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Mahatma Phule Jayanti 2023: लड़कियों के लिए खोला पहला स्कूल, पत्नी को पढ़ाकर टीचर बनाया, ऐसे थे महात्मा ज्योतिबा फुले, पढ़ें जयंती विशेष
Mahatma Jyotiba Phule Birth Anniversary: देश हर वर्ष 11 अप्रैल को महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती मनाता है. जयंती विशेष में आइए जानते हैं महात्मा फुले की कहानी और उनके विचार.
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Mahatma Jyotiba Phule Jayanti Special: महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले की जयंती हर साल 11 अप्रैल को मनाई जाती है. 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा में एक माली परिवार उनका जन्म हुआ था. परिवार पुणे आकर फूलों से जुड़ा व्यवसाय करने लगा था, इसलिए उनके लिए 'फुले' सरनेम का इस्तेमाल किया जाने लगा.
ज्योतिराव फुले को 'ज्योतिबा फुले' के नाम से भी जाना जाता है. समाज के दबे-कुचले, वंचित और अनुसूचित जाति के तबके लिए उनके उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए 1888 में मुंबई में एक विशाल जनसभा में उस समय के एक प्रख्यात समाजसेवी राव बहादुर विट्ठलराव कृष्णाजी वान्देकर ने उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी थी. तब से उनके नाम के आगे महात्मा जोड़ा जाने लगा.
भारत में महात्मा फुले को बेहद सम्मान के साथ एक समाज सुधारक, विचारक, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है. 24 सितंबर 1873 में महात्मा ज्योतिबा फुले ने 'सत्य शोधक समाज' नामक एक संस्था की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य नीची समझी जाने वाली और अस्पृश्य जातियों के उत्थान के लिए काम करना था. बाबा साहेब भीमराव अंबेडर भी महात्मा फुले के विचारों से प्रभावित थे.
ऐसा रहा ज्योतिबा फुले का जीवन
ज्योतिबा एक वर्ष के ही हुए थे जब उनकी मां का निधन हो गया था. उनका पालन-पोषण एक बायी की देखरेख में हुआ. उनकी शुरुआती शिक्षा मराठी में हुई. परिस्थितियों के चलते पढ़ाई में गैप आ गया. इसके बाद 21 की उम्र में उन्होंने इंग्लिश मीडियम से सातवीं की पढ़ाई पूरी की. ज्योतिबा फुले की शादी 1840 में सावित्री बाई से हुई थी.
1848 में ज्योतिबा फुले अपने एक ब्राह्मण दोस्त की शादी में गए थे, जहां कुछ लोगों ने उनकी जाति को लेकर उनका अपमान किया. इस बर्ताव को देखते हुए ज्योतिबा फुले ने सामाज से असमानता को उखाड़ फेंकने के लिए कसम खा ली थी.
महात्मा फुले का पूरा जीवन ही समाजिक कार्यों में बीता. छुआछूत और भेदभाव पर प्रहार करने के साथ ही उन्होंने किसानों और मजदूरों के अधिकार के लिए भी काम किए. महिलाओं के उत्थान के लिए उन्होंने प्रमुखता से कार्य किए. वह लड़कियों को शिक्षित किए जाने, बाल-विवाह रोकने और विधवा महिलाओं की शादी कराने के पक्षधर थे.
लड़कियों के लिए खोला पहला स्कूल, पत्नी को बनाया टीचर
ज्योतिबा फुले का मानना था कि समाज और देश तभी आगे बढ़ सकता है जब महिलाएं भी शिक्षित हों. जब देश में बच्चियों और महिलाओं की शिक्षा के लिए किसी विद्यालय की व्यवस्था नहीं थी, तब 1848 में उन्होंने महाराष्ट्र के पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोल दिया. विद्यालय तो खुल गया लेकिन समस्या यह थी कि उसमें पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका उपलब्ध नहीं थी. फुले ने तब अपनी पत्नी सावित्री बाई को स्वयं पढ़ाया और उन्हें शिक्षक बनाया. इसके बाद सावित्री बाई लड़कियों के लिए शुरू किए गए स्कूल में पढ़ाने लगीं.
समाज के कुछ लोगों ने उनके इस काम में बाधा भी डाली. उनके परिवार पर दबाव डाला गया. नतीजा यह हुआ कि ज्योतिबा फुले को परिवार छोड़ना पड़ा. इससे लड़कियों के लिए शुरू किए गए पढ़ाई-लिखाई के काम में कुछ समय के लिए व्यवधान आया लेकिन जल्द ही फुले दंपति ने सभी बाधाओं को पार करते हुए लड़कियों के तीन स्कूल और खोल दिए.
ज्योतिबा फुले के हर काम में उनकी पत्नी पूरा सहयोग करती थीं, इसलिए वह भी एक समाजसेवी कहलाईं. महिलाओं की शिक्षा के लिए किए गए उनके कार्यों को देखते हुए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने 1883 में ज्योतिबा फुले को सम्मानित भी किया था. महात्मा फुले के विचार समाज के एक बड़े वर्ग को प्रेरित और आंदोलित करते आए हैं.
महात्मा ज्योतिबा फुले के विचार
- ''भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक नहीं होगा, जब तक खान-पान और वैवाहिक संबंधों पर जातीय बंधन बने रहेंगे. सभी जीवों में मनुष्य श्रेष्ठ है और सभी मनुष्यों में नारी श्रेष्ठ है. स्त्री और पुरुष जन्म से ही स्वतंत्र है.''
- ''विद्या बिन गई मति, मति बिन गई गति, गति बिन गई नीति, नीति बिन गया वित्त, वित्त बिन चरमराए शूद्र, एक अविद्या ने किए कितने अनर्थ.''
- ''समाज के विकास के लिए जरूरी है इसके सभी सदस्यों को स्वतंत्रता और समानता का अधिकार मिले और उनके बीच भाईचारा हो.''
- ''स्त्री हो या पुरुष, जन्म से सभी समान होते हैं. उनके साथ किसी प्रकार के भेदभाव का व्यवहार मानवता और नैतिकता के खिलाफ है.''
- ''धर्म वह है जो समाज के हित और कल्याण के लिए है. जो धर्म समाज के हित में नहीं है, वह धर्म नहीं है.''
- ''शिक्षित समाज ही उचित और अनुचित में भेद कर सकता है, समाज में उचित और अनुचित का भेद होना चाहिए.''
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