'नो मेंस लैंड' में फंसे 31 रोहिंग्याओं को भारत लाया गया, देश ने साफ किया ताज़ा स्टैंड
हिरासत में लिये गये 31 रोहिंग्या में छह पुरुष, नौ महिला और 16 बच्चे शामिल थे. बीजीबी का दावा है कि वे भारत से आए थे जबकि बीएसएफ का कहना है कि वे भारत से नहीं आए थे क्योंकि भारत की तरफ कांटेदार बाड़ को पार करने के कोई संकेत नहीं मिले हैं.
अगरतला/नई दिल्ली: सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने भारत-बांग्लादेश सीमा पर 18 जनवरी से फंसे 31 रोहिंग्या मुस्लिमों को मंगलवार को त्रिपुरा पुलिस को सौंप दिया, जिसके बाद पश्चिम त्रिपुरा जिला की एक अदालत ने इन लोगों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. इस बीच, समुदाय के 30 और लोगों को असम में पकड़ा गया है.
संभवत: जम्मू कश्मीर से आए 31 रोहिंग्या मुस्लिम बीते शुक्रवार से त्रिपुरा में भारत-बांग्लादेश सीमा पर फंसे हुए थे. इस स्थिति को लेकर बीएसएफ और उसके बांग्लादेशी समकक्ष ‘बॉर्डर गाडर्स बांग्लादेश’ (बीजीबी) के बीच आरोप-प्रत्यारोप शुरू हुआ था. इस मुद्दे पर वार्ता के दौरान बीएसएफ और बीजीबी के बीच कोई फैसला नहीं हो पाने पर इन रोहिंग्या लोगों को त्रिपुरा पुलिस को सौंपने का निर्णय किया गया.
अधिकारियों ने बताया कि 31 रोहिंग्या मुस्लिमों की मेडिकल जांच की गई और बाद में उन्हें पश्चिम त्रिपुरा जिला की एक अदालत में पेश किया गया जिसने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. बीएसएफ के उपमहानिरीक्षक ब्रजेश कुमार ने कहा, ‘‘रोहिंग्या 18 जनवरी से कांटेदार बाड़ के पीछे थे. हम इस मुद्दे को बीजीबी के सामने उठाया और उनसे उन्हें बांग्लादेश में वापस लेने का अनुरोध किया. लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया. बीजीबी के साथ कई दौर की बातचीत नाकाम रही. इसलिए, हमने उन्हें पुलिस को सौंप दिया.’’
अधिकारियों ने कहा कि रविवार को ‘जीरो लाइन’ पर बटालियन कमांडर स्तरीय बैठक हुई थी. नई दिल्ली में अधिकारियों ने कहा कि बीएसएफ ने बातचीत का अंतिम निष्कर्ष गृह मंत्रालय को बताया और स्थिति की रिपोर्ट भेजी. मंत्रालय की मंजूरी मिलने के बाद, बीएसएफ ने कागजातों पर हस्ताक्षर किये और रोहिंग्या समुदाय के 31 लोगों को सुबह 11 बजे पश्चिम त्रिपुरा जिला पुलिस के अमटोली थाने के अधिकारियों को सौंपा.
इस तरह, बांग्लादेशी समकक्षों के साथ बीएसएफ का गतिरोध खत्म हुआ. अमटोली थाने के प्रभारी प्रणब सेनगुप्ता ने कहा कि रोहिंग्या सदस्यों को चिकित्सकीय जांच के लिए त्रिपुरा मेडिकल कॉलेज भेजा गया था. सेनगुप्ता ने कहा, ‘‘चिकित्सकीय जांच के दौरान, वे पूरी तरह से स्वस्थ थे.’’ उन्होंने कहा कि बीएसएफ ने उन्हें भोजन, पानी और अन्य जरूरी सामान दिया.
अधिकारियों ने इससे पहले कहा था कि बीएसएफ ने पश्चिम त्रिपुरा जिले में अगरतला से करीब 15 किलोमीटर दूर रायरमुरा में उन्हें हिरासत में लिया था. हिरासत में लिये गये 31 रोहिंग्या में छह पुरुष, नौ महिला और 16 बच्चे शामिल थे. बीजीबी का दावा है कि वे भारत से आए थे जबकि बीएसएफ का कहना है कि वे भारत से नहीं आए थे क्योंकि भारत की तरफ कांटेदार बाड़ को पार करने के कोई संकेत नहीं मिले हैं.
इसबीच, सोमवार रात गुवाहाटी जाने वाली बस में सवार 30 रोहिंग्या को असम के चुरईबारी में नियमित जांच के दौरान पकड़ा गया. उत्तर त्रिपुरा जिले के पुलिस अधीक्षक भानुपद चक्रवर्ती ने यह जानकारी दी.
रोहिंग्या मुद्दे पर भारत का ताज़ा स्टैंड विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर हिरासत में लिए गए 31 रोहिंग्या मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे को सुलझाने के लिए भारत अपने पड़ोसियों के संपर्क में है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, ‘‘सरकार मूल रूप से म्यामार के रखाइन प्रांत के 31 लोगों की मौजूदगी से वाकिफ है.’’ उन्होंने कहा कि भारत संबंधित पड़ोसी देशों के साथ परस्पर विचार-विमर्श कर मामले को सुलझाने की कोशिश करेगा.
कुमार ने कहा, ‘‘उनके दस्तावेजों और दावों की जांच की जा रही है और सुरक्षा बलों द्वारा उन्हें रहने की जगह, भोजन और अन्य सामान मुहैया कराए जा रहे हैं.’’ सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक, इन 31 रोहिंग्या मुसलमानों के तीन दिनों तक सीमा पर फंसे रहने के बाद मंगलवार को बीएसएफ ने उन्हें त्रिपुरा पुलिस को सौंप दिया था.
कौन हैं रोहिंग्या रोहिंग्या का शुमार दुनिया के सबसे ज्यादा सताए हुए अल्पसंख्यक समुदाय में होता है. ये जातीय (एथनिक) समूह है जो बौद्ध बहुसंख्यक म्यांमार में आबाद है. म्यांमार में इनकी सबसे ज्यादा आबादी रखाइन प्रांत में है. हालांकि, रखाइन के अलावा अन्य 7 इलाकों में भी रोहिंग्या मुसलमान आबाद हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत ही कम है. म्यांमार में इस वक़्त करीब 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं. बीते 70 साल से रोहिंग्या मुसलमान अपने ही वतन में जुल्म-व-सितम सहने के साथ ही अजनबी की तरह जीने को मजबूर हैं, क्योंकि उनके पास नागरिकता नहीं है. इसकी वजह ये है कि इनका शुमार म्यांमार के 135 आधिकारिक जातीय समूह में नहीं होता है.
क्यों नागरिकता नहीं है? म्यांमार में 12वीं सदी से मुसलमान आबाद हैं, लेकिन रोहिंग्या का इतिहास शुरू होता है 190 साल पहले. 1824-1948 के बीच करीब 125 साल म्यांमार में ब्रिटिश हुकूमत रही. इस दौरान बड़ी संख्या में आज के भारत और बांग्लादेश से म्यांमार में मजदूर बुलाए गए. तब इस पलायन को अंदरूनी पलायन कहा गया, क्योंकि तब ब्रिटिश हुकूमत म्यांमार को भारत का एक हिस्सा मानती थी, हालांकि, इस पलायन से म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी नाराज़ थी.
जब 1948 में म्यांमार को आजादी मिली तो रोहिंग्या के लिए ये आज़ादी जुल्म की दास्तान के आगाज़ की शुरुआत बनी. आज़ादी के बाद म्यांमार की सरकार ने ब्रिटिश दौर के पलायन को गैर कानूनी माना और इस तरह रोहिंग्या को नागरिकता देने से इनकार कर दिया. आज़ादी के बाद म्यांमार ने यूनियन सिटिजनशिप एक्ट लाया, जिसमें उन जातीय समूहों की फेहरिस्त दी जिसे नागरिकता मिलेगी, लेकिन उसमें रोहिंग्या को शामिल नहीं किया गया. हालांकि, उस कानून के तहत जो परिवार बीते दो पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे थे, है उसे पहचान पत्र दिया गया. शुरू में उन्हें पहचान पत्र या नागरिकता भी मिली, संसद में भी चुने गए.
लेकिन 1982 से इनकी नागरिकता पूरी तरह से छीन ली गई है, जिसके बाद अब ये किसी देश के नागरिक नहीं हैं. लेकिन 1982 में पूरी तरह से नागरिकता छीने जाने से पहले 1962 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हुआ. तभी रोहिंग्या के लिए ज्यादा मुश्किलों की शुरुआत हुई. सभी नागरिकों के लिए नेशनल रजिस्ट्रेशन कार्ड लाजमी किया गया. तब रोहिंग्या को विदेशी पहचान पत्र दिया गया, शिक्षा और नौकरी के दरवाज़ करीब-करीब बंद कर दिए गए.
क्या था 1982 का सिटिजनशिप एक्ट? इस एक्ट में एक बार फिर 135 जातीय समूहों में रोहिंग्या को जगह नहीं दी गई. सिटिजनशिप के तीन स्तर रखे गए, लेकिन सबसे कमतर स्तर के सिटिजनशिप में भी रोहिंग्या के लिए जगह बनानी मुश्किल रही. रोहिंग्या के लिए पढ़ना, नौकरी, आवाजाही, शादी, मनचाहा धर्म को मानना और स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हो गईं.
रोहिंग्या का पलायन? 1948 में म्यांमार की आजादी मिलने के बाद भी रोहिंग्या अपने देश में आबाद रहे. उनके पलायन की शुरुआत 1970 के दशक में हुई. रखाइन में रोहिंग्या के खिलाफ कार्रवाई हुई, जिसके बाद बीते 40 साल से ज्यादा वक़्त में 10 लाख रोहिंग्या पलायन कर गए. तब रोहिंग्या पड़ोसी बांग्लादेश, मलेशिया और थाईलैंड की तरफ भागे.
जब म्यांमार से भाग रहे थे तो महिलाओं का रेप हुआ, अत्याचार हुए, घरों में आगज़नी हुई और कत्ल किए गए. 2012 से अब तक 1.68 लाख रोहिंग्या म्यांमार से भाग निकले हैं(ताज़ा पलायन छोड़कर). 2012-2015 के बीच 1.2 लाख रोहिंग्या जान हथेली पर रखकर नावों से बंगाल की खाड़ी और अंडमान द्वीपसमूह पार कर मलेशिया पहुंचे. सिर्फ इस साल के 25 अगस्त से अब तक म्यांमार से 4.10 लाख रोहिंग्या पलायन को मजबूर हुए हैं. भगाने के दौरान नाफ नदी में 46 लोगों की मौत हो गई. अब तक पलायन के दौरान 1000 जानें जा चुकी हैं.
1970 से कहां-कहां पलायन हुआ? 1970 से अब तक 10 लाख रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन हुआ. बांग्लादेश में 6.25 लाख, पाकिस्तान में 3.5 लाख, सउदी अरब में 2 लाख, मलेशिया में 1.5 लाख, भारत में 40 हज़ार, यूएई में 10 हज़ार, थाईलैंड में 5 हज़ार और इंडोनेशिया में 1 हज़ार लोगों का पलायन हुआ.
दुनिया की क्या प्रतिक्रिया है? दक्षिण अफ्रीकी समाजसेवी, केप टाउन के आर्चबिशप और नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित डेसमंड टूटू ने आन सान सू ची को चिट्ठी लिखी. मलाला यूसुफज़ई ने भी सू ची से जुल्म के खिलाफ खड़े होने की अपील की. एरीजोना के सीनेटर जॉन मैककाइन ने शांति की अपील की.
भारत में कितने हैं रोहिंग्या?
भारत में 40 हज़ार रोहिंग्या मुसलमान हैं. जिनमें 14 हज़ार रोहिंग्या UNHCR के कार्ड धारक हैं. भारत सरकार ने उन्हें वापस भेजने की बात कही है. अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
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