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Farmer Protest Leaders: किसान आंदोलन के वो पांच चेहरे, जो केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शनों को दे रहे हैं धार

Farmer Protest, Punjab Leaders: केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ हज़ारों-लाखों किसान दिल्ली के अलग अलग सरहदों पर डटे हुए हैं. इन किसानों में पांच अहम चेहरे हैं, जो किसान आंदोलन को चलाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. जानिए उनके बारे में.

नई दिल्ली: कृषि से संबंधित तीन अध्यादेश पारित होने के साथ ही पंजाब में इनका विरोध जून महीने में ही शुरू हो गया था. सितंबर में जब इन अध्यादेशों को बिल बनाकर संसद में पारित किया गया और कानून की शक्ल दी गई तब तक पंजाब में आंदोलन सड़क और पटरी पर आ गया था. पंजाब के 30 किसान संगठनों ने एक झंडे के तले इन कानूनों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. पंजाब में इनके अलावा दो अन्य संगठन इन कानूनों के खिलाफ अपने-अपने तरीके से आंदोलन कर रहे थे. इन 32 संगठनों के नेता इस आंदोलन का केंद्र हैं. इन संगठन नेताओं के नेतृत्व में पंजाब के लाखों किसान आज दिल्ली बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं. हम आपको उन पांच किसान नेताओं के बारे में बता रहे हैं जो किसान आंदोलन को चला रहे हैं.

डॉक्टर दर्शनपाल सिंह, अध्यक्ष क्रन्तिकारी किसान यूनियन 68 साल के दर्शनपाल पटियाला के रणबीरपुरा गांव के हैं. डॉक्टर दर्शनपाल सिंह MBBS और MD हैं. 20 वर्ष पंजाब के स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करने के बाद उन्होंने 2003 में स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले ली. 15 एकड़ जमीन पर खेती करने लगे. दर्शनपाल तब से किसानों के बीच काम कर रहे हैं. सरकारी नौकरी करने के दौरान दर्शनपाल कर्मचारी ट्रेड यूनियन में सक्रीय रहे. दर्शनपाल ने 2016 में क्रन्तिकारी किसान यूनियन का गठन किया. हालांकि उनका संगठन और संगठनों के मुकाबले छोटा है पर 30 संगठनों को एक मंच पर लाने में दर्शनपाल अहम कड़ी हैं और संयुक्त किसान मोर्चा के कोऑर्डिनेटर हैं.

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जोगिन्दर सिंह उग्राहां, अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) 75 वर्षीय जोगिन्दर सिंह संगरूर जिले के उग्राहां गांव से संबंध रखते हैं. उनके संगठन को पंजाब के किसानों का सबसे बड़ा संगठन भी माना जाता है. 1982 से किसान संगठनों में काम कर रहे जोगिन्दर सिंह चार साल तक सेना में भी रहे. मगर उन्होंने सेना की नौकरी छोड़ दी और भारतीय किसान यूनियन (लखोवाल) में काम करना शुरू किया. जोगिन्दर सिंह खुद एक छोटे किसान हैं. उनके पास 5 एकड़ जमीन है. 31 साल पहले 1989 में भारतीय किसान यूनियन (एकता-सिद्धूपुर) का गठन हुआ था. जोगिन्दर सिंह उसमें काम करने लगे. 2002 में उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) का गठन किया. उनका संगठन पंजाब के 30 संगठनों के मोर्चे का हिस्सा नहीं है, लेकिन कृषि क़ानूनों के मामले में इस मोर्चे के साथ समन्वय करके जोगिन्दर सिंह का किसान संगठन काम कर रहा है.

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बलबीर सिंह राजेवाल, अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) 78 वर्षीय बलबीर सिंह लुधियाना जिले के राजेवाल गांव से हैं. बलबीर सिंह 1971 से किसान संगठनों में काम कर रहे हैं. शुरू से भारतीय किसान यूनियन के साथ हैं. पहले BKU एक ही यूनियन हुआ करती थी. बलबीर सिंह राजेवाल को पोस्ट और टेलीग्राफ विभाग में नौकरी मिली थी. मगर 4 साल बाद ही उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी. तब से ही बलबीर सिंह किसान संगठनों में काम कर रहे हैं. किसान आंदोलन में एक बार उनके ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत भी मुकदमा दर्ज हुआ था. 1992 में उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) की स्थापना की थी. तब से इसके अध्यक्ष हैं. उन्हें किसानी मामलों का माहिर माना जाता है और इस किसान आंदोलन के सूत्रधार भी बने हुए हैं.

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जगजीत सिंह डल्लेवाल, अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन (एकता-सिद्धूपुर) 62 वर्षीय जगजीत सिंह फरीदकोट जिले के डल्लेवाल गांव से हैं. बीकेयू (एकता-उग्राहां ) के बाद इनके संगठन को पंजाब का दूसरा सबसे बड़ा किसान संगठन मन जाता है. पटियाला की पंजाबी यूनिवर्सिटी से राजनीती विज्ञान में MA पास जगजीत सिंह 1983 से किसान संगठनों में काम कर रहे हैं. 15 एकड़ जमीन के मालिक जगजीत सिंह एक साधारण जीवन जीने में विश्वास रखते हैं. पंजाब के 14 जिलों में इनके संगठन का काम है और अपने संगठन को गैर राजनैतिक संगठन बनाए रखा है.

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बूटा सिंह बुर्जगिल, अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन (एकता-डकौंदा) बठिंडा जिले के बुर्ज गिल गांव से संबंध रखने वाले 62 वर्षीय बूटा सिंह 1984 से किसान संगठन के साथ जुड़े हुए हैं. इस दौरान उन्होंने भारतीय किसान यूनियन के अलग-अलग ग्रुपों के साथ काम किया और 2007 में भारतीय किसान यूनियन एकता (डकौंदा) बनाई. मात्र 5 क्लास पास बूटा सिंह पर अलग अलग किसान आंदोलनों के दौरान 50 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. पंजाब के मालवा क्षेत्र के ग्रामीण इलाक़ों में इनके किसान संगठन का ख़ासा प्रभाव है. इस किसान संगठन ने पिछले साल अपने नेता मनजीत सिंह धनेर को जेल से रिहा करवाने के लिए संघर्ष किया था और कैप्टन सरकार ने जेल के बाहर लोगों की जमा भीड़ को देखते हुए राज्यपाल से मनजीत धनेर को रिहा करने की सिफ़ारिश की थी. मनजीत सिंह धनेर को 1996 के किरणजोत बलात्कार और मर्डर केस में एक आरोपी की पेशी के दौरान हुई हत्या के केस में सुप्रीम कोर्ट ने उम्रक़ैद की सजा सुनाई थी, लेकिन लोगों के प्रदर्शन को देखते हुए धनेर को रिहा करना पड़ा था.

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