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World Pulses Day 2023: क्यों मनाया जाता है विश्व दलहन दिवस, दालों के उत्पादन में आज कहां है भारत?

World Pulses Day Celebration: हर साल 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस मनया जाता है, जिसका मकसद दालों के फायदे और महत्व पर प्रकाश डालना, ताकि लोग दालों के सेवन से स्वस्थ और निरोगी रह सकें.

Pulses Production in India: दालों को प्रोटीन का सबसे अच्छा सोर्स मानते हैं. ये रंग-बिरंगी दालें भारतीय रसोई का अहम हिस्सा हैं ही, भारतीय खान-पान की शोभा भी बढ़ाती हैं. एक ऐसी हेल्दी फूड, जिसमें सोडियम और वसा की मात्रा तो कम है, लेकिन शरीर के आवश्यक पोषक तत्व सिर्फ दालों से ही मिल जाते हैं. यह ग्लूटन फ्री है, इसलिए गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों को भी डाइट में दालें दी जाती है, जिसे वो जल्दी रिकवर कर सकें. इसके अलावा भी दालों के कई लाभ हैं, लेकिन इसके सेवन को लेकर लोगों में जागरूकता कुछ कम है. स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा में दालों का महत्व और इसके सेवन से होने वाले फायदों से पूरी दुनिया को रूबरू करवाने के लिए ही साल 2018-19 में विश्व दलहन दिवस की शुरुआत की गई. तब ही से हर साल एक अलग थीम और अलग लक्ष्य निर्धारित करते हुए 10 फरवरी को वर्ल्ड पल्सेस डे यानी विश्व दलहन दिवस मनाया जाता है. 

पोषण के साथ पर्यावरण संरक्षण में मददगार दलहन
विश्व दलहन दिवस को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख लक्ष्य पूरी दुनिया में दालों का उत्पादन बढ़ाकर गरीबी और कुपोषण से जूझ रहे देशों को उपलब्ध करवाना है, ताकि इन चुनौतियों को दूर किया जा सके.  दालों से सिर्फ सेहत को ही फायदे नहीं मिलते, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी दालें अहम रोल अदा करती हैं.

ये ऐसी फसल है, जिसकी खेती से मिट्टी की उर्वरता लौट आती है. इसका चारा भी दुधारु पशुओं को पोषण देता है और कम खर्च में दालों की खेती करके किसानों को भी मुनाफा हो जाता है. यही वजह है कि दालों के सभी फायदों को साल 2023 की थीम में समायोजित किया गया है. विश्व दलहन दिवस 2023 की थीम है 'एक सतत भविष्य के लिए दलहन है'.

कृषि और किसानों के लिए वरदान
कृषि विशेषज्ञों का भी मानना है कि बाकी फसलों की तुलना में दालें ज्यादा सिंचाई पर निर्भर नहीं करतीं. जहां एक किलो बीफ तैयार होने में 13,000 लीटर तक पानी की खपत हो जाती है. वहीं दालों की फसल 1,250 लीटर पानी में ही तैयार हो जाती है. दालों की खेती के लिए अलग से सिंथेटिक फर्टिलाइजर की भी आवश्यकता नहीं होती.

किसान चाहें तो खेती की लागत को कम करते हुए मात्र जैविक खाद की मदद से दालों का उत्पादन ले सकते हैं, जो बाजार में बेहतर दाम पर बिकती है. दालों की खेती से नाइट्रोजन-स्थिरीकरण में भी मददगार है. किसान सही फसल चक्र अपनाकर दालों की इंटरक्रॉपिंग यानी सह-फसल खेती चालू कर दें तो खेती-किसानी की कई चुनौतियों को दूर करते हुए अपनी आय को बढ़ा सकते हैं. 
 
दलहन में क्या-क्या आता है?
आमतौर पर दलहन एक फलीनुमा फसल है और पौधों पर निकलने वाली फलियों से जो पोषण से भरपूर बीज मिलते हैं, उन्हें दाल कहते हैं. दालों की कई प्रजातियां है, जिनमें सूखी मटर, सूखी बीन्स, ल्यूपिन, दाल और चना आदि शामिल है. यह अलग-अलग आकार, प्रकार, रंग, किस्मों की होती है. दुनिया में सबसे ज्यादा खाई जाने वाली दालों में सूखा सेम, मटर और मसूर शामिल हैं.

दालों के उत्पादन में कहां है भारत
भारत एक कृषि प्रधान देश है. दूसरी कृषि जिंसों की तरह ही वैश्विक दलहन उत्पादन में भी भारत काफी आगे है. पूरी दुनिया की 24 फीसदी दलहन का उत्पादन भारत की मिट्टी से ही मिलता है. देश में दालों की खपत तो है ही, साथ ही दूसरे देशों को भी यही से दलहन की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है.

साल 2022 तक के आंकड़ों से पता चला है कि भारतीय दलहन उत्पादकता को 140 लाख टन से बढ़कर 240 लाख टन हो गई है.  इससे पहले साल 2019-20 तक भारत 23.15 मिलियन टन दालों का ही उत्पादन ले रहा था, जो वैश्विक दलहन का 23.62 फीसदी था, लेकिन पिछले कुछ समय से देश को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की कवायद चल रही है, इसलिए दलहन उत्पादन लगातार ग्रोथ हो रही है.

इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि साल 2020-21 के दौरान भारत ने 296,169.83 मीट्रिक टन दालों का दुनियाभर में निर्यात करके 2,116.69 करोड़ रुपये का कारोबार किया.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

यह भी पढ़ें- नैनो यूरिया के साथ किसान की एक सेल्फी दिला सकती है 2,500 रुपये, डोक्यूमेंट्री पर 20,000 का कैश प्राइज

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