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बेगम अख्तर जयंती: बचपन में हुआ था रेप, जिंदगी से लड़कर गायकी को अपना सब कुछ दे दिया और बन गईं 'मल्लिका-ए-ग़ज़ल'

Begum Akhtar Birthday: आज बेगम अख्तर की जयंती है. भारत में शास्त्रीय रागों पर आधारित गजल गायकी में बेगम अख्तर का प्रमुख स्थान है.

Begum Akhtar Birthday: बेगम अख़्तर उस गायिका का नाम है जिनका हाथ हरमुनियम पर पानी की तरह चलता था. बेगम अख़्तर उस गायिका का नाम है जो आज़ाद पंक्षी की तरह गाती थी. बेगम अख़्तर उस गायिका का नाम है जिसने अपनी गायकी को अपनी तन्हाई का साथी बनाया. आज उसी मल्लिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख़्तर की जयंती है. संगीत को शिद्दत से महसूस करने वाली और ग़ज़ल से दिल पिघला देने वाली बेगम अख़्तर के नाम में बेशक 'बेगम' लगा हो लेकिन ज़िंदगी के साथ ग़म का नाता ऐसा रहा जैसे धड़कन और सांसों का रहता है. तकलीफें और ज़माने की हिकारत ही थी कि जब दर्द शब्दों के जरिए गले के निकला तो अख़्तरीबाई फ़ैज़ाबादी ज़माने भर में मल्लिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख़्तर के नाम से मशहूर हो गईं.

बेगम अख्तर का जन्म सात अक्टूबर 1914 उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में हुआ था. वह बचपन से ही गायिका बनना चाहती थीं लेकिन उनके परिवार वाले उनकी इस इच्छा के सख्त खिलाफ थे. हालांकि उनके चाचा ने उनके शौक को आगे बढ़ाया.  कुलीन परिवार से ताल्लुक रखने वाली अख्तरी बाई को संगीत से पहला प्यार सात साल की उम्र में थियेटर अभिनेत्री चंदा का गाना सुनकर हुआ. उस जमाने के विख्यात संगीत उस्ताद अता मुहम्मद खान, अब्दुल वाहिद खान और पटियाला घराने के उस्ताद झंडे खान से उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की दीक्षा दिलाई गई.

जब बेगम अख़्तर ने कहा- संगीत नहीं सीखना

उनके बचपन का एक किस्सा काफी मशहूर है. बचपन में वह संगीत सीखने उस्ताद मोहम्मद खान के पास जाया करती थी. शुरुआती दिनों में बेगम अख़्तर सुर नहीं लगा पाती थी, जिसकी वजह से उस्ताद मोहम्मद खान ने एक बार उन्हें डांट दिया. इसपर बेगम अख़्तर रोने लगीं और कहा कि उन्हें संगीत नहीं सिखना. इसके बाद उनके उस्ताद ने उन्हें प्यार से समझाते हुए कहा, ''बस इतने में ही हार मान गयी, ऐसे हिम्मत नहीं हारते, मेरी बहादुर बिटिया चलो एक बार फिर से सुर लगाने में जुट जाओ,'' बस फिर क्या था बेगम अक़्तर ने एक बार फिर कोशिश की और आज दुनिया उन्हें उनके सुर साधना के लिए जानती है.

संगीत साधना ने बेगम अख़्तर को एक बेहतरीन गायिका के रूप में बचपन में ही तैयार कर दिया था. बेगम अख्तर ने 15 वर्ष की बाली उम्र में मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति दी थी. यह कार्यक्रम वर्ष 1930 में बिहार में आए भूकंप के पीड़ितों के लिए आर्थिक मदद जुटाने के लिए आयोजित किया गया था, जिसकी मुख्य अतिथि प्रसिद्ध कवयित्री सरोजनी नायडू थीं. वह बेगम अख्तर की गायिकी से इस कदर प्रभावित हुईं कि उन्हें उपहार स्वरूप एक साड़ी भेंट की.

बचपन में हुआ था बलात्कार

ज़िंदगी लोगों को न जाने कितने बेरहमी के रंग दिखाती है. बेगम अख़्तर की आवाज़ में जो दर्द है वह भी जमाने के दिए ज़ख्मों की वजह से है. बशीर बद्र साहब के शब्दों में कहें तो

''ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है''

बेगम अख़्तर की आवाज़ में भी यह रौशनी एक गहरे और विभत्स्य अंधेरे के बाद आई थी. बेगम अख्तर ने कई उस्तादों से संगीत सीखा. सात साल की उम्र में उनके जीवन में एक बड़ी दर्दनाक और अमानवीय घटना घटी. उनके एक उस्ताद ने गायकी की बारीकियां सिखाने के बहाने उनकी पोशाक उठाकर अपना हाथ उनकी जांघ पर सरका दिया था. बेगम अख्तर पर किताब लिखने वाली रीता गांगुली ने भी इस तरह की बात का जिक्र अपनी किताब में किया है. उन्होंने कहा है कि उन्होंने संगीत सीखने वाली करीब 200 लड़कियों से उन्होंने बात की और लगभग सभी ने अपने उस्तादों को लेकर इस प्रकार की शिकायत की.

इस हादसे के अलावा एक और हादसा उनकी ज़िंदगी में घटा, जिससे वह कभी नहीं उबर पाईं. यह हादसा 13 साल की उम्र में हुआ था. उस वक्त बिहार का एक राजा उनका कदरदान बन गया था. उसने उन्हें गाना गाने के लिए अपने यहां न्योता दिया. इसके बाद उस राजा ने बेगम अख़्तर के साथ बलात्कार किया. इस घटना की वजह से वह प्रेग्नेंट हो गईं और एक बच्ची को जन्म दिया जिसका नाम शमीमा रखा. बहुत बाद में लोगों को उनके साथ हुए इस हादसे के बारे में पता चला, लेकिन इस क्रूर हादसे के बावजूद बेगम अख्तर ने दोबारा खुद को समेटा और जीवन को नए सिरे से शुरू किया.

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इश्तिआक अहमद अब्बासी से निकाह

बेगम अख़्तर ने इश्तिआक अहमद अब्बासी जो पेशे से एक वकील थे उनसे साल 1945 में निकाह किया. इस निकाह के बाद ही वह अख़्तरी बाई फ़ैज़ाबादी से बेगम अख़्तर बन गयीं. निकाह के बाद उन्होंने गायकी छोड़ दी. गायकी तो उन्होंने छोड़ दी थी लेकिन वह इस दौरान ठीक उसी तरह तड़प रही थी जैसे पानी के बिना कोई मछली तड़पती है. हालांकि 1949 में वह गायकी में वापस आईं. उन्होंने तीन ग़ज़ल और एक दादरा गया. इनके गायकी का सिलसिला उनके आखिरी सांस तक जारी रहा.

हार्ट अटैक से हुआ था इतंकाल

जिसकी ज़िंदगी एक मुक्कमल कहानी हो उसकी मौत कैसे निरस हो सकती थी. बेगम अख्तर की मौत से भी एक किस्सा जुड़ा हुआ है. 1974 में बेगम अख्तर ने एक महफिल में कैफी आजमी की यह गजल गाई ''वो तेग मिल गई, जिससे हुआ था कत्ल मेरा, किसी के हाथ का लेकिन वहां निशां नहीं मिलता.''. अहमदाबाद के मंच पर जब उन्होंने ये गाना गाया तो शायद ही वहां कोई भी था जिसकी आंखों में आंसू न हो. जब वह गा रही थीं तब उनकी तबीयत काफी खराब थी. गाते हुए ही उनकी तबीयत और बिगड़ गई. उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा और वहां हार्ट अटैक के कारण उनका इंतकाल हो गया. किसी ने सोचा भी नहीं था कि जिस ग़ज़ल का मिसरा वह गुनगुना रही थी वह इतनी जल्दी सच हो जाएगा. इंतकाल के बाद बेगम को लखनऊ के बसंत बाग में सुपुर्दे-खाक किया गया.

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सबसे मशहूर ग़ज़ल -

''वो जो हममे तुममें क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो, वही यानी वादा निभाह का तुम्हे याद हो के न याद हो'' लखनऊ के हैवलक रोड इलाके में बेगम साहिबा का मकान भले ही वीरान पड़ा है मगर आज भी फिज़ाओं में मानो यह ग़ज़ल गूंजती है. यह उनकी सबसे पॉपुलर गज़ल है. इसे मोमिन ख़ां मोमिन ने लिखा है.

चर्चित लेखक और संगीत अध्येता यतीन्द्र मिश्र ने भी उनके जीवन पर एक किताब प्रस्तुत की है. इस किताब का नाम 'अख़्तरी : सोज़ और साज़ का अफ़साना'. इस पुस्तक में उन्होंने बेगम अख़्तर के बारे में लिखा है, ''उस दौर में बेगम अख़्तर ने अपनी पूरी रवायत को इज़्ज़त दिलवायी. ठुमरी, दादरा और ग़ज़ल को शास्त्रीय संगीत के बराबर लाकर खड़ा किया और बड़े-बड़े दिग्गज उस्तादों से अपनी गायिकी का लोहा मनवाया. उनके गाने के बाद से ग़ज़ल के लिए कभी किसी ने कोई छोटी बात नहीं कही. यह बेगम अख़्तर की सफलता थी.'' यतीन्द्र मिश्र लिखते हैं, ''तमाम अन्य तवायफ़ों के अफ़सानों से अलग है. यहां मीर, ग़ालिब, मोमिन से लेकर ठुमरी, ग़ज़ल, कजरी के साथ पुराना फ़ैज़ाबाद, पुराना लखनऊ और पुरानी दिल्ली भी देखने को मिलती है.''

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