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सरकार को लगता है वैकल्पिक ऊर्जा के जरिए 2047 तक हो सकते हैं एनर्जी इंडिपेंडेंट

ये जो ट्रांजिशन हो रहा है कंवेन्शनल एनर्जी से रिन्यूबल एनर्जी में उसमें 30 साल लग सकते हैं. कुछ देशों में 10 साल भी लग सकते हैं.

केन्द्र सरकार ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए लगातार कदम आगे बढ़ा रही है. सरकार की नीति ये है कि ये तमाम निर्भरता को कैसे खत्म किया जाए और 2047 तक भारत उर्जा की दृष्टिकोण से आजाद हो जाए. इस ओर सरकार कदम उठा रही है. अब यदि प्रकृति ने आपको तेल, गैस या यूरेनियम नहीं दिया तो बहुत ज्यादा कुछ कर नहीं सकते. इसीलिए सरकार नए संसाधनों को ढूंढ रही है. जिनमें खासतौर पर वैकल्पिक ऊर्जा (रिन्यूबल एनर्जी) पर सरकार का फोकस है. सरकार का लगता है कि वैकल्पिक ऊर्जा के माध्यम से हम 2047 तक एनर्जी इंडेपेंडेंट हासिल कर सकते हैं और आयात पर अपनी निर्भरता को लगभग शून्य कर सकते हैं. 

आज भारत की अर्थव्यवस्था निर्यात के ऊपर बहुत ज्यादा निर्भर है. हम 85 फीसदी तेल आयात करते हैं. प्राकृतिक गैस का लगभग 60 फीसदी आयात करते हैं. हम काफी हद तक यूरेनियम भी आयात करते हैं. जो सौर उर्जा का उत्पादन हम करते हैं. उसमें भी 85-80 फीसदी हम आयात करते हैं. 

सरकार ने तमाम कदम उठाए. बजट में भी आपने देखा कि ग्रीन एनर्जी पर बहुत ज्यादा फोकस किया गया. ग्रीन एनर्जी खाली परिवहन के लिए नहीं बल्कि इससे अब पूरी अर्थव्यवस्था को डी-कार्बनाइज्ड करने का प्रयास है. उसके लिए 35 हजार का एलोकेशन भी हमने देखा. हमने ये भी देखा कि बॉयो फ्यूल पर काफी जोर है. उसमें इथेनॉल वगैरह भी शामिल है. इसके अलावा हमने ये देखा है कि हाइड्रोजन के लिए सरकार ने बहुत बड़ा प्रोत्साहन और आवंटन किया है. सरकार का मानना है कि आने वाले समय में हाइड्रोजन, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल ऊर्जा के माध्यम से हम अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार कर पाएंगे. 

सरकार के सामने क्या-क्या चुनौतियां?

ये सारे ऊर्जा क्षेत्र में स्वावलंबी होने के लिए बहुत अच्छे कदम हैं. दिशा तय की गई है, दिशा को लेकर एक रोडमैप बनाया गया है. अब इस पर हमें चर्चा करनी है कि जो सरकार का रोडमैप है, उसमें कितनी मुश्किलें हैं और कितनी संभावनाएं हैं और कितनी वहां पर चुनौतियां हैं. 

भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था है. यहां की आबादी 140 करोड़ हो चुकी है. हमारे यहां पर पर कैपिटा एनर्जी कंजप्शन बहुत कम है. अभी भी हमारे देश में तमाम लोग हैं जो ऊर्जा की दृष्टिकोण से गरीब हैं. जितनी शहरों में जितनी ऊर्जा की खपत होती है और जो सुविधाएं मिलती हैं. वो अधिकांश लोगों को नहीं मिलती है. दिल्ली जैसे शहरों में जहां पर हम ये देखते हैं कि घरों में 4-4 एसी लगा हुआ है, लेकिन हर जगह ऐसा नहीं है. खासतौर पर, ग्रामीण आंचल में और उत्तर प्रदेश, बंगाल या ओडिशा जैसे राज्यों में. तमाम लोग आज बिजली इसलिए नहीं ले पा रहे हैं क्योंकि बिजली महंगी है. उनकी क्रय शक्ति उतनी नहीं है. 

हमको कंवेन्शनल एनर्जी (कोयला, पेट्रोल, डीजल, प्राकृत्रित गैस) से हमको ग्रीन एनर्जी में जाना है. मेरा अपना ये मानना है कि सरकार को जो कदम उठा रही है उसके बावजूद हमको कन्वेंशनल एनर्जी से निकलकर ग्रीन एनर्जी पूरा हो जाए ये सफर बड़ा लंबा होने वाला है. इसमें आने वाले 30-40 साल लग सकते हैं. 

ट्रांजिशनल फेज में रहेगी चुनौती

2070 का टारगेट बनाया गया है. मुझे लगता है कि इसमें समय लगने वाला है. अभी कोयले और तेल पर हमारी निर्भरता बरकरार रहने वाली है. कुकिंग के लिए प्राकृत्रिक गैस पर हमारी निर्भरता बढ़ने वाली है. वैकल्पिक ऊर्जा में हमारी मांग भी बढ़ने वाली है, उत्पादन भी बढ़ने वाली है. 

रिन्यूबल एनर्जी का भारत में जबरदस्त विस्तार होगा, लेकिन कंवेन्शनल एनर्जी की मांग भी बढ़ेगी. 25-30 साल बाद कंवेन्शनल एनर्जी की हिस्सेदारी कम होने लगेगी और रिन्यूबल एनर्जी की बढ़ने लगेगी. 2060 तक वो समय आ जाएगा कि जो रिन्यूबल एनर्जी है वही ज्यादा नजर आएगी. कोयला से काफी हद तक निर्भरता कम हो चुकी होगी. तेल और प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल लगभग न के बराबर होगा. लेकिन अभी ट्रांजिशन का फेज है. आने वाले 20-30 साल दोनों पर हमें काम करना होगा. कोयले, तेल आदि का उत्पादन बढ़ाना पडे़गा और साथ-साथ वैकल्पिक ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा. 

लोग जब इलेक्ट्रिक व्हीकल की बात करते हैं, तो हमको ये नहीं समझ में आता कि इलेक्ट्रिक व्हीकल तो बिजली से चलेगी. इसके लिए बिजली कहां से आएगी. डीजल की जगह हम इलेक्ट्रिकल व्हीकल लेकर आ जाएं, लेकिन बिजली उत्पादन के लिए ईंधन कहां से आएगा, क्योंकि अभी तो ज्यादातर कोयले से बिजली बन रही है. उसका निर्माण कहां से होगा? 

बिजली का निर्माण आज की तारीख में तो हम ज्यादातर कोयले से कर रहे हैं या डीजल से भी कर रहे हैं. अब कुछ हद तक सौर ऊर्जा से भी कर रहे हैं. ये जो ट्रांजिशन हो रहा है कंवेन्शनल एनर्जी से रिन्यूबल एनर्जी में उसमें 30 साल लग सकते हैं. कुछ देशों में 10 साल भी लग सकते हैं. कुछ में 5 भी लग सकते हैं, लेकिन भारत में 30 साल लग सकते हैं. 

आज से तीस साल बाद हमारी ऊर्जा का बहुत बड़ा हिस्सा सौर ऊर्जा, हाइड्रोजन और आणुविक से आएगा. इसके अलावा और भी जो नए सोर्सेस निकलकर आ रहे हैं, वो उनसे भी आ सकता है. जिसमें टाइडल एनर्जी है. इनसे प्रदूषण नहीं होगा. हमारा रोजाना का जीवन ऐसी ऊर्जा पर होगा, जिसमें ना प्रदूषण होगा और ना ही वो ज्यादा महंगी होगी. हमारी पूरी जीवनशैली (खाना बनाने, ऑफिस जाने, लाइट जलाने) में आज सब जगह अलग-अलग एनर्जी दिखती है, ये सब खत्म हो जाएगी. घरो में ज्यादात खाना बिजली पर बनेगा. वाहनों में वैकल्पिक ऊर्जा का इस्तेमाल होगा. रेलवे के अंदर में भी बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन का प्रयोग हो रहा होगा. 

आज से 30 साल बाद हमारे शहर प्रदूषण मुक्त हो चुके होंगे. गैस कनेक्शन खत्म हो जाएंगे. गांव और कस्बे भी ऑटोनमस हो जाएंहे. अब बिजली का युग आ जाएगा. हालांकि वो यात्रा अभी बहुत लंबी है. अगले 30 साल के बाद नया भारत सबके सामने होगा.

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