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डोकलाम के बाद से तिब्बत में खु़द को लगातार मज़बूत कर रहा चीन, टैंक के बाद अब तैनात की होवित्जर तोपें

पिछले साल से भारत और चीन के सैन्य संबंध स्थिर हुए हैं. बावजूद इसके मोबाइल होवित्जर की तैनाती ने चीनी सैनिकों को नए उपकरणों के साथ मजबूत करने के पीएलए के मंसूबे को सबके सामने लाया है.

बीजिंग: भारत और चीन के बीच 2017 में 70 दिनों से अधिक तक डोकलाम में गतिरोध की स्थिति बनी रही थी. किसी अनहोनी को टालने के लिए दोनों देशों ने आपसी सूझबूझ का सहारा लिया लेकिन इसके बाद से चीन लगातार आक्रामक होता चला गया है. पहले चीन ने भारत से लगे तिब्बत में युद्ध टैंक तैनात किए थे. ताज़ा मामले में चीन ने यहां मोबाइल होवित्जर (तोप) तैनात किए हैं जिन्हें आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है और लड़ाई की स्थिति में ये बेहद कारगर साबित होते हैं.

चीन की सरकारी मीडिया के मुताबिक तिब्बत में तैनात पिपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को ये होवित्जर दिए गए हैं. इसका उद्देश्य सीमा सुरक्षा में सुधार के लिए सैनिकों की ऊंचाई की युद्ध क्षमता को और ताकत देना है. ये बात चीन की आधिकारिक मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने बताई है. टाइम्स ने चीनी सैन्य विश्लेषकों के हवाले से कहा कि नया हथियार पीएलसी-181 व्हिकल माउंटेड होवित्जर हैं.

रिपोर्ट में कहा गया कि शनिवार को पीएलए ग्राउंड फोर्स के वीचैट अकाउंट द्वारा जारी किए गए एक लेख में ये घोषणा की गई. इस हथियार का डोकलाम में 2017 चीन-भारत गतिरोध के दौरान तिब्बत में एक तोपखाने की ब्रिगेड के तौर पर इस्तेमाल किया गया था. चीन के एक मिलिट्री विशेषज्ञ ने कहा कि होवित्जर में 52-कैलिबर के तोप लगे हैं जिसकी रेंज 50 किलोमीटर की है. ये लेज़र गाइडेड और सेलेलाइट गाइडेड शूटिंग करता है.

डोकलाम गतिरोध के दौरान चीनी सेना ने इसी देश में टैंकों की ड्रिल की थी. उसके बाद उन्होंने यहां जो होवित्जर तैनात किए हैं वो भारत के लिए सतर्क हो जाने का विषय है. टाइप-15 टैंकों में एक इंजन है जो 1,000 हॉर्स पावर का है और पीएलए के अन्य मुख्य युद्धक टैंक की तुलना में काफी हल्का है, जिसका वजन लगभग 32 से 35 टन है. हिमालय क्षेत्र के बीहड़ और पहाड़ी इलाकों के लिहाज़ से ये टैंक काफी कारगर है.

पिछले साल से भारत और चीन के सैन्य संबंध स्थिर हुए हैं. बावजूद इसके मोबाइल होवित्जर की तैनाती ने चीनी सैनिकों को नए उपकरणों के साथ मजबूत करने के पीएलए के मंसूबे को सबके सामने लाया है. 2019 में देश की सेना के साथ पहली मुलाकात में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कुछ ऐसा कहा है जो अचंभित करने वाला है. भारत के इस पड़ोसी देश के राष्ट्रपति शी ने अपनी सेना से युद्ध और अप्रत्याशित परिस्थितियों के लिए तैयार रहने का आह्वान किया है.

शी ने केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) की एक बैठक में कहा कि बड़े पैमाने पर और तेजी से आधुनिक बन रही पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को खतरे, संकट और युद्ध को लेकर जागरूक रहना चाहिए. सीएमसी देश का शीर्ष सैन्य संगठन जिसके शी अध्यक्ष हैं. इसे 2019 में सेना के लिए शी के पहले आदेश के रूप में देखा जा रहा है, इस दौरान उन्होंने पूरे साल सशस्त्र बलों के प्रशिक्षण से जुड़े एक आदेश पर भी हस्ताक्षर किए.

भारत के साथ सीमा विवाद के अलावा, दक्षिण चीन सागर में कई देशों के साथ निरंतर समुद्री क्षेत्रीय विवादों के बीच शी का ये आदेश आया है. वहीं, चीन द्वारा ताइवान को इसका हिस्सा बनाए जाने को लेकर अमेरिकी विरोध को भी इससे जोड़कर देखा जा रहा है. ताइवान को चीन अपना अभिन्न अंग मानता है. शी ने ताज़ा बयान में कहा है कि चीन ने ताइवान को फिर से "अपना बनाने" के लिए बल के उपयोग का अधिकार सुरक्षित रखा है.

आपको ये भी बता दें कि ताइवान एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक रूप से चलने वाला देश है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ताइवान की सुरक्षा के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए एशिया को आश्वासन की पहल के कानून पर हस्ताक्षर किया है. इसी के बाद से शी के तेवर बेहद सख्त हो गए हैं. चीनी राष्ट्रपति ने सशस्त्र बलों की त्वरित और प्रभावी ढंग से जवाब देने की क्षमता पर बल दिया, जिससे उन्हें संयुक्त अभियानों की कमांडिंग क्षमता को उन्नत करने, नए लड़ाकू बलों को बढ़ावा देने और लड़ाई की परिस्थितियों में सैन्य प्रशिक्षण में सुधार करने के लिए कहा.

चीन और भारत 2017 में एक सैन्य झड़प के करीब आए थे. दोनों देशों के सैनिकों के बीच डोकलाम में सिक्किम की सीमा के पास 73-दिन तक गतिरोध चला था. कूटनीतिक बातचीत ने आखिरकार सैनिकों के बीच तनाव को कम किया और स्थिति को ठीक कर दिया जिससे सीमा पर संभावित संघर्ष की स्थिति टल गई.

चौंकाने वाली जानकारी ये है कि चीनी मीडिया ने चीन द्वारा 'मदर ऑफ ऑल बम' (एमओएबी) के परीक्षण को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है जिससे पूरे विश्व का ध्यान चीन की ओर गया है. एमओएबी की ताकत का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ये परमाणु बम से थोड़ा ही कम शक्तिशाली होता है. शी के बयान से लेकर चीनी मीडिया की ऐसी रिपोर्ट्स किसी शुभ संकेत की ओर तो इशारा नहीं कर रहे.

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