पटना: दिल्ली विधान सभा चुनाव के नतीजों के बाद अब पूरे देश का फोकस बिहार पर आ गया है. चर्चा ये है कि क्या बिहार में 15 साल से राज कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर सत्ता में वापसी करेंगे. इससे पहले सभी दलों ने यहां चुनावी तैयारी शुरू कर दी है. बिहार में अक्टूबर के महीने में विधानसभा चुनाव होना है.


मुख्यमंत्री का चेहरा कौन?


2017 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होने से पहले तत्कालीन डिप्टी सीएम और लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव से सीधे तौर पर इस्तीफा देने को नहीं कहा था बल्कि भ्र्ष्टाचार के आरोप पर सार्वजनिक रूप से सफाई देने को कहा था. उस वक्त लालू यादव की पार्टी में कुछ लोगों ने तेजस्वी के इस्तीफे की बात कही थी तो कुछ लोगों ने पद नहीं छोड़ने को कहा था. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने उस वक्त कहा था कि तेजस्वी इस्तीफा नहीं दें और पूरे बिहार में भावी मुख्यमंत्री के रूप में आगे आएं.


जगदानंद सिंह के उसी बयान के बाद तय हो गया था कि तेजस्वी यादव पार्टी के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार होंगे. महागठबंधन में अभी इसपर मुहर लगनी बाकी है. लेकिन ये बात तय है कि फिलहाल तेजस्वी विपक्ष के नेता हैं और आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है और वोट बैंक में भी सबसे आगे है. इस लिहाज से तेजस्वी यादव को कोई चुनौती नहीं दे सकता है. दूसरी तरफ बीजेपी के सभी नेता सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में भरोसा जता रहे हैं. ऐसे में मुकाबला नीतीश और तेजस्वी के बीच ही है.


दिल्ली चुनाव बिहार का सेमीफाइनल हुआ?


दिल्ली में बिहार की सभी प्रमुख पार्टियों ने चुनाव लड़ा था. दोनों सशक्त गठबंधन दिल्ली में आमने सामने रहे. एक तरफ एनडीए तो दूसरी तरफ़ महागठबंधन. एनडीए में जेडीयू दो और लोक जनशक्ति पार्टी एक सीट पर. जबकि आरजेडी चार सीटों पर लड़ी. हालांकि जेडीयू, लोक जनशक्ति पार्टी और आरजेडी तीनों पार्टियां हार गई पर सबसे बुरा हाल आरजेडी का हुआ. आरजेडी के उम्मीदवार की जमानत तो जब्त हुई ही बल्कि दो अंकों से आगे नहीं जा पाए. जेडीयू हार ज़रूर गई लेकिन इस हार में भी इस बात की खुशी छुपी हुई है कि उनके किसी उम्मीदवार की ज़मानत जब्त नहीं हुई. ऐसे में जेडीयू दावा कर सकती है कि उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर है.


किसके पास कितना वोट


2019 का लोक सभा चुनाव हो या 2015 का विधान सभा चुनाव. दोनों में नीतीश की पार्टी जेडीयू ने अपना वोट बैंक सुरक्षित रखा है. लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि अति पिछड़ी जातियां, महादलित और अगड़ी जातियों के वोटर अब भी नीतीश के साथ हैं. इस बार के चुनाव में जातियों का समीकरण यही दिख रहा है. लालू की पार्टी इसमें सेंध लगाने की कोशिश कर रही है. पहले पार्टी में अतिपिछड़ी और दलित के लिए 45 फीसदी आरक्षण कर पार्टी के जिलाध्यक्षों को बनाया. एमवाई यानी मुस्लिम यादव समीकरण से आगे दूसरी जातियों को अपने पक्ष में करने की कोशिश है. आरजेडी के लिए खतरा यह है कि इस आरक्षण से उनका अपना वोट बैंक न खिसक जाए.


काम पर वोट या कोई और मुद्दा


2010 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने अपने काम के आधार पर वोट मांगा था. इस चुनाव में उन्होंने बिजली देने का वादा किया था, कानून व्यवस्था ठीक किए जाने का दावा किया था. इन वादों पर जनता ने मुहर लगाई और जेडीयू की जीत हुई. इस चुनाव में लालू की पार्टी मात्र 22 सीटों पर सिमट गई. 2015 में नीतीश ही मुख्यमंत्री का चेहरा थे. इसमें जेडीयू ने विकास के नाम पर वोट मांगा और चुनाव में सात निश्चय का वादा किया.


इस चुनाव में लालू यादव की पार्टी और नीतीश कुमार की पार्टी बराबर सीटों पर लड़ी. सरकार बनी पर लालू की तुलना में नीतीश के कम विधायक जीत पाए. दोनों 2017 में अलग हुए. नीतीश इस बार न सिर्फ अपने काम के आधार पर वोट मांगेंगे बल्कि लालू -राबड़ी के 15 साल की तुलना अपने 15 साल से करेंगे. यह वजह है कि बिहार में पोस्टर वार तेज हो गया है.


देखने में नीतीश अभी हर लिहाज़ से तेजस्वी यादव पर भारी पड़ते हुए दिख रहे हैं. लेकिन नीतीश के खिलाफ एक नए राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी इस चुनाव में ज़ोर आजमाइश करने का ऐलान कर दिया है. दिल्ली की शानदार जीत के बाद आप पार्टी की क्या रणनीति होती है और उसका क्या असर होगा इसके लिए थोड़ा इंतज़ार करना होगा.


यह भी पढ़ें-


क्या अब बिहार में अपनी रणनीति का प्रदर्शन करेंगे प्रशांत किशोर?