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Lok Sabha Election 2024: 'लल्लू पर न जगधर पर, मुहर लगेगी हलधर पर', जब एक नारे ने बदल दिया था जबलपुर सीट पर माहौल

Jabalpur Lok Sabha Seat: जबलपुर लोकसभा हॉट सीट मानी जाती है. 1996 से जबलपुर सीट बीजेपी का गढ़ बन चुकी है. इस सीट से सांसद राकेश सिंह ने इस बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था और लोक निर्माण मंत्री बने.

Madhya Pradesh: देश में लोकसभा चुनाव के लिए उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. भले ही, निर्वाचन आयोग ने अभी तक चुनाव की तारीखों का एलान नहीं किया है. लेकिन, माना जा रहा है कि पहले फेस का मतदान 100 दिन के भीतर हो सकता हैं. मध्य प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव की सरगर्मी शुरू हो चुकी है. सूबे के 2 प्रमुख राजनीतिक दलों, बीजेपी और कांग्रेस ने जीत के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी है. एमपी में लोकसभा की 29 सीटों है, जिनमें से फिलहाल 28 पर बीजेपी का कब्जा है.

जबलपुर को माना जाता है 'हॉट सीट'
मध्य प्रदेश में लोकसभा की जिन सीटों को 'हॉट सीट' माना जाता है, उनमें से जबलपुर भी एक प्रमुख सीट है. 1996 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है. दर्शन जबलपुर को आचार्य विनोबा भावे ने संस्कारधानी की संज्ञा दी थी. मान्यता है कि जबलपुर को यह नाम जाबालि ऋषि से मिला है. इस शहर को मां नर्मदा का आशीर्वाद मिला है जो पूरे मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कही जाती है. यहां के विश्व प्रसिद्ध धुआंदार वॉटरफॉल और संगमरमरी वादियों वाली बंदर कूदनी को देखने के लिए देश दुनिया के पर्यटक खींचे चले आते हैं.

जबलपुर को समय-समय पर अनेक विभूतियां ने अपना कर्म क्षेत्र बनाया है. ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, महर्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश, व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जैसी तमाम विभूतियों का जबलपुर से गहरा नाता रहा है. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्य पीठ के साथ पश्चिम मध्य रेलवे और राज्य बिजली बोर्ड का मुख्यालय भी जबलपुर में ही है.

राकेश सिंह विधानसभा चुनाव जीतकर बने लोक निर्माण मंत्री
जबलपुर लोकसभा सीट का इतिहास भी बड़ा रोचक है. दूसरे लोकसभा चुनाव में जबलपुर से सांसद चुने गए सेठ गोविंददास ने संविधान सभा की बैठक में देश का नाम भारत रखे जाने की पैरवी की थी तो 1974 के जेपी मूवमेंट के दौरान पहली बार शरद यादव जबलपुर से विपक्ष के साझा उम्मीदवार (प्यूपिल कैंडिडेट) के रूप में चुनाव जीतकर भारतीय राजनीति में चमकता हुआ सितारा बनकर उभरे थे.

आगे चलकर बाबूराव परांजपे ने जबलपुर में भगवा पार्टी यानी बीजेपी की विचारधारा का बीजारोपण किया था. इसके बाद हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने का कार्य लोकसभा में सचेतक और जबलपुर सांसद रहे राकेश सिंह ने किया. चार बार के सांसद रहे राकेश सिंह फिलहाल मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीतकर डॉ मोहन यादव सरकार में लोक निर्माण मंत्री बन गए हैं.

पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दर्ज की थी जीत
दरअसल,आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में जबलपुर में दो सीटें थीं. साल 1951 में हुए आम चुनाव में जबलपुर उत्तर सीट से कांग्रेस के सुशील कुमार पटेरिया जीते थे तो मंडला-जबलपुर दक्षिण सीट से मंगरु गुरु उइके पहले सांसद बने. इसके बाद 1957 में जबलपुर और मंडला दो अलग-अलग संसदीय क्षेत्र बन गए. इस साल दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के सेठ गोविंद दास जीते.

इसके बाद उनकी जीत का सिलसिला चलता रहा. सेठ गोविन्द दास ने 1962, 1967 और 1971 के चुनाव में भी जीत दर्ज की. दरअसल, साल 1974 में जबलपुर लोकसभा सीट ने वह बदलाव देखा जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. शरद यादव इसी साल छात्र राजनीति से निकलकर देश की मुख्य धारा की राजनीति में आए थे.

एक नारे ने बदल दिया था माहौल
शरद यादव जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन से जुड़े हुए थे. उस दौर में कांग्रेस के खिलाफ एक लहर भी बन गई थी. जबलपुर लोकसभा सीट पर सेठ गोविंद दास की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में भारतीय लोक दल के टिकट पर विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े शरद यादव ने कांग्रेस के रवि मोहन को हराकर सबको चौंका दिया था.

शरद यादव को टिकट देने की पहले तत्कालीन जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेई ने की थी. शरद यादव को हलधर किसान चुनाव चिह्न मिला था. प्रचार के दौरान शरद यादव के पक्ष में एक नारे ने पूरा माहौल बदलकर रख दिया. 'लल्लू पर न जगधर पर, मुहर लगेगी हलधर पर' इस नारे ने ऐसा जोर पकड़ा कि कांग्रेस की उसके गढ़ में ही नींव हिल गई. इसके बाद 1977 में शरद यादव ने एक बार फिर जबलपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस के जगदीश नारायण अवस्थी को हराकर जीत दर्ज की थी.

1996 से बीजेपी का गढ़ बनी जबलपुर लोकसभा सीट 
आपको बता दें कि पहले आम चुनाव के बाद से 1974 तक जबलपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा था. साल 1982 में पहली बार जबलपुर में कमल का फूल खिला और बाबूराव परांजपे पर बीजेपी के पहले सांसद बने. दो साल बाद ही 1984 में कांग्रेस ने सीट पर फिर से कब्जा कर लिया, जब कर्नल अजय नारायण मुशरान ने आम चुनाव में बाबूराव परांजपे को पराजित कर दिया.1989 के चुनाव में यह सीट फिर बीजेपी के खाते में आ गई. साल 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर कब्जा जमा लिया. इसके बाद 1996 से जबलपुर लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ बन चुकी है. 

विवेक तंखा भी दो बार हार चुके हैं चुनाव
वर्तमान में राज्यसभा सदस्य विवेक तंखा जैसे धुरंधर भी दो बार यहां से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव हार गए. जबलपुर सीट से बीजेपी नेता बाबूराव परांजपे तीन बार, जयश्री बैनर्जी एक बार और राकेश सिंह चार बार सांसद बने. माना जा रहा है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी और कांग्रेस दोनों ओर से नए प्रत्याशी मैदान में होंगे. प्रत्याशी चयन के लिए दोनों ही पार्टियों अंदरूनी तौर पर सर्वे और रायशुमारी में जुटी हुई है.बताते चले कि जबलपुर संसदीय सीट में कुल कुल 17 लाख, 11 हजार 683 मतदाता है. इनमें पुरुष मतदाता 8 लाख 97 हजार 949 और महिला मतदाता 8 लाख 13 हजार 734 शामिल है. 

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