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Bheed Review: कोरोना के दर्द को कुरेदती है अनुभव सिन्हा की ये फिल्म, राजकुमार राव-भूमि पेडनेकर की एक्टिंग कमाल
Bheed Review: अनुभव सिन्हा की फिल्म 'भीड़' में कोरोना काल के दर्द को एक बार फिर पर्दे पर देखकर लोग सिहर उठे हैं. राजकुमार राव, आशुतोष राणा, भूमि पेडनेकर और पंकज कपूर ने कमाल की एक्टिंग की है.
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'भीड़' में कोरोना काल के दर्द को पर्दे पर देख सिहर उठे लोग ( Image Source :IMDb )
भीड़
सोशल ड्रामा
Director
अनुभव सिन्हा
Starring
राजकुमार राव, आशुतोष राणा, भूमि पेडनेकर, दीया मिर्जा, पंकज कपूर, कृतिका कामरा
Bheed Review: कोरोना में लॉकडाउन का वो दौर शायद ही कोई भूल सकता है.हम सबकी जिंदगी पर उस दौर ने गहरा असर डाला और अब तक हम उस असर को महसूस करते हैं. इसी दर्द को बडे़ पर्दे पर दिखाती है अनुभव सिन्हा की फिल्म 'भीड़'. ये फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट है और ऐसा इसलिए क्योंकि उस दौर में हमारी जिंदगी से रंग गायब हो गए थे.
कहानी
ये कहानी हमारी है,आपकी है और मेरी भी है. ये कहानी उस दौर की है जो शायद हम सबकी जिंदगी का सबसे भयानक दौर था. लॉकडाउन की वजह से बॉर्डर बंद हो गए थे .मजदूरों को काम नहीं मिल रहा था तो वो अपने गांव जाना चाहते थे लेकिन जाते कैसे? बॉर्डर तो बंद थे. दीया मिर्ज की बेटी दूसरे शहर में पढती है लेकिन मां उसे कैसे लेने जाए वो तो यूपी बॉर्डर पर फंस गई है.राजकुमार राव पुलिसवाले के किरदार में हैं .अपना काम ईमानदारी से करना चाहते हैं लेकिन उनकी छोटी जाति बीच में आ जाती है.आशुतोष राणा पुलिस हेड हैं.पंकज कपूर पंडित समाज से हैं. भूमि पेडनेकर डॉक्टर हैं.कृतिका कामरा पत्रकार हैं. ये सब कोरोना और लॉकडाउन के चलते बेबस हैं और अलग अलग तरीके से जूझ रहे हैं. इस फिल्म में इन्हीं के दर्द को दिखाया गया है.
ये कहानी हमारी है,आपकी है और मेरी भी है. ये कहानी उस दौर की है जो शायद हम सबकी जिंदगी का सबसे भयानक दौर था. लॉकडाउन की वजह से बॉर्डर बंद हो गए थे .मजदूरों को काम नहीं मिल रहा था तो वो अपने गांव जाना चाहते थे लेकिन जाते कैसे? बॉर्डर तो बंद थे. दीया मिर्ज की बेटी दूसरे शहर में पढती है लेकिन मां उसे कैसे लेने जाए वो तो यूपी बॉर्डर पर फंस गई है.राजकुमार राव पुलिसवाले के किरदार में हैं .अपना काम ईमानदारी से करना चाहते हैं लेकिन उनकी छोटी जाति बीच में आ जाती है.आशुतोष राणा पुलिस हेड हैं.पंकज कपूर पंडित समाज से हैं. भूमि पेडनेकर डॉक्टर हैं.कृतिका कामरा पत्रकार हैं. ये सब कोरोना और लॉकडाउन के चलते बेबस हैं और अलग अलग तरीके से जूझ रहे हैं. इस फिल्म में इन्हीं के दर्द को दिखाया गया है.
एक्टिंग
इस फिल्म में सारे कमाल के एक्टर हैं. राजकुमार राव चौकी इंचार्ज के किरदार में कमाल कर जाते हैं.आपको उन्हें देखकर लगता है कि ये बंदा क्या खाकर एक्टिंग करता है.हर किरदार में इतना फिट. आशुतोष राणा तो ऐसे एक्टर हैं जिनकी एक्टिंग पर आप शक कर ही नहीं सकते. यहां भी वो वैसा ही कमाल करते हैं.पंकज कपूर का काम शानदार है.भूमि पेडनेकर ने भी अच्छी एक्टिंग है और फिर दिखाया है कि वो सिर्फ ग्लैमर के लिए हीरोइन नहीं हैं.उन्हें एक्टिंग भी आती है. दीया मिर्जा एक मां के दर्द को बहुत अच्छे से पेश करती हैं. कृतिका कामरा का काम भी अच्छा है.
इस फिल्म में सारे कमाल के एक्टर हैं. राजकुमार राव चौकी इंचार्ज के किरदार में कमाल कर जाते हैं.आपको उन्हें देखकर लगता है कि ये बंदा क्या खाकर एक्टिंग करता है.हर किरदार में इतना फिट. आशुतोष राणा तो ऐसे एक्टर हैं जिनकी एक्टिंग पर आप शक कर ही नहीं सकते. यहां भी वो वैसा ही कमाल करते हैं.पंकज कपूर का काम शानदार है.भूमि पेडनेकर ने भी अच्छी एक्टिंग है और फिर दिखाया है कि वो सिर्फ ग्लैमर के लिए हीरोइन नहीं हैं.उन्हें एक्टिंग भी आती है. दीया मिर्जा एक मां के दर्द को बहुत अच्छे से पेश करती हैं. कृतिका कामरा का काम भी अच्छा है.
डायरेक्शन
अनुभव सिन्हा ने वाकई इस फिल्म को एक आम आदमी के नजरिए से बनाया है.आप सिनेमा हॉल में बैठे हुए उन दिनों के दर्द को फिर से याद करते हैं वो दर्द फिर से महसूस करते हैं.ये दौर हमें याद रखना चाहिए.इसे भूलना नहीं चाहिए क्योंकि इससे सीखने की जरूरत है.अनुभव ने इसी सोच के साथ ये फिल्म बनाई और कमाल बनाई है.एक एक किरदार को रिसर्च के साथ गढ़ा गया है और हर किरदार के साथ न्याय किया गया है.
अनुभव सिन्हा ने वाकई इस फिल्म को एक आम आदमी के नजरिए से बनाया है.आप सिनेमा हॉल में बैठे हुए उन दिनों के दर्द को फिर से याद करते हैं वो दर्द फिर से महसूस करते हैं.ये दौर हमें याद रखना चाहिए.इसे भूलना नहीं चाहिए क्योंकि इससे सीखने की जरूरत है.अनुभव ने इसी सोच के साथ ये फिल्म बनाई और कमाल बनाई है.एक एक किरदार को रिसर्च के साथ गढ़ा गया है और हर किरदार के साथ न्याय किया गया है.
आपको भले लग सकता है कि अब कोरोना पर फिल्म क्यों? लेकिन खराब दौर से हमेशा सीखने की जरूरत रहती है.इससे भी हमको सीखना चाहिए क्योंकि कोरोना अभी गया नहीं है और उसका दर्द शायद जिंदगी भर नहीं जाएगा.
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उत्कर्ष सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकारSenior Journalist
Opinion