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Keshav Prasad Maurya Life: बचपन में स्टेशन पर चाय बेचते थे केशव प्रसाद मौर्य, 14 साल की उम्र में घर छोड़कर ली थी अशोक सिंहल की शागिर्दी

केशव प्रसाद मौर्य

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Keshav Prasad Maurya Life : यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य कौशाम्बी जिले की जिस सिराथू सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं, वो ना सिर्फ उनकी जन्मभूनि है, बल्कि यहीं उन्होंने बचपन में फुटपाथ पर चाय भी बेची थी. केशव मौर्य के बचपन की कहानी काफ़ी हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलती -जुलती है. मोदी ने अगर बचपन में चाय की कैंटीन में काम किया था, तो केशव प्रसाद मौर्य ने खुद अपनी पढ़ाई और परिवार का पेट पालने के लिए सालों फुटपाथ पर चाय बेची है. वो सुबह के वक्त साइकिल से अखबार बांटते थे और दिन भर गुमटी पर चाय बेचते थे. घर के नजदीक स्थित स्कूल में इंटरवल होने पर वो दूसरे बच्चों के साथ खेलने के बजाय पिता की गुमटी पर पहुंचकर चाय बेचने में हाथ बंटाते थे.
Keshav Prasad Maurya Life : यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य कौशाम्बी जिले की जिस सिराथू सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं, वो ना सिर्फ उनकी जन्मभूनि है, बल्कि यहीं उन्होंने बचपन में फुटपाथ पर चाय भी बेची थी. केशव मौर्य के बचपन की कहानी काफ़ी हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलती -जुलती है. मोदी ने अगर बचपन में चाय की कैंटीन में काम किया था, तो केशव प्रसाद मौर्य ने खुद अपनी पढ़ाई और परिवार का पेट पालने के लिए सालों फुटपाथ पर चाय बेची है. वो सुबह के वक्त साइकिल से अखबार बांटते थे और दिन भर गुमटी पर चाय बेचते थे. घर के नजदीक स्थित स्कूल में इंटरवल होने पर वो दूसरे बच्चों के साथ खेलने के बजाय पिता की गुमटी पर पहुंचकर चाय बेचने में हाथ बंटाते थे.
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पीएम मोदी की तरह केशव ने भी महज़ चौदह बरस की उमर में अपना घर- बार छोड़ दिया था और वीएचपी के दिवंगत नेता अशोक सिंहल की शागिर्दी कर ली थी. चाय के ठेले से देश की सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचने का केशव का सफर काफी संघर्षों भरा रहा, लेकिन फुटपाथ पर पैबंद लगे टाट के नीचे देखे गए सपने को हकीकत में बदलने की उनकी कहानी अब तमाम दूसरे लोगों के लिए एक नजीर बन चुकी है. यही वजह है कि सत्ता में सफलता के शिखर पर पहुंचने के बावजूद केशव मौर्य कभी फुटपाथ पर लोगों के बीच खड़े होकर पकौड़े और जलेबी खाते नज़र आते हैं तो कभी चाय वाले की केतली में हाथ लगाकर कार्यकर्ताओं और आम जनता को अपनेपन का एहसास कराते हैं.
पीएम मोदी की तरह केशव ने भी महज़ चौदह बरस की उमर में अपना घर- बार छोड़ दिया था और वीएचपी के दिवंगत नेता अशोक सिंहल की शागिर्दी कर ली थी. चाय के ठेले से देश की सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचने का केशव का सफर काफी संघर्षों भरा रहा, लेकिन फुटपाथ पर पैबंद लगे टाट के नीचे देखे गए सपने को हकीकत में बदलने की उनकी कहानी अब तमाम दूसरे लोगों के लिए एक नजीर बन चुकी है. यही वजह है कि सत्ता में सफलता के शिखर पर पहुंचने के बावजूद केशव मौर्य कभी फुटपाथ पर लोगों के बीच खड़े होकर पकौड़े और जलेबी खाते नज़र आते हैं तो कभी चाय वाले की केतली में हाथ लगाकर कार्यकर्ताओं और आम जनता को अपनेपन का एहसास कराते हैं.
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तकरीबन पचास साल के केशव प्रसाद मौर्य का जन्म यूपी के कौशाम्बी ज़िले के सिराथू इलाके में रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित बेहद गरीब परिवार में हुआ था. तीन भाइयों में केशव दूसरे नंबर के थे. उनके पिता कभी तहसील कैम्पस तो कभी रेलवे स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर चाय का ठेला लगाते थे. केशव और उनके बड़े भाई सुखलाल मौर्य भी बचपन से ही पिता के काम में हाथ बंटाते थे. पैसों की तंगी के चलते पढ़ाई के लिए पैसे नहीं मिले तो दिन भर चाय के ठेले पर वक्त बिताने वाले केशव ने सुबह अखबार बेचना शुरू कर दिया. बड़े भाई सुखलाल के मुताबिक़ अखबार बांटने और पिता स्वर्गीय श्याम लाल के साथ चाय बेचने के साथ ही केशव ने पेंट की दूकान पर मजदूरी का भी काम किया था. सिराथू रेलवे स्टेशन के बाहर चाय बेचते हुए वो ट्रेन में सवार मुसाफिरों से लेकर गुमटी पर आने वाले ग्राहकों को भी अपने हाथ की बनी कड़क चाय पिलाते थे.
तकरीबन पचास साल के केशव प्रसाद मौर्य का जन्म यूपी के कौशाम्बी ज़िले के सिराथू इलाके में रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित बेहद गरीब परिवार में हुआ था. तीन भाइयों में केशव दूसरे नंबर के थे. उनके पिता कभी तहसील कैम्पस तो कभी रेलवे स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर चाय का ठेला लगाते थे. केशव और उनके बड़े भाई सुखलाल मौर्य भी बचपन से ही पिता के काम में हाथ बंटाते थे. पैसों की तंगी के चलते पढ़ाई के लिए पैसे नहीं मिले तो दिन भर चाय के ठेले पर वक्त बिताने वाले केशव ने सुबह अखबार बेचना शुरू कर दिया. बड़े भाई सुखलाल के मुताबिक़ अखबार बांटने और पिता स्वर्गीय श्याम लाल के साथ चाय बेचने के साथ ही केशव ने पेंट की दूकान पर मजदूरी का भी काम किया था. सिराथू रेलवे स्टेशन के बाहर चाय बेचते हुए वो ट्रेन में सवार मुसाफिरों से लेकर गुमटी पर आने वाले ग्राहकों को भी अपने हाथ की बनी कड़क चाय पिलाते थे.
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संघ यानी आरएसएस की शाखा से जुड़ने के चलते चाय के ठेले पर ज्यादा वक्त नहीं दे पाने पर एक बार परिवार वालों ने फटकार लगाई तो केशव ने चौदह बरस की उमर में घर- बार छोड़ दिया और इलाहाबाद आकर वीएचपी नेता अशोक सिंहल की सेवा में जुट गए. सिंहल के घर पर रहते हुए संगठन के काम में हाथ बंटाने वाले केशव जल्द ही उनके चहेते बन गए. वो आधे वक्त पढ़ाई करते थे और आधे वक्त वीएचपी दफ्तर में आए लोगों की सेवा व सत्कार करते थे. करीब बारह सालों तक वो ना तो घर गए और ना ही परिवार से कोई रिश्ता रखा.
संघ यानी आरएसएस की शाखा से जुड़ने के चलते चाय के ठेले पर ज्यादा वक्त नहीं दे पाने पर एक बार परिवार वालों ने फटकार लगाई तो केशव ने चौदह बरस की उमर में घर- बार छोड़ दिया और इलाहाबाद आकर वीएचपी नेता अशोक सिंहल की सेवा में जुट गए. सिंहल के घर पर रहते हुए संगठन के काम में हाथ बंटाने वाले केशव जल्द ही उनके चहेते बन गए. वो आधे वक्त पढ़ाई करते थे और आधे वक्त वीएचपी दफ्तर में आए लोगों की सेवा व सत्कार करते थे. करीब बारह सालों तक वो ना तो घर गए और ना ही परिवार से कोई रिश्ता रखा.
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फिर अशोक सिंहल के कहने पर वो बहन की शादी में शामिल हुए और घर वालों से दोबारा नाता जोड़ लिया. परिवार से दूर रहने के बावजूद इलाहाबाद में वीएचपी दफ्तर में काम करने के बदले केशव को जो पैसे मिलते थे, वह उसकी एक- एक पाई घर भेजना कभी नहीं भूलते थे. शादी के लिए केशव को राजी करने में भी परिवार को काफी पसीने बहाने पड़े. सिंहल की देखरेख में उन्होंने संघ, वीएचपी और बीजेपी में कई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियां संभाली. अशोक सिंहल उनके सामाजिक- राजनैतिक गुरु तो रहे ही, लेकिन साथ ही उनके अभिभावक की तरह भी थे.
फिर अशोक सिंहल के कहने पर वो बहन की शादी में शामिल हुए और घर वालों से दोबारा नाता जोड़ लिया. परिवार से दूर रहने के बावजूद इलाहाबाद में वीएचपी दफ्तर में काम करने के बदले केशव को जो पैसे मिलते थे, वह उसकी एक- एक पाई घर भेजना कभी नहीं भूलते थे. शादी के लिए केशव को राजी करने में भी परिवार को काफी पसीने बहाने पड़े. सिंहल की देखरेख में उन्होंने संघ, वीएचपी और बीजेपी में कई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियां संभाली. अशोक सिंहल उनके सामाजिक- राजनैतिक गुरु तो रहे ही, लेकिन साथ ही उनके अभिभावक की तरह भी थे.
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अशोक सिंहल के सानिध्य में केशव ने करीब दो दशक तक विश्व हिन्दू परिषद के लिए काम किया. राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने साल 2004 में बाहुबली अतीक अहमद के दबदबे वाली इलाहाबाद पश्चिमी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ते हुए कदम रखा. यहां साल 2004 और 2007 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने साल 2012 में कौशाम्बी की सिराथू सीट से किस्मत आजमाई. केशव ने यहां ना सिर्फ ऐतिहासिक जीत दर्ज की, बल्कि इस सीट पर पहली बार कमल भी खिलाया. केशव का सियासी करियर यहीं से सफलता के पथ पर लगातार आगे बढ़ता गया. केशव के बचपन से जुड़े हुए लोग आज भी उनके संघर्षों को याद करते हैं. बड़े भाई सुखलाल के मुताबिक़ उनमे बचपन से ही दूसरों के लिए कुछ करने का जो जज़्बा था, वो आज भी बरकरार है. उनके मुताबिक़ सिराथू के जिस रेलवे स्टेशन के बाहर केशव ने चाय बेचकर अपना बचपन बिताया, आज उसकी पहचान केशव मौर्य के नाम से होती है, ये कोई कम बड़ी बात नहीं है.
अशोक सिंहल के सानिध्य में केशव ने करीब दो दशक तक विश्व हिन्दू परिषद के लिए काम किया. राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने साल 2004 में बाहुबली अतीक अहमद के दबदबे वाली इलाहाबाद पश्चिमी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ते हुए कदम रखा. यहां साल 2004 और 2007 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने साल 2012 में कौशाम्बी की सिराथू सीट से किस्मत आजमाई. केशव ने यहां ना सिर्फ ऐतिहासिक जीत दर्ज की, बल्कि इस सीट पर पहली बार कमल भी खिलाया. केशव का सियासी करियर यहीं से सफलता के पथ पर लगातार आगे बढ़ता गया. केशव के बचपन से जुड़े हुए लोग आज भी उनके संघर्षों को याद करते हैं. बड़े भाई सुखलाल के मुताबिक़ उनमे बचपन से ही दूसरों के लिए कुछ करने का जो जज़्बा था, वो आज भी बरकरार है. उनके मुताबिक़ सिराथू के जिस रेलवे स्टेशन के बाहर केशव ने चाय बेचकर अपना बचपन बिताया, आज उसकी पहचान केशव मौर्य के नाम से होती है, ये कोई कम बड़ी बात नहीं है.
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अशोक सिंहल के सानिध्य में केशव ने करीब दो दशक तक विश्व हिन्दू परिषद के लिए काम किया. राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने साल 2004 में बाहुबली अतीक अहमद के दबदबे वाली इलाहाबाद पश्चिमी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ते हुए कदम रखा. यहां साल 2004 और 2007 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने साल 2012 में कौशाम्बी की सिराथू सीट से किस्मत आजमाई. केशव ने यहां ना सिर्फ ऐतिहासिक जीत दर्ज की, बल्कि इस सीट पर पहली बार कमल भी खिलाया. केशव का सियासी करियर यहीं से सफलता के पथ पर लगातार आगे बढ़ता गया. केशव के बचपन से जुड़े हुए लोग आज भी उनके संघर्षों को याद करते हैं. बड़े भाई सुखलाल के मुताबिक़ उनमे बचपन से ही दूसरों के लिए कुछ करने का जो जज़्बा था, वो आज भी बरकरार है. उनके मुताबिक़ सिराथू के जिस रेलवे स्टेशन के बाहर केशव ने चाय बेचकर अपना बचपन बिताया, आज उसकी पहचान केशव मौर्य के नाम से होती है, ये कोई कम बड़ी बात नहीं है.
अशोक सिंहल के सानिध्य में केशव ने करीब दो दशक तक विश्व हिन्दू परिषद के लिए काम किया. राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने साल 2004 में बाहुबली अतीक अहमद के दबदबे वाली इलाहाबाद पश्चिमी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ते हुए कदम रखा. यहां साल 2004 और 2007 के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उन्होंने साल 2012 में कौशाम्बी की सिराथू सीट से किस्मत आजमाई. केशव ने यहां ना सिर्फ ऐतिहासिक जीत दर्ज की, बल्कि इस सीट पर पहली बार कमल भी खिलाया. केशव का सियासी करियर यहीं से सफलता के पथ पर लगातार आगे बढ़ता गया. केशव के बचपन से जुड़े हुए लोग आज भी उनके संघर्षों को याद करते हैं. बड़े भाई सुखलाल के मुताबिक़ उनमे बचपन से ही दूसरों के लिए कुछ करने का जो जज़्बा था, वो आज भी बरकरार है. उनके मुताबिक़ सिराथू के जिस रेलवे स्टेशन के बाहर केशव ने चाय बेचकर अपना बचपन बिताया, आज उसकी पहचान केशव मौर्य के नाम से होती है, ये कोई कम बड़ी बात नहीं है.
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केशव मौर्य ने अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण से लेकर कई सामाजिक मुद्दों पर तमाम बार बड़े आंदोलन किया. कई बार जेल भी गए. मोदी की तरह ही बचपन में मुफलिसी में दिन गुजारने और अपनी मेहनत व कड़े संघर्षों के चलते ही कामयाबी का बड़ा मुकाम हासिल करने की वजह से ही सिराथू के गरीब और आम आदमी को उम्मीद है कि केशव उनके दुख- दर्द को समझेंगे और उनकी तरक्की व बेहतरी के लिए ज़रूर काम करेंगे. केशव ने बचपन में जिस आदर्श विद्यालय में पढ़ाई की थी, वहां के टीचर रामलाल का कहना है कि पिता की चाय की दूकान चलाने और सामाजिक तौर पर सक्रिय रहने की वजह से उनका पढ़ाई में बहुत मन नहीं लगता था. वो औसत स्टूडेंट थे, लेकिन छोटी सी उम्र में ही उन्होंने जिस तरह का जज़्बा दिखाया था, उसी से उनके इतने कामयाब होने की उम्मीद नज़र आने लगी थी.
केशव मौर्य ने अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण से लेकर कई सामाजिक मुद्दों पर तमाम बार बड़े आंदोलन किया. कई बार जेल भी गए. मोदी की तरह ही बचपन में मुफलिसी में दिन गुजारने और अपनी मेहनत व कड़े संघर्षों के चलते ही कामयाबी का बड़ा मुकाम हासिल करने की वजह से ही सिराथू के गरीब और आम आदमी को उम्मीद है कि केशव उनके दुख- दर्द को समझेंगे और उनकी तरक्की व बेहतरी के लिए ज़रूर काम करेंगे. केशव ने बचपन में जिस आदर्श विद्यालय में पढ़ाई की थी, वहां के टीचर रामलाल का कहना है कि पिता की चाय की दूकान चलाने और सामाजिक तौर पर सक्रिय रहने की वजह से उनका पढ़ाई में बहुत मन नहीं लगता था. वो औसत स्टूडेंट थे, लेकिन छोटी सी उम्र में ही उन्होंने जिस तरह का जज़्बा दिखाया था, उसी से उनके इतने कामयाब होने की उम्मीद नज़र आने लगी थी.
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केशव के साथ पढ़ाई करने वाले रोहित शर्मा और उनके दोस्त डाक्टर निशीथ श्रीवास्तव का भी कहना है कि वो बचपन से ही बेमिसाल थे और आज सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी कतई नहीं बदले हैं. वो आज भी ना सिर्फ पुराने लोगों को वैसा ही सम्मान देते हैं, बल्कि आम जनता को भी अपनेपन का एहसास कराते हैं. पीएम मोदी जैसा बचपन बीतने की वजह से ही उनके टीचर रामलाल उन्हें भविष्य में प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं तो बड़े भाई सुखलाल उन्हें अब सूबे का सीएम बनकर यूपी की सेवा करते हुए देखने की इच्छा रखे हुए हैं.
केशव के साथ पढ़ाई करने वाले रोहित शर्मा और उनके दोस्त डाक्टर निशीथ श्रीवास्तव का भी कहना है कि वो बचपन से ही बेमिसाल थे और आज सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी कतई नहीं बदले हैं. वो आज भी ना सिर्फ पुराने लोगों को वैसा ही सम्मान देते हैं, बल्कि आम जनता को भी अपनेपन का एहसास कराते हैं. पीएम मोदी जैसा बचपन बीतने की वजह से ही उनके टीचर रामलाल उन्हें भविष्य में प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं तो बड़े भाई सुखलाल उन्हें अब सूबे का सीएम बनकर यूपी की सेवा करते हुए देखने की इच्छा रखे हुए हैं.

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