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सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती से पहले बंगाल की राजनीति में BJP के खिलाफ नए समीकरण के संकेत, जानें पूरा मामला

पिछले कई महीनों से बंगाल चुनाव की रणनीति को लेकर सियासी गलियारों में हलचल है. एक तरफ जहां बीजेपी माहौल बनाने में जुटी है, वहीं राज्य की विपक्षी पार्टियां भी जोर-आजमाइश में लगी हुई हैं.

कोलकाताः शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में पिछले दिनों लिखा गया था कि बीजेपी को हराने के लिए सभी विपक्षी पार्टियों को एकसाथ आना जरूरी है. सवाल उठ रहा है कि क्या बंगाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम को सामने रखकर यही प्रयास शुरू हो रहा है? क्या "पहले राम बाद में वाम" वाले व्हिस्पर कैंपेन से सीपीएम दूर जा रही है? ये सभी सवाल उठने की वजह है एक कार्यक्रम.

ईश्वरचंद्र विद्यासागर और रविन्द्रनाथ ठाकुर के नाम पर बंगाल की राजनीति इससे पहले गरम हो चुकी है. इस बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर भी बंगाल की राजनीति आगे बढ़ सकती है. इसका अंदाजा पहले नहीं था. नेताजी के 125वीं जयंती समारोह का पूरे साल पालन करने के लिए एक कमेटी बनाई गई है. इसमें लेफ्ट (फॉरवर्ड ब्लॉक व अन्य लेफ्ट पार्टी), तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं को जगह मिली है. इस कमेटी में बीजेपी के किसी भी नेता को शामिल नहीं किया गया है.

मामला साफ है कि बंगाल में चुनाव से पहले ये सभी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने का प्रयास कर रही हैं. वोट में भले ही तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम के गठबंधन की कोई संभावना ना हो, लेकिन ये माना जा रहा है कि चुनाव से पहले ये सभी पार्टी किसी आपसी समीकरण पर ज़रूर काम कर सकती हैं.फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी की स्थापना सुभाष चंद्र बोस ने की थी.

महाबोधि सोसाइटी हॉल में हुए एक प्रोग्राम में तृणमूल कांग्रेस के महासचिव और राज्य के मंत्री पार्थो चटर्जी के साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अब्दुल मन्नान , लेफ्ट के नेता सूजन चक्रवर्ती और नेताजी के द्वारा गठन किये गए पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक के कई नेता मौजूद थे. बीजेपी के किसी नेता को इसमें बुलाया नहीं गया. फॉरवर्ड ब्लॉक की तरफ से ही इस प्रोग्राम में इन सभी पार्टियों के नेताओं को बुलाया गया था. हालांकि जिस अंदाज के साथ तृणमूल कांग्रेस इसमें शामिल हो रही है, उससे ऐसा लग रहा है कि टीएमसी 2021 के विधानसभा चुनावों में सीपीएम को प्रतिद्वंदी नहीं मान रही है.

हालांकि सीपीएम में निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं में कन्फ्यूजन जरूर हो सकता है. पिछले कई सालों से टीएमसी के सत्ता में आने के बाद जमीनी स्तर पर लेफ्ट के कार्यकर्ता अलग-अलग जिलों में हमलों का शिकार हुए है. वहीं सीपीएम के बड़े नेता भी इस लाइन पर व्हिस्पर कैंपेन करते रहे कि " पहले राम बाद में वाम". पहले बंगाल की राजनीति में पहले जैसे-तैसे तृणमूल को हटाओ और बाद में सीपीएम फिर से सत्ता में आएगी जैसे कैंपेन होते रहे हैं. लेकिन अब इस कार्यक्रम के बाद बंगाल की राजनीति के समीकरण कुछ अलग हो सकते हैं.

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप भट्टाचार्य का कहना है कि बीजेपी ने कभी स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया है और इसी वजह से इस कमिटी में बीजेपी को जगह नहीं मिली है. वहीं टीएमसी के राज्यसभा सांसद शांतनु सेन ने कहा कि बीजेपी गांधीवाद और सुभाषवाद की विरोधी है. सुभाष चंद्र बोस के आदर्शों पर सबसे ज़्यादा काम करने वाली पार्टी टीएमसी है. इधर बंगाल बीजेपी के उपाध्यक्ष प्रताप बनर्जी ने कहा कि एक समय था जब नेताजी के बारे में भी सीपीएम ने अपशब्दों का इस्तेमाल किया था, लेकिन अब ममता बनर्जी के साथ हाथ मिला रही है.

 
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