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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

एमसीडी, भारत के दो राज्यों में बहुमत और बढ़ता पार्टी कैडर... क्या आप कांग्रेस की जगह लेने को तैयार है?

महज 10 साल पहले अस्तित्व में आई आप के लिए शायद किसी ने ये सोचा हो कि वो इतने कम वक्त में राष्ट्रीय फलक पर छा जाएगी और आजादी से पहले देश में जड़ें जमाई हुई कांग्रेस की जगह लेने को तैयार खड़ी नजर आएगी.

आम आदमी पार्टी (आप) के संस्थापक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को पहले भले ही देश की राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टियां हल्के में लेती रही हों, लेकिन अब वो दौर आ गया है कि देश की सत्ता पर काबिज बीजेपी खेमे में भी उसकी धमक है. 2022 मार्च में पंजाब में पूरा बहुमत हासिल कर वहां से कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखाने वाली आप राष्ट्रीय फलक पर छाने लगी है.

ताजा एमसीडी के नतीजों ने उसके हौसले बुलंद कर डाले हैं. एमसीडी चुनावों पर पूरे देश की नजर रहती है और इन चुनावों में आप का शानदार प्रदर्शन साबित कर रहा है कि पार्टी की धमक देश में बढ़ने लगीं है. एमसीडी में बीते 15 साल से बीजेपी का रुतबा कायम रहा था, लेकिन 2022 में आप ने इसमें सेंध लगा डाली है. कांग्रेस की इन चुनावों में नाम भर की गिनती हैं. ऐसे में दो राय नहीं है कि देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी लेने की पूरी तैयारी में हैं.

जब पूछा गया था-कौन है अरविंद केजरीवाल

2013 में जब पहली बार आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की 3 बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ा था, तो उन्होंने बड़ी उपेक्षा से पूछा था,  “कौन हैं अरविंद केजरीवाल? आप क्या है. क्या यह ऐसी पार्टी है जिसकी तुलना कांग्रेस या बीजेपी से की जा सकती है.”

केजरीवाल ने न केवल ताकतवर शीला दीक्षित को शिकस्त दी बल्कि उनकी पार्टी ने बाद में दिल्ली से अच्छी तरह से जड़ें जमाए बैठी कांग्रेस का सफाया कर डाला. जहां  शानदार पुरानी पार्टी अभी भी दिल्ली में खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए जद्दोजहद कर रही है. साल 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप ने शानदार जीत हासिल की थी.

इन चुनावों में आप ने 62 सीट जीती थीं और बीजेपी महज 8 सीट पर सिमट गई थी. इन चुनावों दूसरी बार भी अपना खाता नहीं खोल पाई थी. इस विधानसभा चुनाव में  कांग्रेस को एक भी सीट हासिल नहीं हो पाई थी. अभी कांग्रेस इस झटके से उबरने की कोशिश ही कर रही थी कि पंजाब में मार्च 2022 में उसे एक और झटका लगा. पंजाब सूबे से पार्टी की अंदरूनी कलह ने उसे यहां सत्ता से बाहर कर दिया. 

पंजाब की जीत से ताकत है सामने आई

साल 2022 में पंजाब विधानसभा चुनावों में आप ने फिर कमाल किया. यहां आप ने 117 में से 92 सीटों पर जीत का परचम लहराया. ये जीत ऐसी थी कि किसी भी दूसरी पार्टी को पूरी तरह से विपक्ष में आने तक का मौका नहीं मिला. ये इस सूबे में आजादी के बाद की तीसरी बड़ी जीत रही थी. यहां 56 साल के इतिहास में किसी एक पार्टी को इतनी बड़ी जीत हासिल हुई थी.

कांग्रेस, अकाली दल और बीजेपी समेत उसके सहयोगी मिलकर भी आप के लगभग चौथाई हिस्से तक ही पहुंच पाए थे. दरअसल पंजाब ज्यादातर वक्त कांग्रेस का गढ़ रहा और इसी गढ़ में आप ने 2022 में सेंध लगाई और कांग्रेस का किला यहां ढह गया. इन चुनावों में देश की इस राष्ट्रीय स्तर की पार्टी को महज 18 सीटें हासिल हुई थीं.

केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप ने पंजाब चुनावों में शानदार जीत दर्ज की, 117 सदस्यीय राज्य विधानसभा में 92 सीटों पर जीत दर्ज की, जिससे आप के एक उत्साहित नेता राघव चड्ढा ने ऐलान किया था"आप कांग्रेस का स्वाभाविक और राष्ट्रीय रिप्लेसमेंट है." .चड्ढा के पास ऐसी ऐलान करने की वजह थी.  आखिरकार, उनकी पार्टी ने कांग्रेस को पंजाब में महज 18 सीटों पर समेट कर कर रख दिया था.

और अगर दिल्ली के उदाहरण पर गौर करें तो कांग्रेस के लिए इस अपमानजनक हार से उबर पाना बेहद मुश्किल होगा. कांग्रेस पहले ही देश के कई बड़े राज्यों में गिनती से बाहर हो चुकी है.  हाल में पंजाब के  नुकसान के बाद ये राष्ट्रीय फलक पर एक राजनीतिक दल के तौर पर और भी सिमट गई है. कांग्रेस का अब झारखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में एक जूनियर पार्टनर और महज दो राज्यों - राजस्थान और छत्तीसगढ़ में शासन है.

वहीं देश में अपने पैर पसारती जा रही आप का अगला निशाना साल 2023 में देश के कुल 9 राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों पर है. इन राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम शामिल है. माना जा रहा है कि कर्नाटक में राष्ट्रीय दल, सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस 2023  चुनावों की पुरजोर तैयारी कर रहे हैं.

वहीं चुनावी विश्लेषकों का मानना है यहां मुकाबला महज बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधे नहीं होगा जनता दल (सेक्युलर), क्षेत्रीय दल और आम आदमी पार्टी (AAP) ने खेल बिगाड़ने की पूरी तैयारी कर डाली है. दरअसल विधानसभा चुनावों की जीत-हार जनता का मिजाज पता चलता है. इससे कुछ अंदाजा 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर भी लगाया जा सकता है. 

क्या कांग्रेस की जगह लेने की है तैयारी?

वहीं, आम आदमी पार्टी को इस जीत से ऐसी ताकत, मजबूती मिली कि उसकी निगाहें गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों पर टिक गई. इसके लिए उसने पुरजोर मेहनत भी की. हिमाचल में भले ही उसके वजूद को लेकर सवाल उठे हों, लेकिन गुजरात में वो बीजेपी के वोट में सेंध लगाने की हालत में है. ये उसके देश में राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी बनने की तरफ बढ़ते हुए कदम हैं.

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के हालात थोड़ा ठीक है. एग्जिट पोल की माने तो यहां की 68 विधानसभा सीटों में कांग्रेस को 33 सीट मिलने की  उम्मीद जताई जा रही है. सरकार बनाने के लिए  किसी भी पार्टी को 35 सीटें चाहिए. यहां आप का खाता खुलने की कम ही उम्मीद है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस देश में हाशिए पर जाने के कगार पर है और उसके मुकाबले में आप का प्रदर्शन बेहतर है. 

एबीपी सी वोटर के सर्वे के मुताबिक गुजरात विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 131 से 139 सीटें, कांग्रेस को 31-39 सीटें तो पहली बार सूबे के विधानसभा चुनावों में शिरकत कर रही आप को 7 से 15 सीटें मिलती हुई नजर आ रही हैं. ये आंकड़े बगैर कुछ कहे ही बहुत कुछ कह रहे हैं गुजरात ने में 2012 में कांग्रेस ने 61 सीटें जीती थीं. साल  2017 में उसने 182 में से 77 सीटें जीती थीं.

इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें 115 से घट कर 99 पर सिमट गई थी.यहां इन चुनावों में कांग्रेस की सीटें बढ़ गई थीं, लेकिन अगर पिछले 5 साल के हालातों पर नजर डाली जाए तो 2022 में गुजरात में कांग्रेस कमजोर ही नजर आ रही है. यहां उसकी जगह आम आदमी को विकल्प माना जा रहा है. इसकी एक वजह है कि बीते साल फरवरी में सूरत नगर निगम चुनाव में आप कामयाबी के झंडे गाड़े थे. यहां उसने 120 सीटों में से 27 सीटों पर जीत हासिल की थी.

यहां कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया था. माना जा रहा है कि साल 2017 के बाद से कांग्रेस सूबे में अपना आधार खोते जा रही है. इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजीव कुमार कहते हैं कि गुजरात विधानसभा चुनाव में आप की कामयाबी को लेकर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी. हालांकि दिल्ली और पंजाब में आप के आगे अपना सामाजिक आधार खो देने के बाद यह कांग्रेस के लिए गंभीर संकट है.

इन दो राज्यों में आप बीजेपी के सीधे आमने- सामने हैं. कांग्रेस का यह अनुभव रहा है कि जब भी कोई तीसरा राजनीतिक दल मैदान में होता है तो उसे हार का सामना करना पड़ता है, जबकि एक द्विध्रुवीय मुकाबला हमेशा उसके लिए फायदे का सौदा साबित होता है. राजनीति में माहिर हो चुके केजरीवाल अब इन हालातों को पलटने की राह पर चल पड़े हैं.

वरिष्ठ पत्रकार राजीव कुमार कहते हैं कि इस बार के गुजरात चुनावों में कांग्रेस के लिए समीकरण बदले हुए हैं. राज्य में बीते साल जैसे हालात थे, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला था अब वो नहीं हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह ये है कि कांग्रेस के पास राज्य में सीएम के उम्मीदवार के तौर पर कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जिस पर यहां की जनता भरोसा कर सके. कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने भी इस बार गुजरात के चुनाव प्रचार में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. इसके सबसे बड़े उदाहरण कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी हैं.

उनका कहना है कि अगर गुजरात में हुए बीते चुनाव पर नजर डालें तो कांग्रेस के पास तब हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा नेताओं का साथ था. ऐसे में लग रहा था कि कांग्रेस सरकार बनाएगी, लेकिन अंतिम चरण में बाजी पलटी और सूरत में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया और सरकार बना ली.  इसके बावजूद 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में, हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया था. इन तीनों की मौजूदगी से बीजेपी के कई विधायकों को हार का सामना करना पड़ा था.

तब हार्दिक पटेल का पाटीदारों के आरक्षण के लिए चलाया गया आंदोलन, अल्पेश ठाकोर का ओबीसी और जिग्नेश मेवाणी का दलितों को एकजुट करना कुछ हद तक रंग लाया था. साल 2022 में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा हैं और कांग्रेस ने केवल जिग्नेश मेवाणी को वडगाम सीट पर उतारा है. वडगाम सीट पर जिग्नेश मेवाणी के खिलाफ बीजेपी के मणिभाई वाघेला है.

वहीं आप ने यहां  दलपत भाटिया को चुनाव लड़ाया. यहां कांग्रेस के उम्मीदवार जिग्नेश मेवाणी के लिए यहां एआईएमआईएम के कल्पेश सुंधिया भी चुनौती बने हैं. सूबे में एससी-वर्चस्व वाला विधानसभा क्षेत्र वडगाम में  मुस्लिम और दलित मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है. इस वजह से ये सीट कांग्रेस के लिए आसान रही थी, लेकिन इस बार एआईएमआईएम के उम्मीदवार के आने से समीकरण थोड़ा बदले हुए हैं.

उनका कहना है कि इस बार गुजरात में कांग्रेस के हालात अच्छे नहीं हैं. पार्टी में कहीं से उत्साह के आसार नहीं है, ऐसे में कई लोगों को बीजेपी के विकल्प के तौर पर कांग्रेस की जगह आप दिखाई दे रही है. आप को ये सब साफ तौर पर नजर आ रहा है और वो गुजरात और हिमाचल में भी गोवा जैसी रणनीति अपना रही है. गोवा विधानसभा चुनाव 2022 में आप ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी और 6.77 फीसदी वोट हासिल कर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. वहीं गुजरात के सूरत नगर निगम चुनावों में 27 सीटें मिलने से आप के हौसले पहले से ही बुलंद हैं.

बीजेपी नहीं "आप" से रहे कांग्रेस सतर्क

साफ तौर पर जाहिर है कि बीजेपी को नहीं बल्कि कांग्रेस को आप से खौफ खाना चाहिए. कांग्रेस को अपने इस नुकसान की भरपाई के लिए जल्द ही कुछ करना चाहिए, क्योंकि धीरे-धीरे आप उसकी जगह लेने को तैयार खड़ी नजर आ रही है. कांग्रेस  पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में यह कड़वा अनुभव पहले ही झेल चुकी हैं. पश्चिम बंगाल में  उसका वोट ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और आंध्र प्रदेश में वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी को चला गया था.

जहां तक पंजाब की बात है, तो कांग्रेस ने इस राज्य को आप को थाली में परोस कर तोहफे में दिया है. यहां चुनावों के छह महीने पहले तक ये  सबसे पुरानी पार्टी दूसरे कार्यकाल के लिए पूरी तरह से तैयार दिख रही थी, क्योंकि उसके विरोधियों - शिरोमणि अकाली दल (शिअद) या आप  में से किसी ने भी उसे कोई गंभीर चुनौती नहीं दी थी. जबकि शिअद अभी भी 2017 के विधानसभा चुनावों में मिली चोट से उबर नहीं पाई थी, आप भी अच्छी हालत में नहीं थी, हालांकि आप ने यहां पिछले चुनाव में 20 सीटें जीतीं और राज्य में प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर  उभरी थी.

तब आप ने कई वरिष्ठ नेताओं का दलबदल देखा और बाद में स्थानीय चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनाव में खराब नतीजों का सामना किया. लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के पार्टी के आंतरिक मामलों को खराब तरीके से संभालने से आप को चमत्कारी वापसी करने का एक सही मौका मिल गया. नेहरू-गांधी वंशज ने पहले सुनील जाखड़ की जगह नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर और फिर चुनाव से कुछ ही महीने पहले मुख्यमंत्री बदलकर बड़ी भूल की.

नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ आए दिन मोर्चा खोलते रहे. इस वजह से अमरिंदर सिंह को कुर्सी छोड़नी पड़ी. अमरिंदर सिंह के हटने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि सुनील जाखड़, सुखजिंदर सिंह रंधावा, नवजोत सिंह सिद्धू भी मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में थे. इसके बाद सिद्धू ने चन्नी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. मनमौजी नवजोत सिंह सिद्धू ने पूरी जनता के सामने अपनी ही सरकार को गिराते हुए हंगामा खड़ा किया. इससे सूबे में कांग्रेस के लिए हालात बिगड़ते गए और विधानसभा चुनाव में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा.

इस लगातार मनमुटाव से तंग आ चुके जनता जनार्दन ने जिसका पहले से ही मुख्यधारा के पारंपरिक राजनीतिक दलों से  मोहभंग हो चुका था उसने आप का रुख किया. इसमें आप का  भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चलाने और बेहतर नागरिक सेवाएं देने के वादे ने सोने पर सुहागा जैसा काम किया था. जैसा कि आने वाले वक्त में आप ने बीजेपी के राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर कांग्रेस को बदलने का अपना महत्वाकांक्षी सफर शुरू किया है. इस शानदार पुरानी पार्टी कांग्रेस को देश की राजनीतिक जमीं से अपने सफाए को बचाना है तो उसे ठोस कदम उठाने होंगे.

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