UP Nikay Chunav 2023: उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में पसमांदा मुस्लिमों पर बीजेपी ने खेला दांव, कितना कारगर साबित होगा ये प्रयोग?
UP Nikay Chunav 2023: निकाय चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों को बंपर टिकट देने के इस कदम को 2024 चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें बीजेपी पसमांदा मुस्लिमों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करेगी.
UP Nikay Chunav 2023: उमेश पाल की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या फिर एक के बाद एक कई एनकाउंटर और आखिर में अतीक-अशरफ हत्याकांड के ठीक बाद उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव होने जा रहे हैं. इन चुनावों में बीजेपी और विपक्षी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, क्योंकि इसे 2024 लोकसभा चुनावों के नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है. बीजेपी अगर अपने सबसे बड़े सूबे में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती है तो इसका असर आने वाले लोकसभा चुनावों में दिख सकता है. इसीलिए पार्टी की तरफ से निकाय चुनावों में प्रयोग किए जा रहे हैं. बीजेपी ने इस बार सबसे बड़ा प्रयोग मुस्लिम उम्मीदवारों की झड़ी लगाकर कर दिया है. आइए समझते हैं कि कैसे बीजेपी ने ये दांव खेला है और आने वाले चुनावों में इसका कितना फायदा होगा.
बीजेपी ने खेला मुस्लिम कार्ड
उत्तर प्रदेश में होने जा रहे निकाय चुनावों में बीजेपी ने बड़ा प्रयोग करते हुए कुल 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. बीजेपी की तरफ से पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेला गया है. खासतौर पर पार्टी ने महिला उम्मीदवारों को उतारकर बताया है कि वो मुस्लिम महिलाओं के विकास पर काम कर रही है. बीजेपी के इस कदम को 2024 चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें बीजेपी पसमांदा मुस्लिमों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करेगी. यही वजह है कि कुल मुस्लिम उम्मीदवारों में 90 फीसदी से ज्यादा पसमांदा मुस्लिम हैं. यानी बीजेपी यूपी में अभी से अपने 'मिशन-80' में जुट गई है.
यूपी में मुस्लिम वोटबैंक
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में मुस्लिम वोट बैंक भी हर पार्टी के लिए काफी ज्यादा अहम हो जाता है. मुस्लिमों को लुभाने के लिए हर बार तमाम दल कोशिश करते हैं. इस समुदाय का झुकाव मायावती की पार्टी बसपा और अखिलेश यादव की सपा की तरफ ही ज्यादा रहा है. पिछले कुछ चुनावों से ये देखने को मिला है कि मायावती की पार्टी से मुस्लिम वोट छिटके हैं, जिसका फायदा अब बीजेपी उठाना चाहती है. बीजेपी की कोशिश अखिलेश यादव के मुस्लिम-यादव समीकरण को कमजोर करने की है.
- उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों का वोट प्रतिशत करीब 20% है, जो अलग-अलग पार्टियों में बंटा हुआ है.
- उत्तर प्रदेश में करीब 140 सीटों पर मुस्लिम वोटर जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं.
- पिछले निकाय चुनाव में बीजेपी ने 187 उम्मीदवारों को टिकट दिया, सिर्फ दो ही उम्मीदवार चुनाव जीते
- उत्तर प्रदेश में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में कुल 403 सीटों में से 34 सीटें मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीती थीं, जो कि कुल सीटों का महज करीब 8 फीसदी था.
- विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले 34 मुस्लिम नेताओं में से 32 समाजवादी पार्टी से थे, जबकि बाकी दो राष्ट्रीय लोक दल के उम्मीदवार थे.
मायावती के लिए साख बचाने वाला चुनाव
मायावती की पार्टी बसपा के लिए पिछले तमाम चुनाव बेहद निराश करने वाले रहे. पिछले विधानसभा चुनावों में मायावती की पार्टी एक सीट पर सिमटकर रह गई. इसीलिए अब आने वाले निकाय चुनाव मायावती की पार्टी के लिए साख बचाने वाले चुनाव हैं. इसके लिए मायावती ने मुस्लिम-दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है और इस समीकरण के जरिए वो फिर अपनी खोई हुई जमीन तलाशने की कोशिश कर रही हैं. बसपा ने कुल 17 मेयर उम्मीदवारों में से 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं.
क्या वाकई हो रहा सबका साथ सबका?
अब बीजेपी ने भले ही निकाय चुनाव में बंपर मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर एक बड़ा प्रयोग किया हो, लेकिन बाकी चुनावों के आंकड़े कुछ और ही गवाही देते हैं. निकाय चुनावों को छोड़ दें तो बीजेपी का सबका साथ सबका विकास का नारा विधानसभा और लोकसभा चुनावों में पूरा होता कभी नहीं दिखा. इसका एक उदाहरण ये है कि उत्तर प्रदेश कैबिनेट में एक भी मुस्लिम नेता नहीं है. निकाय चुनावों में 395 उम्मीदवार उतारे जाने पर विपक्षी नेता भी बीजेपी से यही सवाल कर रहे हैं. उनका कहना है कि बीजेपी गली-मोहल्ले के चुनाव तक ही मुस्लिमों को सीमित रखना चाहती है, देश और प्रदेश की राजनीति में उनकी भागीदारी लगातार कम हो रही है.
क्या कहते हैं आंकड़े
पिछले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था. बीजेपी और खुद योगी आदित्यनाथ ने इस पूरे चुनाव को 80 बनाम 20 का बताकर लड़ा था. जिसका नतीजा ये रहा कि सभी मुस्लिम वोट सपा के पाले में चले गए. अन्य राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों की तरफ नहीं देखा. करीब 15 राज्य ऐसे हैं जहां एक भी मुस्लिम कैबिनेट मंत्री नहीं है. केंद्रीय कैबिनेट पर भी नजर डालें तो नकवी के इस्तीफे के बाद यही तस्वीर नजर आती है. यही वजह है कि मुस्लिम कार्ड खेलने पर अब बीजेपी को चौतरफा घेरा जा रहा है.
कौन हैं पसमांदा मुस्लिम?
अब पिछले कुछ सालों से मुस्लिमों के जिस समुदाय की सबसे ज्यादा चर्चा वो पसमांदा मुस्लिम हैं. यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भी इस समुदाय का काफी जिक्र हुआ था. दलित और पिछड़े मुसलमान पसमांदा मुस्लिमों में आते हैं. मुस्लिमों में सबसे ज्यादा (करीब 80%) आबादी पसमांदा मुस्लिमों की ही है. फारसी में पसमांदा का मतलब ही पीछे छूट गए लोगों से होता है. बीबीसी के मुताबिक पसमांदा नाम का इस्तेमाल सबसे पहले 1998 में अली अनवर अंसारी ने किया था. तब उन्होंने पसमांदा मुस्लिमों के संगठन की शुरुआत की थी.
बीजेपी के लिए क्यों जरूरी हैं पसमांदा?
अब जैसा कि हमने आपको बताया कि देशभर में रहने वाले मुसलमानों में सबसे ज्यादा संख्या पसमांदा मुस्लिमों की है, ऐसे में राजनीति के लिहाज से ये तबका काफी अहम हो जाता है. बीजेपी की नजर मुस्लिमों के इसी 80% पर टिकी हुई है. पसमांदा मुस्लिमों के दिलों में अपनी जगह बनाने के लिए बीजेपी और आरएसएस के नेता पिछले कुछ सालों से लगातार मिशन में जुटे हैं. क्योंकि पिछड़े तबके से आने वाले पसमांदा मुस्लिमों को पिछले कई दशकों से तमाम दलों ने सिर्फ इस्तेमाल किया है, आलम ये है कि वो हर मोर्चे पर आज भी पिछड़े हैं, ऐसे में बीजेपी इस मौके को भुनाना चाहती है. बीजेपी की कोशिश है कि इस वर्ग के हितों की बात करके इसे अपने पाले में लाया जाए.
हालांकि राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कुछ हद तक बीजेपी इसमें कामयाब हो भी जाए, लेकिन जब तक बड़े स्तर पर बीजेपी मुस्लिमों को जगह नहीं देती है, तब तक ये समुदाय खुद को अछूता ही समझेगा. क्योंकि यूपी में देश की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी है, इसीलिए सबसे ज्यादा फोकस इसी राज्य पर किया जा रहा है. हालांकि योगी आदित्यनाथ की कट्टर हिंदूवादी छवि के बीच पसमांदा मुस्लिम बीजेपी की छतरी तले आते हैं या नहीं, इसे लेकर अब भी संशय बना हुआ है.
यूपी निकाय चुनाव के कुछ आंकड़े
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव दो चरणों में होने जा रहा है. पहले चरण के लिए 4 मई को वोट डाले जाएंगे, वहीं दूसरा चरण 11 मई को है. इसके बाद 13 मई को इस निकाय चुनाव के नतीजे सामने आएंगे. यूपी के 760 नगरीय निकायों में 14,684 पदों पर ये चुनाव होना है. इस निकाय चुनाव में करीब 4.32 करोड़ लोग अपना वोट डालेंगे.