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Tulsi Ram Darshan Sthal: वृंदावन का वो मंदिर जहां भगवान कृष्ण ने धारण किया था श्रीराम का रूप, तस्वीरों में जानें इतिहास

Janmashtami 2022: यूपी के वृंदावन में एक ऐसा मंदिर स्थित है जहां पर तुलसीदास के लिए भगवान कृष्ण ने श्री राम का रूप धारण किया था. आप भी जानिए इस मंदिर का इतिहास और रोचक कहानी.

Janmashtami 2022: यूपी के वृंदावन में एक ऐसा मंदिर स्थित है जहां पर तुलसीदास के लिए भगवान कृष्ण ने श्री राम का रूप धारण किया था. आप भी जानिए इस मंदिर का इतिहास और रोचक कहानी.

तुलसी रामदर्शन स्थल का इतिहास

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Tulsi Ramdarshan Sthal History: आज पूरे देश में धूमधाम से श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2022) का त्योहार बनाया जा रहा है. इस मौके पर हर मंदिर में कान्हा के भजनों की मधुर धुन सुनाई दे रही हैं. वहीं जन्माष्टी के खास मौके पर आज हम आपको श्री कृष्ण के 500 साल पुराने मंदिर की रोचक कथा बताने जा रहे हैं. जो आपने शायद ही पहले कभी सुनी होगी. ये मंदिरों की नगरी वृंदावन (Vrindavan) में स्थित है. जिसे श्री कृष्ण मंदिर (Shri Krishna Temple) के नाम से जाना जाता है.
Tulsi Ramdarshan Sthal History: आज पूरे देश में धूमधाम से श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2022) का त्योहार बनाया जा रहा है. इस मौके पर हर मंदिर में कान्हा के भजनों की मधुर धुन सुनाई दे रही हैं. वहीं जन्माष्टी के खास मौके पर आज हम आपको श्री कृष्ण के 500 साल पुराने मंदिर की रोचक कथा बताने जा रहे हैं. जो आपने शायद ही पहले कभी सुनी होगी. ये मंदिरों की नगरी वृंदावन (Vrindavan) में स्थित है. जिसे श्री कृष्ण मंदिर (Shri Krishna Temple) के नाम से जाना जाता है.
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जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की नगरी वृंदावन में हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यहां पर एक ऐसा अनोखा मंदिर भी है जहां तुलसीदास के लिए भगवान कृष्ण ने श्री राम का रूप धारण किया था. अलौकिक वातावरण से ओत-प्रोत श्री कृष्ण का ये मंदिर ज्ञान गुदड़ी क्षेत्र में स्थित है. जो तुलसीदास और भक्तमाल के रचयिता संत शिरोमणि नाभा जी की मिलन स्थली भी है.
जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की नगरी वृंदावन में हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यहां पर एक ऐसा अनोखा मंदिर भी है जहां तुलसीदास के लिए भगवान कृष्ण ने श्री राम का रूप धारण किया था. अलौकिक वातावरण से ओत-प्रोत श्री कृष्ण का ये मंदिर ज्ञान गुदड़ी क्षेत्र में स्थित है. जो तुलसीदास और भक्तमाल के रचयिता संत शिरोमणि नाभा जी की मिलन स्थली भी है.
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मंदिर के मुख्य पुजारी गौर गोपाल मिश्र के अनुसार तुलसीदास जी और नाभा जी कोरी कल्पना तो हैं नहीं! दोनों घटनाओं की जानकारी मुंबई के ‘खेमराज श्रीकृष्णदास श्री वेंकटश्वर’ प्रेस से प्रकाशित रामचरित मानस में मिलती है और उसमें चौपाई के माध्यम से इनके बारे में चर्चा की गई है. उन्होंने कहा कि, गोस्वामी तुलसीदास ब्रज की यात्रा करते हुए वृंदावन आए थे. यहां सर्वत्र ‘राधे-राधे’ की रट सुनकर उन्हें लगा कि यहां के लोगों में भगवान राम के प्रति उतनी भक्ति नहीं है.
मंदिर के मुख्य पुजारी गौर गोपाल मिश्र के अनुसार तुलसीदास जी और नाभा जी कोरी कल्पना तो हैं नहीं! दोनों घटनाओं की जानकारी मुंबई के ‘खेमराज श्रीकृष्णदास श्री वेंकटश्वर’ प्रेस से प्रकाशित रामचरित मानस में मिलती है और उसमें चौपाई के माध्यम से इनके बारे में चर्चा की गई है. उन्होंने कहा कि, गोस्वामी तुलसीदास ब्रज की यात्रा करते हुए वृंदावन आए थे. यहां सर्वत्र ‘राधे-राधे’ की रट सुनकर उन्हें लगा कि यहां के लोगों में भगवान राम के प्रति उतनी भक्ति नहीं है.
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इस पर उनके मुख से दोहा निकला ‘राधा-राधा रटत हैं, आम ढाक अरु कैर तुलसी या ब्रज भूमि में कहा, राम सौं बैर’ इसके बाद वो ज्ञान गुदड़ी स्थित श्रीकृष्ण मंदिर में भगवान कृष्ण के दर्शन करने पहुंचे. जहां श्रीकृष्ण ने उनकी इच्छा के अनुसार धनुष-बाण धारण करके भगवान श्री राम के रूप में दर्शन दिए थे.
इस पर उनके मुख से दोहा निकला ‘राधा-राधा रटत हैं, आम ढाक अरु कैर तुलसी या ब्रज भूमि में कहा, राम सौं बैर’ इसके बाद वो ज्ञान गुदड़ी स्थित श्रीकृष्ण मंदिर में भगवान कृष्ण के दर्शन करने पहुंचे. जहां श्रीकृष्ण ने उनकी इच्छा के अनुसार धनुष-बाण धारण करके भगवान श्री राम के रूप में दर्शन दिए थे.
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धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जब तुलसीदास जी यहां आए थे, तब ये मंदिर भगवान श्री कृष्ण का ही होता था. लेकिन जब कृष्ण ने श्रीराम के रूप में तुलसीदास को दर्शन दिए, तो ये स्थल तुलसी रामदर्शन स्थल के नाम से जाना जाने लगा. बता दें कि इस मंदिर में कृष्ण, राधा के साथ विराजमान हैं और पीछे धनुष बाण लिए भगवान राम की मूर्ति भी है.
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जब तुलसीदास जी यहां आए थे, तब ये मंदिर भगवान श्री कृष्ण का ही होता था. लेकिन जब कृष्ण ने श्रीराम के रूप में तुलसीदास को दर्शन दिए, तो ये स्थल तुलसी रामदर्शन स्थल के नाम से जाना जाने लगा. बता दें कि इस मंदिर में कृष्ण, राधा के साथ विराजमान हैं और पीछे धनुष बाण लिए भगवान राम की मूर्ति भी है.
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वहीं पुजारी मिश्र ने ये भी बताया कि, तुलसीदास की भक्ति पर प्रभु के धनुष बाण हाथ में लेने का उल्लेख गोवर्धन यात्रा के दौरान भी मिलता है. दरअसल तुलसीदास ने श्री रामचरितमानस को लिखने की शुरुआत साल 1631 में की थी और इससे तीन साल पहले ही ब्रज यात्रा कर चुके थे. इसका प्रमाण उनके द्वारा रचित कृष्णपदावली में है.
वहीं पुजारी मिश्र ने ये भी बताया कि, तुलसीदास की भक्ति पर प्रभु के धनुष बाण हाथ में लेने का उल्लेख गोवर्धन यात्रा के दौरान भी मिलता है. दरअसल तुलसीदास ने श्री रामचरितमानस को लिखने की शुरुआत साल 1631 में की थी और इससे तीन साल पहले ही ब्रज यात्रा कर चुके थे. इसका प्रमाण उनके द्वारा रचित कृष्णपदावली में है.

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