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Opinion: उपभोक्ताओं के लिए 80% विज्ञापन अंग्रेजी में तैयार होते हैं, 17% सिर्फ हिन्दी में

देशभर में उपभोक्ताओं के लिए 80% विज्ञापन अंग्रेजी में तैयार किए जाते हैं. ये उपभोक्ता मामलों के विभाग के विज्ञापनों पर किए गए एक अध्ययन में तथ्य सामने आया है. जिन 80 % से ज्यादा विज्ञापनों की भाषा अंग्रेजी होती है उनमें पीली दाल की कीमत,जन औषधी, सीमेंट, रेलवे स्टेशन व मैट्रो स्टेशन पर लाइन बनाने, खाने पीने की चीजों का स्टॉक के बारे में और खुदरा व्यापारियों के सूचना के लिए, बैंक सेवा केन्द्र, मोबाईल बैंकिंग, मोबाइल सेवाओं की सरकारी संस्था ट्राई और सूचना के अधिकार के बारे में जागरुक करने वाले विषयों पर आधारित विज्ञापन होते हैं. जबकि हिन्दी में विज्ञापन के विषय मध्यस्था, हॉल मार्क, एग मार्क, संपति संबंधी सीमित विज्ञापन तैयार किए गए हैं. हिन्दी में तैयार विज्ञापनों की संख्या लगभग सतरह प्रतिशत आंकी गई हैं.

यह एक दिलचस्प अध्ययन दिल्ली से प्रकाशित शोध पत्रिका जन मीडिया के 139 वें अंक में प्रकाशित किया गया है. पत्रिका का प्रकाशन दिल्ली में मीडिया स्टडीज ग्रुप द्वारा अप्रैल 2012 से हर महीने किया जाता है. विदित है कि 1997 में उपभोक्ता मामलों के लिए समर्पित केन्द्र सरकार में एक अलग विभाग की स्थापना की गई थी. उपभोक्ता मामले विभाग द्वारा यह दावा किया जाता है कि वह उपभोक्ताओं के बीच भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध जागरूकता पैदा करने के प्रयास करती है. संसद में सूचना एवं प्रसारण मंत्री द्वारा 8 फरवरी 2022 को दी गई सूचना के अनुसार 2019 से 2021 तक तीन वर्षों के दौरान भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध शिकायतों की संख्या 6154 है.2019 में 3416,2020 में 1790 और 2021 में 948 शिकायतें दर्ज की गई .

भ्रामक विज्ञापन के विरुद्ध शिकायत

उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध शिकायत के लिए 2015 में एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया है जो कि गामा के नाम से जाना जाता है.

उपभोक्ता जागरूकता के लिए खर्च का ब्यौरा

उपभोक्ता जागरूकता को बढ़ावा देने के महत्व को स्वीकार करते हुए, 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान एक अलग योजना के रूप में उपभोक्ता जागरूकता को मंजूरी दी गई थी. विभाग द्वारा उपभोक्ता जागरूकता और उपभोक्ता सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण स्कीम का उद्देश्य एक प्रभावी, निरंतर और गहन उपभोक्ता जागरूकता अभियान चलाना है, जिसका प्रभाव शहरी के साथ-साथ ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों तक होना चाहिए. उपभोक्ता मामले के विभाग के कुल बजट में उपभोक्ता जागरुकता (प्रचार) के लिए खर्च हैः- 2019-20 में 33.89 करोड़ और 2020-21 में 42.25 करोड़ है.

अध्ययन

जन मीडिया के नवीनतम अंक में प्रकाशित शोध पत्र को उपभोक्ता मामलों के विभाग की वेबसाइट पर प्रदर्शित विज्ञापनों के लिए तैयार की गई सामग्री पर आधारित है. इस अध्ययन में यह जानने की कोशिश की गई है कि उपभोक्ता मामलों के विभाग जिन उद्देश्यों के लिए जो विज्ञापन सामग्री तैयार करता है उसकी पहुंच किन उपभोक्ताओं तक होती है. उसकी सीमाएं क्या है. उसके विषय और भाषा का अंतर्संबंध और विज्ञापनों के प्रभाव की स्थिति का आकलन करना है. उपभोक्ता मामलों के विभाग का यह दावा है कि उपभोक्ता जागरूकता को बढ़ावा देने के सरल संदेशों के माध्यम से उपभोक्ताओं को कपटपूर्ण प्रथाओं और समस्याओं व निवारण प्राप्त करने के लिए तंत्र से अवगत कराया जाता है.

पोर्टल पर उपलब्ध विज्ञापन

उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा शुरू किए गए पोर्टल पर जागो ग्राहक जागो के कुल 55 विज्ञापन उपलब्ध है. इनमें 15 अगस्त के लिए तैयार दो विज्ञापन हिन्दी और अंग्रेजी में एक साथ है. वेबसाइट पर जो विज्ञापन नहीं दिख रहे हैं, उनकी संख्या 4 है और उनमें आधार कार्ड से संबंधित दो, एक वित्तीय साक्षरता और एक घर-मकान संबंधित है.

अध्ययन में शामिल विज्ञापन

कुल विज्ञापनों में 52 विज्ञापन अध्ययन में शामिल किए गए हैं. भाषावार विज्ञापनों की संख्या अंग्रेजी में 43 और हिन्दी में 9 हैं.

विज्ञापन भाषावार (प्रतिशत में)                                                       

अध्ययन में शामिल कुल विज्ञापन   हिन्दी का प्रतिशत कुल विज्ञापनों में अंग्रेजी का प्रतिशत
52 7.30 82.69

देश में सर्वाधिक बिक्री वाले समाचार पत्र

संसद में दी गई जानकारी के अनुसार भारत में 31 मार्च 2017 के आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा प्रकाशित व प्रसारित होने वाले 20 समाचार पत्रों में आठ समाचार पत्र हिन्दी के हैं जबकि मराठी के तीन, तेलुगू के दो, तमिल और गुजराती का एक एक हैं. अंग्रेजी के समाचार पत्रों की तादाद चार है और वे सर्वाधिक बिकने वाले समाचार पत्रों की सूची के क्रम में तीसरे, चौथे, तेरहवें और 17वें स्थान पर हैं. विज्ञापन के विषय फोन, उपभोक्ता जागरूकता,बैंक सेवा केन्द्र, स्वाभिमान ,बीईएस शॉक्ड कलर ,संपति संबंधी, भ्रामक विज्ञापन पीली दाल, 26 रुपये किलो ,एक ही वस्तु के ब्रांडों के दामों की तुलना अंग्रेजी, ट्रेवल एंजेट, पैकर एवं मूवर्स ट्रैफिकॉ, वांरटी कार्ड, ट्राई, आरटीआई हॉल मार्क मोबाइल बैंकिंग, खुदरा व्यापारियों के लिए,एयरकन्डिशन-बी लेबल, खाने पीने की चीजें, स्ट़ॉक रखने के बारे में, हॉल मार्क,उच्च शिक्षा के लिए खुले संस्थानों के बारे में, होली नेच्युरल कलर, उपभोक्ता जागरूक रहे, जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करने का संदेश, रेलवे स्टेशन व मेट्रो स्टेशन पर लाइन बनाकर, जन औषधि, हवाई यात्रा, एमआरपी, फाइनेंशियल लिटरेसी, आईएसआई मार्का, फसल और पंप के लिए मोटर, मध्यस्थता- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला में, पैक समानों के प्रति सावधानी, घर, मिलावट के प्रति सावधानी, उपभोक्ता अधिकारों के प्रति सावधानी, विश्व ग्राहक दिवस, एग मार्क और आईसीआई, सीमेंट, बैंक नोट नकली नोटों के प्रति सावधानी, स्वस्थ खाना स्वस्थ रहना, 2 अक्टूबर गांधी जयंती, हिडेन कॉस्ट है.

15 अगस्त के लिए हिन्दी अंग्रेजी में विज्ञापन इस तरह से तैयार किया गया है –आज सभी उपभोक्ताओं को स्वतंत्रता है. लेकिन 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के लिए विज्ञापन केवल अंग्रेजी में हैं. आधार संबंधी विज्ञापन विभाग के पोर्टल पर नहीं खुलते हैं. विज्ञापन में जिस तरह के चित्रों का इस्तेमाल किया गया है, उसे भी इस अध्ययन में शामिल किया गया है.

महिलाओं और शहरी लोगों से जुड़े पहनावे, रंग रोगन और अन्य पृष्ठभूमि वाले चित्र प्रमुखता से शामिल किए गए हैं. जैसे ट्रेवल एजेंट विषय के विज्ञापन में प्लानिंग, परिवार की छुट्टियां बनाने, समुद्र तट के किनारे का चित्र तो भ्रामक विज्ञापन की तरफ सावधान करने के लिए स्किन फेयर, वजन घटाना, लंबाई बढ़ाना, याददाश्त बढ़ाने विषयों को हाईलाइट किया गया है. इस पोर्टल के https://consumeraffairs.nic.in/node/114287 हिन्दी में प्रचार कक्ष में कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है.

अंग्रेजी के समाचार पत्रों में हिन्दी के विज्ञापन

हिन्दी भाषी बाहुल्य राज्यों की सरकारों द्वारा उपभोक्ताओं के लिए प्रचार सामग्री हिन्दी में तैयार तो करवाई जाती है लेकिन उन विज्ञापनों का इस्तेमाल अंग्रेजी के समाचार पत्रों के लिए भी होता है. चूंकि अध्ययन का विषय यह नहीं है कि अंग्रेजी के समाचार पत्रों में हिन्दी के विज्ञापन प्रकाशित करने के पीछे सरकार के क्या उद्देश्य होते हैं. लेकिन यह स्पष्ट है कि अंग्रेजी के जन संचार माध्यमों में हिन्दी के विज्ञापनों से हिन्दी भाषी पाठकों व दर्शकों तक अपना संदेश व आकर्षण पहुंचाना संभव नहीं माना जाता है.

अध्ययन का सार :

भारत को दुनिया के सबसे बड़े बाजार के रूप में प्रचारित किया जाता है. सबसे बड़े बाजार का अर्थ यह भी निकलता है कि भारत में उपभोक्ताओं की संख्या सर्वाधिक है. यह उपभोक्ता केवल विकास की संरचना में शहरी, अर्ध शहरी, ग्रामीण व दूरस्थ वर्गों में विभाजित होने वाला समाज है बल्कि उसकी सांस्कृतिक व भौगोलिक परिस्थितियां भी विविध और भिन्न है.उपभोक्ता मामलों के विभाग के विज्ञापनों के विषय एक तो सीमित है और वे भी बार-बार दोहराए गए है. इन विज्ञापनों में शहरों के उपभोक्ताओं को ध्यान में रखा गया है.

विभिन्न पृष्ठभूमि के उपभोक्ताओं का मीडिया से जुड़ाव में भी भिन्नता है. भाषावार भिन्नता भी है. उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा भारतीय समाज के उपभोक्ताओं को जागरूक करने के प्रयास का दावा किया जाता है उसमें विसंगतियां भरी हुई है.भाषावार दुराग्रह तो स्पष्ट रुप से सामने आते हैं . भाषा और उसकी प्रस्तुति किसी भी संदेश के उद्देश्यो की सीमाओं को स्पष्ट करती है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं. जन मीडिया में पत्रिका के संपादक अनिल चम़ड़िया ने यह अध्ययन एक शोध पत्र के रुप में प्रस्तुत किया है.]

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