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Kedarnath Dham: उत्तराखंड के सबसे खूबसूरत मंदिर केदारनाथ धाम की रोचक कहानी, जहां पांडवों को मिली थी पाप से मुक्ति

(फाइल फोटो)

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Kedarnath Dham: देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बसा है. ये धाम मंदाकिनी नदी के किनारे 3581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ये उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है. जो पत्थरों के शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है. ये ज्योतिर्लिंग त्रिकोण आकार का है और इसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए और उन्हे ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया.
Kedarnath Dham: देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बसा है. ये धाम मंदाकिनी नदी के किनारे 3581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. ये उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है. जो पत्थरों के शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है. ये ज्योतिर्लिंग त्रिकोण आकार का है और इसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ प्रकट हुए और उन्हे ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया.
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ये मन्दिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है. मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है. बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं. मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी.
ये मन्दिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है. मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है. बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं. मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी.
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आपको बता दें कि केदारनाथ पहुंचने के लिए गौरीकुण्ड से 15 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है. बाबा केदार का ये धाम कात्युहरी शैली में बना हुआ है. इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग बहुतायत में किया गया है. मंदिर की छत लकड़ी की बनी हुई है, जिसके शिखर पर सोने का कलश है.
आपको बता दें कि केदारनाथ पहुंचने के लिए गौरीकुण्ड से 15 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है. बाबा केदार का ये धाम कात्युहरी शैली में बना हुआ है. इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग बहुतायत में किया गया है. मंदिर की छत लकड़ी की बनी हुई है, जिसके शिखर पर सोने का कलश है.
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केदारनाथ मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है पहला - गर्भगृह, दूसरा - दर्शन मंडप (जहां पर दर्शनार्थी एक बड़े प्रांगण में खड़े होकर पूजा करते हैं) और तीसरा - सभा मंडप (इस जगह पर सभी तीर्थ यात्री जमा होते हैं).
केदारनाथ मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है पहला - गर्भगृह, दूसरा - दर्शन मंडप (जहां पर दर्शनार्थी एक बड़े प्रांगण में खड़े होकर पूजा करते हैं) और तीसरा - सभा मंडप (इस जगह पर सभी तीर्थ यात्री जमा होते हैं).
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5 मई यानि आज सुबह गौरीकुंड से सुबह भगवान की पंचमुखी डोली गौरीकुंड से केदारनाथ धाम प्रस्थान कर चुकी है. जिसके बाद 6 मई शुक्रवार सुबह 6 बजकर 25 मिनट पर केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुलेंगे.
5 मई यानि आज सुबह गौरीकुंड से सुबह भगवान की पंचमुखी डोली गौरीकुंड से केदारनाथ धाम प्रस्थान कर चुकी है. जिसके बाद 6 मई शुक्रवार सुबह 6 बजकर 25 मिनट पर केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुलेंगे.
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भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए ये मंदिर केवल 6 महीने ही खुलता है और 6 महीने बंद रहता है. ये मंदिर वैशाखी के बाद खोला जाता है और दीपावली के बाद पड़वा {परुवा तिथि} को बंद किया जाता है. जब 6 महीने का समय पूरा होता है तो मंदिर के पुजारी इस मंदिर में एक दीपक जलाते हैं. जो कि अगले 6 महीने तक जलता रहता है 6 महीने बाद जब ये मंदिर खोला जाता है तब ये दीपक जलता हुआ मिलता है.
भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए ये मंदिर केवल 6 महीने ही खुलता है और 6 महीने बंद रहता है. ये मंदिर वैशाखी के बाद खोला जाता है और दीपावली के बाद पड़वा {परुवा तिथि} को बंद किया जाता है. जब 6 महीने का समय पूरा होता है तो मंदिर के पुजारी इस मंदिर में एक दीपक जलाते हैं. जो कि अगले 6 महीने तक जलता रहता है 6 महीने बाद जब ये मंदिर खोला जाता है तब ये दीपक जलता हुआ मिलता है.
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ऐसी मान्यता है कि द्वापर काल में जब पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीत लिया था. तब उन्हें इस बात की ग्लानि हो रही थी कि उन्होंने अपने भाइयों, सगे-संबंधियों का वध किया है. उन्होंने बहुत पाप किया है इसे लेकर वो बहुत दुखी रहा करते थे. इन पापों से मुक्ति के लिए पांडवों ने भगवान शिव के दर्शन के लिए काशी पहुंचे.
ऐसी मान्यता है कि द्वापर काल में जब पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीत लिया था. तब उन्हें इस बात की ग्लानि हो रही थी कि उन्होंने अपने भाइयों, सगे-संबंधियों का वध किया है. उन्होंने बहुत पाप किया है इसे लेकर वो बहुत दुखी रहा करते थे. इन पापों से मुक्ति के लिए पांडवों ने भगवान शिव के दर्शन के लिए काशी पहुंचे.
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लेकिन इस बात का पता जब भोलेनाथ को चला तो वो नाराज होकर केदारनाथ चले गए. फिर पांडव भी भोलेनाथ के पीछे-पीछे केदारनाथ पहुंच गए. फिर भगवान शिव ने पांडवों से बचने के लिए बैल का रूप धारण कर बैल की झुंड में शामिल हो गए. तब भीम ने अपना विराट रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपना पैर रखकर खड़े हो गये.  सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से चले गए, परंतु भगवान शिव अंतर्ध्यान होने ही वाले थे कि भीम ने भोलेनाथ की पीठ पकड़ ली.
लेकिन इस बात का पता जब भोलेनाथ को चला तो वो नाराज होकर केदारनाथ चले गए. फिर पांडव भी भोलेनाथ के पीछे-पीछे केदारनाथ पहुंच गए. फिर भगवान शिव ने पांडवों से बचने के लिए बैल का रूप धारण कर बैल की झुंड में शामिल हो गए. तब भीम ने अपना विराट रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपना पैर रखकर खड़े हो गये. सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से चले गए, परंतु भगवान शिव अंतर्ध्यान होने ही वाले थे कि भीम ने भोलेनाथ की पीठ पकड़ ली.
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पांडवों की इस लालसा को देखकर शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए. इसके बाद पांडव इस पाप से मुक्त हुए . इसके बाद पांडवों यहां पर केदारनाथ के मंदिर का निर्माण करवाया था. जिसमें आज भी बैल के पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजा की जाती है.
पांडवों की इस लालसा को देखकर शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए. इसके बाद पांडव इस पाप से मुक्त हुए . इसके बाद पांडवों यहां पर केदारनाथ के मंदिर का निर्माण करवाया था. जिसमें आज भी बैल के पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजा की जाती है.

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