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पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव पर BJP की नजर, PM मोदी ने खुद बढ़ाया प्रदेश अध्यक्ष का हौसला- ये हैं पूरे समीकरण
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West Bengal Panchayat Elections: देश में होने वाले तमाम विधानसभा चुनावों में बीजेपी को उसकी खास तैयारी के लिए जाना जाता है. ये बात सिर्फ विधानसभा चुनावों पर ही लागू नहीं होती है, बल्कि बीजेपी हर छोटे चुनाव को भी काफी गंभीरता से लेती है और जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देती है. हाल ही में हुए दिल्ली एमसीडी चुनाव में इसका उदाहरण देखने को मिला. अब इसी तरह की तैयारी पश्चिम बंगाल में शुरू हो चुकी है. पश्चिम बंगाल में होने जा रहे पंचायत चुनावों को लेकर पार्टी ने कमर कस ली है और खुद प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से इस बात के संकेत दिए गए हैं.
पीएम मोदी ने की प्रदेश अध्यक्ष की तारीफ
साल 2021 में हुए विधानसभा चुनावों में भले ही बीजेपी को ममता बनर्जी से हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इसके बावजूद पार्टी लगातार राज्य में अपनी जमीन बनाने की कोशिश में जुटी है. बंगाल पंचायत चुनाव से ठीक पहले दिल्ली में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई. जिसमें पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष सुकांता मजूमदार भी मौजूद थे. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने मजूमदार के काम की सराहना की, जिसे पार्टी और कार्यकर्ताओं के लिए एक बूस्टर की तरह माना जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी ने इस बात का जिक्र किया कि 2021 विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं को हिंसा का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल नहीं गिरा और बंगाल में बीजेपी फिर मजबूती से आगे बढ़ रही है. इसके लिए उन्होंने अध्यक्ष मजूमदार की लीडरशिप को सराहा. अब पंचायत चुनाव से पहले इसके काफी अहम मायने निकाले जा सकते हैं.
पार्टी अध्यक्ष का हौसला बढ़ाने का काम
पीएम मोदी ने मजूमदार का नाम लेकर और उनकी तारीफ कर सीधे तौर पर ये मैसेज दिया है कि अगर पार्टी ने उन्हें कोई जिम्मेदारी सौंपी है तो सभी को उसे मानना होगा. यानी शुभेंदु अधिकारी और दिलीप घोष जैसे बड़े नेताओं के सामने मजूमदार का कद बढ़ाने का काम पीएम की तरफ से किया गया. पीएम मोदी से मिली तारीफ के बाद पार्टी अध्यक्ष और ज्यादा आत्मविश्वास के साथ जमीनी स्तर पर काम करेंगे और खुद को बड़े नेताओं के सामने बौना नहीं समझेंगे.
पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती
बीजेपी के सामने पश्चिम बंगाल में पार्टी नेताओं को एकजुट रखने और अंदरूनी कलह को सुलझाने की भी बड़ी चुनौती है. फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष मजूमदार के सामने दिलीप घोष और टीएमसी से बीजेपी में आए शुभेंदु अधिकारी की तनानती एक बड़ी मुसीबत है. पिछले एक साल से इन दो बड़े नेताओं के आपसी मतभेद खुलकर सामने आए हैं, जिससे पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ है. दोनों ने खुलकर एक दूसरे के खिलाफ बयान दिए हैं, जो दिल्ली में बैठे नेताओं के कानों तक भी पहुंचे. यही वजह है कि अब बीजेपी नेतृत्व की तरफ से मजूमदार को फ्री हैंड देने के संकेत दिए जा रहे हैं.
बंगाल पंचायत चुनाव के तमाम समीकरण
पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग ने मार्च में राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का एलान कर दिया है, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2008, 2013 और 2018 में पिछले तीन चुनावों की तुलना में ग्रामीण निकाय चुनाव पूरी तरह से अलग परिस्थितियों में होंगे. 2008 में, ग्रामीण निकाय चुनाव हुए थे, जब हुगली जिले के सिंगूर और पूर्वी मिदनापुर जिले के नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विपक्षी तृणमूल कांग्रेस के दोहरे आंदोलन के कारण सत्तारूढ़ वाम मोर्चा जबरदस्त दबाव में था. तब वाम मोर्चा सरकार पंचायत के तीन स्तरों जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत में अधिकांश सीटों को बरकरार रखने में कामयाब रही.
हालांकि राज्य के कई हिस्सों में यह स्पष्ट था कि पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में वाम दलों की मजबूत पकड़ कमजोर पड़ने लगी थी. 2009 के लोकसभा चुनावों में ये कमजोरी और बढ़ गई और अंतत: 2011 में उन दरारों के कारण वाम मोर्चा शासन का पतन हो गया, जिसने 1977 से 34 वर्षों तक राज्य पर शासन किया था.
2018 में बीजेपी मुख्य विपक्षी दल के तौर पर आई सामने
2013 के पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव राज्य में पहले ग्रामीण निकाय चुनाव थे, जिसमें तृणमूल कांग्रेस सत्ता में थी और प्रमुख विपक्षी वाम मोर्चा ये नहीं पता था कि उनके ढहते संगठन नेटवर्क को कैसे पुनर्जीवित किया जाए. जैसे कि उम्मीद थी, तृणमूल कांग्रेस ने वाम मोर्चा के साथ सत्ताधारी दल के खिलाफ चुनावों में जीत हासिल की. 2018 के त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों में ग्रामीण निकाय के तीन स्तरों के बहुमत पर कब्जा करने में तृणमूल कांग्रेस के पूर्ण वर्चस्व की निरंतरता देखी गई. हालांकि, 2018 में नतीजे अलग थे, क्योंकि भाजपा पहली बार तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख विपक्ष के रूप में उभरी, जिसने वाम मोर्चा और कांग्रेस को तीसरे और चौथे स्थान पर धकेल दिया.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2008, 2013 और 2018 के पंचायत चुनावों में तीन सामान्य कारक थे. पहला यह था कि इन तीनों चुनावों में जबरदस्त हिंसा हुई थी जिसमें कई लोग मारे गए थे. दूसरा यह था कि इन तीनों चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के वोट शेयर में एक बड़ी वृद्धि देखी गई जो 2018 में चरम पर पहुंच गई. तीसरा, ग्रामीण बंगाल में वाम मोर्चा के वोट शेयर में भारी गिरावट थी.
इन मुद्दों पर टीएमसी को घेर सकती है बीजेपी
राजनीति की समझ रखने वाले लोगों को लगता है कि इस बार कई मजबूत मुद्दे हैं, जिन्हें विपक्ष पंचायत चुनावों में उजागर करना चाहेगी. हालांकि इनमें से अधिकतर मुद्दे ग्रामीण नगर निकायों से संबंधित नहीं हैं. इन मुद्दों में भ्रष्टाचार को लेकर नेताओं और मंत्रियों की गिरफ्तारी, शिक्षक भर्ती घोटाला, करोड़ों रुपये कैश की जब्ती और हिंसा शामिल हैं. बीजेपी इन तमाम मुद्दों पर ममता की पार्टी को घेरने की कोशिश करेगी.
हाल ही में पश्चिम बंगाल के नादिया पहुंचे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी ममता सरकार को जमकर घेरा और चुनावों का भी जिक्र किया. जिसमें उन्होंने कहा, "अगर ये जंगलराज नहीं रुका तो जनता दीदी को सबक सिखाएगी. पश्चिम बंगाल में कमल खिलेगा और राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद यहां से जंगलराज का खात्मा होगा और भ्रष्टाचारियों को जेल में भेजा जाएगा."
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