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Mahatma Gandhi Jayanti : 'अगर मैं स्त्री पैदा होता...', जब महात्मा गांधी ने बाल विवाह, दहेज प्रथा और छुआछूत का किया था विरोध

Mahatma Gandhi Birthday: महात्मा गांधी ने बाल विवाह, दहेज प्रथा और छुआ छूत का न केवल घोर विरोध किया बल्कि इसे ख़त्म करने के लिए पूरा ज़ोर लगाया.

Happy Gandhi Jayanti 2023 : इस साल हम महात्मा गांधी की 154वीं जयंती मना रहे हैं. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया भर में अगर किसी एक शख्स पर सबसे अधिक किताबें लिखी गई हैं और दुनिया के हर देश में लिखी गई हैं तो वह महात्मा गांधी हैं. एक ऐसे पुरोधा जिन्होंने पूरी दुनिया में सत्य और अहिंसा के सर्वोच्च मानवीय मूल्यों के साथ ही तमाम मानवीय विषमताओं के बावजूद समता का नजरिया दिया है.

लेकिन उसी गांधी के देश में आजादी के अमृत वर्ष में भी अहिंसा के पुजारी के कई सपने अभी भी अधूरे हैं. इनमें महिलाओं को सभी बंधनों से मुक्त करना, दहेज जैसी  बुराई का खात्मा और छुआछूत का अंत शामिल है. आइए आज हम आपको बताते हैं कि छुआछूत, बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए महात्मा गांधी ने क्या कदम उठाए.

छुआछूत पर बापू ने क्या किया 
 भारत जब अंग्रेजों की गुलामी की बेड़िया तोड़कर आजाद होने की लड़ाई लड़ रहा था, तब समाज में सबसे बड़ी बाधा छुआछूत की थी. मैला ढोने वाले,सफाई करने वाले,  दलित महा दलित जातियों के साथ उठना बैठना, खाना-पीना, सामाजिक अपराध माना जाता था. इसके खिलाफ महात्मा गांधी ने पूरे देश में अपने सफ़र के दौरान अभियान चलाए. चमार समुदाय के लोगों को समाज में उचित सम्मान दिलाने के लिए उन्होंने "हरिजन" उपनाम दिया यानी प्रभु के लोग. महात्मा गांधी कहा करते थे कि स्वच्छता ईश्वरीय गुण है और जो लोग इसे अंजाम देते हैं, वे निश्चित तौर पर ईश्वर के लोग हैं.

पखाना साफ़ किया

बापू कहते थे कि यह कैसे हो सकता है कि जाति के आधार पर एक भले आदमी को नीचा और एक बुरे आदमी को अच्छा मान लिया जाए?  एक दिन बापू के आश्रम सेवाग्राम में मैला ढोने का काम करने वाला व्यक्ति काम छोड़कर चला गया था. यह देखकर बापू ने सोचा कि लोगों के मन से इस धारणा को निकालने का इससे अच्छा अवसर नहीं हो सकता. उन्होंने आश्रम के सभी लोगों को बुलाया और बोले, ‘आप सभी को मालूम है कि मैला ढोनेवाला व्यक्ति नहीं है. आइए, हम सब मिल-जुलकर यह सफाई का काम करते हैं.’ फिर उन्होंने सबके सामने पाखाने साफ किए. स्वयंसेवकों में खान अब्दुल गफ्फार भी शामिल थे. 
बाल विवाह पर महात्मा गांधी ने क्या कहा
गांधी जी महिलाओं को पुरुष के मुकाबले अधिक शक्तिशाली और सुदृढ़ मानते थे. एक बार महात्मा गांधी  ने कहा था, 'अबला पुकारना महिलाओं की आंतरिक शक्ति को दुत्कारने जैसा है. 'जब लड़कियों को कम उम्र में ब्याह दिया जाता था और कम उम्र में ही में विधवा हो जाती थी तब बापू का हृदय रोता था. उनका कहना था, 'मैं बेटे और बेटियों के साथ बिलकुल एक जैसा व्यवहार करूंगा. जहां तक स्त्रियों के अधिकार का सवाल है, मैं कोई समझौता नहीं करूंगा. नारी पर ऐसा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए जो पुरुषों पर ना लगाया गया हो. नारी को अबला कहना उसकी मानहानि करना है। स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं. उसकी मानसिक शक्तियां पुरुष से जरा भी कम नहीं है।'

यदि मैं स्त्री पैदा होता..

गांधी कहते थे, 'यदि मैं स्त्री रूप में पैदा होता तो मैं पुरुष द्वारा थोपे गए हर अन्याय का जमकर विरोध करता.' महात्मा गांधी ने कहा, 'दहेज को खत्म करना है, तो लड़के लड़कियों और माता-पिता को उनके जाति बंधन तोड़ने होंगे. सदियों से चली आ रही बुराइयों को खोजना होगा और उन्हें नष्ट करना होगा.'
गांधी जी के समय बाल विवाह, विधवा विवाह बड़ी समस्या के रूप में सामने थी. गांधी ने  इसे खत्म करने की मजबूत दलील भी दी. 

कम उम्र में अपनी भी शादी का किया ज़िक्र है
बापू अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, तेरह साल की उम्र में मेरा विवाह हुआ था... तेरहवें वर्ष में हुए अपने विवाह के समर्थन में मुझे एक भी नैतिक दलील सूझ नहीं सकती. शादी कितनी उम्र में हो- 1926 से 1929 के दौरान गांधी अलग-अलग मौकों पर इसकी चर्चा करते हैं. 1926 में वे कहते हैं, साधारणत: 18 साल से कम उम्र की लड़की का विवाह कभी किया ही नहीं जाना चाहिए.

मार्च,1928 में मद्रास में पढ़ने वाले लड़कों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि तुम्हें अपने ऊपर इतना अधिकार होना चाहिए कि 16 वर्ष से कम की लड़की से विवाह न करो. यदि मुमकिन होता तो मैं निचली सीमा 20 साल रखता.

बापू के सपने अधूरे
यह आज से करीब 100 साल पहले की बात है लेकिन आज भी हम अपने समाज से ना तो दहेज प्रथा जैसी कुरीति को खत्म कर पाए हैं और ना ही देश के सभी हिस्सों से बाल विवाह खत्म हुआ है. जरा कल्पना करिए उस गरीब बाप के बारे में जिसके घर बिटिया पैदा हुई और उसकी शिक्षा दीक्षा से पहले उसे विवाह के लिए चिंता सताने लगे. कई ऐसी खबरें आती हैं जिनमें दहेज के लिए घर जमीन जायदाद बेचकर लोग सड़कों पर आ जाते हैं. कैसा लगता होगा उस बाप को जो विवाह के समय अपने जिगर के टुकड़े को तो खुद से दूर करता ही है, साथ ही इसके लिए दहेज भी देता है.

आज अंतरिक्ष के अनंत सफर पर परचम लहरा रहे भारतीय समाज की यह बुराई न केवल महात्मा गांधी के सपनों को मुंह चिढ़ाती है बल्कि अपने आप को सभ्य समाज कह रहे भारतीय शिक्षित समुदाय को भी.

 ये भी पढ़ें : Mahatma Gandhi Jayanti: 'एकजुटता से ही मिलेगा स्वराज ...' जब महात्मा गांधी ने फूंका था अनेकता में एकता का मंत्र

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