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जिन विकसित देशों को देख हम बना रहे कानून, वहां समलैंगिक विवाह को मान्यता, फिर भारत में क्यों विरोध

समलैंगिकता विवाह कानून पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ सुनवाई कर रही है. केन्द्र सरकार ने इसका विरोध किया है. जबकि दूसरी तरफ याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि जिस तरह से विधवा पुनर्विवाह को समाज ने स्वीकार किया उसी तरह से ये कानून भी समाज स्वीकार कर लेगा. लेकिन, मेरा जहां तक मानना है तो ये एक प्रोग्रेसिव और इंटैलेक्चुअल सोसाइटी में जो भी आर्टिकल 21 के अनुरूप तहत वो किसके साथ मैरिज करते हैं, किसके साथ रहना चाहते हैं ये उनका मौलिक अधिकार है. इसलिए, सरकार को इसमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

ज्यादातर जो विकसित देश हैं, जिनके नियम-कानून से प्रभावित होकर हम अपने देश में भी प्रोग्रेसिव कानून बनाते है, वहां भी समलैंगिकता विवाह कानून को मान्यता दे दी गई है. इसलिए भारत में भी केन्द्र को ऑब्जेक्शन नहीं होना चाहिए. क्योंकि, इसमें नुकसान कुछ भी नहीं है.

समलैंगिक विवाह कानून पर क्यों हिचक रही सरकार?

कोई भी सरकार या देश अपने लोगों को उनके व्यक्तिगत मौलिक अधिकार  को नहीं रोक सकते और उनके हमारा संविधान भी सही ठहराता है. लेकिन, इसमें दो-तीन चीजें काफी महत्वपूर्ण हैं, जैसे- हिन्दू मैरिज एक्ट, मुस्लिम पर्सनल लॉ, स्पेशल मैरिज एक्ट. जहां पर मेल और फीमेल की मैरिज की बात हो, जिसमें पुरूष और महिला की बात है. वहां पर संशोधन किया जा सकता है. तीसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि सर्वोच्च अदालत ने 377 को खत्म कर दिया. इसे असंवैधानिक करार दिया. 377 को असंवैधानिक करार देने के बाद LGBT के राइट्स की सुरक्षा की गई है.

अगर एक साथ रहने के लिए आपने एलजीबीटी को इजाजत दे दी तो तो उसी से एक कदम आगे है कि समलैंगिकता विवाह कानून को मान्यता दे देना चाहिए. ये मेरी व्यक्तिगत राय है. इसमें कोई ऑब्जेक्शन करने वाली बात नहीं आनी चाहिए. आज नहीं तो कल ये चीजें होनी तय है. लोगों के माइंडसेट और परिस्थितियां जब बदलती है तो सोसाइटी प्रोग्रेसिव होती है.

अगर इसमें केन्द्र आपत्ति करता है को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ये निर्देश दिया जा सकता है कि कमेटी बनाकर और सर्वे कर कानून बनाया जाए. इसमें मिसयूज ने हो कि कोई व्यक्ति किसी को इन्फ्लूएंस कर रखा है और फिर वह मैरिज भी करना चाह रहा है. ये मिसयूज नहीं होना चाहिए.

खजुराहो में भी इसका उल्लेख

सरकार तो इसमें अपना वर्जन कोर्ट में रखेगी. ऐसा भी नहीं है कि समाज में इसे स्वीकार नहीं किया गया लेकिन ये खुलेतौर पर नहीं स्वीकारा गया है. LGBT वाले लोग एक साथ रह रहे हैं. मुकुल रोहतगी ने भी कहा है कि खजुराहो में इसका उल्लेख किया गया है. हमारे ही देश का ये इतिहास है जो ये दिखा रहा है. जिसकी आज लोग मांग कर रहे हैं, खजुराहो में लगी मूर्तियां, चित्रकारी पूरी दुनिया देख रही है. इसका मतलब ये है कि उस वक्त ये चीजें स्वीकार्य थीं.

अगर खुलेआम स्वीकार्य नहीं भी थी तो चित्रकारी के माध्यम से दर्शाया गया है कि भले ही सासोइटी इन चीजों को खुलेआम न माने लेकिन सोसाइटी में ये वास्तविकता है. लोग सेम जेंडर के साथ रह रहे हैं. ये अलग बात है कि मैरिज जैसी इंस्टीट्यूशंस को इजाजत नहीं दी गई, सोसाइट ने इजाजत नहीं दी. 

जरूरी है मान्यता देना

लेकिन, प्रोग्रेसिव सोसाइटी का एक रुप दिखाएँगे कि जो लोग इस तरह से रह रहे हैं, सेम जेंडर के साथ, तो उनको हमने अधिकार भी दे दिया ओपनली रहें. अगर उनकी मैरिज लीगली कर दी जाती हैं तो बहुत सारे ऐसा राइट्स जो मैरिज के बाद दिए जाते हैं, परिवार की तरह उन्हें देखा जाएगा.

नहीं तो LGBT भी अगर साथ में रह रहे हैं तो  अगर 377 को असंवैधानिक करार दिया गया. उसके बावजूद ये फैमिली की डेफिनिशन में नहीं आता है. फैमिली डेफिनिशन में हम उन्हीं को कवर कर रहे हैं जो ब्लड रिलेशन में हैं या फिर जो लीगली रिलेशन में कपल हैं. ये भी इनको राइट मिलेगा, जिनसे बहुत सी चीजों पर असर होगा, चाहे वो प्रोपर्टी राइट हो, बच्चे को लेकर राइट्स हो. इसलिए समलैंगिक विवाह कानूनी तौर पर मान्यता देना बहुत जरूरी है.

क्या कहता है आर्टिकल 21?

आर्टिकल 21 ये कहता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके फ्रीडम और उसकी लिबर्टी से सरकार वंचित नहीं कर सकती है. सरकार अपने नागरिकों के फायदे के लिए नियम-कानून बना सकती है, लेकिन अगर उनकी कोई च्वाइस है, जो आर्टिकल 21 उनकी च्वाइस की रक्षा कर रहा है, और उससे किसी को समाज में नुकसान नहीं पहुंचा रहा है तो फिर उनके मौलिक अधिकार को आप नहीं रोक सकते हैं. आर्टिकल 19 कहता है कि रीजनेबल रिस्ट्रिक्शन लगा सकते हैं लेकिन जब लॉ एंड ऑर्डर या फिर किसी के हेल्थ का इश्यू हो. लेकिन, सेम जेंडर की शादी से तो लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति नहीं पैदा होगी. राष्ट्र को खतरा नहीं हो सकता है. किसी के हेल्थ का इश्यू नहीं हो सकता है. यानी, समलैंगिकता विवाह का कानूनी मान्यता देने से इन सभी चीजों पर कोई असर नहीं होगा.

[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]

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