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लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के बीच क्या चीन का खेल हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा

शी घरेलू खपत को बढ़ा कर अर्थव्यवस्था को बेहतर ढंग से संचालित  करना चाह रहे हैं. चीन की नई रणनीति का उद्देश्य अत्याधुनिक तकनीकों की मदद से चीन को पुराना दर्जा वापस दिलाना है.

तीन साल के सख्त कोविड लॉकडाउन के बाद चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं हुआ है. हालिया आकंड़े इस बात की तरफ इशारा करते हैं. जुलाई में खुदरा बिक्री, औद्योगिक उत्पादन और निवेश सभी की दर उम्मीद से धीमी गति से बढ़े. इस बीच कुल मांग में गिरावट ने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर खराब असर डाला है. 

चीन की अर्थव्यवस्था ने साल की पहली तिमाही में काफी हद तक उम्मीद के मुताबिक सुधार किया. संपत्ति और निर्यात के मामले में भी उम्मीद से थोड़ा बेहतर प्रदर्शन था. दूसरी तिमाही में जमीन की बिक्री में रुकावट आई इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ा. कई बड़ी रियल स्टेट कंपनियां कर्ज में डूबी हुई हैं. 

इसके अलावा स्थानीय सरकारों को वित्तपोषण चुनौतियों का सामना करना पड़ा, राजकोषीय खर्च को कड़ा कर दिया गया.  इससे पूरे देश का विकास बाधित हुआ. पूरे देश की आर्थिक विकास में गिरावट आई.

जुलाई के अंत में पोलित ब्यूरो की बैठक में चीन के वरिष्ठ नेतृत्व ने अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली कठिनाइयों का जिक्र किया. अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद करने के लिए सहायक नीतियों को लागू करने पर जोर दिया. बुनियादी ढांचे के निवेश के लिए संपत्ति नीतियों में मामूली ढील के साथ राजकोषीय नीति में ढील की उम्मीद की गई.

देश की अर्थव्यवस्था में 2022 में केवल 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 37 अर्थशास्त्रियों के एक सर्वेक्षण के अनुसार 2023 की शुरुआती तिमाहियों में विकास धीमा रहने का अंदाजा लगाया गया, जो सच हुआ. 

बता दें कि 1978 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत के बाद से चीन की जीडीपी लगभग 10 प्रतिशत सालाना की औसत से बढ़ी है. लेकिन महामारी शुरू होने के बाद से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है. 2020 में इसके फिर से पटरी पर लौटने की शुरुआती उम्मीद के बाद निजी क्षेत्र पर बार-बार कार्रवाई और सख्त कोविड लॉकडाउन ने आपूर्ति श्रृंखलाओं पर कहर बरपाया है .निवेशकों पर इसका सीधा असर पड़ा है.

जनवरी 2023 में एक और बुरी खबर आई. देश की आबादी में पिछले साल 60 वर्षों में पहली बार गिरावट आई, जिससे इसके भविष्य के कार्यबल के बारे में चिंताजनक सवाल उठे. अब जिस तरह से देश की अर्थव्यवस्था  में गिरावट दर्ज की गई है, और आबादी घटी है. ऐसे में सवाल है कि क्या देश अब  उच्च विकास की ओर लौटने की उम्मीद कर सकता है?

क्या खत्म हो जाएगा चीन के उच्च विकास का दौर

अलजजीरा में छपी खबर के मुताबिक अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों का कहना है कि चीन का डबल डिजिट का विकास युग लगभग निश्चित रूप से खत्म हो गया है. आने वाले सालों में चीन जिस विकास दर को बनाए रखने में कामयाब रहता है, वह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि बीजिंग अपनी अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली संरचनात्मक चुनौतियों और शी की नई प्राथमिकताओं के प्रभाव को मद्देनजर रखते हुए कैसे काम करेगा. 

तेजी से वृद्धि, और फिर गिरावट

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार चीन में सालों से उच्च जीडीपी विकास देखी गई . 2021 के बीच इसकी अर्थव्यवस्था दस गुना से ज्यादा बढ़कर 1.2 ट्रिलियन डॉलर से लगभग 18 ट्रिलियन डॉलर हो गई. 

इसके विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का सकल घरेलू उत्पाद 2000 में अपने आकार से दोगुना से थोड़ा अधिक है. अर्थशास्त्रियों के अनुमान के अनुसार आने वाले सालों में  चीन की विकास दर 2 से 5 प्रतिशत के बीच धीमी हो जाएगी.

चीन के बजाय भारत का रुख करेंगी विदेशी कंपनियां 

कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में बीजिंग स्थित वरिष्ठ फेलो अर्थशास्त्री माइकल पेटिस ने अलजजीरा को बताया कि आंकड़ों के अनुसार उच्च विकास युग अब समाप्त हो रहा है, लेकिन वास्तव में उत्पादक निवेश के मामले मे यह लगभग 10 से 15 साल पहले समाप्त हो गया था.

हाल के दशकों में विकास हासिल करने के लिए चीन ने जिन जनसांख्यिकीय और आर्थिक स्थितियों का फायदा उठाया, वे फीकी पड़ गई हैं. चीन के कम लागत वाले औद्योगिक आधार को बढ़ावा देने वाला श्रामिक  ग्रुप अब सिकुड़ना शुरू हो चुका है. क्योंकि इसकी आबादी तेजी से घटी है.

अजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक अटलांटिक काउंसिल के एक वरिष्ठ फेलो हंग ट्रान ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा तेजी से बदलाव चाह रही हैं. वियतनाम , मलेसिया और बांग्लादेश जैसे कई एशियाई देश अब बिजनेस के लिए चीन के बजाय भारत का रुख करेंगे. रियल एस्टेट और बुनियादी ढांचे में कर्ज भारी निवेश को दूसरे देशों की तरफ ले जाएगा, जो अब तक चीन में था.  

चीन की कुल उत्पादकता अब पहले की तरह नहीं बढ़ रही है. 2008 से पहले उत्पादकता वृद्धि औसतन 2.8 प्रतिशत थी, लेकिन अब ये केवल 0.7 प्रतिशत प्रति वर्ष रह गई है . इसने कई  बड़ी कंपनियों को टूटने के कागार पर ला खड़ा किया है. 2021 में देश के सबसे बड़े संपत्ति डेवलपर, एवरग्रांडे का पतन हो चुका है.

शी का अगला कदम क्या होगा
शी का ध्यान 'हर कीमत पर विकास' पर रहा है. अब ये "उच्च गुणवत्ता वाले विकास" पर आ गया है. जो चीन की वर्तमान पंचवर्षीय योजना का हिस्सा है. यह शी की "नई विकास अवधारणा" का हिस्सा है जो बाहरी दबाव के प्रति लचीलापन और चीन के धन को बढ़ाने के लिए बेहतर माना जा रहा है.

विशेषज्ञों का मानना है कि शी घरेलू खपत को बढ़ा कर अर्थव्यवस्था को बेहतर ढंग से संचालित  करना चाह रहे हैं. चीन की नई रणनीति का उद्देश्य अत्याधुनिक तकनीकों की मदद से चीन को पुराना दर्जा वापस दिलाना है.

लेकिन क्या "उच्च गुणवत्ता वाली वृद्धि" पहले की तरह तेजी से विकास दर प्रदान कर सकती है?

जानकारों का मानना है कि सिद्धांत रूप में यह हो सकता है, लेकिन यह इतिहास में पहले नहीं हुआ है. इसलिए कुछ भी एकदम से सही होगा ये नहीं कहा जा सकता. 

कुल जीडीपी के हिस्से के रूप में घरेलू व्यय 2021 के अंत तक लगभग 38 प्रतिशत था, जो 63 प्रतिशत के वैश्विक औसत से बहुत नीचे था. इससे चीन दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कमजोर खपत स्तरों में से एक देश बन गया है. जब तक चीन घरेलू खपत में वृद्धि नहीं कर लेता, जीडीपी लगभग 2-3 प्रतिशत रहने वाली है. 

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