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11 नवंबर को पूरे होंगे आर्मिस्टस-डे के 100 साल, प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद भारतीय सैनिकों का प्रतीक चिह्न होगा केसरिया‌ गेंदा फूल

प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों के बलिदान को याद करने के लिए केसरिया गेंदे के फूल को प्रतीक चिह्न बनाया गया है.

नई दिल्ली: 11 नवंबर को प्रथम विश्वयुद्ध खत्म होने के 100 साल पूरे हो रहे हैं. इस युद्ध में भारतीय सैनिकों के बलिदान को याद करने के लिए केसरिया गेंदे के फूल को प्रतीक चिह्न बनाया गया है. भारतीय सैनिकों के पराक्रम और बलिदान को याद करने के लिए फ्रांस के कैम्ब्राई में फ्रांस सरकार के सहयोग से एक युद्ध-स्मारक भी बनाया गया है जिसका उद्घाटन 10 नवम्बर को किया जायेगा.

दुनियाभर में प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) में शहीद हुए सैनिकों की याद में अलग-अलग कार्यक्रम किए जा रहे हैं. क्योंकि इस युद्ध में भारत के करीब 15 लाख सैनिकों ने दुनिया के अलग-अलग देशों में हिस्सा लिया था और करीब 75 हजार सैनिक शहीद हुए थे इसलिए भारत में भी इसको लेकर खास आयोजन किए जा रहे हैं. इसकी जानकारी देने के लिए आज ब्रिटिश हाई कमीशन ने राजधानी दिल्ली में भारतीय सेना के साथ मिलकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया.

आर्मिस्टस-दिवस किसी की जीत या हार का प्रतीक नहीं प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए ब्रिटिश हाई कमीशन में डिफेंस अटैचे, ब्रिगेडियर मार्क गोल्डमास्क ने बताया कि जिन भारतीय सैनिकों ने प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सेना की तरफ से हिस्सा लिया था उन्होनें अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय दिया था. यही वजह है कि खुद ब्रिगेडयर मार्क इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में केसरिया गेंदे का फूल अपनी यूनिफार्म पर लगाकर पहुंचे थे. अभी तक प्रथम विश्वयुद्ध का प्रतीक पोपी (यानि अफीम) का फूल था. उन्होनें कहा कि 11 नवम्बर जिसे आर्मिस्टस-दिवस के तौर पर मनाया जाता है ये किसी की जीत या हार के लिए नहीं बल्कि उन सैकड़ों-हजारों सैनिकों को याद करने के लिए आयोजित किए जा रहे हैं जिन्होनें अपने-अपने देश, सेनाओं और रेजीमेंट्स के लिए जान दे दी.

प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों के योगदान को इतिहास में भूला दिया - रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल  इस कांफ्रेंस में भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व कर रहे भारतीय मिलिट्री थिंक-टैंक, यूएसआई के डायरेक्टर, लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर), पी के सिंह ने बताया कि प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों के योगदान को इतिहास में भुला दिया गया है. यही वजह है कि ये कार्यक्रम उन्हें याद करने के लिए किए जा रहे हैं. क्योंकि भारत में 1947 से पहले का इतिहास बहुत हद तक राजनीतिक दृष्टिकोण से लिखा गया है. आजादी से पहले के इतिहास में सैन्य योगदान भी बेहद जरूरी है. उन्होनें कहा कि प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिक भले ही ब्रिटिश सेना की तरफ से लड़ रहे हों लेकिन वो लेकिन वो आज की भारतीय सेना का ही हिस्सा थे. भारतीय सैनिकों के योगदान को याद रखने के लिए ही फ्रांस में एक युद्ध स्मारक बनाया गया है जो वहां की सरकार के सहयोग से यूएसआई ने तैयार किया है.

11 नवंबर को पूरे होंगे आर्मिस्टस-डे के 100 साल, प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद भारतीय सैनिकों का प्रतीक चिह्न होगा केसरिया‌ गेंदा फूल

उपराष्ट्रपति करेंगे वॉर-मेमोरियल का उद्धाटन माना जा रहा है कि भारत के उपराष्ट्रपति 10 नवंबर को इस वॉर-मेमोरियल का उद्धाटन करेंगे. इस स्मारक को उसी आर्किटेक्ट ने तैयार किया है जिसने गुजरात में सरदार पटेल की भव्य मूर्ति को तैयार किया है. इस मेमोरियल में अशोक-चक्र और राष्ट्रीय प्रतीक,शेर के अलावा, केसरिया गेंदे के फूल को शामिल किया गया है. ये मेमोरियल फ्रांस के उस कैम्ब्राई गांव में तैयार किया गया है जहां पर पहली बार टैंकों का इस्तेमाल किया गया था. इन टैंकों को भारतीय सैनिक चला रहे थे. एक ही भारतीय टैंक चालक (सैनिक), दफ्तेदार गोबिंद सिंह को युद्ध में बहादुरी के सबसे बड़़े मेडल, विक्टोरिया-क्रॉस से नवाजा गया था.

दुनियाभर से पर्यटकों की होती है नजर आपको बता दें कि यूरोप में बैटेल-टूरिज्म बेहद लोकप्रिय है और दुनियाभर से पर्यटक उन इलाकों को देखने आते हैं जहा पर प्रथम और द्वितीय युद्ध लड़े गए थे. ये पर्यटक अपने अपने देश के युद्ध स्मारकों को भी देखने आते हैं. लेकिन भारत का अभी तक यूरोप में ऐसा कोई वॉर-मेमोरियल नहीं था. लेकिन अब माना जा रहा है कि भारत से भी पर्यटक बैटेल-टूरिज्म का हिस्सा बन सकेंगे.

अधिकारी केसरिया गेंदा फूल यूनिफार्म पर लगाकर लेंगे हिस्सा  आर्मिस्टस डे यानि 11 नवम्बर को राजधानी दिल्ली में बरार-स्कवॉयर स्थित दिल्ली-सेमिट्री में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की जायेगी, जिसमें भारत और ब्रिटेन की सेनाओं के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी केसरिया गेंदा फूल अपनी यूनिफार्म पर लगाकर हिस्सा लेंगे.

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