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क्या बीजेपी की इस चाल से लोकसभा से सस्पेंड हो जाएंगे राहुल गांधी?

राहुल का यह आरोप कि जब भी विपक्ष का कोई सांसद बोलता है तो उनका माइक बंद कर दिया जाता है.  ऐसे में यह भी विशेषाधिकार समिति मामला हो सकता है क्योंकि इसे अध्यक्ष के अपमान के रूप में देखा जा सकता है.

राहुल गांधी ने ब्रिटेन की पार्लियामेंट में एक स्पीच दी थी. इसके बाद बीजेपी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी देश के लोकतंत्र का अपमान किया है. हालांकि कांग्रेस और राहुल गांधी इन आरोपों को खारिज करते आए हैं. अब बीजेपी ने लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला से एक विशेष समिति का गठन करने को कहा है.

ये समिति इस बात का पता लगाएगी कि क्या सच में राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान देश की लोकंतत्र का अपमान किया. अगर ऐसा सच में हुआ तो राहुल गांधी को संसद से निलंबित किया जा सकता है.

राहुल गांधी ने क्या कहा और बीजेपी क्यों भड़की ?

28 फरवरी को राहुल गांधी ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में कहा था कि हर कोई जानता है कि भारतीय लोकतंत्र पर हमले किए जा रहे हैं. संसद, प्रेस, न्यायपालिका ... सभी मजबूर हो गए हैं. 

6 मार्च को एक चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने चैथम हाउस में ये कहा था कि ये एक भारतीय समस्या है कि सबको लगता है कि समाधान अंदर से आएगा... लेकिन लोकतंत्र का मतलब ये होता है कि लोगों की सहमती से हर काम हो... ऐसे में ये लोकतंत्र का पतन होने जैसा है. 

भाजपा ने राहुल गांधी के इस बयान को अपमानजनक बताया, भाजपा का ये कहना है कि ये बयान कांग्रेस की सोची-समझी साजिश है. एक रणनीति के तहत कांग्रेस देश के बाहर भाजपा को बदनाम करने की कोशिश कर रही है. 

भाजपा राहुल गांधी के मुद्दे को बहुत गंभीर मान रही है. बीजेपी का कहना कि हम चाहते हैं कि इसे पूरी संवेदनशीलता से लिया जाए.  केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ये कह चुके हैं कि यह मामला 'विशेषाधिकार का हनन' है और हम इससे निबटने के लिए  'सभी उपलब्ध साधनों, नियमों , कानूनों और परंपराओं' का इस्तेमाल करेंगे.

रिजिजू ने ये कहा था कि, 'राष्ट्र से जुड़ी कोई भी चीज सभी के लिए चिंता का विषय है. ऐसे में हम ये परवाह नहीं करेंगे कि कांग्रेस या उसका नेतृत्व  मौजूदा वक्त में किन हालातों से गुजर रही है, अगर कोई भी पार्टी देश का अपमान करती है तो हम चुप नहीं रह सकते हैं.

रिजिजू ने ये तर्क दिया कि मौजूदा समय में भारत विरोधी ताकतों की भाषा एक ही है. वे एक ही लय में बोलते हैं. इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल राहुल गांधी ने भी किया है.  यह उन सभी की भाषा है जो भारत के खिलाफ काम करते हैं.

किरण रिजिजू ने ये भी कहा कि राहुल ने जो कहा उससे देश को और उस सदन को नुकसान पहुंचा है जिसके वह सदस्य हैं... कुछ लोगों को देश की प्रतिष्ठा की चिंता नहीं है.  ये जरूरी है कि हम ऐसे लोगों के खिलाफ कद उठाएं अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो देश हमें माफ नहीं करेगा.

उन्होंने ये कहा कि देश राहुल गांधी को समर्थन नहीं देता ये हमारी गलती नहीं है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो देश का अपमान बाहर मुल्कों में करें. राहुल ने जो भी कहा है उससे सिर्फ भाजपा नहीं पूरा देश चिंतित है. 

रिजिजू नें राहुल गांधी से दोनों सदनों में माफी मांगने की बीजेपी की मांग को भी सही ठहराया. लेकिन राहुल गांधी का ये कहना है कि उन्होंने भारत विरोधी कोई बयान नहीं दिया है, और अगर अनुमति दी गई तो वह संसद में बोलेंगे. 

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने गांधी के अनैतिक आचरण को लेकर सदन के अध्यक्ष को पत्र लिखा. दुबे ने लोकसभा में रूल्स ऑफ प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस के नियम 223 के तहत नोटिस देते हुए ब्रिटेन में  राहुल गांधी के बयान को  'भारतीय संसद, लोकतंत्र, न्यायपालिका,का विदेशी धरती पर 'अपमानजनक, बताया .

क्या राहुल ने जो कहा वह संसद के विशेषाधिकार का हनन है?

संविधान विशेषज्ञ सुभाष सी कश्यप जो सातवीं, आठवीं और नौवीं लोकसभा के महासचिव थे, ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ये सदन को तय करना है कि क्या राहुल गांधी ने विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है या उन्होंने सदन की अवमानना ​​​​की है. सदन को इस मामले में पूरी तरह से फैसला लेने का अधिकार है. 

राहुल का यह आरोप कि जब भी विपक्ष का कोई सांसद बोलता है तो उनका माइक बंद कर दिया जाता है. ऐसे में यह भी विशेषाधिकार समिति मामला हो सकता है, क्योंकि इसे अध्यक्ष के अपमान के रूप में देखा जा सकता है. राहुल का ये कहना है कि भारत में सच में लोकतंत्र पर हमला हो रहा है और ये बयान संसद के विशेषाधिकार का हनन नहीं है. 

लोकसभा के एक पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सदन ही ये तय करेगा कि "अवमानना" कब मानी जाएगी.

विशेष समिति गठित करने का कानूनी आधार क्या है?

सुभाष सी कश्यप ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हमेशा ही विशेष समिति गठित करने का कानूनी आधार सदन ही तय करता है.  इसके लिए “सदन एक समिति का गठन कर सकता है और इसके लिए शर्तें तय कर सकता है. यानी ये पूरी तरह से सदन की शक्ति के ऊपर ही निर्भर करता है . 

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक बकौल कशयप "ऐसी समिति की स्थापना और उसके संदर्भ की शर्तों के लिए एक प्रस्ताव लाकर एक विशेष समिति का गठन किया जा सकता है. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, " सदन के निर्णय के बाद किसी को भी दंडित किए जाने से पहले अपराध को परिभाषित करना जरूरी होता है".

उन्होंने कहा कि ये पहली बार नहीं है. 2008 में भी नोट के बदले वोट घोटाले की जांच के लिए जिस तरह की समिति गठित की गई थी, उसी तरह की एक समिति का गठन जांच करने और सांसद को दंडित करने के लिए किया जा सकता है. 

लोकसभा की आचार समिति में "सदस्यों के नैतिक और नैतिक आचरण" को देखने के लिए एक तंत्र पहले से मौजूद है. हालांकि, भाजपा राहुल गांधी के केस को पहले हुए मामलों की तरह नहीं देख रही है. भाजपा ये चाहती है कि राहुल गांधी का मामला 2005 में हुए कैश-फॉर-क्वेरी स्कैंडल की जांच की तरह देखा जाए. यानी भाजपा इस मामले में  एक विशेष समिति का गठन करवाना चाहती है. 

2005 की समिति का गठन क्यों किया गया और इसके नतीजे क्या थे? 

12 दिसंबर, 2005 को, एक निजी टीवी चैनल ने ऑनलाइन पोर्टल कोबरापोस्ट द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित किया. इसमें 10 लोकसभा और एक राज्यसभा सांसद को संसद में सवाल पूछने के बदले में नकद स्वीकार करने का दावा किया गया था. 11 आरोपी सांसदों में से छह भाजपा के, तीन बसपा के और एक-एक राजद और कांग्रेस के थे. 

सांसदों की इस कथित कार्रवाई को अनैतिक और भ्रष्टाचार के रूप में उजागर किया गया था. इसकी जांच के लिए लोकसभा ने पांच सदस्यीय समिती का गठन किया था. इसमें कांग्रेस सांसद और तत्कालीन संसदीय मामलों के मंत्रालय के मंत्री पवन कुमार बंसल के साथ वीके मल्होत्रा ​​​​(बीजेपी), राम गोपाल यादव ( समाजवादी पार्टी ), मोहम्मद सलीम (सीपीआई-एम) और सी कुप्पुसामी (डीएमके) सदस्य के रूप में शामिल थे. 

स्पेशल कमेटी में क्या हुआ था?

लोकसभा में पेश की गई 38 पन्नों की रिपोर्ट में समिति ने कहा था कि 10 सांसदों के खिलाफ आरोप सिद्ध हो चुके हैं. यह बताया गया कि 1951 की अस्थायी संसद में जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव पेश किया था. इस प्रस्ताव में संसद में किसी भी मुद्दे की वकालत करने के बदले में धन स्वीकार करने वाले किसी भी सदस्य के प्रति पूरी तरह से घृणा व्यक्त की जाएगी.  24 दिसंबर, 2005 को संसद ने 11 सांसदों को निष्कासित करने के लिए मतदान किया.

अपने छह सांसदों पर इस तरह की कार्रवाई के बाद भाजपा ने जोरदार विरोध किया. वीके मल्होत्रा ​​ने एक असहमति नोट में कहा था "मैं एक मिसाल कायम करने के लिए एक पक्ष का समर्थन नहीं कर रहा हूं, लेकिन किसी सदस्य को सदन से निष्कासित करने के लिए कोई उचित प्रक्रिया ना अपनाए जाने के खिलाफ हूं." मल्होत्रा ​​​​ने तर्क दिया कि "केवल एक अदालत ही किसी के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई कर सकती है".

पैनल की रिपोर्ट पर पांच घंटे तक चली बहस के बाद बीजेपी सदस्यों ने मतदान से पहले वॉकआउट कर दिया था.  तत्कालीन विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने निष्कासन की तुलना "मृत्युदंड" से की थी.  बहस के दौरान, कुछ सदस्यों ने ये कहा था कि सदस्यों का निष्कासन आने वाले समय में  एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है.

राहुल मामले में अब क्या होगा?

जानकारों ये कहना है कि भाजपा के पास अभी पूर्ण बहूमत है. ऐस में अगर वाकई एक समिति का गठन किया जाएगा ये राहुल के खिलाफ ही जाएगा. समिति आमतौर पर एक महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है. एक महीने के दौरान वह रोज बैठेगी और राहुल गांधी को सफाई देने के लिए बुलाएगी. 

यह साफ नहीं कहा जा सकता कि भाजपा वास्तव में राहुल गांधी को निलंबित करवाना चाहती है या नहीं. कुछ जानकारों का मानना ​​है कि पार्टी केवल उन पर दबाव बनाए रखना चाहती है.  

जानकर राहुल के निलंबित ना करने पर ये तर्क देते हैं कि सत्ताधारी पार्टी के कुछ सांसदों को डर है कि अगर राहुल को निलंबित किया जाता है तो उन्हें जनता की सहानुभूति और राजनीतिक आकर्षण हासिल हो सकता है. एक अवधि के लिए राहुल के निलंबन का मतलब होगा कि वायनाड से उस अवधि के लिए सदन में कोई प्रतिनिधि नहीं होगा. 

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