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कौन है वो फिल्म राइटर... जिसने रूमी, मुक्कू और बॉबी के किरदार से बदला बॉलीवुड का ट्रेंड
कनिका ढिल्लन वो राइटर हैं जिन्हें बखूबी पता है कि सुर्खियों में जगह कैसे बनानी है और सुर्खियों में कैसे रहना है। मनमर्जियां, केदारनाथ के बाद अब उनकी द्वारा लिखी जजमेंटल है क्या इस बात को साबित करते हैं। पढ़ें कैसे कनिका की कहानियों ने बॉलीवुड का वो ट्रेंड बदलने का काम किया है, जहां फिमेल एक्टर केवल एक सपोर्टिंग रोल तक ही सीमित रहती थीं।
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नई दिल्ली, एबीपी गंगा। मनमर्जियां (2018), केदारनाथ (2018) और जजमेंटल है क्या (2019) जैसी हिट फिल्मों की राइटर कनिका ढिल्लन को बखूबी मालूम है कि सुर्खियों में कैसे रहना है। ढिल्लन ने 'मनमर्जियां' जैसी फिल्म की बोल्ड कहानी लिखी और फिर 'केदारनाथ' के लिए लव-जिहाद को प्रमोट करने का इल्जाम भी झेला, लेकिन 'जजमेंटल है क्या' ने ये साबित कर दिया कि कनिका ढिल्लन की कलम यूं विवादों की भेंट नहीं चढ़ सकती।
'जजमेंटल है क्या' भी रिलीज से पहले ही विवादों से घिरी रही, चाहें बात फिल्म के नाम की रही हो या फिर उसका पोस्टर। फिल्म के पोस्टर में कंगना रनौत और राजकुमार राव को अपने मुंह में ब्लेड को बैलेंस करते देख सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। ये तो फिल्म के लिए गुस्से का एक पड़ाव था, जब फिल्म का नाम सामने आया, तो उसपर और विवाद खड़ा हो गया। दबाव के बीच फिल्म के नाम को 'मेंटल है क्या' से बदलकर 'जजमेंटल है क्या' करना पड़ा।
आमतौर पर फिल्म राइटर्स का किरदार केवल फिल्म की पटकथा लिखने तक सीमित रहता है, लेकिन फिल्म के पोस्टर में ढिल्लन की भी क्रेडिट लाइन दी गई। 34 वर्षीय ढिल्लन ने इस बात पर खुशी जताई कि फिल्म के पोस्टर पर उनके नाम को भी स्पेस दिया गया।
फिल्म के पोस्टर और नाम पर खूब कॉन्ट्रोवर्सी हुई। जिसपर ढिल्लन ने कहा, 'पोस्टर कभी भी फिल्म की पूरी कहानी बयां नहीं करता है। एक सोसाइटी के तौर पर हमारी Sane (स्वास्थ्य दिमाग वाला ) और Normal (साधारण अवस्था) के बीच एक सख्त परिभाषा है। मुझे लगता है कि 'मेंटल है क्या' में उन लोगों को चिन्हित किया गया है, जो सोसाइटी की इस परिभाषा में फिट नहीं बैठते हैं। इसमें पूछा गया है कि हम कैसे जेजमेंटल हुए बिना इनकी तरफ देखते हैं।
ये एक साइकॉलॉजिकल थ्रिलर ड्रामा है। जिसमें दो ऐसे लोगों की कहानी दिखाई गई है, जो जीवन की वास्तविकता और भम्र के बीच भटकरते रहते हैं। फिल्म में मानसिक बीमारी को बहुत ही बेहतरीन ढंग से प्रदर्शित किया गया है। ढिल्लन द्वारा लिखी गई ये फिल्म आपको मानसिक रोगियों के लिए एक अलग नजरिया देने की कोशिश करती है। अपनी इस फिल्म के लिए ढिल्लन का कहना है कि किसी डिसऑडर्स (कमी) को नेगेटिक तरीके से लोगों के सामने पेश करना, ये बतौर राइटर मैं नहीं हूं। मुझे राइट है कि मैं एक अच्छी और एंटरटेनिंग कहानी मास मीडियम के बीच लेकर आऊं।
ढिल्लन ऐसी कहानी दर्शकों के बीच लेकर आईं, जिसमें महिलाओं को सशक्त, मजबूत और बोल्ड दिखाया गया। चाहें मनमर्जियां में वो बोल्ड किरदार रूमी (तापसी पन्नू) का हो या फिर केदारनाथ में मुक्कू (सारा अली खान) का, जो अपना प्यार हासिल करने के लिए समाज की कुरीतियों की भी परवाह नहीं करती। या फिर जजमेंटल है क्या में बॉबी बॉटलीवाला ग्रेवाल (कंगना रनौत) का किरदार हो, जो बावली, क्रेज़ी, अतरंगी है। जिसकी इन हरकतों की वजह से उसे मानसिक रोगी कहा गया है।
ढिल्लन इन फिल्मों की पटकथा लिख बॉलीवुड में नया ट्रेंड लेकर आई हैं कि बड़े पर्दे पर महिलाओं के किरदार भी अपनी अमिट छाप दर्शकों पर छोड़ सकते हैं। उन्हें अपने किरदार को मजूबत बनाने के लिए किसी मेल एक्टर की जरूरत नहीं हैं।
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