Farm Laws Repeal: क्यों हो रहा है तीन कृषि कानूनों का विरोध, क्या है आंदोलन की वजह?
Farm Laws Repeal: पीएम नरेंद्र मोदी ने तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया. यहां यह समझना जरूरी है कि आखिर इन कानूनों में ऐसा क्या था, जिसका इतना विरोध हुआ और इसे वापस लेना पड़ा.
Farm Laws Repeal: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पर्व और कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया. उन्होंने किसानों से अब आंदोलन खत्म करने की भी अपील की. इस ऐलान के बाद अब 1 साल से भी लंबे समय से चल रहे किसानों के आंदोलन के खत्म होने का रास्ता साफ हो गया है. लेकिन यहां यह समझना जरूरी है कि आखिर इन कानूनों में ऐसा क्या था, जिसका इतना विरोध हुआ और सरकार को इसे वापस लेना पड़ा. आइए विस्तार से जानते हैं तीनों कृषि कानूनों के बारे में.
कब पास हुए ये तीनों कानून?
करीब 1 साल से जिन तीन कृषि कानूनों का विरोध हो रहा था, वे तीनों कानून 17 सितंबर 2020 को संसद में पास हुए थे. इन तीनों कानूनों में पहला था कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020. इसमें किसानों को मनचाही जगह पर अपनी फसल बेचने की सुविधा दी गई थी. दूसरा कानून था, मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक सशक्तिकरण एवं संरक्षण अनुबंध विधेयक 2020. इसमें देशभर में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था की गई थी. तीसरा कानून था, आवश्यक वस्तु संशोधन बिल. इसमें खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं से स्टॉक लिमिट को हटाया गया था.
ये थे तीनों कानून और इसलिए हो रहा था विरोध
- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 में कहा गया है कि किसान अब एपीएमसी मंडियों के बाहर किसी को भी अनाज बेच सकते हैं. इस पर किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लगेगा, जबकि एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क और अन्य उपकर हैं. इसके चलते डर है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क के बिजनेस होगा तो कोई मंडी आना नहीं चाहेगा. किसानों का कहना है कि नए कानून के बाद सरकार एमएसपी पर फसलों की खरीद बंद कर देगी. दरअसल, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 में इस संबंध में कोई जिक्र नहीं है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे के भाव पर नहीं होगी. इससे राज्य को राजस्व का नुकसान होगा, क्योंकि किसान फसल मंडियों के बाहर बेचेंगे तो उस पर मंडी फीस नहीं मिलेगी. इसके अलावा खरीद-फरोख्त मंडी से बाहर गया तो कमीशन एजेंट बेरोजगार हो जाएंगे.
- दूसरे कानून मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक सशक्तिकरण एवं संरक्षण अनुबंध विधेयक 2020 में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का प्रावधान किया गया था. इसमें कृषि व्यापार करने वाली कंपनियों और विक्रेता के साथ कॉन्ट्रैक्ट करके पहले से तय एक दाम पर भविष्य में अपनी फसल बेचने की बात कही गई थी. जिन किसानों के पास 5 हेक्टेयर से कम जमीन है, उन्हें कॉन्ट्रैक्ट से लाभ देने की बात कही गई थी. अनुबंध के बाद किसानों को तकनीकी सहायता और ऋण की सुविधा देने की भी बात थी. इसके अलावा इसमें और भी कुछ प्रावधान थे. किसानों का विरोध करते हुए ये कहना था कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के दौरान किसान खरीदने वाले से बिक्री को लेकर चर्चा नहीं कर पाएगा. बड़ी कंपनियां छोटे किसानों से खरीदारी नहीं करेंगी. ऐसे में उन्हें नुकसान होगा. अगर सौदे के दौरान कोई विवाद होता है तो बड़ी कंपनियों ज्यादा मजबूत रहेंगी. किसानों की कोई नहीं सुनेगा. इसके अलावा 5 हेक्टेयर से कम जमीन वाले मामले में किसानों की भीड़ अधिक होने से उनसे कोई सौदा नहीं करेगा.
- तीसरा कानून था आवश्यक वस्तु (संशोधन). इसमें आलू, प्याज, खाद्य तेल, तिलहन और कुछ अन्य कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तुओं की कैटेगरी से हटाने का प्रावधान किया गया था. इसका मतलब ये है कि इन्हें जितना चाहे स्टॉक किया जा सकता था. कृषि क्षेत्र में निजी कंपनियों के आने के लिए कानून में छूट दी गई थी. इसमें कोल्ड स्टोरेज और फूड सप्लाई चेन के आधुनिकीकरण की भी बात थी. किसान इस कानून का विरोध ये कहकर कर रहे थे कि क्योंकि इसके तहत कोई कंपनी सामान को कितना भी स्टॉक कर सकती है. ऐसे में असाधारण परिस्थितियों में रेट में जबरदस्त वृद्धि हो सकती है. इसे नियंत्रित करना मुश्किल होगा. क्योंकि कंपनियां बिना सीमा के भंडारण कर सकती हैं, ऐसें में वे आगे किसानों को अपने हिसाब से रेट लगाकर उतने पर ही सामान बेचने के लिए मजबूर करेंगी.
- इसके अलावा किसान संगठन ये कहकर भी इन कानूनों का विरोध कर रहे थे कि इन तीनों कानूनों से कृषि क्षेत्र पूरी तरह से पूंजीपतियों व कॉरपोरेट घरानों का होकर रह जाएगा.
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