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एक किलो टमाटर खरीदने के लिये पांच किलो उड़द बेचने को मजबूर अन्नदाता

फसलों के लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर इसी साल किसानों के हिंसक आंदोलन के गवाह बने मध्यप्रदेश में एक बार फिर यह मुद्दा गरमाने की आहट है.

इंदौर: फसलों के लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर इसी साल किसानों के हिंसक आंदोलन के गवाह बने मध्यप्रदेश में एक बार फिर यह मुद्दा गरमाने की आहट है. हालत यह है कि दमोह जिले के किसान सीताराम पटेल(40) ने हाल ही में कीटनाशक पीकर कथित तौर पर इसलिये जान देने की कोशिश की, क्योंकि मंडी में उड़द की उनकी उपज को औने-पौने दाम पर खरीदने का प्रयास किया जा रहा था.

कारोबारियों ने पटेल की उड़द के भाव केवल 1,200 रुपये प्रति क्विंटल लगाये थे, जबकि सरकार ने इस दलहन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. पटेल सूबे के उन हजारों निराश किसानों में शामिल हैं, जिन्होंने इस उम्मीद में दलहनी फसलें बोयी थीं कि इनकी पैदावार से वे चांदी काटेंगे. लेकिन तीन प्रमुख दलहनों की कीमतें औंधे मुंह गिरने के कारण किसानों का गणित बुरी तरह बिगड़ गया है और खेती उनके लिये घाटे का सौदा साबित हो रही है. प्रदेश की मंडियों में उड़द के साथ अरहर और मूंग की दाल एमएसपी से नीचे बिक रही हैं. फसलों के लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर जून में किसानों का हिंसक आंदोलन झेल चुके सूबे में कृषि क्षेत्र के संकट का मुद्दा फिर गरमाता नजर आ रहा है.

गैर राजनीतिक किसान संगठन आम किसान यूनियन के संस्थापक सदस्य केदार सिरोही ने आज एजेंसी को बताया, "प्रदेश की थोक मंडियों में इन दिनों उड़द औसतन 15 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही है, जबकि खुदरा बाजार में टमाटर का दाम बढ़कर 70 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया है. यानी किसानों को एक किलो टमाटर खरीदने के लिये पांच किलो उड़द बेचनी पड़ रही है." उन्होंने कहा, "मनुष्यों के लिये प्रोटीन का बड़ा स्त्रोत मानी जाने वाली दाल का कच्चा माल (उड़द) भी 1,500 रुपये प्रति क्विंटल के उसी भाव पर बिक रहा है, जिस दाम पर खलीयुक्त पशु आहार बेचा जा रहा है. यह स्थिति कृषि क्षेत्र के लिये त्रासदी की तरह है." सिरोही ने कहा कि दलहनों के भाव में भारी गिरावट के चलते सूबे के अरहर और मूंग उत्पादक किसानों की भी हालत खराब है. उन्होंने केंद्र और प्रदेश के स्तर पर सरकारी नीतियों को विरोधाभासी बताते हुए कहा, "एक तरफ केंद्र सरकार ने विदेशों से सस्ती दलहनों का बड़े पैमाने पर आयात कर लिया है, तो दूसरी ओर घरेलू बाजार में दलहनों के दाम गिरने के बाद प्रदेश सरकार किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें कर रही है."

मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के मकसद से महत्वाकांक्षी "भावांतर भुगतान योजना" पेश की है. इस योजना में तीन दलहनों समेत आठ फसलों को शामिल किया गया है. योजना के तहत प्रदेश सरकार किसानों को इन फसलों के एमएसपी और मंडियों में इनके वास्तविक बिक्री मूल्य के अंतर का भुगतान करेगी ताकि अन्नदाताओं के खेती के घाटे की भरपाई हो सके. प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि भावांतर भुगतान योजना के पहले चरण में प्रदेश के 1.25 लाख किसानों को 197 करोड़ रुपये की भावांतर राशि प्रदान की जायेगी. इन किसानों ने 16 से 31 अक्तूबर के बीच मंडियों में अपनी फसल बेची थी.

प्रवक्ता के मुताबिक किसानों के हितों के मद्देनजर खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अफसरों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिये हैं कि इस योजना के तहत कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हो. बहरहाल, किसान नेता सिरोही ने आरोप लगाया कि भावांतर भुगतान योजना सूबे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कृषकों के बड़े वोट बैंक को साधने की नीयत से पेश की गयी है. उन्होंने दावा किया कि बगैर ठोस तैयारी के शुरू की गयी योजना अपनी जटिलताओं और विसंगतियों के कारण खासकर दलहन उत्पादक किसानों को ज्यादा फायदा नहीं पहुंचा पा रही है.

इस बीच, कारोबारियों पर भी आरोप लग रहे हैं कि भावान्तर भुगतान योजना शुरू होने के बाद उन्होंने अपने फायदे के लिये दलहनों के दाम गिरा दिये हैं. लेकिन दाल मिलों के प्रमुख संगठन ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल दलहनों के दामों में गिरावट को लेकर इस योजना पर सवाल उठाते हैं. अग्रवाल ने कहा, "भावान्तर भुगतान योजना का लाभ लेने के लिये सूबे के दलहन उत्पादक किसान भारी हड़बड़ी दिखा रहे हैं. इससे मंडियों में दलहनों की आवक इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि इनके दाम गिरना स्वाभाविक है. इस गिरावट के लिये कारोबारियों को बदनाम करना उचित नहीं है." उन्होंने कहा, "मंडियों में दलहनों की आवक का दबाव इतना है कि कारोबारियों के लिये किसानों की पूरी उपज खरीदना मुमकिन नहीं हो पा रहा है. इस रुझान से दलहनों के भाव गिरावट के लंबे दौर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं." अग्रवाल ने कहा कि दलहनों के दाम गिरने से किसानों के साथ दाल उत्पादकों को भी नुकसान हो रहा है. प्रदेश सरकार को चहिए कि वह भावान्तर भुगतान योजना को सीमित अवधि के बजाय पूरे साल जारी रखे, ताकि किसान मंडियों में सही मूल्य मिलने के वक्त इसका लाभ ले सके.

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