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धनतेरस या धनत्रयोदशी आज, जानिए इस दिन का क्या है शास्त्रीय महत्व

धनतेरस या धनत्रयोदशी आज शुक्रवार 10 नवंबर 2023 को है. इस दिन लोग कुछ न कुछ खरीदारी जरूर करते हैं.धार्मिक ग्रंथों के जानकार अंशुल पांडे से जानते और समझते हैं इस दिन के शास्त्रीय महत्व के बारे में.

धनतेरस या धन–त्रयोदशी

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को 'धन तेरस' के नाम से पुकारते हैं, जिसे छोटी दिवाली भी कहते हैं. इस दिन यमराज की प्रसन्नता के लिए दीपदान किया जाता है. पद्म पुराण उत्तरखंड अध्याय क्रमांक 124 अनुसार कार्तिक के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को घर से बाहर यमराज के लिए दीप रखना चाहिए. इससे अकाल मृत्यु का नाश होता है. दीप रखते समय यह मंत्र कहना चाहिए.

मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतामिति॥ (पद्म पुराण 124.5) अर्थात् : –'मृत्यु', पाशधारी काल और अपनी पत्नी के साथ सूर्यनन्दन यमराज त्रयोदशी को दीप देने से प्रसन्न हों.

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को चन्द्रोदय के समय नरक से डरने वाले मनुष्यों को अवश्य स्नान करना चाहिए. जो चतुर्दशी को प्रातःकाल स्नान करता है, उसे यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता. अपामार्ग (ओंगा या चिचड़ा), तुम्बी (लौकी), प्रपुत्राट (चकवड़) और कट्फल (कायफल) – इनको स्नान के बीच में मस्तक पर घुमाना चाहिए. इससे नरक के भयका नाश होता है. उस समय इस प्रकार प्रार्थना करे— 'हे अपामार्ग! मैं कांटे और पत्तों सहित तुम्हें बार-बार मस्तक पर घुमा रहा हूं जिससे मेरे पाप हर लिए जाएं.' यों कहकर अपामार्ग और चकवड़ को मस्तक पर घुमाएं. तत्पश्चात् यमराज के नामों का उच्चारण करके तर्पण करें. वे नाम-मन्त्र इस प्रकार है- यमाय नमः, धर्मराजाय नमः, मृत्यवे नमः, अन्तकाय नमः, वैवस्वताय नमः, कालाय नमः, सर्वभूतक्षयाय नमः, औदुम्बराय नमः, दनाय नमः, नीलाय नमः, परमेष्ठिने नमः, वृकोदराय नमः, चित्राय नमः, चित्रगुप्ताय नमः.

व्रत उत्सव चंद्रिका अध्याय 24 के अनुसार लोग अपने मकानों तथा दुकानों के ऊपर घी तेल के दीये जलाते हैं. इस दिन भी दिवाली जैसी शोभा होती है परन्तु अल्पमात्रा में. संभवतः इसलिए इसको छोटी दिवाली कहते हैं. इस दिन काशी के ठठेरी बाजार में इसकी शोभा देखने में आती है. वहां के दूकानदार अपने पीतल के बर्तन को साफ करके सजाते तथा कीमती साड़ियों को निकाल कर उनका प्रदर्शन करते हैं. यह दृश्य बड़ा ही रमणीय तथा चित्ताकर्षक होता है. इस दिन नए बर्तन को खरीदना शुभ समझा जाता है और प्रायः सभी लोग छोटा या बड़ा बर्तन खरीदते हैं. लोगों का ऐसा विश्वास है कि इस दिन बर्तन ख़रीदने से लक्ष्मी (धन) का घर में वास होता है. इसीलिये इस तिथि को 'धनतेरस' कहते हैं- अर्थात् वह त्रयोदशी जिस दिन धन घर में आता है. शहरों में इस दिन दिवाली का छोटा रूप देखने को मिलता है.

व्रत उत्सव चंद्रिका अध्याय 24 के अनुसार,एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि मेरी आज्ञा के अनुसार जब तुम लोग प्राणियों के प्राण हरते हो तो क्या किसी समय तुम लोगों को किसी मनुष्य पर दया नहीं आती यदि आती है तो कब और कहां  इस पर दूतों ने उत्तर दिया- हंस नाम का एक बड़ा भारी राजा था. वह किसी समय शिकार के लिए वन गया हुआ था. संयोगवश वह अपने साथियों से बिछड़ गया और वन में इधर उधर भटकने लगा. वन में घूमता घामता वह हेम नामक राजा के राज्य में चला गया. वहां हेम राजा ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया. उस समय दैवयोग से हेम राजा के यहां एक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ था. परन्तु छठि जन्म के छठे दिन का (उत्सव ) के दिन देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा कि राजन्! तुम्हारा यह लड़का चार दिन के बाद मर जायेगा.

यह सुन कर राजा बहुत ही दुःखी हुआ. राजा हंस को-जो उस समय हेम राजा का अतिथि था- जब यह ज्ञात हुआ तो उसने हेमराज के पुत्र को मृत्यु से बचाने के लिए उसे यमुना की एक गुफा में छिपा कर रखा है. परन्तु युवा होने पर जब उसका विवाह हुआ तब हम लोगों (यमदूतों) ने ठीक चौथे दिन उसका प्राण हरण कर लिया. उस मंगलमय उत्सव के समय हम लोगों का यह काम अत्यन्त घृणित था और हम लोगों को उसके प्राण हरण करने में बड़ी दया आई. हम लोगों का हृदय अत्यन्त दुःखी हो गया. अतः हे स्वामी! कृपा करके कोई ऐसी युक्ति बतलाइए जिससे प्राणी इस प्रकार की अकास्मिक दुर्घटना से बच सके. इस बात को सुनकर यमराज ने इस दिन दीप दान देने का विधान बतलाया और कहा कि जो लोग मेरे लिए धनतेरस के दिन दीप-दान और व्रत करेंगे उनकी असामयिक मृत्यु कदापि नही होगी. 

लोकाचार मान्यताओं और परंपरा के अनुसार इस दिन कुबेर और धनवंतरी की पूजा भी होती हैं, हालांकि कुबेर और धनवंतरी पूजन धनत्रयोदशी के दिन करना चाहिए इसका विवरण पद्म पुराण या स्कंद पुराण आदि में नहीं मिलता पर क्योंकि यह पुरानी परंपरा हैं और हमारे पूर्वज इसे करते आ रहे हैं. इसलिए कुबेर और धनवंतरी का पूजन भी करना चाहिए. मनुस्मृति 2.6 मेधातिथि भाष्य भी यही कहती है कि अगर पुरानी परंपरा अच्छी हैं तो उसे स्वीकार करना चाहिए.

पूजा विधि : –
इस दिन यमराज की पूजा की जाती है जिससे वे प्रसन्न रहें तथा अकाल मृत्यु का निवारण करते रहें. धनतेरस के दिन हल से जुती हुई मिट्टी को दूध में भिगों कर सेमल वृक्ष की डाली में लगाये और उसको तीन बार अपने शरीर पर छिड़क कर कुमकुम का टीका लगाएं तथा पुनः कार्तिक स्नान करें. प्रदोष के समय मठ, मन्दिर, कुंआ, बावली, बाग, गोशाला, तथा गजशाला आदि स्थानों में तीन दिन तक लगातार दीपक जलाए. यदि तुला राशि का सूर्य हो तो चतुर्दशी और आमावस्या की शाम को एक जली लकड़ी लेकर तथा उसको घूमाकर पितरों को भी मार्ग दिखाने का विधान है. इस प्रकार धनतेरस के दिन दीपदान तथा यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय टल जाता है. इसलिए मित्रों कृपया कर के यम दीप प्रज्वलित करना ना भूलें.

ये भी पढ़ें: धनतेरस से पहले मनाया जाता है गोवत्स द्वादशी या वसु बारस, जानिए इस पर्व का शास्त्रीय महत्व

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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