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Lakhimpur Kheri Case: 'हमेशा के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता', केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत पर SC की अहम टिप्पणी

Lakhimpur Kheri Violence: लखीमपुर खीरी इलाके में 3 अक्टूबर 2021 को हुई हिंसा में 8 लोगों की जान चली गई थी. केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) पर आरोप लगे थे.

SC on Lakhimpur Kheri Case: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (12 दिसंबर) को संकेत दिया कि वह लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में किसानों को गाड़ी से कुचल कर मारने के आरोपी आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) को जमानत पर रिहा करना चाहता है. हालांकि, कोर्ट ने मामले के कुछ गवाहों की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे के तीखे विरोध के बीच ऐसा आदेश नहीं दिया. 

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जजों ने निचली अदालत से जानकारी मांगी है कि बिना दूसरे मुकदमों पर असर डाले इस केस का निपटारा कितने समय में हो सकेगा. मामले की अगली सुनवाई 11 जनवरी को होगी.

जजों ने क्या कहा?

सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्य कांत और कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा कि आरोपी को सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद गिरफ्तार किया गया था. उसे पहले हाईकोर्ट से ज़मानत मिली थी, उसे भी सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने सुनिश्चित किया कि मुकदमे में आरोप तय हो जाएं. अब वह 1 साल से अधिक समय से जेल में है. उसे हमेशा के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता. जजों का यह भी कहना था कि इस तरह के मामलों में हर रोज़ किसी न किसी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत दी जाती है. सिर्फ इसी मामले में इससे मना करने की कोई वजह नहीं है.

दवे ने किया विरोध

इसका विरोध करते हुए दुष्यंत दवे ने कहा कि यह एक संगीन मामला है. याचिकाकर्ता के पिता केंद्रीय मंत्री हैं. वह पहले से धमकी दे रहे थे कि आंदोलनकारी किसानों को सबक सिखाएंगे. बहुत प्रभावशाली परिवार से हैं. घटना वाले दिन जानबूझकर कार का रास्ता बदला गया. 100 किलोमीटर से ऊपर की रफ्तार से गाड़ी चला कर किसानों को कुचला गया. अगर 1 साल तक जेल में रहना ज़मानत का आधार है, तो ऐसा हत्या के हर मामले में होना चाहिए.

आशीष मिश्रा की दलील

दवे से पहले आशीष मिश्रा की तरफ से बहस करते हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, "यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें योजना बना कर हत्या की गई हो. जब उग्र भीड़ पथराव कर रही थी, तब ड्राइवर को गति बढ़ानी पड़ी. भीड़ इतनी हिंसक थी कि उसने ड्राइवर को पीट कर मार डाला. वैसे भी, कार में आशीष नहीं था, सुमित जायसवाल था. आशीष वहां से दूर उस जगह पर था, जहां दंगल का आयोजन किया गया था. मुकदमे में 200 से ज़्यादा गवाह हैं. इसके निपटारे में बहुत समय लगेगा. 98 मुख्य गवाहों को एक-एक गनमैन की सुरक्षा दी गई है. इस बात का कोई सवाल नहीं कि आशीष किसी को डरा सकता है."

यूपी सरकार का पक्ष

उत्तर प्रदेश सरकार की एडिशनल एडवोकेट जनरल ने कहा कि यह एक संगीन अपराध का मामला है. घटना में घायल हुए कुछ लोगों ने कार में आशीष मिश्रा की मौजूदगी का बयान दिया है. इस पर जजों ने कहा कि यह देखना जरूरी है कि मुकदमे में कितना समय लगेगा? सुप्रीम कोर्ट निचली अदालत को यह नहीं कह सकता कि वह सभी मुकदमों को छोड़कर सिर्फ इसी मामले को लगातार सुनता रहे.

निचली अदालत से मांगी रिपोर्ट

आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी के एडिशनल सेशंस जज से इस बात की रिपोर्ट मांग ली कि उन्हें बिना दूसरे मुकदमों को प्रभावित किए इस मुकदमे का निपटारा करने में कितना समय लगेगा. जजों ने एडिशनल सेंशस जज से यह भी बताने को कहा कि आरोपी सुमित जायसवाल की तरफ से आंदोलनकारी किसानों के ऊपर दर्ज क्रॉस एफआईआर से जुड़े मुकदमे की क्या स्थिति है. उसमें कब तक आरोप तय हो जाएंगे.

क्या है मामला?

3 अक्टूबर, 2021 को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में आंदोलनकारी किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ाए जाने की घटना हुई थी. इस घटना में और उसके बाद उग्र किसानों की तरफ से की गई आरोपियों की पिटाई में कुल 8 लोगों की जान गई थी. मामले का मुख्य आरोपी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी का बेटा आशीष मिश्रा उर्फ मोनू है. 10 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आशीष को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था. 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उस आदेश को रद्द कर दिया था. उसके बाद से वह जेल में है.

ये भी पढ़ें: CM हिमंत बिस्वा सरमा मानहानि मामले में मनीष सिसोदिया को SC से झटका, कहा- सहयोग करने की बजाय...

करीब 2 दशक से सुप्रीम कोर्ट के गलियारों का एक जाना-पहचाना चेहरा. पत्रकारिता में बिताया समय उससे भी अधिक. कानूनी ख़बरों की जटिलता को सरलता में बदलने का कौशल. खाली समय में सिनेमा, संगीत और इतिहास में रुचि.
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