश में उनका निधन हो गया.

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से लगातार उपेक्षा के बाद जगनमोहन रेड्डी ने मार्च 2011 में वाईएसआर कांग्रेस के रूप में नयी पार्टी का गठन किया. यहीं से आंध्र प्रदेश की राजनीति में नये अध्याय की शुरूआत हो गयी. वाईएसआर कांग्रेस ने 2014 में अपने प्रदर्शन से संकेत दे दिया कि आने वाला समय जगन मोहन रेड्डी का है. साझा आंध्र प्रदेश के तहत 2014 में पहले सियासी दंगल में ही वाईएसआर कांग्रेस 70 विधान सभा सीट पर जीत दर्ज कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गयी. इस चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस को लगभग 28 फ़ीसदी वोट मिला, जो  टीडीपी के सबसे अधिक वोट शेयर से महज़ 4.66 फ़ीसदी ही कम था. 2014 में संयुक्त आंध्र प्रदेश की 42 लोक सभा सीटों में से 9 पर वाईएसआर कांग्रेस जीत गयी.

2019 में चुनाव और जगन मोहन रेड्डी का करिश्मा

जगन मोहन रेड्डी ने 2019 में वो कमाल कर दिखाया, जैसा कभी उनके पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने 2004 में किया था. जगनमोहन रेड्डी उनसे भी एक कदम आगे निकल गए. आंध्र प्रदेश की 175 विधान सभा सीट में से तीन चौथाई से भी अधिक सीट पर वाईएसआर कांग्रेस जीत गयी. तक़रीबन 50 फीसदी वोट प्राप्त करते हुए वाईएसआर कांग्रेस 151 सीट जीत गयी और जगन मोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्र बन गये.

जगन मोहन रेड्डी का प्रभाव लोक सभा चुनाव में भी देखने को मिला. वाईएसआर कांग्रेस ने आम चुनाव, 2019 में 22 लोक सभा सीट पर जीत दर्ज की. वोट शेयर भी 49 फ़ीसदी से अधिक रहा. जगन मोहन रेड्डी की पार्टी को 2014 के मुक़ाबले 2019 में 14 लोक सभा सीट का फ़ाइदा होता है.

इस बार आंध्र प्रदेश से कांग्रेस को भी है उम्मीद

जगन मोहन रेड्डी का प्रभाव अभी भी कम नहीं हुआ है. वाईएसआर कांग्रेस को टीडीपी, बीजेपी और जेएसपी के साथ ही कांग्रेस भी अकेले दम पर चुनौती देने का दमख़म भर रही है. तेलंगाना के अलग होने से आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक नुक़सान कांग्रेस को ही उठाना पड़ा है. एक समय था जब आंध्र प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी का ही दबदबा रहा था. टीडीपी के संस्थापक एन. टी. रामाराव ने प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस को पहली बार जनवरी 1983 में बाहर कर दिया था. बाद में सितंबर 1995   चंद्रबाबू नायडू ने टीडीपी की कमान अपने हाथों में ले ली. फिर 2009 तक यहाँ कांग्रेस और टीडीपी के बीच ही मुख्य तौर से चुनावी रस्साकशी देखने को मिलती थी.

कांग्रेस का 2019 में सफाया हो गया था

वाईएसआर कांग्रेस  का 2014 में उभार होता है. इसका सीधा असर आंध्र प्रदेश से कांग्रेस की विदाई के रूप में दिखाई पड़ता है. आंध्र प्रदेश की राजनीति में 6 दशक तक दबदबा रखने वाली कांग्रेस 2014 में महज़  21 विधान सभा सीट जीत पाती है. उसका वोट शेयर 12 प्रतिशत से भी कम हो जाता है. कांग्रेस के वोट शेयर में लगभग 25 प्रतिशत की कमी होती है. इस चुनाव में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस की सियासी ज़मीन को पूरी तरह से हड़प ली.

आंध्र प्रदेश में कांग्रेस 2019 में एक भी विधान सभा और लोक सभा सीट जीतने में सफल नहीं होती है. कांग्रेस 173 सीट पर चुनाव लड़ी थी और उसके सभी उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई. कांग्रेस का वोट शेयर महज़ 1.17% रहा. कांग्रेस लोक सभा चुनाव में भी खाता नहीं खोल पायी. आंध्र प्रदेश की राजनीति से कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया और इसमें सबसे बड़ी भूमिका जगन मोहन रेड्डी की रही है.

वाई.एस. शर्मिला का दावा और असलियत

आंध्र प्रदेश में जो स्थिति है, उसमें कांग्रेस के लिए आगामी चुनाव में कोई ख़ास संभावना तो नहीं दिखती है. इसके बावजूद कांग्रेस को उम्मीद है कि वाई.एस. शर्मिला की अगुवाई में पार्टी के प्रदर्शन में सुधार होगा. दरअसल वाई.एस. शर्मिला..वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी की छोटी बहन हैं. जनवरी में उन्होंने अपनी पार्टी.. वाईएसआर तेलंगाना पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था. उसके बाद वो आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की अध्यक्ष बना दी जाती हैं.

वाई.एस. शर्मिला ख़ुद को वाई.एस राजशेखर रेड्डी की राजनीतिक विरासत की उत्तराधिकारी बताती आयी है. आंध्र प्रदेश के लोगों में वाई.एस राजशेखर रेड्डी से जुड़ी भावनाओं को उभार कर कांग्रेस के लिए रास्ता तैयार करने में जी-जान से जुटी हैं. वो प्रदेश में घूम-घूमकर दावा कर रही हैं कि इस बार जगन मोहन रेड्डी को जनता नकार देगी और कांग्रेस आंध्र प्रदेश में अपनी खोयी राजनीतिक ज़मीन हासिल करने में कामयाब होगी.

हालाँकि कांग्रेस अगर जगन मोहन रेड्डी विरोधी वोट में सेंध लगा पाती है, तो इसका नुक़सान वाईएसआर कांग्रेस से अधिक टीडीपी हो सकता है. जगन मोहन रेड्डी की मज़बूत स्थिति के लिए यह भी एक फैक्टर है कि कांग्रेस के मज़बूत होने से उनके विरोधी वोट में बिखराव होगा, जिसका सीधा लाभ वाईएसआर कांग्रेस को मिल सकता है. वहीं कांग्रेस की थोड़ी-सी भी स्थिति सुधरी, तो आंध्र प्रदेश में इस बार प्रदर्शन में सुधार करने की चंद्रबाबू नायडू की उम्मीदों को 2019 से भी बड़ा झटका लग सकता है.

जगन मोहन रेड्डी को चुनौती देना आसान नहीं

जगन मोहन रेड्डी ने 2014 से ही प्रदेश के लोगों में आंध्र प्रदेश की अस्मिता से जुड़ी भावनाओं को उभारने का काम किया. तेलंगाना को अलग करने के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया है. इसके साथ ही 2019 सत्ता पर क़ाबिज़ होने के बाद से से जगन मोहन रेड्डी मे आंध्र प्रदेश में कृषि और फूड प्रोसेसिंग सेक्टर के विकास पर ख़ूब ध्यान दिया है. ग्रामीण इलाकों में जगन मोहन रेड्डी की लोकप्रियता और भी अधिक है.

जगन मोहन रेड्डी के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी आंध्र प्रदेश ने बाक़ी राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है. वित्तीय वर्ष 2021-22 में आंध्र प्रदेश के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में 11.43% की वृद्धि हुई थी, जो देश में सबसे अधिक था. आंध्र प्रदेश का  जीएसडीपी 2018-19 में क़रीब 8,73,721 करोड़ रुपये था. यह आँकड़ा 2022-23 में बढ़कर 13,17,728 करोड़ रुपये हो गया. आंध्र प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय का आँकड़ा 2019 में 1,51,173 रुपये था, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए  बढ़कर 2,19,518 रुपये हो गया.

मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की ओर से अपने कार्यकाल के दौरान लाई गयी कई लोकप्रिय कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी आगामी चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस को मिल सकता है. जगन मोहन रेड्डी को मल्ला और मडिगास समुदाय का ज़बरदस्त समर्थन हासिल है. ये दोनों समुदाय अनुसूचित जाति से आते हैं. आंध्र प्रदेश की आबादी में इन दोनों समुदायों की हिस्सेदारी क़रीब 14 फ़ीसदी है.

बीजेपी को है वास्तविकता का एहसास

कुछ महीने पहले तक आंध्र प्रदेश में बीजेपी ख़ुद को जगन मोहन रेड्डी का विकल्प बता रही थी. बीजेपी को भरोसा था कि वो प्रदेश में टीडीपी की दरकती और खिसकती राजनीतिक ज़मीन को हथिया कर जगन मोहन के लिए चुनौती बन सकती है. हालाँकि चुनाव नज़दीक आते-आते तक जिस तरह से बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व टीडीपी के साथ जाने को लेकर उतावला है, उससे स्पष्ट है कि बीजेपी अपनी स्थिति को लेकर किसी भ्रम में नहीं रहना चाहती है. साथ ही बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व लोक सभा चुनाव में आंध्र प्रदेश के माध्यम से दक्षिण भारतीय राज्यों में एनडीए के लिए अधिक से अधिक सीट सुनिश्चित करना चाहता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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