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Azadi Ka Amrit Mahotsav: देश की आजादी के लिए गोरखपुर में यहां राम प्रसाद बिस्मिल ने फांसी को लगाया था गले, हर साल बलिदान दिवस पर लगता है मेला

Gorakhpur News: गोरखपुर जेल में जब 19 दिसंबर 1927 को सुबह 6.30 बजे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी दी गई, तो वे हंसते हुए फांसी के फंदे को अपने गले में डालकर शहीद हो गए.

Independence Day News: देश की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में आजादी का अमृत महोत्‍सव मनाया जा रहा है. ऐसे में उन क्रांतिकारियों की वीरता को याद कर रहे हैं, जिन्‍होंने भारत मां की आजादी के लिए अपना सर्वस्‍व न्‍यौछावर कर दिया. ऐसे ही क्रांतिकारी मैनपुरी और काकोरी कांड के महानायक शहीद राम प्रसाद बिस्मिल ने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमकर मौत को गले लगा लिया.

शहीद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई थी. बरसों उनके इस फांसी स्‍थल, स्‍मारक और काल कोठरी को आमजन के लिए बंद रखा गया. कैदियों से मिलने वालों की ही तरह उनके स्‍मारक स्‍थल तक लोगों को जाना पड़ता रहा है, लेकिन मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने उस शहीद स्‍थली को आमजन के लिए खोलवा दिया है. अब कोई देशभक्‍त सीधे जेल परिसर में बने स्मारक स्‍थल पर जाकर उन्‍हें नमन कर सकता है.
 
बलिदान स्‍थली पर हर साल लगता है मेला
गोरखपुर जेल में मैनपुरी षड्यंत्र और काकोरी कांड के महानायक शहीद राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी. उनके बलिदान दिवस पर विविध आयोजन स्‍मारक स्‍थल पर किए जाते हैं. शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की बलिदान स्‍थली पर उनके बलिदान दिवस के अवसर पर हर साल मेला लगता है. बिस्मिल बलिदानी मेला संस्‍था की ओर से सांस्‍कृतिक आयोजन भी होते हैं. गोरखपुर जेल में जब 19 दिसंबर 1927 को सुबह 6.30 बजे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी दी गई, तो वे हंसते हुए फांसी के फंदे को अपने गले में डालकर शहीद हो गए. देश की आजादी के लिए उनके इस जज्‍बे को आजादी के 75वें वर्ष में हम याद कर रहे हैं. जिससे युवाओं को भी उनकी वीरता और अदम्‍य साहस से प्रेरणा मिल सके.
 
 गोरखपुर मंडलीय कारागार में उनका बलिदान स्‍थल होने की वजह से आम मुलाकातियों की तरह मुहर लगवाकर ही अंदर जाने को मिलता रहा है. इसके बाद इसे आम जनता के जाने पर रोक लगा दी गई. कई बरसों तक इस स्‍मारक स्‍थल पर आम लोगों को आने की इजाजत नहीं रही है. ऐसे में साल 2017 में जब योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्‍व में भाजपा की सरकार बनीं, तो उन्‍होंने आमजन के लिए इसे पुनः खुलवा दिया. इसके बाद से यहां हर साल उनके बलिदान दिवस और अन्‍य अवसरों पर विविध आयोजन होते हैं. गुरु कृपा संस्थान के संस्थापक  और बिस्मिल बलिदानी मेला के संयोजक बृजेश  त्रिपाठी हर अवसर पर उन्‍हें नमन करने के लिए जेल परिसर स्थित बलिदान स्‍थल पर आते हैं. वे यहां पर साफ-सफाई करते हैं और उन्‍हें नमन कर पुष्‍प अर्पित करते हैं.

गोरखपुर जेल में दी गई थी फांसी 
बिस्मिल बलिदानी मेला के संयोजक बृजेश राम त्रिपाठी शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत से बहुत प्रभावित हैं. वे बताते हैं कि 9 अगस्‍त 1925 को हुए काकोरी क्रांति में क्रांतिकारी शहीद राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल, शहीद अशफाक उल्‍ला खां को फैजाबाद, और ठाकुर रोशन सिंह इलाहाबादी की नैनी जेल में फांसी की सजा हुई थी. राजेन्‍द्रनाथ लाहिड़ी को गोंडा जेल में दो दिन पहले 17 दिसंबर को फांसी दी गई. 9 अगस्‍त 1925 को लखनऊ से 14 किलोमीटर दूर काकोरी स्‍टेशन से एक ट्रेन चली. 8 मील की दूरी पर ट्रेन में सरकारी खजाने को लूट लिया था. मुकदमा चला और जज हैमिल्‍टन ने चारों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई.

19 दिसंबर 1927 को 30 वर्ष की आयु में गोरखपुर जेल में शहीद राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी दी गई. उनका जन्‍म 11 जून 1897 को शाहजहांपुर में हुआ था. वे बिस्मिल (उर्दू नाम तखल्‍लुस) उपनाम से कविताएं, साहित्‍य और इतिहास लिखा करते रहे हैं. उन्‍हें मैनपुरी षड्यंत्र और काकोरी कांड में मुकदमा चला और अंततः उन्‍हें फांसी की सजा सुनाई गई. 19 दिसंबर 1927 को सुबह 6.30 बजे गोरखपुर जेल में उन्‍हें फांसी दी गई. इसके बाद उनके शव को दर्शनार्थ घंटाघर में रखा गया. इसके बाद राजघाट पर उनका अंतिम संस्‍कार किया गया. 

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