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Woman Entrepreneur: 2 रुपये दिहाड़ी का काम करने वाली महिला कैसे बनी हजारों करोड़ की मालकिन, जानिए एक महिला के फर्श से अर्श तक का सफर
Kalpana Saroj: कल्पना सरोज बताती हैं कि छोटी उम्र में ही उनकी शादी हो गई. उनके पिता पुलिस विभाग में कांस्टेबल का काम करते थे. शादी किसके साथ हो रही है किस घर में जाना है कल्पना को कुछ नहीं पता था.
![Woman Entrepreneur: 2 रुपये दिहाड़ी का काम करने वाली महिला कैसे बनी हजारों करोड़ की मालकिन, जानिए एक महिला के फर्श से अर्श तक का सफर Padmashri Awardee Kalpana Saroj Woman Entrepreneur became millionaire by doing a daily wage work of Rs 2, runs many companies ANN Woman Entrepreneur: 2 रुपये दिहाड़ी का काम करने वाली महिला कैसे बनी हजारों करोड़ की मालकिन, जानिए एक महिला के फर्श से अर्श तक का सफर](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2021/11/22/2468399fb3491ca5f91a6f0b47ca04d7_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Woman Entrepreneur: कहते हैं अगर मन में कुछ कर गुजरने की चाहत हो, आपके अंदर हिम्मत हो और आत्मविश्वास तो आप महिला होते हुए भी बड़ा से बड़ा काम कर सकती हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है महाराष्ट्र के विदर्भ की रहने वाली कल्पना सरोज की जो अब मुम्बई में कई कंपनियों की मालकिन बन चुकी है. कल्पना सरोज बताती हैं कि छोटी उम्र में ही उनकी शादी हो गई. उनके पिता पुलिस विभाग में पुलिस कांस्टेबल का काम करते थे. शादी किसके साथ हो रही है किस घर में जाना है कल्पना को कुछ नहीं पता था. बस मुंबई का लड़का है इसलिए उनकी शादी हुई और उन्हें शादी करके मुंबई भेज दिया गया लेकिन जब वह यहां आई तो उन्हें रहना पड़ा एक झोपड़ पट्टी में. उनके साथ घरेलू हिंसा होना आम बात हो गई.
ससुराल से आकर मायके भी रास नहीं आया
कल्पना सरोज बताती हैं जब उनके पिता एक बार मुंबई आए और उन्होंने अपनी बेटी की ऐसी हालत देखी तो वह उसे अपने साथ लेकर चले गए. ससुराल से आकर अपने मायके में रहना कल्पना को रास नहीं आ रहा था और समाज के ताने उसे परेशान कर रहे थे जिससे परेशान होकर कल्पना बताती हैं कि वह कई बार आत्महत्या करने के भी प्रयास कर चुकी थी लेकिन उनके पिता ने उन्हें बचा लिया. कल्पना को समझ में नहीं आ रहा था कि वह आखिर अपनी जिंदगी में करें क्या.
नौकरी की तलाश में फिर मुंबई पहुंचीं
कल्पना सरोज ने विदर्भ से मुंबई आने का एक बार फिर प्लान बनाया. इस बार वह अपने ससुराल नहीं बल्कि नौकरी की तलाश में मुंबई आना चाह रही थी घरवालों के मना करने के बावजूद वह मुंबई आई. एक रिश्तेदार के यहां रहने का सहारा मिला और फिर कल्पना ने एक होजरी कंपनी में काम शुरू किया, सिलाई का काम शुरू किया तो थोड़े पैसे इकट्ठा हुए तो कल्पना और भी कुछ करने की चाहत रख रही थी. इस बीच पिता की नौकरी में कुछ दिक्कत आने की वजह से उन्होंने अपने बहन और माता-पिता को भी गांव से मुंबई बुला लिया. मुंबई से दूर कल्याण में वह अपना एक किराए के घर में रहना शुरू किया और फिर उनकी कल्पना शक्ति की वजह से उन्होंने अपना खुद का कुछ करने का निश्चय बनाया .
बुटीक का काम शुरू किया
कल्पना सरोज बताती हैं कि उन्होंने एक बुटीक सेंटर खोलने की योजना बनाई. 50000 का सरकारी लोन भी लिया और फिर बुटीक का काम शुरू हुआ. लेकिन उसी दौरान उनकी बहन की तबीयत ऐसी खराब हुई कि सिर्फ 2000 रुपए के लिए वह अपनी बहन का इलाज नहीं करा सकी और बहन की मौत हो गई. उसी दिन से कल्पना ने यह निश्चय किया कि, जिस पैसे की कमी की वजह से उनकी बहन का इलाज नही कर सकी उसी पैसे को वो अपने बस में करेंगी. उसी दिन के बाद कल्पना ने जो उड़ान भरी आज वह हजारों करोड़ की मालिक बन कर बैठी हैं
बिल्डर के तौर पर पहचान
कल्पना बताती हैं कि उन्होंने अपने बुटीक का काम शुरू किया वह काम अच्छा चला और फिर धीरे-धीरे वह प्रॉपर्टी के धंधे में जोर आजमाइश करने लगी. उन्होंने ये ठाना की वह अपने को इस मुंबई शहर में बिल्डर के तौर पर पहचान बनाएगी. उन्होंने कुछ मकान बनाने का प्लान बनाया कुछ लिटिगेशन की जमीन को उन्होंने कानूनी तरीके से जीता और वहां पर बिल्डिंग खड़ी की. इस दौरान कल्पना बताती हैं कि उनके सामने बहुत सारे दुश्मन खड़े हो गए उनको मारने तक की धमकियां आने लगी जिसकी शिकायत उन्होंने पुलिस कमिश्नर से की और उनकी सुरक्षा के लिए 1 दिन के अंदर पुलिस विभाग ने उनके नाम का रिवाल्वर लाइसेंस जारी किया और कल्पना अपनी सुरक्षा करने के लिए खुद तैयार हो गई.
कमानी ट्यूब लिमिटेड कंपनी का सफर
कल्पना ने बताया कि उसी दौरान उन्होंने एक संगठन का भी निर्माण किया जिसमें उन्होंने नए युवा युवाओं को जोड़ना शुरू किया इस बीच कल्पना के काम से उनकी काफी पहचान बन चुकी थी. लोग उन्हें एक हिम्मती महिला के नाम से जानने लगे थे तभी उनके पास कुछ ऐसे वर्कर आए जो मुंबई की कमानी ट्यूब लिमिटेड नामक कंपनी में काम करते थे और यह कंपनी पूरी तरह से डूब चुकी थी. उन्होंने कल्पना से मदद मांगी कि यह कंपनी कैसे खड़ी हो सकती है. इसके लिए कल्पना ने उस कंपनी के तमाम कर्मचारी और यूनियन से बात की. अदालत का दरवाजा खटखटाया और इस कंपनी से जुड़े उन तमाम कर्मचारियों के मदद के लिए हिम्मत जुटाई. कल्पना बताती हैं कि कमानी ट्यूब कंपनी में उस वक्त करीब 100 से ज्यादा लिटिगेशन के मामले थे. बहुत सारा कंपनी के ऊपर कर्ज था जिसको खत्म करने के बाद ही आगे कुछ किया जा सकता था .
कल्पना ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और कुछ शर्तों के साथ अदालत ने कंपनी को फिर से खड़ा करने के लिए उन्हें कंपनी का डायरेक्टर बनाया और कल्पना को इस कंपनी को खड़ी करने की जिम्मेदारी थी. कल्पना बताती हैं कि कड़ी मेहनत और तमाम चैलेंज के बाद कई सालों तक कंपनी के कर्ज और लिटिगेशन को सुलझाने में लगी रही आखिरकार 2011 में कंपनी के ऊपर से सारे कर्ज और लिटिगेशन खत्म हो गए और कल्पना बन गई कमानी ट्यूब लिमिटेड की डायरेक्टर और वहीं से शुरू हुआ कल्पना सरोज के अच्छे दिनों वाला सफर.
कल्पना सरोज की मेहनत और लगन को सरकार और समाज ने भी सराहा. कल्पना को तमाम देशों और विदेशों से अवार्ड मिल चुके हैं. भारत सरकार से भी उन्हें पद्मश्री मिल चुका है. आज कल्पना सरोज उन तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जिनके अंदर अगर आत्मविश्वास है हिम्मत है तो वह जिंदगी में महिला होते हुए भी बड़े से बड़े मुकाम को हासिल कर सकती हैं.
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