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1000 साल पुराने 'क्रूसेड वॉर' का जिक्र कर एर्दोगन ने दी पश्चिमी मुल्कों को धमकी, जानिए क्या है इसका इतिहास

Crusades War Explained: इजरायल-हमास युद्ध के बीच 'क्रूसेड वॉर' का जिक्र छिड़ गया है. इसका जिक्र तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने किया है. आइए इस बारे में जानते हैं.

Crusades War: इजरायल और हमास के बीच चल रही जंग को तीन हफ्ते से ज्यादा का वक्त हो चुका है. कहीं से भी इस युद्ध के थमने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. कुछ दिनों पहले गाजा में बमबारी और मौत के साए के बीच रह रहे फिलिस्तीनियों के लिए मानवीय मदद पहुंची. इससे ऐसा लगने लगा कि शायद अब युद्ध थम जाएगा. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ है, बल्कि इजरायल ने हमास के खिलाफ जंग के दूसरे स्टेज का ऐलान कर दिया है, जो और भी ज्यादा घातक होने वाला है.

वहीं, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने गाजा में फिलिस्तीनियों पर हो रहे हमलों के लिए पश्चिमी मुल्कों को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा है कि गाजा में जो हालात हैं, उसकी मुख्य वजह पश्चिमी मुल्क हैं, जो लगातार इजरायल को सपोर्ट कर रहे हैं. उन्होंने ऐसा कहते हुए क्रूसेड वॉर का जिक्र कर दिया. इससे नाराज होकर इजरायल ने तुर्की से अपने राजनयिक स्टाफ को वापस बुला लिया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर ये क्रूसेड वॉर क्या है और एर्दोगन ने इसे गाजा से क्यों जोड़ा. 

एर्दोगन ने क्या कहा? 

दरअसल, इस्तांबुल में शनिवार को एक रैली में एर्दोगन ने कहा कि पश्चिमी मुल्क गाजा में इजरायल के हाथों फिलिस्तीनियों के हो रहे नरसंहार के लिए जिम्मेदार हैं. इजरायल फिलिस्तीनियों को मिटाने की कोशिश कर रहा है. तुर्की के राष्ट्रपति ने आगे कहा कि इजरायल मिडिल ईस्ट में पश्चिमी मुल्कों का एक मोहरा है, जिसके जरिए यहां कंट्रोल की कोशिश होती है. अगर हम कुछ देशों को छोड़ दें, तो गाजा में हो रहा नरसंहार पूरी तरह से पश्चिमी मुल्कों के लिए काम करता है. 

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि इजरायल और उसके सहयोगियों ने क्रूसेड वॉर जैसे हालात पैदा कर दिए हैं, जिसमें ईसाइयों को मुस्लिमों के खिलाफ खड़ा कर दिया गया है. एर्दोगन ने कहा कि क्या पश्चिमी मुल्क एक बार फिर से क्रूसेड वॉर शुरू करना चाहते हैं. अगर ऐसा करने का इरादा है, तो मैं बता देना चाहता हूं कि तुर्की अभी जिंदा है, वह मरा नहीं है. तुर्की वैसे ही मिडिल ईस्ट में खड़ा है, जैसे पहले रहा है. वह लीबिया से लेकर कराबाख तक खड़ा है. 

क्या है क्रूसेड वॉर? 

हिस्ट्री डॉट कॉम के मुताबिक, क्रूसेड वॉर का हिंदी में मतलब 'धर्म युद्ध' से है. क्रूसेड ईसाइयों और मुस्लिमों के बीच हुए धार्मिक युद्ध को कहा जाता है. इसका मुख्य मकसद यरुशलम शहर पर कब्जा था, जो दोनों ही धर्मों के लिए सबसे पवित्र जगहों में से एक है. जहां ईसा मसीह का जन्म यरुशलम में हुआ, वहीं इसी शहर में अल-अक्सा मस्जिद है, जो सऊदी अरब के मक्का में मस्जिद अल हरम और मदीना में मस्जिद ए नबवी के बाद तीसरी सबसे पवित्र मस्जिद है. 

मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच यरुशलम पर कंट्रोल के लिए कुल मिलाकर आठ क्रूसेड वॉर हुईं, जिसमें लाखों लोगों की मौत हुई. इसमें से कुछ युद्ध कुछ सालों तक चले, जबकि कुछ ज्यादा वक्त तक लड़े गए. क्रूसेड वॉर 1096 से लेकर 1291 के बीच आठ बार लड़ा गया. युद्ध की शुरुआत पश्चिमी मुल्कों की तरफ से हुई, जो यरुशलम पर कब्जे के लिए अपनी सेनाओं को लेकर यहां पहुंच गए. उस समय मिडिल ईस्ट के शासकों ने उनका मुकाबला किया. 

कैसे हुई क्रूसेड वॉर की शुरुआत? 

नवंबर 1095 में दक्षिणी फ्रांस में काउंसिल ऑफ क्लेरमोंट में पोप अर्बन द्वितीय ने आज के पश्चिमी मुल्कों में रहने वाले ईसाइयों को हथियार उठाने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि ईसाइ लोग उस समय तुर्की से लेकर ग्रीस तक शासन करने वाले बेजंटीन साम्राज्य की मदद करें, ताकि मुस्लिमों के कब्जे से यरुशलम को आजाद करवाया जा सके. इस तरह क्रूसेड वॉर की शुरुआत हुई. इसका अच्छा खासा असर भी देखने को मिला, क्योंकि लोगों ने इसमें बढ़कर हिस्सा लिया. 

क्रूसेड वॉर का क्या असर रहा?

भले ही यूरोप से आए ईसाइयों को मुस्लिम शासकों के जरिए क्रूसेड वॉर में हार मिली. लेकिन इसकी वजह से ईसाई धर्म सफलतापूर्वक मिडिल ईस्ट में पहुंच गया. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि लोगों तक पश्चिमी सभ्यताएं भी पहुंची. रोमन कैथोलिक चर्च को इस युद्ध की वजह से काफी फायदा पहुंचा. न सिर्फ उसकी संपत्ति बढ़ी, बल्कि पोप के पद का महत्व भी बढ़ गया. क्रूसेड वॉर की वजह से पूरे यूरोप में व्यापार और ट्रांसपोर्ट की सुविधाएं बेहतर हुईं.  

युद्ध की वजह से सप्लाई को एक-जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाने के लिए ट्रांसपोर्ट की जरूरत थी. इसकी वजह से शिपबिल्डिंग और मैन्यूफेक्चरिंग की शुरुआत हुई. जब क्रूसेड वॉर खत्म हुई, तो यूरोप में लोगों के बीच यात्रा करने की इच्छा पैदा हुई. वहीं, क्रूसेड के दौरान मुस्लिमों, यहूदियों और ईसाई धर्म को नहीं मानने वाले लोगों के खिलाफ हुए अत्याचार ने उनके मन में ईसाइयों के लिए कड़वाहटें पैदा कर दीं. 

यह भी पढ़ें: इराकी शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सद्र ने US के खिलाफ खोला मोर्चा, बगदाद में दूतावास बंद करने को लेकर दी धमकी

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