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Lata Mangeshkar Biography: 5 हज़ार से भी ज्यादा गाना गाने वाली लता मंगेशकर का पहला गाना कभी नहीं हुआ रिलीज

भारत स्वर कोकिला, भारत रत्न, भारत की आवाज़ या यूं कहे भारत का सम्मान लता मंगेशकर. आज भले ही लता दीदी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी आवाज़ अमर है अजर है. जानिए उनकी ज़िंदगी से जुड़े कुछ किस्से.

(Lata Mangeshkar) लता मंगेशकर - पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru) की आंखें नम कर देने वाली लता मंगेशकर आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ ही उनकी पहचान है, जो सदैव हमारे कानों में गूंजती रहेगी. अपने सुरों से लोगों के दिलों में खास जगह बना चुकीं लता दीदी का जन्म मुंबई में हुआ. लता मंगेशकर का जन्म से नाम हेमा था, लेकिन उनके पिता ने उनका नाम बाद में बदलकर लता कर दिया. एक नाटक ‘भावबंधन’ के दौरान एक महिला के किरदार का नाम लतिका था. बस उसी लतीका के नाम से उन्हें लता नाम सूझा और हेमा का नाम बदलकर लता हो गया.

1963 को जब लता ने लाल किले पर 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गीत गाया था, तब लता के गाने में इतनी सच्चाई झलक रही थी कि पं. नेहरू अपनी आंखों को छलकने से रोक नहीं पाए. एक भाई और तीन बहनों में सबसे बड़ी लता अक्सर बचपन में छुपकर अपनी मां को और कामवाली बाई को गाना सुनाया करती थीं. लता अपने पिता से बेहद डरती थीं और यही वजह रही कि उनके पिता को ये पता ही नहीं था कि लता गाना भी गाती हैं. लेकिन जब उनके पिता को ये बात पता चली तब लता ने पहली बार 9 साल की उम्र में अपने पिता के साथ स्टेज पर गाना गाया था. 36 भाषोओं में 50,00 से भी ज्यादा गाना गा चुकी लता ने केवल 13 साल की उम्र में अपना सिंगिंग करियर शुरू किया. अब ज़ाहिर सी बात है इतना लंबा सिंगिंग करियर था, तो कोई ना कोई उनसे जुड़ा किस्सा भी जरूर रहा होगा. आज आपको कुछ ऐसे ही किस्सों के बारें में बताएंगे, जोकि लता दीदी से जुड़े हैं.

लता और मीना कुमारी की दोस्ती

शुरू से ही लता मंगेशकर और ट्रैजडी क्वीन मीना कुमारी अच्छी दोस्त थीं. मीना को लता की आवाज़ इस कदर पसंद थी कि वह उन्हें सुनने के लिए कई बार रिकॉर्डिंग स्टूडियो तक पहुंच जाया करती थीं. लता का खुद मानना था कि उनकी आवाज़ सबसे ज्यादा किसी एक्ट्रेस पर फब्ती है तो वह है मीना कुमारी और नरगिस.

Lata Mangeshkar Biography: 5 हज़ार से भी ज्यादा गाना गाने वाली लता मंगेशकर का पहला गाना कभी नहीं हुआ रिलीज

ये गाना कभी नहीं हुआ रिलीज

लता ने लगभग 50,00 से भी ज्यादा गाने गाएं, लेकिन उनका पहला गीत कभी रिलीज ही नहीं हुआ. ये गाना उन्होंने एक मराठी फिल्म किट्टी हसल के लिए गाया था. गाने के बोल कुछ इस तरह से थे ‘नाचू आ गड़े, खेलो सारी मणि हौस भारी’. इस गाने का संगीत सदाशिवराज नेवरेकर ने दिया था. इस फिल्म के निर्देशक वसंत जोगलेकर थे. फिल्म के अंतिम कट में इस गाने को फिल्म से हटा दिया गया था. वैसे लता का पहला मराठी गाना था, मराठी फिल्म मंगला गौर के लिए. इस गाने के बोल ‘नताली चैत्रची नवलई’ थे. इस गाने को दादा चंदेकर ने संगीत से सजाया था.

फिल्म माया का गीत तस्वीर तेरी दिल में

यह बात है 1961 की. फिल्म ‘माया’ के गाने ‘तस्वीर तेरी दिल में’ की रिकॉर्डिंग के दौरान की. इस गाने को मोहम्मद रफी और लता ने अपने सुरों से सजाया. यह गाना तो सुपरहिट रहा, लेकिन इस गाने के बीच दोनों में ऐसी बहस छिड़ी कि फिर लता और रफी ने लगभग चार साल तक एक-दूसरे के साथ गाना नहीं गाया. इस गाने के दौरान लता और रफी के बीच गायकों कि रॉयल्टी पर बहस छीड़ी और ये बहस इतनी बढ़ गई कि फिर दोनों ने ही साथ में ना काम करने की बात एक-दूसरे से कह दी. दरअसल, लता ने फिल्म इंडस्ट्री में सभी सिंगर्स की आवाज़ उठाते हुए उनके लिए रॉयल्टी की डिमांड रखी थी और रफी इस बात के सरासर खिलाफ थे. लता ने गुस्से में आकर कहा कि वह उनके साथ इस गाने के बाद फिर कभी गाना नहीं गाएंगी. ये गाना देवानंद और माला सिंहा पर फिल्माया गया था.

रफी (Mohammed Rafi )और लता में हुआ झगड़ा

1969 में आई क्राइम थ्रिलर फिल्म ज्वैलथीफ ने उस समय कमाई के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. उस समय इस फिल्म ने 3 करोड़ 50,000 हजार का बिजनेस किया था. इस फिल्म के सभी गाने काफी फेमस हुए, जिनमें से एक गाने पर लोगों के पैर आज भी थिरकने पर मजबूर हो जाते है और वह गाना है 'होठों पे ऐसी बात'. इसके अलावा फिल्म के गाने ‘दिल पुकारे आ रे’ के बारें में बात करें तो इस गाने कि वजह से ही लता और रफी में फिर से दोस्ती हो गई. 1963 में हुई लड़ाई के बाद दोनों ने 1967 में इस फिल्म में एक साथ गाना गाया और इसके बाद इन दोनों के बीच कभी लड़ाई नहीं हुई. इस गाने की वजह से ही दोनों के बीच चार साल पुराना झगड़ा खत्म हुआ. लता ने ऐसे ही रफी को माफ नहीं कर दिया था. दरअसल, संगीतकार जयकिशन के कहने पर रफी ने लता को एक माफी भरी चिट्ठी लिखी, जिसे पढ़कर लता ने रफी को माफ कर दिया और तब जाकर कहीं लता का गुस्सा शांत हुआ और फिर इन दोनों ने इस फिल्म के गानों को अपनी आवाज़ दी. ये गाना देवानंद और वैजयन्ती माला पर फिल्माया गया था.


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किशोर कुमार (Kishore Kumar) ने आखिर क्यों किया लता का पीछा

यह ऐसी पहली फिल्म थी, जिसमें लता और किशोर कुमार ने पहली बार एक साथ गाना गाया. फिल्म जिद्दी के गीत ‘कौन आया रे’ के दौरान जब पहली बार लता और किशोर कुमार मिले थे, या यूं कहें कि इस गाने में किशोर-लता कि ट्यूनिंग एक-दूसरे के साथ इतनी अच्छी रही कि उन्होंने आगे चलकर एक साथ कई गीत गाए. लता और किशोर कि पहली मुलाकात काफी दिलचस्प रही. जब लता ने करियर कि शुरुआत कि तब वह लोकल ट्रेन से ही ट्रेवल किया करती थीं. एक दिन कि बात है जब महालक्ष्मी स्टेशन पर एक शख्स कुर्ता पजामा पहने और हाथ में लकड़ी की छड़ी लिए लता के ट्रेन के डिब्बे में चढ़ा, जिसमें लता पहले से ही मौजूद थीं. देखने में वो शख्स उन्हें ना जाने क्यों जाना पहचाना लगा और जब ट्रेन से उतरने के बाद लता ने आगे का सफर तय करने के लिए तांगा लिया तो वह शख्स भी तांगे के पीछे-पीछे आने लगा. लता उस शख्स को ऐसे पीछा करते देखकर काफी घबरा गईं थीं. वह जल्द से जल्द स्टूडियो पहुंचना चाहती थीं ताकि इस शख्स से वो छुटकारा पा सकें. लेकिन हैरानी की बात तो तब हुई जब वह शख्स उनके पीछे-पीछे स्टूडियो तक आ पहुंचा. लता ने तुरंत ही स्टूडियो में मौजूद संगीतकार खेमचंद्र से उस शख्स के बारें में पूछा तो उनका जवाब सुनकर लता खुद हैरान हो गई थीं. क्योंकि वह शख्स कोई और नहीं बल्कि किशोर कुमार थे. इस वाकये से खेमचंद्र खूब हंसे और लता को बताया कि यह तो किशोर कुमार हैं, अभिनेता अशोक कुमार के भाई. बतौर प्लेबैक सिंगर ये किशोर कुमार कि पहली फिल्म थी. इस फिल्म में किशोर ने पहली बार देवानंद को अपनी आवाज़ दी.

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बाथरूम में गाया गाना

यह बात है सन् 1960 कि जब लता ने फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ के सबसे फेमस गीत ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ कि शूटिंग की. इस गाने को मधुबाला पर फिल्माया गया था. इस फिल्म के लिए मधुबाला ने एक शर्त रखी थी कि इस फिल्म में उनपर जितने भी गाने फिल्माएं जाएं वो केवल लता ही गाएं. 150 गानों के रिजेक्शन के बाद गाना 'जब प्यार किया तो डरना क्या' सेलेक्ट किया गया था. इस गाने को शकील बदायुनी ने लिखा है और नौशाद ने संगीत दिया. दरअसल, इस फिल्म के निर्देशक के. आसिफ ने संगीतकार नौशाद को रुपयों से भरा ब्रीफकेश पकड़ाया और तब उनसे एक बात कही कि एक ऐसा गाना बनाओ जिसे लोग ताउम्र याद रखें. ये गाना आज हिस्टोरिकल गानों में से एक है. इस गाने में जो लता कि आवाज़ में उन्हें गूंज चाहिए थी, वह उन्हें स्टूडियो में नहीं मिल पा रही थी, इसलिए उन्होंने इस गाने को बाथरूम में रिकॉर्ड करवाया. उस ज़माने में 10 से 15 लाख में पूरी फिल्म बन जाया करती थी, लेकिन इस फिल्म के केवल इस गाने पर 10 लाख रुपये का खर्चा हुआ था.

कहीं भी गा लिया करते थे गाना

1949 में आईं फिल्म 'महल' का ये गाना 'आएगा आने वाला' काफी फेमस हुआ. ये लता के हिट गानों में से एक है. उस ज़माने में ज्यादातर गाना रिकॉर्ड करने के लिए रिकॉर्डिंग स्टूडियों का इंतज़ाम नहीं हो पाता था. इसी वजह से सिंगर्स जहां कहीं भी जगह खाली मिलती थी, वहीं पर गाना रिकॉर्ड कर लिया करते थे. ये गाना बॉम्बे टॉकीज में रिकॉर्ड किया गया था. उस समय लता के साथ एक वाकया हुआ. उस समय फिल्म एक्ट्रेस नरगिस और जद्दनबाई फिल्म लाहौर कि शूटिंग कर रही थीं. जब इन दोनों ने गाना रिकॉर्डिंग के समय लता कि आवाज़ सुनी तो वह दोनों ही सुनती रह गईं. जद्दनबाई को लता की आवाज़ इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने लता से मिलने कि इच्छा जताई और फिर लता से उनका नाम पूछा और कहा कि वह एक दिन बुलंदियों को छूएंगी, क्योंकि उनकी आवाज़ में वो कशिश है जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती है. उन्होंने लता कि तारीफ में कहा कि माशाल्लाह, क्या तलफ्फुज पाया है, दीपक बगैर परवाने जल रहे हैं.

जब लता का गाना सुन पंडित नेहरू की आंखों में आए आंसूं

यह बात है 1963 कि जब लता ने पहली बार दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में भारत-चीन के युद्ध के शहीदों को याद करते हुए गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया था. उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में मौजूद थे. इस गाने को सुनकर पं. नेहरू ने लता से मिलने कि इच्छा जताई और जब वह लता से मिले तो उन्होंने लता से कहा कि उन्होंने इतनी खूबसूरती और मन से इस गीत को गाया कि उनके आंसू ही निकल पड़े.

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राज कपूर (Raj Kapoor) फिल्म में लता को कास्ट करना चाहते थे

फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' का टाइटल ट्रैक जब लता जी गा ही रही थी तब फिल्म के निर्देशक राज कपूर कि लता से किसी बात को लेकर बहस हो गई और लता ये गाना बीच में ही छोड़कर चली गईं. लेकिन फिर गीतकार पं. नरेंद्र शर्मा के कहने पर लता ने 6-7 मिनट में पूरे गाने को एक टेक में ही रिकॉर्ड कर दिया. लता पं. नरेंद्र को पापा कहकर बुलाती थीं और उनका अपने पिता कि तरह ही सम्मान करती थीं. यह फिल्म राज कपूर ने लता मंगेशकर से इंस्पायर होकर लिखी थी, इसलिए वो इस फिल्म में लता को ही कास्ट करना चाहते थे.

जब गाने के दौरान भावुक हुईं लता

फिल्म 'बैजू बावरा' के गाने 'मोहे भूल गए सांवरिया' कि कुछ लाइनों को गाने के वक्त लता का गला भर आया और उनकी आवाज़ अचानक रिकॉर्डिंग के वक्त आनी बंद हो गई. वहां पर मौजूद सभी को यही लगा की मशीनों में कुछ फॉल्ट हो गया है और वह अपनी मशीने चेक करने लगे, लेकिन जब मशहूर संगीतकार नौशाद ने रिकॉर्डिंग रूम में जाकर देखा तो लता एकदम शांत खड़ी थीं और उनकी आंखें आंसुओं से भरी थी. इस गाने के बोल को गाकर लता भावुक गो गई थीं. इस मसले के बाद लता ने थोड़ी देर का ब्रेक लिया और फिर उन्होंने इस गाने की रिकॉर्डिंग की.

दिलीप कुमार (Dilip Kumar) से नाराज़ हुईं लता

फिल्म मुसाफिर का गाना ‘लागी नाही छूटे’ लता ने गाना गया था और आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गाने को लता के अलावा दिलीप कुमार ने अपनी आवाज़ दी थी. इस गाने कि जब रिकॉर्डिंग हो रही थी, तब दिलीप कुमार को नहीं पता था कि इस गाने को उनके साथ स्वर कोकिला लता गाएंगी. दिलिप कुमार रिकॉर्डिंग के समय लता को वहां देखकर हैरान हो गए, क्योंकि लता रही है सुरों की देवी और दिलीप कुमार का उनके सामने यूं गाना उन्हें अजीब सा लग रहा था. इसलिए जब लता को देखकर दिलीप कुमार नर्वस हुए तब फिल्म के संगीतकार सलील चौधरी ने दिलीप कुमार को ब्रांडी पिलाई ताकि वो लता के सामने बेझिझक गा सकें. पर होनी को कुछ और ही मंजूर था, इस गाने की रिकॉर्डिंग के वक्त दिलीप कुमार और लता के बीच एक बात को लेकर कड़वाहट आ गई थी. दरअसल, दिलीप कुमार ने लता से कहा था कि मराठियों की उर्दू दाल-चावल जैसी होती है. लता, दिलीप कुमार के इस कमेंट से काफी आहत हुई थीं.

 

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